मौजूदा पीढ़ी के लिए रोजगार का मतलब सिर्फ आर्थिक बोझ या मजबूरी नहीं है !
एचआर पेशेवरों को समझना चाहिए कि मौजूदा पीढ़ी के लिए रोजगार का मतलब सिर्फ आर्थिक बोझ या मजबूरी नहीं है।
दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आखिरी दिन एक नवयुवती ने मुझसे कहा, “इस कार्यक्रम को पूरा करने के लिए ही मैंने अपना इस्तीफा रोक रखा था। माफ करें सर, मैं आज ही इस्तीफा दे रही हूं’। उसने एक महीने पहले ही वह संस्थान जॉइन किया था। मैं हक्का-बक्का रह गया। वह बोली, “मैं अच्छे परिवार से आती हूं।
मेरे लिए पैसा मायने नहीं रखता। मैं यहां इसलिए आई क्योंकि ये काम मेरा जुनून था। मुझे मेरा काम करने देने के बजाय, बॉस मुझसे उम्मीद करते हैं कि मैं छोटे-मोटे कामों में उलझी रहूं, जिसका नौकरी से कोई ताल्लुक नहीं।
अपनी नौकरी बचाने के लिए उन्होंने मुझसे झूठ बोलने और कुछ दस्तावेज पर साइन करने का दबाव बनाया। जब मैंने सहयोग करने से मना कर दिया, तो उन्होंने प्रबंधन से मातहत मसलों की और बात न मानने की शिकायत कर दी।
मैं आपसे पूछना चाहती हूं सर, महज इसलिए कि मैं एक महिला हूं, क्या मुझे मेल ईगो के सामने झुकना जरूरी है?’ मैंने उसे इस्तीफा ना देने की सलाह दी। फिर मैंने उस संस्थान के प्रमोटर्स को संगठन में निचले स्तर पर चल रहे मुद्दों के बारे में बताया।
अच्छा लगे या ना लगे, नियोक्ताओं को समझना होगा कि अब नौकरी के लिए मिलेनियल्स और जेन ज़ी आ रहे हैं और वे अलग हैं। अगर संस्थान में उनकी जरूरत पूरी नहीं होती तो इसके लिए वे नौकरी छोड़ने तैयार रहते हैं। कई एचआर ये समझने में चूक रहे हैं कि ये कर्मचारी आर्थिक रूप से ठीकठाक पृष्ठभूिम से आ रहे हैं और खास उद्देश्य के लिए आए हैं।
उनका एक साझा लक्ष्य करिअर, पैसों के अलावा तेजी से ग्रोथ, पहचान हो सकता है। पर अधिकांश लोग गुणवत्तापूर्ण जीवन पर फोकस करते हैं क्योंकि वे हमारी जैसी पीढ़ी के बच्चे हैं, जिन्होंने कड़ा परिश्रम करके जीवन की गुणवत्ता बेहतर की खासकर रोजमर्रा के जीवन में सहूलियत बढ़ाने वाली मशीनों का इस्तेमाल बढ़ाकर।
हमारी पीढ़ी के कुछ माता-पिताओं ने दूसरों की तुलना में तेजी से संपत्ति अर्जित की। ताकि उनके बच्चे कार से दफ्तर आ सकें, जिसे खरीदने में हमारी पीढ़ी को दो दशक लग गए। सहूलियतें देखकर हमारे मन में पूर्वाग्रह नहीं आना चाहिए, जो व्यवहार में झलक सकता है। वरिष्ठों द्वारा ध्यान रखने के बजाय हल्की टिप्पणियां जैसे ‘आप तो बड़े लाड़-प्यार से पले लगते हैंं’ से जलन की बू आती है। एेसी भाषा बोलने से बचना चाहिए।
ज्वाइनिंग के एक महीने में उसके इस्तीफे का एक मुख्य कारण ये था कि कई बॉस उससे ऐसे बोझिल काम कराते थे जो कंप्यूटर भी कर सकता है। लेकिन वे यह समझने में असफल रहते हैं कि आज की पीढ़ी का लक्ष्य, ऐसे काम ज्यादा करना है, जिनके प्रति वे जुनूनी हों और ऐसे काम कम करना है, जिन्हें महज लाइक करते हों।
अच्छे बॉस पहले ये समझते हैं कि नए कर्मचारी को क्या पसंद है और उसे कम से कम तीन महीने के लिए वह काम देते हैं ताकि नए कर्मचारी पूरे संगठन के ढांचे में अभ्यस्त हो जाएं। यदि आप उन्हें संस्थान में बनाए रखना चाहते हैं, तो उन्हें ऐसे काम की पेशकश करनी चाहिए, जो “जीवन की गुणवत्ता” के इर्द-गिर्द रहे। कई बॉस सोचते हैं कि जीवन की गुणवत्ता सीधे वेतन से जुड़ी है।
जबकि ऐसा नहीं है। यह आपके अच्छे शब्द हो सकते हैं, न सिर्फ उनके स्किल बल्कि संपूर्ण ज्ञान को बढ़ाने और सिखाने वाली काबिलियत हो सकती है, अपमान न हो, लैंगिक भेदभाव न हो, बहुत सारी सराहना हो, खुशनुमा माहौल हो आदि। अगर आप इन मुद्दों पर फोकस करते हैं तो फिर एेसे नौकरी छोड़ने वाले मुद्दे सामने नहीं आएंगे।
फंडा यह है कि एचआर पेशेवरों को समझना चाहिए कि मौजूदा पीढ़ी के लिए रोजगार का मतलब सिर्फ आर्थिक बोझ या मजबूरी नहीं है। उनका एक उद्देश्य है, कारण है और इसलिए वे एेसा कार्यक्षेत्र देखते हैं जहां तनख्वाह के अलावा और भी बहुत कुछ हो।