विकास की ऊंचाइयों को छूने की दिशा में बढ़ रही है असमानता की चुनौती

विकास की ऊंचाइयों को छूने की दिशा में बढ़ रही है असमानता की चुनौती
श्रमिकों के पास बचत और निवेश करने के लिए कम आय होती है, जिससे असमानता और बढ़ जाती है। यूएनडीपी का यह भी कहना है कि सबसे कमजोर लोगों में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लोग (खासकर महिलाएं) शामिल हैं। वहीं भ्रष्टाचार, कमजोर कर नीति और प्रशासन के साथ-साथ प्रभावी सामाजिक सुरक्षा की कमी के कारण असमानता और भी बढ़ गई है’।

बढ़ती वैश्विक चुनौतियों और आर्थिक अनिश्चितता के बावजूद भारत अच्छी स्थिति में है। कुछ लोग भविष्य को लेकर भले उत्साहित हैं। लेकिन हमें रास्ते में आने वाली बाधाओं और चुनौतियों को कम नहीं आंकना चाहिए। यह भारत का दशक या भारत की सदी तभी हो सकती है, जब सभी भारतीयों के जीवन की गुणवत्ता में तेजी से सुधार हो, अवसरों की समानता हो और उन अवसरों का लाभ उठाने के लिए पर्याप्त कौशल भी हो। विकास की ऊंचाइयों को छूने की दिशा में कुछ चुनौतियां भी हैं, जिन पर ध्यान देना जरूरी है।

पहली चुनौती यह है कि भारत की सफलता की कहानी असमान है। कई भारतीय वर्षों पहले की तुलना में आज कहीं बेहतर स्थिति में जरूर हैं, पर लाखों लोग अब भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की 2024 की रिपोर्ट ‘मेकिंग अवर फ्यूचर-न्यू डायरेक्शंस फॉर ह्यूमन डेवलेपमेंट इन द एशिया ऐंड पैसिफिक’ में कहा गया है कि ‘संपत्ति में शीर्ष 10 प्रतिशत लोगों की हिस्सेदारी के आधार पर देखें, तो थाईलैंड, चीन, म्यांमार, भारत और श्रीलंका सर्वाधिक आर्थिक असमानता वाले देश हैं।’ रिपोर्ट में बताया गया है कि ‘वैश्वीकरण और तकनीकी प्रगति ने कुछ समूहों के लिए नए अवसर पैदा किए हैं, जबकि दूसरों को पीछे छोड़ दिया है। इसके परिणामस्वरूप आम तौर पर पूंजीपतियों को राष्ट्रीय आय का बड़ा हिस्सा मिलता है।’ अब अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के आंकड़ों को ही लें, जिनसे पता चलता है कि एशिया और प्रशांत क्षेत्र में श्रमिकों की आय हिस्सेदारी वैश्विक औसत से कम है। परिणामस्वरूप, श्रमिकों के पास बचत और निवेश करने के लिए कम आय होती है, जिससे असमानता और बढ़ जाती है। यूएनडीपी का यह भी कहना है कि सबसे कमजोर लोगों में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लोग (खासकर महिलाएं) शामिल हैं। वहीं भ्रष्टाचार, कमजोर कर नीति और प्रशासन के साथ-साथ प्रभावी सामाजिक सुरक्षा की कमी के कारण असमानता और भी बढ़ गई है’।

अब यदि हम यह देखें, कि इसमें भारत का स्थान कहां है, तो यूएनडीपी की रिपोर्ट के अनुसार, हाल के दशकों में भारत ने जीवन स्तर में काफी सुधार किया है और गरीबी में काफी कमी आई है, पर असमानता में वृद्धि देखी जा रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, ‘वर्ष 2000 और 2022 के बीच प्रति व्यक्ति आय 442 डॉलर से बढ़कर 2,389 डॉलर हो गई। और 2004 और 2019 के बीच गरीबी दर (प्रति दिन 2.15 डॉलर के अंतरराष्ट्रीय गरीबी माप के आधार पर) 40 से गिरकर 10 फीसदी हो गई। इसके अलावा, वर्ष 2015-16 और 2019-21 के बीच बहुआयामी गरीबी में रहने वाली आबादी का हिस्सा 25 से गिरकर 15 फीसदी रह गया। इन सफलताओं के बावजूद, गरीबी लगातार उन राज्यों में केंद्रित है, जहां देश की 45 फीसदी आबादी रहती है, और जहां 62 फीसदी लोग गरीब हैं। गरीबी रेखा से ठीक ऊपर वाले समूह भी बेहद कमजोर स्थिति में हैं, जिनके दोबारा गरीबी में जाने का खतरा है। इनमें महिलाएं, अनौपचारिक श्रमिक और अंतरराज्यीय प्रवासी शामिल हैं।’

रिपोर्ट के अनुसार, जनसंख्या की शीर्ष 10 फीसदी आबादी को राष्ट्रीय आय का 57 फीसदी हिस्सा मिलता है और शीर्ष एक फीसदी आबादी को 22 फीसदी मिलता है, जो साफ तौर पर आय के असमान वितरण को दिखाता है। एक और बड़ी चुनौती लैंगिक विभाजन को पाटने की भी है, क्योंकि महिलाएं श्रम शक्ति का केवल 23 फीसदी हैं। इसकी कई वजहें हैं।

हाल ही में जारी वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर) 2023 से पता चलता है, लड़कियां पढ़ने की इच्छुक हैं और उच्च शिक्षा की आकांक्षा रखती हैं, लेकिन अब भी कई संरचनात्मक बाधाएं हैं, जो उन्हें अपनी पूरी क्षमता का एहसास नहीं होने देतीं। यह बेहद चिंताजनक तस्वीर है, जो अलग-अलग जिलों और राज्यों में अलग-अलग तरह से दिखती है। बुनियादी वित्तीय असमानता को सुधारने पर भी काम किया जाना चाहिए, ताकि निचले तबके के लोगों का जीवन समृद्ध हो सके और वे भी एक बेहतर जीवन जीने के हकदार बन सकें। अगर हम चाहते हैं कि भारत अपनी पूरी क्षमता के साथ विकास करे और सफलता के नित नए सोपान गढ़े, तो इन बातों पर अमल करना और इस दिशा में कदम उठाना केंद्र और राज्य, दोनों के लिए बेहद आवश्यक है।

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