चुनाव से पहले CAA लागू करने का एलान क्यों? मुसलमान भड़केंगे, बीजेपी को फायदा होगा !
चुनाव से पहले CAA लागू करने का एलान क्यों? जानिए- कैसे मुसलमान भड़केंगे, बीजेपी को फायदा होगा
नागरिकता संशोधन कानून पर एक बार फिर विवाद शुरू हो गया है. खबर है कि लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले देशभर में सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट लागू किया जा सकता है.
भारतीय नागरिकता (संशोधन) अधिनियम पर 5 साल पहले ही संसद में पारित हो चुका है. हालांकि, देशभर में विरोध प्रदर्शन के चलते आज तक लागू नहीं हुआ. ये कानून अब एक बार फिर चर्चा में है.
कारण है मतुआ समुदाय के बीजेपी नेता और केंद्रीय राज्य मंत्री शांतनु ठाकुर का एक दावा.
बंगाल से बीजेपी सांसद शांतनु ठाकुर ने गारंटी के साथ दावा किया है कि देशभर में सात दिनों के भीतर सीएए लागू कर दिया जाएगा. इससे पहले 27 दिसंबर को बंगाल दौरे पर गए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि सीएए लागू होने से कोई नहीं रोक सकता.
इस स्पेशल स्टोरी में समझिए नागरिकता संशोधन कानून क्या है, आखिर चुनाव से पहले ही इसे लागू करने का क्यों हुआ ऐलान, किन-किन राज्यों में इसका असर होगा, मुसलमानों के लिए क्यों है अहम मुद्दा और विरोध इसपर क्या कहते हैं. हर बड़े सवाल का जवाब यहां जानिए.
पहले समझिए क्या है नागरिकता कानून CAA
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 भारत सरकार द्वारा पारित एक विवादास्पद कानून है. यह अधिनियम 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए छह धर्मों के शरणार्थियों हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी को भारतीय नागरिकता देता है.
यानी कि इस कानून के तहत तीन पड़ोसी मुस्लिम बाहुल्य देशों से आए उन लोगों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी जो 2014 तक किसी न किसी प्रताड़ना का शिकार होकर भारत आकर बस गए थे. हालांकि मुसलमानों को इस प्रावधान से बाहर रखा गया है जिस कारण कानून का विरोध हो रहा है.
तीन देशों से आए विस्थापित लोगों को नागरिकता लेने के लिए कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी. कानून के तहत छह अल्पसंख्यकों को नागरिकता मिलते ही मौलिक अधिकार भी मिल जाएंगे.
पहली बार कब आया ये बिल
भारतीय नागरिकता कानून 1995 में बदलाव करते हुए संशोधित बिल पहली बार साल 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था. तब लोकसभा से बिल पास हो गया, लेकिन राज्यसभा में अटक गया था. बाद में इसे संसदीय समिति के पास भेजा दिया गया. 2019 चुनाव में मोदी सरकार फिर सत्ता में आई, तब बिल दोबारा संसद में पेश किया गया था.
दिसंबर 2019 में बिल संसद के दोनों सदनों से पास हो गया था और इसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई थी. इसी दौरान देशभर में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन भी हुए थे. दिल्ली के शाहीन बाग समेत कुछ इलाकों में कई महीनों तक धरना प्रदर्शन चला था. हालांकि फिर कोरोना महामारी की वजह से सब ठंडा हो गया था.
चुनाव से पहले ही CAA लागू करने का ऐलान क्यों?
लोकसभा चुनाव में करीब तीन महीने का वक्त बचा है. फरवरी के आखिरी या मार्च के शुरुआत में चुनाव की तारीख का ऐलान हो जाएगा. पहले अमित शाह और अब केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर दोनों ने बंगाल की चुनावी सभाओं में ही देशभर में सीएए लागू करने की बात कही है.
पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए सीएए लागू करने का वादा एक प्रमुख चुनावी मुद्दा था. बीजेपी का मानना है कि सीएए हिंदू राष्ट्रवाद के उनके एजेंडे को आगे बढ़ा सकता है और हिंदू वोटरों को उनकी पार्टी की ओर आकर्षित कर सकता है. खासकर उन राज्यों में जहां पहले से ही बड़ी हिंदू आबादी है.
बीजेपी सीएए को देश की सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए एक कदम के रूप में पेश कर रही है. इस तरह बीजेपी खुद को एक मजबूत और निर्णायक नेतृत्व के रूप में पेश करने कोशिश कर रही है. हालांकि विपक्ष का आरोप है कि सीएए मुस्लिम विरोधी है और भारतीय संविधान के समानता के नियम का उल्लंघन करता है.
ऐसे में बीजेपी विपक्ष को CAA के विरोध को मुस्लिम तुष्टीकरण के रूप में पेश कर सकती है, जो उसके हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे को मजबूत कर सकता है.
बंगाल में सियासी जड़े जमाने की कोशिश में बीजेपी
पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश से आए मतुआ समुदाय के हिंदू शरणार्थी काफी लंबे समय से नागरिकता की मांग कर रहे हैं. इनकी आबादी अच्छी खासी है. ये लोग बांग्लादेश से आए हैं. सीएए लागू होने से इनको नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा. 2024 चुनाव में बीजेपी मतुआ समुदाय को लुभाकर अपनी सियासी जड़े मजबूत करना चहा रही है.
2019 लोकसभा चुनाव और 2021 बंगाल विधानसभा चुनाव में बीजेपी मतुआ समुदाय पर पकड़ बनाकर ही बड़ी कामयाबी हासिल की थी. 2014 चुनाव में बंगाल में बीजेपी के पास सिर्फ दो लोकसभा सीट थी. 2019 चुनाव में बढ़कर 18 सीटें हो गईं और 2021 विधानसभा चुनाव में बीजेपी दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी थी.
बीजेपी की इस बढ़त के पीछे मतुआ समुदाय की अहम भूमिका रही थी. अब 2024 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने एक बार फिर सीएए का दांव चल दिया है. ये दांव बीजेपी के लिए बंगाल में संजीवनी साबित हो सकता है. ध्यान देने वाली बात ये भी है कि लोकसभा सीटों के लिहाज से यूपी (80) और महाराष्ट्र (48) के बाद बंगाल (42) तीसरा सबसे बड़ा राज्य है.
CAA लागू होने से कहां क्या बदल जाएगा
नागरिकता संशोधन कानून पूरे भारत में लागू होगा, लेकिन इसका प्रभाव उन राज्यों में ज्यादा दिखाई देगा जहां पहले से ही विदेशी नागरिकों की बड़ी संख्या है. इनमें ज्यादा पूर्वोत्तर के राज्य हैं. जैसे- पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा.
नॉर्थ-ईस्ट अल्पसंख्यक बंगाली हिंदुओं का गढ़ माना जाता है. पिछले दशकों में पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान में अत्याचार से परेशान होकर बड़ी संख्या में लोग भागकर भारत आने लगे. पूर्वोत्तर राज्यों की सीमा बांग्लादेश से लगी हुई है इसलिए ज्यादातर लोग इन्हीं राज्यों में बस गए.
एक रिपोर्ट के अनुसार, असम में 20 लाख से ज्यादा हिंदू बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं. ऐसे ही कुछ हालात दूसरे राज्यों के हैं. इन राज्यों में रहने वाले मूल निवासियों को डर है कि सीएए लागू होने से अल्पसंख्यकों का दबदबा बढ़ जाएगा. नागरिकता मिलने पर उन्हें सरकारी नौकरियों में भी अधिकार मिलेगा. धीरे-धीरे दूसरे देश से आए अल्पसंख्यक उनके संसाधनों पर भी कब्जा कर लेंगे.
मुसलमानों के लिए क्यों है अहम मुद्दा
मुसलमानों के लिए सीएए एक चिंता का विषय है क्योंकि उन्हें इस कानून से बाहर रखा गया है. पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता प्राप्त करने का रास्ता नहीं दिया गया है. इस कारण मुसलमानों से भेदभाव के आरोप लग रहे हैं. धर्म के आधार पर भेदभाव करने और संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करने का आरोप भी लगाया जा रहा है.
दिल्ली शाही मस्जिद फतेहपुरी के इमाम मुफ़्ती मुकर्रम अहमद ने बीबीसी से बातचीत में कहा, सीएए भारतीय संविधान के खिलाफ है. ये हिंदुओं और मुसलमान में नफरत फैलाने के लिए लाया गया है. अगर सरकार को मुसलमानों से नफरत नहीं है तो नागरिकता कानून में मुसलमानों को शामिल क्यों नहीं करते.
इमाम मुफ़्ती ने आगे ये भी कहा कि जब एनआरसी आएगा तो देश के सभी हिंदू, मुसलमान, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई लाइन में लगेंगे. अगर सरकार इस पर कोई कार्रवाई नहीं करती है तो हम इसे इंटरनेशनल लेवल पर ले जाएंगे और सरकार की नीतियों के बारे में सभी को बताएंगे.
हालांकि गृहमंत्री अमित शाह मुस्लिम समाज को भरोसा दिलाते रहे हैं कि सीएए से भारत के किसी भी व्यक्ति की नागरिकता नहीं छिनेगी. फिर भी मुसलमानों के एक बड़े तबके को डर है कि सीएए के बाद केंद्र सरकार राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) लाएगी. तब उनको देश से बाहर कर दिया जाएगा.
CAA और NRC में अंतर समझिए
सीएए में छह गैर-मुस्लिम समुदायों के अल्पसंख्यक शामिल हैं जिन्हें भारतीय नागरिकता तब मिलेगी अगर वे 31 दिसंबर 2014 तक भारत में आए हैं. जबकि एनआरसी का धर्म से कोई संबंध नहीं है. सीएए नागरिकता देता है, जबकि एनआरसी अवैध प्रवासियों को बाहर निकालता है.
NRC नागरिकों का एक राष्ट्रीय रजिस्टर है, इसका उद्देश्य भारत से अवैध घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें बाहर निकालना है, चाहें वो किसी भी धर्म जाति के हों.फिलहाल एनआरसी सिर्फ असम में लागू है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद असम में एनआरसी प्रक्रिया हाल ही में पूरी हुई है. केंद्र सरकार का मकसद पूरे देश में एनआरसी लागू करना है.
CAA पर राजनीतिक पार्टियों का है कहना
चुनाव से पहले सीएए पर एक बार फिर विवाद बढ़ता नजर आ रहा है. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नागरिकता कानून का पुरजोर विरोध कर रही हैं. उन्होंने साफ साफ कह दिया है किसी भी हालत में सीएए, एनपीआर और एनआरसी को बंगाल में लागू नहीं होने दिया जाएगा. यहां तक कि टीएमसी सरकार ने 2020 में सीएए के खिलाफ एक प्रस्ताव भी पारित कर दिया था.
पश्चिम बंगाल की मंत्री और टीएमसी प्रवक्ता डॉ. शशि पांजा ने सीएए लागू करने के बीजेपी के दावे पर कहा, ‘लोगों की नागरिकता बीजेपी के लिए चुनाव का मुद्दा है. बंगाल के लोग पहले ही देश के नागरिक हैं, उन्हें दोबारा नागरिकता नहीं दी जा सकती.’
वहीं ममता बनर्जी ने कहा, “बीजेपी के लोग सीएए सीएए चिल्ला रहे हैं. बंगाल में हमने सभी को नागरिकता दी है. उन्हें सारी सरकारी सुविधाएं मिलती हैं. वो वोट भी दे सकते हैं. ये कैसे हो सकता है कि वोट देते हैं और नागरिक नहीं हैं?”
कांग्रेस पार्टी का कहना है कि सीएए को धर्म के आधार पर बनाया गया है. कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा, ‘सीएए संवैधानिक रूप से गलत है. ये संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता है. ये मौलिक सवाल है कि धर्म के आधार पर किसी को कैसे नागरिकता दी सकती है.’
वहीं AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने भी सीएए को संविधान विरोधी बताया. लोकसभा सांसद ओवैसी ने कहा, ‘सीएए कानून धर्म के आधार पर बनाया गया है. सीएए को एनपीआर-एनआरसी के साथ ही समझना चाहिए. आपको अपनी नागरिकता साबित करना होगी. ऐसा हुआ तो मुस्लिम, दलित और गरीबों के साथ अन्याय होगा.’
समाजवादी पार्टी (SP) के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने कहा, ‘सीएए बीजेपी का प्रोपेगेंडा है. नागरिकता संशोधन कानून से लोगों को फायदा होने की जगह मुल्क के हालात ज्यादा खराब होंगे.’
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अबतक सीएए-एनआरसी के खिलाफ रहे हैं. नीतीश पहले ही कह चुके हैं कि सीएए और एनआरसी को अपने राज्य बिहार में लागू नहीं होने देंगे. हालांकि नीतीश अब एनडीए में शामिल हो चुके हैं, अब देखना ये होगा कि वह किस ओर अपना रुख बदलते हैं.
जब संसद से कानून पारित होने के बाद देशभर में हुआ हंगामा
दिसंबर 2019 में सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट संसद से पारित होने के बाद देशभर में कोहराम मच गया था. इस कानून के पक्ष मे 125 मत और 105 मत विरोध में थे. विपक्ष बिल को मुस्लिमों के खिलाफ बता रहा था. विपक्ष का कहना था इससे मुसलमानों की नागरिकता भी खतरे में पड़ सकती है.
पश्चिम बंगाल, उत्तर-पूर्व और दिल्ली समेत देशभर में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए. कई यूनिवर्सिटी के छात्र भी सड़कों पर उतर आए थे. राजधानी दिल्ली में जगह-जगह प्रदर्शन होने के कारण तमाम रास्त बंद हो गए थे.
प्रदर्शनकारियों ने कई जगहों पर हंगामा मचाया हुआ था. कुछ इलाकों से पुलिस पर पत्थरबाजी की खबर भी आई. प्रशासन ने कुछ इलाकों में धारा 144 लगा दी थी.
CAA की क्यों पड़ी जरूरत
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा है कि नागरिकता कानून देश की मांग है. भले ही ये कानून रोहिंग्या और घुसपैठियों को बुरा लगेगा. देश के लिए नागरिकता कानून बहुत जरूरी है. यह कानून नहीं बना तो पूरी दुनिया से हिंदुओं को मार काट करके मुस्लिम बनाने पर मजबूर किया जाएगा. इसलिए बंगाल में टीएमसी के कलेजे पर चढ़कर इसे लागू कराया जाएगा.
वहीं गृह मंत्री अमित शाह ने दिसंबर में एक कार्यक्रम में कहा था, अंग्रेजों से देश की आजादी के बाद पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में देश में रहने वाले छह धर्मों के लोगों को वहां धार्मिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ा. ये कानून उन लोगों के साथ न्याय करने का एक जरिया है.
उन्होंने आगे कहा, सीएए भारत का कानून है. उचित समय आने पर सीएए को जरूर लागू कराया जाएगा. सीएए से किसी की भी नागरिकता नहीं जाएगी. माइनॉरिटी और मुस्लिम समुदाय के लोगों में गलत प्रचार किया जा रहा है कि इससे उनकी नागरिकता चली जाएगी. जबकि सीएए नागरिकता देने का कानून है.
मुसलमानों को शामिल क्यों नहीं किया गया
इस सवाल का जवाब अमित शाह ने संसद में दे चुके हैं. उन्होंने बताया था कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश मुस्लिम देश हैं. वहां बहुसंख्यक मुस्लिमों का धर्म के नाम पर उत्पीड़ित नहीं होता है, बल्कि हिंदुओं और अन्य समुदायों का धर्म के आधार पर उत्पीड़न किया जाता है. इसलिए इन देशों के मुस्लिमों को सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट CAA में शामिल नहीं किया गया.
अमित शाह ने आगे ये भी कहा था कि मुसलमानों को इसमें शामिल नहीं किया गया है फिर भी वह नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं, जिस पर सरकार विचार कर फैसला लेगी.
CAA लागू हुआ तो नागरिकता के लिए आवेदन कैसे करें
आमतौर पर कानूनन भारत की नागरिकता लेने के लिए कम से कम 11 साल तक देश में रहना अनिवार्य होता है. लेकिन, सीएए लागू होने के बाद तीन देशों के छह समुदाय के लोगों को 6 साल रहने पर ही नागरिकता दे दी जाएगी. बाकी दूसरे देशों और धर्मों के लोगों को नागरिकता लेने के लिए 11 साल का वक्त भारत में गुजारना होगा.
नए नागरिकता कानून के मुताबिक सभी शर्तें पूरी करने वाले शरणार्थियों को नागरिकता लेने के लिए ऑनलाइन आवेदन करना होगा. इसके लिए पोर्टल तैयार कर लिया गया है. आवेदकों से कोई दस्तावेज नहीं लिया जाएगा, बस उन्हें वो साल बताना होगा जब उन्होंने भारत में एंट्री की.
नागरिकता से जुड़े सभी मामलों की प्रक्रिया ऑनलाइन ही पूरी की जाएगी. आवेदक ऑनलाइन आवेदन कर सकेंगे. इसके बाद गृह मंत्रालय जांच करेगा और नागरिकता दे दी जाएगी. इस ऑनलाइन प्रक्रिया में राज्य सरकार को कोई हस्तक्षेप नहीं होगा.