महाकाल की नगरी में क्या रात ठहर पाएंगे नए सीएम?
ज्योतिषियों ने कहा- महाकाल के आगे कोई प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री नहीं
मान्यता है कि उज्जैन में महाकाल विराजे हैं। ये उनकी नगरी है, इसलिए नगरी में एक ही राजा रह सकता है। वह हैं महाकाल…
डॉ. मोहन यादव उज्जैन के ही रहने वाले हैं तो वे रात में उज्जैन के अपने निजी आवास पर रुक सकेंगे या नहीं? इसे लेकर ज्योतिषाचार्य की अलग – अलग राय है। ज्योतिषाचार्य आनंद शंकर व्यास कहते हैं- यदि परंपरा है तो उसका पालन करना होगा। वहीं, पंडित विजयशंकर मेहता का कहना है कि यदि राजा मानकर रात गुजारेंगे तो दिक्कत है। आखिर क्या है उज्जैन का मुख्यमंत्री से जुड़ा मिथक? क्यों ये अब तक टूट नहीं पाया है?
सबसे पहले जानिए क्यों है उज्जैन का VVIP नेताओं से जुड़ा मिथक
महाकाल मंदिर के पुजारियों के मुताबिक बाबा महाकाल की अपनी एक परिधि है। यहां किसी भी राज्य का मुख्यमंत्री या राजघराने से जुड़ा व्यक्ति इस परिधि से दूर रहता है। महाकाल मंदिर पर जो ध्वज लहराता है उसे धर्मध्वजा कहते हैं। इस धर्मध्वजा की जहां तक छाया पड़ती है, उस परिधि तक कोई राजा रात में नहीं रुक सकता। विक्रमादित्य उज्जैन के राजा थे, तब उनका किला इसी परिधि में आता था।
कहा जाता है कि जब विक्रमादित्य न्याय करने जाते थे, तब राजा की कुर्सी पर महाकाल विराजित होते थे, इसलिए वे न्याय कर पाते थे। मान्यता के अनुसार विक्रमादित्य के बाद किसी भी राजा को राज करने का अधिकार तभी मिल सकता है, जब वह राजा विक्रमादित्य की तरह पराक्रमी और न्यायप्रिय हो। कुछ लोग मानते हैं कि यही वजह रही कि राजा भोज को अपनी राजधानी धार और भोपाल में बनाना पड़ी थी।
मोरारजी देसाई को देना पड़ा था इस्तीफा
उज्जैन का वीवीआईपी नेताओं से जुड़ा ये मिथक इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। मोरारजी देसाई भारत के चौथे प्रधानमंत्री थे। एक रात वे उज्जैन में रुके थे। अगले ही दिन कुछ ऐसे हालात बने कि उनकी सरकार गिर गई। ऐसा ही कुछ कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के साथ भी जुड़ा है। उज्जैन में रात गुजारना येदियुरप्पा को महंगा पड़ा था क्योंकि 20 दिन बाद वे मुख्यमंत्री नहीं रह सके थे।
18 साल मुख्यमंत्री रहे शिवराज ने भी नहीं गुजारी रात
शिवराज सिंह चौहान 18 साल तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। इतने सालों में उन्होंने एक रात भी उज्जैन में नहीं गुजारी। ताजा उदाहरण 25 नवंबर का है। शिवराज पूरे परिवार के साथ महाकाल मंदिर पहुंचे थे। यहां उन्होंने महाकाल लोक के दर्शन भी किए और महाकाल की शयन आरती में भी शामिल हुए। रात 11.30 बजे तक शिवराज मंदिर परिसर में ही रहे। रात 12 बजने से पहले वे उज्जैन की सीमा से बाहर निकल गए और उज्जैन की सीमा से बाहर जाकर मीडियाकर्मियों से बात की।
सिंहस्थ के दौरान वैचारिक महाकुंभ का आयोजन शहर से 12 किमी दूर
इससे पहले सिंहस्थ महाकुंभ के आयोजन के दौरान भी शिवराज रात 12 बजे से पहले उज्जैन की सीमा को छोड़ देते थे। वे एक हफ्ते तक उज्जैन में रुके थे, लेकिन सिर्फ दिन में उज्जैन में रहते थे। रात होते ही इंदौर चले जाते थे। सिंहस्थ महाकुंभ के दौरान ही भाजपा ने वैचारिक महाकुंभ का आयोजन किया था जिसका संयोजक दिवंगत सांसद अनिल माधव दवे को बनाया गया था। वैचारिक महाकुंभ का आयोजन उज्जैन में न होकर उज्जैन से 12 किमी दूर निनौरा गांव में हुआ था। इस वैचारिक महाकुंभ में पीएम मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी शिरकत की थी। यहां वीवीआईपी के लिए रात गुजारने के लिए कुटिया बनाई गई थी।
राहुल गांधी और दिग्विजय भी शहर के बाहर रुके थे
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान दिग्विजय सिंह और राहुल का उज्जैन से बाहर रात गुजरना भी चर्चा का विषय बना था। दिग्विजय सिंह और राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में पैदल यात्री थे। जब यात्रा इंदौर में थी तब वे यात्रियों के साथ ही रुके थे। इंदौर से निकलने के बाद भारत जोड़ो यात्रा उज्जैन शहर की सीमा से पहले निनौरा में रुकी थी। उस वक्त दिग्विजय सिंह ये सवाल पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि वे राजा नहीं हैं। इस मान्यता पर भरोसा नहीं करते। ये संयोग है कि यात्रा शहर के बाहर रुकी।
सिंधिया परिवार के सदस्य भी रात में उज्जैन नहीं रुकते
उज्जैन ग्वालियर रियासत का हिस्सा रहा है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक महाकाल मंदिर द्वापर युग में स्थापित हुआ था इसे एक हजार साल पुराना प्राचीन मंदिर माना जाता है। मंदिर का जो मौजूदा स्वरूप है उसे 150 साल पहले सिंधिया राजवंश के राणोजी सिंधिया ने बनवाया था। हालांकि, इसके बाद महाराज महादजी शिंदे और महारानी बायजाबाई शिंदे ने इस मंदिर की समय-समय पर मरम्मत करवाई और कई महत्वपूर्ण बदलाव किए। ग्वालियर रियासत अब भले ही न हो, लेकिन उसके परिवार के मुखिया उज्जैन में रात्रि विश्राम नहीं करते हैं। माधवराव सिंधिया के बाद अब ज्योतिरादित्य सिंधिया भी रात में उज्जैन में नहीं रुकते हैं।
सिंधिया परिवार ने शुरू की शाही सवारी की परंपरा
उज्जैन में सावन महीने में निकले वाली शाही सवारी की परंपरा की शुरुआत सिंधिया राजवंश ने ही की थी। उस वक्त भी सिंधिया परिवार की ओर से भगवान महाकाल की सवारी के दौरान पूजा अर्चना और आरती की जाती थी, लेकिन पहले केवल दो या तीन सवारियां ही निकाली जाती थी बाद में इसे बढ़ा दिया गया है। जानकारों की माने तो ऐसा कहा जाता है कि सिंधिया राजवंश की तरफ से आज भी एक अखंड दीप महाकाल मंदिर में जलता है। इस अखंड दीप का खर्च भी सिंधिया परिवार ही उठाता है। सिंधिया राजवंश के सदस्य आज भी शाही सवारी में शामिल होते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस परंपरा को कायम रखा है।
ज्योतिषाचार्यों ने बताया समस्या का समाधान
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य आनंद शंकर व्यास कहते हैं कि उज्जैन के राजा तो महाकाल हैं। राजतंत्र में ये परंपरा रही है कि यहां दूसरे राज्य के राजा रात्रि विश्राम नहीं करते। वे क्षिप्रा नदी के उस पार जाकर भैरवगढ़ में विश्राम करते थे। मोहन यादव हमारे ही शिष्य हैं। पहली बार सीएम बने हैं। यदि वे पूछेंगे तो उन्हें बताएंगे क्या करना है क्या नहीं करना है। यदि परंपरा है तो उसका तो पालन करना होगा।
पंडित विजय शंकर मेहता ने कहा- महाकाल ने ही बनवाया CM
प्रसिद्ध कथावाचक पंडित विजय शंकर मेहता का कहना है – इसमें दो तरह के एंगल हैं, आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो ये प्राचीन मान्यता है कि उज्जैन में कोई भी राजा रात नहीं गुजारता। पहले के दौर में जो राजा होते थे वो खुद को राजा मानते थे। उनकी ताजपोशी होती थी इसलिए वे रात नहीं गुजारते थे, लेकिन अब लोकतंत्र है। हालांकि पीएम-सीएम देश-प्रदेश के राजा ही होते हैं, लेकिन ये उस परंपरा का पालन करें ये जरूरी नहीं है। अगर महाकाल उज्जैन के राजा हैं तो हम सबके पिता भी हैं। वे पूरे जगत के पिता हैं, अगर कोई लोकतांत्रिक व्यवस्था का राजा उन्हें पिता मानकर उज्जैन में रुकते हैं तो कोई दिक्कत नहीं है। वे रुकने की अनुमति देंगे। अगर मुख्यमंत्री खुद को राजा मानकर रात बिताएगा तो फिर दिक्कत होगी। ये सारा मामला भावना से जुड़ा है। बस, नीयत साफ होना चाहिए।
जब भी व्यक्ति को उसकी उम्मीद से ज्यादा मिले तो वह महाकाल की कृपा से ही मिलता है। मोहन यादव को महाकाल ने ही सीएम बनाया है। वे चाहें तो उज्जैन सीमा के बाहर गेस्ट हाउस बना कर रुक सकते हैं। हालांकि ज्यादातर मान्यता भ्रम पर चल रही हैं जैसे आज भी ये मान्यता है कि महाकाल को भस्म की राख चढ़ाई जाती है, जबकि उन्हें गाय के गोबर के कंडे की राख चढ़ाई जाने लगी है। पुरानी परंपरा बंद हो गई है। महाकाल ने मोहन यादव पर कृपा की है तो वे महाकाल का बेटा बनकर महाकाल की शरण में कभी भी आ सकते हैं।