हिमाचल में सदस्यता गंवाने वाले 6 विधायकों पर दलबदल विरोधी कानून लागू होगा या नहीं?
हिमाचल में सदस्यता गंवाने वाले 6 विधायकों पर दलबदल विरोधी कानून लागू होगा या नहीं?
Himachal Pradesh: राज्यसभा चुनाव में बगावत करने वाले सभी 6 बागी विधायकों को हिमाचल प्रदेश विधानसभा स्पीकर कुलदीप ने अयोग्य घोषित कर दिया है. ऐसे में सवाल है कि क्या अयोग्य घोषित किए गए विधायकों पर दल-बदल विरोधी कानून लागू होगा या नहीं, अयोग्य विधायकों ने क्या-क्या आरोप लगाए हैं और विधायकों के पास अभी क्या-क्या मौके हैं?
राज्यसभा चुनाव में बगावत करने वाले सभी 6 बागी विधायकों को हिमाचल प्रदेश विधानसभा स्पीकर कुलदीप ने अयोग्य घोषित कर दिया है. मतदान के दौरान कांग्रेस के 6 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर दी. इसके अलावा तीन निर्दलीय विधायकों ने भी भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में वोट किया. इससे भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के उम्मीदवार को बराबर यानी 34-34 वोट मिले. फिर पर्ची के जरिए फैसला किया गया, जिसमें बीजेपी के हर्ष महाजन की जीत हुई.
अब दल-बदल विरोधी कानून के तहत विधायकों को आयोग्य घोषित किया गया है. स्पीकर कुलदीप सिंह पठानिया का कहना है कि जिन विधायकों को अयोग्य घोषित किया गया है उन्होंने चुनाव तो कांग्रेस से लड़ा लेकिन पार्टी के व्हिप का उल्लंघन किया. कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में मतदान नहीं किया. अयोग्य घोषित किए जाने वाले विधायकों में सुधीर शर्मा, राजेंद्र सिंह राणा, रवि ठाकुर, देवेंदर भुट्टो, चैतन्य शर्मा और इंदर दत्त लखनपाल हैं.
ऐसे में सवाल है कि क्या अयोग्य घोषित किए गए विधायकों पर दल-बदल विरोधी कानून लागू होगा या नहीं, अयोग्य विधायकों ने क्या-क्या आरोप लगाए हैं और विधायकों के पास अभी क्या-क्या मौके हैं?
क्या विधायकों पर लागू होगा दल-विरोधी कानून?
क्या अयोग्य विधायकों पर दल-बदल विरोधी कानून लागू होगा या नहीं? इसका जवाब जानने के लिए पहले इस कानून को समझ लेते हैं.कानून कहता है कि राजनीतिक दल के सदस्य को सदन से दो स्थितियों में अयोग्य घोषित किया जा सकता है. पहली, यदि उसने स्वेच्छा से राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ दी है. दूसरी, अगर उसने अपनी पार्टी के निर्देश के विपरीत जाकर सदन में वोटिंग की है. या बिना किसी पूर्व जानकारी के मतदान के दौरान अनुपस्थित रहता है. ऐसे हालात में विधायक को अयोग्य घोषित किया जा सकता है.
अब सवाल यह भी है कि दलबदल विरोधी कानून के तहत किसी विधायक को अयोग्य ठहराने का निर्णय लेते समय स्पीकर कौन सी प्रक्रिया को अपनाते हैं. इसे भी समझ लेते हैं.व्हिप का उल्लंघन करने पर वो पार्टी विधायक को अयोग्य ठहराने के लिए याचिका दायर करती है. याचिका में पूरे मामले का विवरण होता है. मामले से जुड़े साक्ष्य होते हैं.
जिस पार्टी के विधायक ने व्हिप का उल्लंघन किया है वो पार्टी विधानसभा स्पीकर को यह याचिका देती है. स्पीकर याचिका की जांच करते हैं और निर्णय लेते हैं कि नियमों का उल्लंघन हुआ है या नहीं और याचिका नियम के अनुरूप है या नहीं. अगर याचिका नियमों के अनुरूप नहीं है तो स्पीकर उसे खारिज कर देते हैं. अगर सब कुछ संविधान के मुताबिक चलता है तो याचिका स्वीकार कर ली जाती है.
याचिका स्वीकार होने के बाद स्पीकर उसकी एक कॉपी उस विधायक को भेजते हैं, जिन पर कार्रवाई करने की बात कही जा रही है और उनसे जवाब मांंगते हैं. विधायकों को अपनी बात रखने के लिए 7 दिन का समय दिया जाता है. विधायक के जवाब के बाद स्पीकर तय करते हैं कि उन्हें MLA को अयोग्य घोषित करना है या नहीं. नियमानुसारविचार करने के बाद स्पीकर या तो उसे खारिज कर सकता है या विधायक को आयोग्य घोषित कर दिया जाता है.
अयोग्य विधायकों ने क्या आरोप लगाए, उनके पास कितने विकल्प बचे?
इस पूरे मामले में जिन 6 विधायकों को अयोग्य ठहराया गया है, उन्होंने अपनी बात रखी है. विधायकों का आरोप है कि उन्हें वे पार्टी की तरफ से दस्तावेज नहीं दिए गए और उन्हें अपना स्पष्टीकरण देने के लिए उचित समय भी नहीं दिया गया.
स्पीकर की कार्रवाई के बाद सभी 6 अयोग्य विधायकों के पास अदालत का दरवाजा खटखटाने का विकल्प ही बचा है. विधायक कोर्ट में स्पीकर के फैसले को चुनौती दे सकते हैं.