चंबल का केंद्र में दबदबा कम हुआ, राज्य में भी नहीं मिली तवज्जो

चंबल का केंद्र में दबदबा कम हुआ, राज्य में भी नहीं मिली तवज्जो
विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-अंचल ने पिछले विधानसभा चुनाव मुकाबले दो गुना सीटें इस भरोसे पर दी कि अंचल के नेताओं का केंद्र व प्रदेश में वजन बढ़ेगा और विकास भी गति पकड़ेगा।
  1. तोमर को केंद्रीय कृषि मंत्री जैसे बड़े पद के बदले सिर्फ विधानसभा अध्यक्ष जैसे “शक्तिहीन” पद से संतोष करना पड़ा
  2. अंचल के लोगों को उम्मीद थी कि पूर्व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया में से किसी एक को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है
ग्वालियर विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-अंचल ने पिछले विधानसभा चुनाव मुकाबले दो गुना सीटें इस भरोसे पर दी कि अंचल के नेताओं का केंद्र व प्रदेश में वजन बढ़ेगा और विकास भी गति पकड़ेगा। उच्च शिक्षा मंत्री मोहन सिंह यादव को मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद अंचल के लोग निराश है। दोगुनी सीट के बदले सितम भी दोगुना हो गया और चंबल का केंद्र में भी दबदबा कम हुआ है। राज्य भी तवज्जो नहीं मिली है। केंद्रीय कृषि मंत्री जैसे बड़े पद के बदले नरेंद्र सिंह तोमर को विधानसभा अध्यक्ष जैसा शक्तिहीन पद से संतोष करना पड़ा है।

अंचल के लोगों को उम्मीद थी कि पूर्व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया में से किसी एक को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। इसी आशा में अंचल के नेता सोमवार की सुबह ही शताब्दी एक्सप्रेस से भोपाल के लिए रवाना हो गए थे। कुछ रात में निकल गए थे। मोहन सिंह यादव को मुख्यमंत्री चुने जाने से अंचल में खुशी व निराशा का मिश्रित माहौल है। अब तक केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में अंचल के दो प्रभावशाली नेता नरेंद्र सिंह तोमर व ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्रीय मंत्री का दायित्व संभाल रहे थे। यही कारण है कि अंचल के विकास के लिए दिल्ली और भोपाल से भरपूर मदद मिल रही थी। ग्वालियर-चंबल प्रदेश की राजनीति की धुरी माना जाता है। दोनों ही दलों में अंचल के नेताओं का वर्चस्व रहता था। यही कारण है कि देश का ग्वालियर पहला ऐसा जिला था, जहां के दो नेता नरेंद्र सिंह तोमर व ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्र सरकार में केंद्रीय मंत्री थे। दोनों के पास वजनदार विभाग थे। नरेंद्र सिंह तोमर की गिनती मोदी सरकार टाप फाइव मंत्रियों में होती थी।

नरेंद्र सिंह का दिल्ली वापसी का रास्ता फिलहाल बंद

भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने नरेंद्र सिंह तोमर को विधानसभाध्यक्ष का दायित्व सौंपकर उनकी दिल्ली वापसी के रास्ते पर बैरीकेट्स लगा दिया है। हालांकि विधानसभा अध्यक्ष की विधायिका में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है, लेकिन उनके अधिकार विधानसभा तक ही सीमित रहते हैं। इसलिए अंचल के लोग थोड़े से निराश भी हुए हैं।

विधानसभा चुनाव से बदले समीकरण

विधानसभा चुनाव से अंचल के समीकरण बदले। मुरैना जिले की आसपास की सीटों पर प्रभाव डालने के लिए भाजपा नेतृत्व ने जिले की दिमनी विधानसभा सीट से टिकट दिया। नरेंद्र सिंह तोमर ने विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की। इसके साथ ही अंचल के लोगों ने भाजपा का भरपूर साथ दिया। 2018 के विधानसभा चुनाव में सात सीटें दी थीं। पिछले एक सप्ताह से मुख्यमंत्री पद के लिए मंथन चल रहा था। मुख्यमंत्री की दौड़ में नरेंद्र सिंह तोमर सबसे आगे माने जा रहे थे और सिंधिया का नाम भी चल रहा था।

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