बीजेपी बना दलबदलुओं का अड्डा ?

 बीजेपी बना दलबदलुओं का अड्डा: 10 साल में 600 नेताओं को शामिल किया; 7 राज्यों में इन्हीं के पास कमान
2014 के बाद सबसे ज्यादा दलबदलू नेता बीजेपी में गए हैं. एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ 2014 से 2021 तक विधायक-सांसद स्तर के 426 नेताओं ने बीजेपी का दामन थामा है.

भारत में चुनावी सीजन शुरू होते ही दलबदल का खेल शुरू हो गया है. पिछले 7 दिन में 4 राज्यों के दो दर्जन से ज्यादा नेताओं ने पाला बदल लिया है. दल बदलने वालों में पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर महापौर स्तर के नेता शामिल हैं. 

वर्तमान में दलबदल का खेल महाराष्ट्र से शुरू हुआ है, जहां पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज कांग्रेसी अशोक चव्हाण बीजेपी में शामिल हो गए. राजस्थान कांग्रेस के विधायक महेंद्रजीत सिंह मालवीय ने भी हाथ का साथ छोड़कर कमल का दामन थाम लिया.

मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ की भी दल बदलने की चर्चा थी, लेकिन आखिर वक्त पर उन्होंने यूटर्न ले लिया. हालांकि, कमलनाथ के करीबी और जबलपुर के मेयर जगत बहादुर अन्नू जरूर कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए.

भारत में दलबदल का एक आंकड़ा
भारत में दलबदल का खेल 1960-70 में हरियाणा से शुरू हुआ था. धीरे-धीरे यह सियासी रोग पूरे भारत में फैल गया. 2014 के बाद नेताओं के दलबदल के मामलों में काफी तेजी आई. 

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के मुताबिक सांसद और विधायक स्तर के 1 हजार से ज्यादा नेता 2014-21 दल बदल के खेल में शामिल हुए.

बीजेपी बना दलबदलुओं का अड्डा: 10 साल में 600 नेताओं को शामिल किया; 7 राज्यों में इन्हीं के पास कमान

इन 7 सालों में सबसे ज्यादा पलायन कांग्रेस से हुआ. 2014-21 तक विधायक-सांसद स्तर के 399 नेताओं ने कांग्रेस का साथ छोड़ा. दूसरे नंबर पर बहुजन समाज पार्टी रही. बीएसपी छोड़ने वाले नेताओं की संख्या 170 के आसपास थी. सत्ताधारी बीजेपी से भी नेताओं का मोहभंग कम नहीं हुआ. 7 साल में 144 नेता बीजेपी छोड़ दूसरी अन्य पार्टियों में शामिल हो गए.

2014 के बाद भारत में दल बदलने वाले नेताओं में मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री स्तर के नेता भी शामिल रहे हैं. 2014 से अब तक 8 पूर्व मुख्यमंत्री पाला बदल चुके हैं. इनमें अशोक चव्हाण, कैप्टन अमरिंदर सिंह और नारायण राणे का नाम प्रमुख हैं. वहीं 20 से ज्यादा केंद्रीय मंत्री भी दलबदल के खेल में शामिल हुए. 

दलबदलुओं का अड्डा बनी बीजेपी, 3 प्वॉइंट्स

1. 2014 के बाद सबसे ज्यादा दलबदलू नेता बीजेपी में गए
2014 के बाद सबसे ज्यादा दलबदलू नेता बीजेपी में गए हैं. एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ 2014 से 2021 तक विधायक-सांसद स्तर के 426 नेताओं ने बीजेपी का दामन थामा है. 

वहीं 2021 से 2023 तक विधायक और सांसद स्तर के करीब 200 नेता बीजेपी में शामिल हो गए. 2021 से 2023 तक गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा दलबदल का खेल हुआ. 

बीजेपी बना दलबदलुओं का अड्डा: 10 साल में 600 नेताओं को शामिल किया; 7 राज्यों में इन्हीं के पास कमान

इस दरम्यान कांग्रेस में सिर्फ 176 दलबदलू नेता शामिल हुए. कांग्रेस और बीजेपी के अलावा दलबदलुओं की सबसे पसंदीदा जगह एनडीए की सहयोगी शिवसेना और लोजपा जैसे दल हैं.  

2. बीजेपी के भीतर 7 राज्यों की कमान दलबदलुओं के पास
केंद्र की सत्ता में आने के बाद बीजेपी ने दलबदलुओं को भी पद से खूब नवाजा. वर्तमान में बीजेपी ने 7 राज्यों की कमान दलबदलू नेताओं को दे रखी है. इनमें बिहार, असम, झारखंड और बंगाल जैसे राज्य शामिल हैं. 

बिहार में सम्राट चौधरी विधायक दल के नेता और प्रदेश अध्यक्ष हैं. सम्राट ने अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत राष्ट्रीय जनता दल से की थी. बाद में जेडीयू और हम होते हुए वे बीजेपी में आ गए. बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीट हैं.

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा भी मूल कांग्रेसी हैं. उन्होंने 2015 में पाला बदलते हुए बीजेपी का दामन थाम लिया था. असम में लोकसभा की कुल 14 सीट हैं.

बीजेपी बना दलबदलुओं का अड्डा: 10 साल में 600 नेताओं को शामिल किया; 7 राज्यों में इन्हीं के पास कमान

झारखंड की कमान बाबूलाल मरांडी के पास है. मरांडी अभी प्रदेश अध्यक्ष हैं, लेकिन उनकी भी गिनती दलबदलू नेताओं में होती है. बीजेपी में आने से पहले मरांडी जेवीएम के प्रमुख थे. झारखंड में लोकसभा की कुल 13 सीटें हैं.

बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में भी दल बदलकर आए शुभेंदु अधिकारी पर ही भरोसा जताया है. शुभेंदु बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं. शुभेंदु ने करियर की शुरुआत तृणमूल कांग्रेस से की थी. बंगाल में लोकसभा की 42 सीट हैं. 

इन राज्यों के अलावा अरुणाचल, त्रिपुरा और मणिपुर में भी दलबदलुओं के हाथ में ही बीजेपी की कमान है. तीनों राज्य के मुख्यमंत्री पहले कांग्रेस में रह चुके हैं.

3. 5 राज्यों में दलबदलुओं की वजह से जनाधार बढ़ा
उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल समेत देश के 5 ऐसे राज्य हैं, जहां दलबदलू नेताओं की वजह से ही बीजेपी जनाधार बढ़ा पाने में सक्षम हुई. 2014 के चुनाव में करीब 10 सीटों पर बीजेपी ने दलबदलुओं को टिकट दिए. 

2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जमकर दलबदलुओं की खातिरदारी की. बीजेपी को इसका फायदा मिला और 300 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल कर पार्टी ने सरकार बना ली. चुनाव बाद यूपी कैबिनेट में भी दलबदलुओं का दबदबा दिखा. स्वामी प्रसाद, रीता बहुगुणा जैसे दलबदलू नेताओं को बड़े विभाग दिए गए.

यूपी की तरह मध्य प्रदेश में भी दलबदलुओं ने बीजेपी का जनाधार बढ़ाने का काम किया. 2018 में जब मध्य प्रदेश की सत्ता बीजेपी के हाथों से निकल गई, तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में 28 कांग्रेस विधायक टूट गए. 

सभी ने बीजेपी का समर्थन कर दिया, जिसके बाद बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब हो गई. बीजेपी इसके बाद मध्य प्रदेश में मजबूत होते चली गई. 

पश्चिम बंगाल में भी 2019 में दल बदल कर आए नेताओं ने बीजेपी को रिकॉर्ड जीत दिलवाई. 2019 में बंगाल से जीते बीजेपी के 30 प्रतिशत सांसद दूसरे दल से आए थे.

असम में भी जनाधार बढ़ाने के लिए बीजेपी ने दूसरी पार्टी से आए नेताओं का ही सहारा लिया. 

दलबदल को लेकर बीजेपी का आधिकारिक स्टैंड क्या है?
चुनाव से पहले नेताओं के पलायन को लेकर हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बयान दिया था. उन्होंने कहा था, ”कांग्रेस में सिर्फ एक परिवार की राजनीति होती है. पार्टी भाई और भतीजेवाद में फंस गई है, इसलिए नेता वहां से इधर आ रहे हैं.”

बीजेपी ने दलबदलुओं को लेने के लिए कई राज्यों में ज्वॉइनिंग कमेटी बना रखी है. कमेटी का काम दूसरे दल के जनाधार वाले नेताओं को अपने पाले में लाना है. 

भारत में दलबदल कानून और उसका हाल
दलबदल को रोकने के लिए साल 1985 में भारत के संविधान में 52वां संशोधन किया गया, जिसके बाद 10वीं अनुसूची आस्तित्व में आया. इसके मुताबिक विधायकों पर कार्रवाई का अधिकार स्पीकर को दिया गया है. इसमें अंदर और बाहर दोनों जगह उनके आचरण के लिए अयोग्यता की कार्रवाई का अधिकार दिया गया है. 

हालांकि, कई मामलों में देखा गया है कि शिकायत के बावजूद इस पर कार्रवाई नहीं हुई है. उदाहरण के लिए 17वीं लोकसभा के दौरान तृणमूल कांग्रेस ने अपने 3 सांसद शिशिर अधिकार, दिव्येंदु अधिकारी और सुनील मंडल के खिलाफ 2021 में शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन सत्र खत्म होने के बाद भी तीनों पर कार्रवाई नहीं हुई.

दलबदल कानून में दो तिहाई विधायकों के एकसाथ अलग होने पर किसी भी तरह की कार्रवाई का नियम नहीं है. कई जगह पर देखा गया है कि कार्रवाई से बचने के लिए एकसाथ विधायक पार्टी छोड़ देते हैं. दलबदल कानून सिर्फ चुने हुए जनप्रतिनिधियों पर ही लागू होता है, इसलिए बड़े-छोटे नेता आसानी से पार्टी बदल लेते हैं.

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