डार्क वेब यानी इंटरनेट की अंधेरी दुनिया के रहस्यों से भरा एक जंगल, जहां अवैध कारोबार की है भरमार

तकनीक: डार्क वेब यानी इंटरनेट की अंधेरी दुनिया के रहस्यों से भरा एक जंगल, जहां अवैध कारोबार की है भरमार
जिस टेक्नोलॉजी ने निजी संगठनों और सरकारों के हस्तक्षेप और लक्षित विज्ञापनों से यूजर्स की गोपनीयता की रक्षा की है, उसने ही आज डार्क वेब के रूप में इंटरनेट को अवैध हथियारों की तस्करी, नशीली दवाओं के कारोबार, पोर्नोग्राफी, हिंसा के घृणित रूप, बच्चों के यौन शोषण और दूसरे क्रूर अपराधों का घर बना दिया है।

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इंग्लैंड का एक शहर वेल्स। 21 साल की एलोइस पैरी अपनी यूनिवर्सिटी की सबसे मेधावी छात्राओं में थी, लेकिन ज्यादा वजन को लेकर दोस्त उसका मजाक उड़ाते थे। वजन जल्द कम करने के लिए उसने डार्क वेब से जो दवा खरीदी, वह उन तत्वों से बनी थी, जिनका इस्तेमाल पहले विश्वयुद्ध में विस्फोटक के रूप में होता था। यह इतनी खतरनाक दवा थी कि इसके सेवन के बाद एलोइस बच नहीं पाई। सिर्फ एक गोली ने वसा को जलाने के साथ उसका शरीर अंदर से पूरी तरह भून दिया था।

अमेरिका के इलिनॉयस की एक नर्स। जिससे विवाह करना चाहती थी, वह शादीशुदा था। डार्क वेब पर हत्यारे उपलब्ध कराने वाली एक वेबसाइट से उसने अपने प्रेमी की पत्नी की हत्या के लिए 12 हजार डॉलर खर्च कर एक हत्यारा हायर किया। हालांकि वह पकड़ ली गई, फिलहाल जेल में है।

13 साल के दो बच्चे ग्रांट सीवर और रयान एंसवर्थ अच्छे दोस्त थे, एक ही स्कूल में पढ़ते थे। डार्क वेब से खरीदे गए एक नशीले पदार्थ के सेवन से दोनों स्कूल में मृत पाए गए। दोनों के चेहरे जहर से नीले पड़ गए थे।
ये कुछ उदाहरण हैं उन वारदातों के जो डार्क वेब की काली दुनिया में रोज हो रही हैं। लेकिन यह डार्क वेब है क्या?

‘डार्क वेब’, इंटरनेट की दुनिया का वह क्षेत्र है, जहां पहुंचने के लिए खास सॉफ्टवेयरों की जरूरत पड़ती है। लेकिन एक बार यहां पहुंच गए, तो खुलती है रहस्यों की रियासत। वर्ल्ड वाइड वेब (WWW) की इस काली दुनिया में कई वेबसाइटें ऐसी होती हैं, जो खुद को ऐसे छिपाए रखती हैं कि दुनिया का कोई सर्च इंजन आपको उन तक पहुंचा नहीं सकता। अगर उन तक जाना है, तो आपको उनका एड्रेस मालूम होना जरूरी है। इस अंधेरी दुनिया में बाजार भी लगते हैं, जिन्हें ‘डार्कनेट बाजार’ कहते हैं, जिनमें ड्रग्स से लेकर खतरनाक हथियार तक बिकते हैं। यहां रुपया या डॉलर नहीं चलता, सारा भुगतान होता है क्रिप्टोकरेंसी बिटकॉइन में। हत्याओं के लिए डार्क वेब पर अलग बाजार सजता है, जहां यूजर किसी की हत्या के लिए भुगतान कर सकते हैं।

अमेरिका के जिस पूर्व राष्ट्रपति का नाम आज सबकी जुबान पर और मीडिया में छाया रहता है, कथित तौर पर उसकी हत्या के लिए क्राउडफंडिंग के लिए भी एक साइट बनाई गई थी। हालांकि ऐसी वेबसाइटों से बचने की सलाह दी जाती है, क्योंकि इनमें घोटालों की भी आशंका होती है। चूंकि डार्क वेब पूरी तरह से गुमनामी में काम करता है, यह उन लोगों को पसंद आता है, जो सरकारों और प्रवर्तन एजेंसियों से छिप कर काम करना चाहते हैं। सरकार के भीतर की खबरें लीक करने वाले व्हिसल ब्लोअर्स, पत्रकारों से संवाद करने के लिए और आतंकवादी या अपराधी अपने लेनदेन को गुप्त रखने के लिए इसी डार्क वेब का इस्तेमाल करते हैं।

कल्पना करें कि पूरा इंटरनेट एक बेहद विशाल और घना जंगल है। जंगल की शुरुआत से लेकर अंत तक जाने के लिए कई रास्ते हैं, जिन्हें आप गूगल, बिंग इत्यादि लोकप्रिय सर्च इंजन माने। लेकिन इन रास्तों (गूगल) से अलग भी कई जगहें हो सकती हैं, जो पेड़ों से छिपी हों। लेकिन जब तक आपको यह न पता हो कि आप खोज क्या रहे हैं, तब तक इन रास्तों से अलग कुछ भी ढूंढ पाना नामुमकिन लगता है। डार्क वेब इसी तरह काम करता है। यह जंगल की तरह चीजों को छिपाने के साथ कार्यों और पहचान को भी छिपाता है।

वेब तीन तरह से काम करता है, ओपन (सरफेस) वेब, डीप वेब और डार्क वेब। ओपन वेब इंटरनेट का वह हिस्सा है, जो सार्वजनिक रूप से दिखता है, जिसका दुनिया के ज्यादातर लोग गूगल, बिंग इत्यादि सर्च इंजनों द्वारा उपयोग करते हैं। डीपवेब इंटरनेट का वह हिस्सा है, जो अमूमन लोगों की नजरों से छिपा रहता है और उन तक सामान्य सर्च इंजनों के माध्यम से नहीं पहुंचा जा सकता है। हालांकि डीपवेब का एक बड़ा हिस्सा डेटाबेस से बना होता है, जिसे कुछ सुरक्षा उपायों के साथ ओपन वेब पर एक्सेस किया जा सकता है।

मसलन, होटल बुकिंग, ऑनलाइन खरीदारी, बैंकिंग या मेडिकल रिकॉर्ड इत्यादि से जुड़ा डाटा, जिस तक केवल अधिकृत व्यक्ति ही पहुंच सकते हैं। तीसरा होता है डार्क वेब। सामान्य तौर पर जब कंप्यूटर या किसी डिवाइस के जरिये लोग ऑनलाइन होते हैं, तो उसका एक आईपी (इंटरनेट प्रोटोकॉल) एड्रेस होता है, जिससे यह पता लगाया जा सकता है कि किसी सिस्टम से कौन-कौन सी वेबसाइट पर पहुंचा गया है। लेकिन डार्क वेब ऐसी जटिल प्रणालियां उपयोग में लाता है, जिससे यूजर का वास्तविक आईपी एड्रेस अज्ञात हो जाता है। डार्क वेब तक पहुंचने के लिए सामान्य सर्च इंजन नहीं, बल्कि कुछ समर्पित सॉफ्टवेयर होते हैं। इसमें सबसे लोकप्रिय सॉफ्टवेयर है टोर (द ओनियन राउटर)। रोज करीब 30 लाख टोर सॉफ्टवेयर का उपयोग करते हैं।

टोर सॉफ्टवेयर द्वारा भेजे गए संदेश सीधे अपने गंतव्य पर नहीं जाते, बल्कि इसके बजाय उन्हें नोड्स के जरिये रिले किया जाता है। संदेश प्याज के छिलके की तरह होता है, जो प्रत्येक नोड पर अपनी एक परत उतार देता है और फिर अगले नोड की तरफ बढ़ जाता है। प्रत्येक नोड अपने से पिछले और ठीक अगले की पहचान तो जानता है, लेकिन संदेश की शुरुआत कहां से हुई और यह कहां-कहां जाने वाला है, इसकी पूरी जानकारी किसी को भी नहीं होती।

हालांकि जब लोग डार्क वेब के बारे में सोचते हैं, उनका ज्यादातर ध्यान दवाओं की ऑनलाइन काला बाजारी, चोरी किए गए डाटा के आदान-प्रदान या फिर दूसरी गैर-कानूनी गतिविधियों पर केंद्रित होता है। इसके बावजूद ऐसे बहुत से वैध कारण भी होते हैं कि लोग डार्क वेब का उपयोग करना चुनते हैं। खासकर राजनीति और व्यापार की दुनिया में कई आंकड़े ऐसे होते हैं, जिन्हें गोपनीय माना जाता है और जिनसे संबंधित संचार में डार्क वेब इस्तेमाल होता है।

डार्क वेब पहली बार आधिकारिक तौर पर 2000 के दशक की शुरुआत में फ्रीनेट के निर्माण के साथ सामने आया, जिसे इयान क्लार्क ने सरकारी हस्तक्षेप और साइबर हमलों से यूजर्स को सुरक्षित रखने के लिए विकसित किया था। इसके बाद अमेरिका की नौसेना की अनुसंधान प्रयोगशाला ने द ओनियन राउटर (टोर) नामक परियोजना चलाई थी, जिसने इंटरनेट के समानांतर खुफिया जानकारियों के संचार की खुफिया व्यवस्था प्रदान की, खासकर उन विषयों में जो राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़े हों। लेकिन आज यह डार्क वेब तक पहुंचने का सबसे आसान रास्ता बन गया है, जो लोगों को उनके जरूरत की जानकारियों तक पहुंचने में मदद करता है। लेकिन ड्रग्स कारोबारियों, आतंकियों और अपराधियों तक इसकी पहुंच ने गंभीर खतरे भी पैदा किए हैं। भारत भी इससे बच नहीं पाया है। खुद केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन कह चुके हैं कि हाईटेक क्राइम इंक्वॉयरी सेल को डार्क वेब पर टेलीग्राम चैनलों और दूसरी गतिविधियों के प्रमाण दिखे हैं, जिनमें बंदूकों और प्रतिबंधित दवाओं की खरीद-फरोख्त का पूरा साम्राज्य फैला हुआ है।

वैश्विक कंपनी नॉर्ड वीपीएन के अनुसार दुनिया भर में करीब 50 लाख प्रतिष्ठित इंटरनेट यूजर्स का डाटा बिकने के लिए सजा हुआ है, जिनमें से करीब छह लाख लोग भारत से हैं, जो भारत को दुनिया में डार्क वेब से सबसे ज्यादा प्रभावित देश बनाता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुसार, जिस तकनीक ने निजी संगठनों और सरकारों की मनमानी और लक्षित विज्ञापनों से यूजर्स की गोपनीयता की रक्षा को संभव बनाया है, उसी ने आज डार्क वेब को अवैध हथियारों की तस्करी, नशीली दवाओं के कारोबार, पोर्नोग्राफी, हिंसा के घृणित रूप, बच्चों के यौन शोषण और दूसरे क्रूर अपराधों का घर बना दिया है। कहावत है कि तकनीक एक सेवक के रूप में बेहद उपयोगी होती है, लेकिन अगर वह स्वामी बनने लगे, तो यह विनाश का संकेत है। डार्क वेब की काली दुनिया का इशारा इसी ओर है।

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