कट्टरता और ध्रुवीकरण का शिकार हो रहे हैं हमारे नौजवान !
देश में लोकसभा का चुनाव चल रहा है. पांचवें चरण की वोटिंग के लिए कुछेक घंटे ही शेष रह गए हैं. इस बीच देश की राजधानी दिल्ली में मौसम की गर्मी के साथ राजनीतिक गर्मी भी बढ़ी हुई है. दिल्ली के सीएम हाउस में स्वाति मालीवाल के मामले की तपिश अभी कम नहीं हुई थी कि कांग्रेस के प्रत्याशी कन्हैया कुमार पर हमला हो गया. कन्हैया कुमार नंदनगरी में चुनाव प्रचार कर रहे थे, तभी माला पहनाने के बाद एक शख्स ने उनपर हमला कर दिया.
ऐसे हमले नए नहीं
कांग्रेस प्रत्याशी पर हुए हमले को दो तरह से देखा जा सकता है पहला तो ये हमला चुनावी मुद्दा है और दूसरा उस हमले का विवरण. हमारे यहां चुनाव में ये अक्सर देखने को मिल रहा है कि नेताओं पर हमले हो रहे हैं. चुनाव प्रचार के समय पर ही अक्सर ऐसी घटनाएं सामने आती है. अरविंद केजरीवाल जब 2014 में जब वाराणसी गए थे तब उन पर अंडा फेंका गया था, उसके बाद स्याही फेंकी गई थी. अखिलेश की प्रेस कांफ्रेंस या सभा में हमले करने की कोशिश की गई. इस तरह से नेताओं पर हमला करवाया जाना या हमला करना रेगुलर किस्म की चीज बनते जा रही है.
खासकर ये चुनावों में बढ़ जाता है. उसी प्रकार से ये हमला कन्हैया कुमार के सामने भी आया है. दूसरी ओर पूरी घटना को देखें तो हमलावर भी सामने हैं. उन्होंने वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर साझा किया है कि उन्होंने कन्हैया कुमार पर हमला किया है. इस तरह के बयान को पुलिस को संज्ञान में लेना चाहिए था और उन्हें गिरफ्तार करना चाहिए था. अगर अभी तक ऐसी कोई कार्रवाई नहीं हुई तो ये सवाल उठता है कि आखिरकार गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई?
दूसरी ओर ये भी साफ है कि जो हमलावर है उसकी कई तस्वीरे और वीडियो सामने आई है जिसमें वो भाजपा के उम्मीदवार मनोज तिवारी के साथ मंच साझा करते दिखा है. इससे तो साफ होता है कि या तो वो भाजपा कार्यकर्ता होगा या फिर मनोज तिवारी को जानने वाला शख्स होगा. कुल मिलाकर ये दिखता है कि या तो भाजपा का इस हमले में नाम जुड़ेगा या फिर उस शख्स ने खुद ही किसी वजह से हमला किया होगा. कन्हैया पर हमला भाजपा से जुड़ा हुआ है, ऐसे में ये मुद्दा चुनावी तो जरूर बनेगा. दिल्ली में मुद्दा ये बन चुका है और सोशल मीडिया पर इसके बारे में जमकर बातें भी हो रही है.
युवक पर पहले भी कई आरोप
मुद्दा ये भी बन रहा है कि कन्हैया ने खुद पर हमला करवाया है ताकि उसे चुनाव में फायदा मिल सके, तो ये बात बिलकुल ही गलत है, क्योंकि हमलावर ने खुद सामने आकर ये मामला कबूल कर लिया है. उसने टुकड़े-टुकड़े गैंग और राष्ट्र विरोधी कन्हैया कुमार से बदला लिया है, ऐसा उसने अपने वीडियो में कहा है. हमलावर कोई अनजान शख्स नहीं है. गाजियाबाद पुलिस ने कुछ महीने पहले उसे और एक अन्य शख्स को मस्जिद में हंगामा करने के मामले में गिरफ्तार भी किया था. ये बात सामने आ चुकी है.
शास्त्री पार्क के पुश्ता 2 में मंदिर के सामने वाले मीट बेचने वाले व्यक्ति के साथ भी इस शख्स ने हंगामा खड़ा किया था. इस तरह का कई मामला उस पर लगता रहा है. ये भी मामला साफ है कि वो भाजपा का कार्यकर्ता है. भाजपा के कार्यकर्ता को उकसा कर कांग्रेस का प्रत्याशी अपने उपर हमला कैसे करवा लेगा, इसलिए इस दावे का कोई प्रश्न ही नहीं बनता कि कन्हैैया कुमार ने अपने उपर हमला करवाया होगा.
पार्टी या प्रत्याशी नहीं करवाता हमला
मनोज तिवारी का दावा है कि वो अपने क्षेत्र में काफी मजबूत हैं. कन्हैया कुमार की उनसे कहीं कोई भी टक्कर नहीं है. ऐसे में अपने कार्यकर्ता को क्यों ऐसा कोई निर्देश देंगे कि उससे उनकी छवि धूमिल हो जाए. कांग्रेस ने दावा किया है कि ये आयोजन भाजपा ने करवाया है. उस व्यक्ति की पहचान भी अब सामने आ चुकी है. मनोज तिवारी खुद इस चुनाव में अपनी उम्मीदवारी पेश कर रहे हैं तो ऐसेी घटना करवाएं, ऐसा बिल्कुल भी नहीं हो सकता. मनोज तिवारी सांसद रह चुके हैं तो उनको पता है कि अगर ऐसा कुछ करवाएंगे तो उसका नकारात्मक असर क्या होगा? सीएए-विरोधी आंदोलन के समय गोपाल नाम के शख्स ने बंदूक तान दी थी, उसी प्रकार से कभी प्रशांत भूषण के कार्यालय में घुसकर मुंह में कालिख पोत दी थी, तो ये जरूरी नहीं है कि ऐसी घटना करवाई जाए.
ध्रुवीकरण के शिकार युवा
कुछ सालों में युवा की कट्टरता बढ़ी है, हर तरह का रेडिकलाइजेशन बढ़ा है. हर तरह की कट्टर विचारधारा की ओर जवान मस्तिष्क गया है. खासकर वैसे युवा इसमें गए है जो बेरोजगार है, घर में थोड़े संसाधन है. ऐसे युवकों को फांस कर अनजाने में उनका उपयोग किए जाने का प्रचलन भी बढ़ा है. युवा को लगता हैै कि वो राष्ट्रवाद या किसी विचारधारा में आकर कोई कृत्य करेगा तो उसका लाभ मिलेगा.
युवा बड़े पैमाने पर कट्टर बना है. कुछ ऐसे तत्व भी हैं, जो कुछ चीजों को अपने हाथ में लेते हैं. पॉलिटिकल पार्टियां भी थोड़ा इस्तेमाल करने के बाद छोटा पद दे देती हैं. ये प्रक्रिया लंबे समय से चल रही है लेकिन कुछ सालों में ये ज्यादा बढ़ा है. बेरोजगार युवक को फांसने में राजनीतिक दलों ने ने भी खूब संसाधन लगाया है. ये जिसने कन्हैया पर हमला किया है, ये उसी फसल का एक हिस्सा है. तो ऐसे में कोई भी पार्टी ऐसे नहीं कहेगा कि वो किसी पार्टी या कार्यकर्ता पर जाकर हमला करे.
कांग्रेस की जहां तक बात है तो चुनाव का समय है तो ऐसे में फायदा लेने की तो कोशिश की जाएगी. मनोज तिवारी पर ये हमला हुआ होता तो भाजपा इसको मुद्दा बनाती और आरोप आम आदमी पार्टी या कांग्रेस पर मढ़ देती. ऐसे में कांग्रेस तो इसको तो मुद्दा बना रही है. बीते कुछ साल में ध्रुवीकरण और कट्टरता बढ़ने के कारण ही ऐसे हमले देखने को मिल रहे हैं.