करोड़ों का बाजार … बढ़ रहा है ट्यूशन का चलन …
करोड़ों का बाजार, बिहार-बंगाल हब; देश में नई ‘महामारी’ बनकर क्यों उभरा कोचिंग कल्चर?
18 जनवरी 2023 को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने भारत में चल रहे अलग-अलग ट्यूशन सेंटर्स को लेकर एक नई गाइडलाइन जारी की.
भारत में पिछले कुछ सालों में ट्यूशन का चलन काफी बढ़ गया है. आजकल तो कुछ पेरेंट्स बच्चों के पहली या दूसरी क्लास में जाने के साथ ही उन्हें अलग से कोचिंग या ट्यूशन क्लासेज भेजने लग जाते हैं.
वहीं कोचिंग सेंटर्स भी बच्चों की उम्र की परवाह किए बिना ही उन्हें प्रवेश दे देता है. कई बार मनमानी फीस वसूलने के केस भी सामने आते हैं. बच्चों पर भी इतना प्रेशर डाला जाता है कि किसी कंपटीशन में फेल होने पर सुसाइड जैसे कदम तक उठा लेते हैं.
इन्हीं परेशानियों को देखते हुए 18 जनवरी 2023 को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने भारत में चल रहे अलग-अलग ट्यूशन सेंटर्स को लेकर एक नई गाइडलाइन जारी की है. जिसमें बताया गया कि देश के किसी भी राज्य का कोचिंग सेंटर 16 साल से कम उम्र के बच्चों को एडमिशन नहीं दे सकते हैं.
इतना ही नहीं इस गाइडलाइन के मुताबिक अब कोई भी छात्र 12वीं की परीक्षा पास किए बगैर कोचिंग में एनरोल नहीं करा सकेंगे और कोचिंग सेंटर्स पर भी भ्रामक वादे करने और अच्छे नंबरों की गारंटी देने पर भी पाबंदी लगा दी गई है.
ऐसे में इस रिपोर्ट में जानते हैं कि सरकार की इस गाइडलाइन से भारत की कोचिंग इंडस्ट्री पर कितना असर पड़ेगा, देश में कोचिंग इंडस्ट्री कितनी बड़ी है
पहले समझिए देश में ट्यूशन की मांग क्यों बढ़ रही
दिल्ली के भारती पब्लिक स्कूल में पिछले 10 सालों से बच्चों को पढ़ा रहीं टीचर किरण बनर्जी ने एबीपी लाइव से बातचीत करते हुए कहा, ‘देश में ट्यूशन की डिमांड बढ़ने का एक कारण एजुकेशन सिस्टम में भीड़ और कड़ा मुकाबला है, लेकिन बुनियादी ढांचे पर किसी का ध्यान नहीं है.’
किरण बनर्जी कहती हैं, ‘बच्चों की आकांक्षाएं, पेरेंट्स की उम्मीद और नौकरी के अवसर को देखते हुए बच्चे अलग से ट्यूशन ले रहे हैं. पेरेंट्स कोचिंग संस्थानों को ही बच्चों के लिए कंपटीशन में खड़े होने और अपने परिवार की सामाजिक स्थिति को सुधारने का एकमात्र तरीका मानते हैं. वहीं टीचर्स के लिए भी प्राइवेट ट्यूशन देना एक बिजनेस में बदलता जा रहा है. ‘
किरण बताती हैं कि आज के समय में कोचिंग सेंटर रोजगार का अच्छा जरिया बन रहा है. कई बार लोग कंपटीशन में पास नहीं हो पाते हैं तो वो कोचिंग सेंटर खोलकर छात्रों को पढ़ाने लग जाते हैं. इसके लिए वह हर छात्र से 1,000 रुपये फीस भी लेते हैं. जिससे न सिर्फ टीचर्स का करियर बन रहा है बल्कि वह इतने पैसे कमा पा रहे हैं जितना शायद कंपटीशन पास करने के बाद भी नहीं कमा पाते.
देश में कोचिंग इंडस्ट्री कितनी बड़ी, आंकड़ों से समझिए
साल 2010 की एसओसीएम रिपोर्ट के बताती है कि उस वक्त महानगरों के प्राइमरी स्कूल के 87 प्रतिशत और हाई स्कूल के 95 प्रतिशत छात्र प्राइवेट ट्यूशन ले रहे थे. वहीं ग्लोबल सेंशस की साल 2018 की रिपोर्ट के अनुसार भारत के 55 प्रतिशत छात्र कहीं न कहीं प्राइवेट ट्यूशन लेते हैं.
इंडिया ह्यूमन डेवलपमेंट सर्वे के अनुसार भारतीय बच्चे हर सप्ताह में औसतन 9 से 10 घंटे ट्यूशन में ही बिताते हैं.
किन राज्यों में सबसे ज्यादा है प्राइवेट ट्यूशन का चलन
नेशनल सेंपल सर्वे के मुताबिक जिन राज्यों में छात्र सरकारी स्कूलों में ज्यादा जाते हैं वहां प्राइवेट ट्यूशन का चलन सबसे ज्यादा होता है. पश्चिम बंगाल में सर्वाधिक 84% शहरी स्कूली बच्चे ट्यूशन का ही सहारा लेकर आगे बढ़ रहे हैं.
वहीं उड़ीसा के 56%, बिहार में 58% और असम में 62% बच्चे प्राइवेट ट्यूशन ले रहे हैं. वहीं तेलंगाना में केवल 12% छात्र सरकार स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं और यही कारण है कि सिर्फ 5% बच्चों को प्राइवेट ट्यूशन लेने की जरूरत पड़ रही है.
कितनी हो रही है कमाई
1. साल 2015 में एजुकेशन मिनिस्ट्री के अनुमान के अनुसार उस वक्त कोचिंग संस्थानों का कुल राजस्व 24 हजार करोड़ रुपये का था.
2. पुणे स्थित कंसलटेंसी फर्म इनफिनियम ग्लोबल सर्वे के शोध के मुताबिक साल 2023 में भारत में कोचिंग इंडस्ट्री का वर्तमान बाजार 58 हजार करोड़ रुपये का है. इसी शोध में ये भी अनुमान लगाया गया है कि साल 2028 तक भारत में कोचिंग का बाजार 1 लाख 33 हजार 995 करोड़ रुपये तक पहुंचे जाएगा.
3. इतना ही नहीं साल 2022 में कोचिंग इंडस्ट्री ने 450 करोड़ रुपये का चौंका देने वाली कमाई किया था. यह आंकड़ा साल 2019 के अनुमान से 62% ज्यादा था.
कोचिंग का शहर कहे जाने वाले कोटा के बारे में भी जान लीजिए
कोटा राजस्थान का एक ऐसा शहर है जहां देश के अलग अलग कोने से बच्चे मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी करने आते हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार यहां हर साल 2 लाख से ज्यादा बच्चे केवल कोचिंग क्लासेज लेने पहुंचते हैं. इतना ही नहीं यह शहर हर साल 2 लाख लोगों को रोजगार भी देता है और कोचिंग में पढ़ाने वाले शिक्षकों को अच्छी सैलरी भी देता है.
यही कारण है कि कोटा में कोचिंग का कारोबार करीब 6 हजार करोड़ से भी ज्यादा का हो चुका है. कोटा में प्रति छात्र कोचिंग की सालाना फीस 40,000 से लेकर 1,50,000 लाख तक की है.
बढ़ रहा है ऑनलाइन कोचिंग का चलन
भारत में ऑफलाइन कोचिंग करोड़ों का कारोबार तो कर ही रहा है लेकिन ऑनलाइन कोचिंग भी काफी ट्रेंड में है. जैसे-जैसे इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ रहा है वैसे ही छात्र भी अब प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए ऑनलाइन क्लासेज की भी मदद ले रहे हैं.
स्कूलों में पढ़ाई के बाद भी ट्यूशन क्यों पढ़ाना पड़ता है?
साल 2022 में आई ASER (एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट) में कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आए थे. सर्वे में सर्वेक्षकों ने प्राथमिक कक्षाओं वाले 17,002 सरकारी स्कूलों का अवलोकन किया था जिनमें से 9,577 प्राथमिक विद्यालय के छात्र थे और 7,425 उच्च प्राथमिक विद्यालय थे.
इस रिपोर्ट के अनुसार पहली कक्षा के बच्चों को गणित के बेसिक स्किल समझने में दिक्कत हो रही थी. इतना ही नहीं पहली, दूसरी और तीसरी के बच्चों को अक्षर तक समझने में परेशानी हो रही थी. इसी तरह ये रिपोर्ट कहती है कि सरकारी स्कूलों का पढ़ाई लिखाई का स्तर इतना ज्यादा खराब है कि बच्चों को अलग से ट्यूशन लेना ही पड़ता है.
शिक्षा मंत्रालय के वर्तमान गाइडलाइन के बारे में भी जान लीजिए
- कोई भी कोचिंग संस्थान 16 साल से कम उम्र के छात्रों का एडमिशन नहीं ले सकेगा. कोचिंग में एडमिशन लेने के लिए छात्र का 12वीं की परीक्षा पास करना अनिवार्य है.
- कोई भी कोचिंग संस्थान ऐसे शिक्षक को पढ़ाने के लिए नहीं रख सकेगा जिनकी क्वालिफिकेशन स्नातक यानी ग्रेजुएशन से कम हो.
- कोचिंग संस्थान छात्रों के माता-पिता को छूटे वादे या अच्छा रैंक दिलाने के गारंटी नहीं देंगे.
- सारे कोर्ट की ट्यूशन फीस तय होगी. कोचिंग संस्थान बीच फीस नहीं बढ़ा सकता.
- कोचिंग सेंटर अपनी वेबसाइट पर फैकल्टी से लेकर कोर्स के पूरा होने का समय सबकुछ डीटेल में डालेंगे.
- हॉस्टल में रखने से पहले छात्र और माता-पिता को हॉस्टल की सुविधा, मेस और फीस के बारे में पूरी जानकारी देनी होगी.
- बच्चों पर अच्छा परफॉर्म करने का प्रेशर नहीं बनाया जाना चाहिए. उनके मेंटल हेल्थ का ख्याल रखा जाएगा.
- कोचिंग में पढ़ रहे छात्र अगर किसी तरह की मानसिक परेशानी में हो, तो छात्र की मदद के लिए सिस्टम बनाना होगा.
- सभी कोचिंग संस्थानों में साइकोलॉजिकल काउंसलिंग के लिए प्रॉपर चैनल हो. उस संस्थान के साइकोलॉजिस्ट और काउंसलर के बारे में जानकारी बच्चों के माता-पिता को देना अनिवार्य होगा.