CAA कानून: दूसरे देशों के मुसलमानों के लिए भारत में क्या-क्या बदल जाएंगे नियम

CAA कानून: दूसरे देशों के मुसलमानों के लिए भारत में क्या-क्या बदल जाएंगे नियम, 10 सवालों के जवाब
सीएए के लागू होने पर भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर- मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा. 
भारत में लोकसभा चुनाव के लिए अब दो महीने से भी कम का समय बचा है. ऐसे में एक बड़ी खबर ये सामने आ रही है कि केंद्र सरकार की तरफ से आज यानी 11 मार्च 2023 की देर रात नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को लेकर अधिसूचना जारी की जा सकती है.

अगर ऐसा होता है तो भारत में आज रात से सीएए कानून लागू हो जाएगा. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सरकार ने नोटिफिकेशन जारी करने से सबंधित सारी जरूरी तैयारियां पूरी कर ली है. 

सीएए के लागू होने से भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर- मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा. 

बता दें कि इस कानून को 4 साल पहले ही संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिल गई थी. यहां तक की इस कानून पर राष्ट्रपति की मुहर भी लग चुकी है. लेकिन उस वक्त सीएए के खिलाफ देशभर में हुए विरोध प्रदर्शन के चलते यह आज तक लागू नहीं हो पाया है. 

सूत्रों का मानें तो वर्तमान में सीएए को लागू करने की पूरी तैयारियां हो चुकी है. अब केवल नोटिफिकेशन जारी होने का इंतजार किया जा रहा है. 

ऐसे में इस रिपोर्ट में नागरिक संशोधन अधिनियम से जुड़े 10 ऐसे सवाल का जवाब जानने की कोशिश करेंगे जिसके बारे में जानना बेहद जरूरी है?

1. नागरिकता संशोधन अधिनियम क्या है, प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए दिसंबर 2019 में भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया था. यह 1955 के नागरिकता अधिनियम में संशोधन करता है. 

यह अधिनियम 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए 6 धर्मों के शरणार्थियों हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी को भारतीय नागरिकता देने की बात कहता है.

आसान भाषा में समझें तो इस कानून के तहत भारत अपने तीन पड़ोसी और मुस्लिम बाहुल्य देशों से आए उन लोगों को भारतीय नागरिकता देगा जो साल 2014 तक किसी न किसी प्रताड़ना का शिकार होकर भारत आकर बस गए थे. 

सीएए के अनुसार इन तीन देशों से भारत आए लोगों को नागरिकता लेने के लिए किसी तरह के कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी. इतना ही नहीं कानून के तहत इन छह अल्पसंख्यकों को नागरिकता मिलते ही मौलिक अधिकार भी मिल जाएंगे. हालांकि सीएए से मुसलमानों को बाहर रखा गया है 

भारतीय नागरिकता कानून 1955 में अब तक 6 बार (1986, 1992, 2003, 2005, 2015, 2019) संशोधन हो चुका है. पहले किसी को भी भारतीय नागरिकता लेने के लिए 11 साल तक भारत में रहना जरूरी था. नए संशोधित कानून में यह अवधि घटाकर 6 साल कर दी गई है.  

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2. सीएए लागू करने के लिए भारत सरकार ने क्या तर्क हैं?

यह बिल जब संसद से पारित किया गया था उस वक्त ही भारत के अलग अलग हिस्सों में मुस्लिमों ने इसका कड़ा विरोध किया. लेकिन, अमित शाह का कहना था कि सीएए किसी की नागरिकता छीनने का कानून नहीं है.

उन्होंने कहा कि, ” नागरिकता संशोधन अधिनियम ऐसे लोगों को नागरिकता देने के लिए बनाया गया है, जिन्हें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में रहते हुए धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा और वह इससे बचने के लिए भारत पहुंचे थे.”

3. इसको लेकर विरोध क्यों 

आज से चार साल पहले जब सीएए संसद से पारित हुआ था, उस वक्त ही देश के कई हिस्सों में इसका कड़ा विरोध किया गया. विरोध करने की मुख्य वजह इस संशोधित अधिनियम में मुस्लिम समुदाय को शामिल नहीं किया जाना है.  

कुछ राजनीतिक पार्टियों ने इसी को आधार मानकर केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा. विपक्षी पार्टियों के अनुसार इस अधिनियम में संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन हो रहा है जो समानता के अधिकार की बात करता है.

4. सीएए एनआरसी से कैसे मेल खाता है?

20 नवंबर 2019, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सदन को बताया था कि उनकी सरकार नागरिकता से जुड़ी दो अलग-अलग पहलुओं को लागू करने जा रही है, एक है सीएए और दूसरा है राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर या एनआरसी  ( NRC ).

हमने सीएए के बारे में आपको ऊपर ही जानकारी दे दी है. अब समझिए की ये एनआरसी क्या है? दरअसल एनआरसी नागरिकों का एक राष्ट्रीय रजिस्टर है, जिसका उद्देश्य भारत से अवैध घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें बाहर निकालना है, फिर चाहे वो किसी भी धर्म के हों. वर्तमान में एनआरसी केवल असम में लागू है. 

अब क्योंकि सदन में एक साथ सीएए-एनआरसी की बात की गई थी इसलिए अक्सर इन दोनों कानून के एक दूसरे के साथ जोड़कर देखा जाता रहा है. 

आलोचकों का तर्क है कि एनआरसी के दौरान अगर मुसलमान अपने कागज़ नहीं दिखा पाएंगे तो ऐसे में हिंदू तो सीएए के कारण बच जाएगा लेकिन मुसलमानों की नागरिकता छीनी जा सकती है. इस कारण कई लोगों के मन में डर पैदा हो गया है.

5. सीएए को भारत की न्यायपालिका में किन कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है?

सीएए को भारत की न्यायपालिका में कई कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, विभिन्न अदालतों में दायर याचिकाओं में इसकी संवैधानिकता पर सवाल उठाया गया है. 

आलोचकों का तर्क है कि सीएए भारतीय संविधान द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, जिसमें समानता और गैर-भेदभाव का अधिकार भी शामिल है. जबकि कुछ याचिकाएं ख़ारिज कर दी गई हैं और कुछ अभी भी अदालतों में लंबित हैं और फैसले का इंतज़ार कर रही हैं. 

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6. CAA पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने कैसी प्रतिक्रिया दी है?

भारत के नागरिकता संशोधन अधिनियम को अलग अलग राज्यों में हुए विरोध प्रदर्शन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लोगों का ध्यान आकर्षित किया है. हालांकि कई अंतरराष्ट्रीय समुदायों ने इस कानून की आलोचना की है.

कई देशों और अंतर्राष्ट्रीय निकायों ने सीएए की भेदभावपूर्ण बताया है. उनके अनुसार यह कानून भारत के धर्मनिरपेक्षता को प्रभावित कर सकता है. 

7. सीएए की आलोचना पर भारत की सत्ताधारी पार्टी की क्या प्रतिक्रिया रही है?

भारत की सत्तारूढ़ पार्टी, भारतीय जनता पार्टी ने दृढ़ता से सीएए का बचाव किया है और आलोचना को राजनीति से प्रेरित बताकर खारिज कर दिया है. पार्टी नेताओं ने कई बार इस बात को दोहराया है कि इस कानून को लाना एक मानवीय कदम है जिसका उद्देश्य पड़ोसी देशों के उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को शरण देना है. उन्होंने विपक्षी दलों और आलोचकों पर सीएए के इरादों के बारे में गलत सूचना फैलाने और भय फैलाने का भी आरोप लगाया है.

8. समय के साथ सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कैसे बढ़ता गया  

शुरुआत में इसके खिलाफ स्थानीय स्तर पर प्रदर्शन शुरू हुए थे लेकिन इसने तेजी से गति पकड़ी और धीरे धीरे  इसमें विभिन्न समूह और समुदाय शामिल होते चले गए. 

सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में छात्रों, कार्यकर्ताओं, नागरिक समाज संगठनों और आम नागरिकों की व्यापक भागीदारी देखी गई है, जो सीएए को रद्द करने और भारत के धर्मनिरपेक्ष आदर्शों को बनाए रखने की मांग कर रहे हैं.

9. सीएए में मुसलमानों को शामिल क्यों नहीं किया गया 

साल 2019 में संसद में अमित शाह ने कहा था कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश ये तीनों ही मुस्लिम बहुल देश हैं. वहां ज्यादातर मुस्लिम धर्म के लोगों के रहने का कारण उनका उत्पीड़ित नहीं होता है. जबकि इन्हीं देशों में  हिंदुओं और अन्य समुदायों का धर्म के आधार पर उत्पीड़न किया जाता है. यही कारण है कि इन देशों के मुस्लिमों को सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट CAA में शामिल नहीं किया गया. 

अमित शाह ने आगे ये भी कहा था कि मुसलमानों को इसमें शामिल नहीं किया गया है फिर भी वह नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं, जिस पर सरकार विचार कर फैसला लेगी.

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10. क्या सीएए से भारतीय नागरिकों पर कोई असर पड़ेगा 

सीएए भारतीय नागरिकों को प्रभावित नहीं करेगा. क्योंकि इस अधिनियम से भारत के नागरिकों का कोई सरोकार नहीं है. संविधान के तहत भारतीयों को नागरिकता का अधिकार है और उनसे ये अधिकार CAA या कोई कानून नहीं छीन सकता.

4 साल में कितने अल्पसंख्यकों को मिली नागरिकता

भारत में साल 2018 से लेकर 2021 के बीच पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए कुल 8,244 लोगों के आवेदन मिले थे. लेकिन केवल 3,117 अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता दी गई. यह आंकड़ा गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने दिसंबर 2021 में राज्यसभा में बताया था. 

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