देश में कितनी सहायक हो सकती है ‘शहरी रोजगार गारंटी योजना’ !
देश में कितनी सहायक हो सकती है ‘शहरी रोजगार गारंटी योजना’, राजस्थान में मिल रहा लाभ?
गांवो में चल रही मनरेगा योजना को चुनौती देने के लिए शहरों में भी इंदिरा गांधी शहरी गारंटी योजना शुरू करने पर विचार किया जा रहा है. जिसे राजस्थान में शुरू भी किया जा चुका है.
इंदिरा गांधी रोजगार गारंटी योजना के तहत 125 दिन के रोजगार की गारंटी दी जाती है
देश में पिछले दशकों में बेरोजगारी की इतनी ऊंची दर नहीं देखी गई है. बेरोजगारी के वर्तमान स्तर की तुलना 1950 से 1970 के दशक से भी की जा सकती है. जब देश भर से हजारों बेरोजगार लोग संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन करने के लिए दिल्ली आए थे.
लगातार बढ़ती बेरोजगारी के लिए सरकार भी नए उपाय खोज रही है. उन्हीं में से एक है शहरी रोजगार गारंटी कानून. पिछले साल यानी 2022 में ही राज्यसभा में संसद सदस्य बिनॉय विश्वम ने इसे लेकर एक विधेयक भी पेश किया है.
दरअसल 9 सितंबर 2022 से देश में इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी योजना (आईजीआरवाई) शुरू की गई है. इस योजना का मकसद गांवों में 100 दिन के रोजगार की गारंटी देने के लिए चल रही महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) की तरह ही शहरों में भी लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाना है.
इस योजना के तहत सरकार द्वारा पहले 100 दिन के काम की गारंटी दी गई थी लेकिन वित्त वर्ष 2023-24 में इसे बढ़ाकर 125 दिन कर दिया गया. सबसे पहले राजस्थान सरकार ने इस ओर कदम आगे बढ़ाते हुए 18 जुलाई 2023 को विधानसभा में राजस्थान न्यूनतम आय गारंटी अधिनियम 2023 विधेयक पेश किया. जिसके अनुसार शहरी क्षेत्रों में रहने वाले हर वयस्क व्यक्ति को साल भर में कम से कम 125 के रोजगार का प्रावधान किया गया है.
देश के दूसरे राज्यों में हुई शुरुआत
इस तरह राजस्थान शहरी रोजगार का अधिकार देने वाला देश का पहला राज्य बन गया. हालांकि इससे पहले ओडिशा और झारखंड ने 2020 में लॉकडाउन के बाद रोजगार गारंटी योजना शुरू की थी. जिसका उद्देश्य था कि लॉकडाउन के बाद अपने शहर-कस्बों में लौटे लोगों को काम दिया जा सके. वहीं केरल में 2011 से ये योजना चल रही है. इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में भी 2019 से ये योजना चल रही है. लेकिन रोजगार के अधिकार से जोड़कर राजस्थान ने इसपर लंबी लकीर खींच दी है.
राजस्थान सरकार ने इस योजना के लिए 800 करोड़ का बजट तय किया है. जो किसी राज्य द्वारा शहरी रोजगार गारंटी योजना के लिए अबतक का सबसे अधिक बजट है. सरकार की वेबसाइट के अनुसार, जुलाई 2023 तक इस योजना के तहत 5.60 लाख लोगों के जॉब कार्ड बनाए गए हैं. वहीं इसके तहत 18, 484 कार्यों को भी पूरा किया जा चुका है.
इस योजना के तहत शहर का सौंदर्यीकरण का कार्य करवाया जाता है. जैसे शहर की दीवारों को रंगना, तालाबों की मरम्मत का काम करवाना और पौधारोपण जैसे काम करना. आईजीआरवाई में लोगों को उनके घर के पास काम देने का वादा किया गया है, इसलिए इस योजना में सबसे ज्यादा महिलाएं नामांकन करा रही हैं.
योजना की चुनौतियां
इस योजना के लाभ तो हैं ही, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं है. दरअसल इस योजना के तहत काम करने वाले लोगों को काफी कम दिहाड़ी मिलती है जिससे कुशल व्यक्ति इस योजना से नहीं जुड़ना चाहते. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि मेट को 271 रुपए रोजाना मिलते हैं, जबकि वही काम करने वाले मजदूर को उससे थोड़ा कम 259 रुपए का भुगतान किया जाता है. वहीं एक कुशल श्रमिक की मजदूरी 283 रुपए होती है.
ऐसे में जहां प्राइवेट काम करने पर लोगों को ज्यादा मजदूरी मिलती है तो वो इस योजना के तहत काम करने से बचते हैं. हालांकि अधिकारियों की मानें तो इस योजना का अहम मकसद उन लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाना है जिन्हें कहीं काम नहीं मिल रहा है. ताकि वो निराश न हों और कम से कम अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें. ये योजना गरीब महिलाओं के लिए अतिरिक्त आमदनी का जरिया भी बन रही है. राजस्थान के उदयपुर में रहने वाली शबनम कहती हैं कि वो लोगों के घरों में बर्तन साफ करने का काम करती हैं. अब वो सुबह-सुबह लोगों के घरों के काम कर आती हैं और फिर 9.30 बजे तक साइट पर पहुंच जाती हैं. फिर आकर शाम को कुछ घरों में बर्तन साफ करने जाती हैं. इससे उनकी आमदनी बढ़ गई है और महीने में अतिरिक्त लगभग 6,600 रुपए तक उनकी कमाई हो जा रही है. जिससे उन्हें परिवार चलाने में काफी मदद मिल रही है.
हालांकि राजस्थान में सबकुछ ठीक भी नहीं कहा जा सकता. दस सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारियों के द्वारा संचालित की जा रही तेलंगाना स्थित गैर-लाभकारी संस्था सेंटर फॉर रिसर्च इन स्कीम्स एंड पॉलिसीज ने हाल ही में एक रिपोर्ट पेश की है. जिसके तहत ‘इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी योजना कनकरंट इवेल्यूशन 2023’ में राजस्थान के शहरी रोजगार गारंटी योजना के बारे में दो चुनौतियों को सामने लाया गया है. पहली भुगतान में देरी और दूसरी सीमित कर्मचारी प्रशिक्षण.
अध्ययन में ये सामने आया है कि इस योजना के तहत काम करने वाले 38 प्रतिशत मजदूरों ने भुगतान में देरी की शिकायत की है. रिसर्च टीम ने शहरी स्थानीय निकाय में योजना के लिए विशेष रूप से चुने गए 56 कर्मियों जैसे जूनियर टेक्निकल असिस्टेंट, एमआईएस स्टाफ, लेखा सहायक और रोजगार सहायक का इंटरव्यू लिया और ये पाया कि उनमें से 60 फीसदी ने कोई ट्रेनिंग नहीं ली थी. जिसका परिणाम ये हुआ कि डेटा अपडेशन में देरी हो रही है और मजदूरों को मजदूरी देर से मिल रही है.
इसे देखते हुए अंदाजा लगाया जा सकता है कि यदि इस योजना की चुनौतियां खत्म हो जाएं तो ये शहरी क्षेत्रों में भी जरुरतमंद और बेरोजगार लोगों को भी फायदा पहुंचा सकती है