महिलाओं की स्थिति में सुधार के क्या प्रयास किए गए हैं?
महिलाओं की स्थिति में सुधार के क्या प्रयास किए गए हैं?
यूएन जनसंख्या कोष द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट- जिसका शीर्षक ‘विश्व की जनसंख्या की स्थिति’ है- ने संकेत दिया कि 2020 में लापता महिलाओं की संख्या लगभग 14 करोड़ थी। चौंकाने वाली बात यह है कि दुनिया भर में ‘लापता’ फीमेल-बर्थ का लगभग 95% चीन और भारत में है। इसमें भी अकेले भारत की हिस्सेदारी 4.6 करोड़ होने का अनुमान है।
अनुमान है कि अवैध लिंग-चयन के माध्यम से गर्भपात के परिणामस्वरूप 2030 तक भारत में 68 लाख कम लड़कियां जन्म लेंगी। वहीं 2017 और 2030 के बीच बीस लाख कन्या भ्रूण के ‘लापता’ होने का अंदेशा है।
भारत में लिंगानुपात पहले ही 1,000 पुरुषों पर 900 से 930 महिलाओं की चिंताजनक सीमा पर चला गया है। अनुमान है कि भारत की 27 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल की कानूनी उम्र से पहले ही कर दी जाती है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि बाल विवाह में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो 2015 में 293 से बढ़कर 2021 में 1050 हो गई है। जबकि वास्तविक संख्या इससे बहुत अधिक है।
प्रधानमंत्री ने अपने पहले कार्यकाल की शुरुआत बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (बीबीबीपी) योजना के तहत बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ावा देकर की थी। महिला सशक्तीकरण पर एक संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 2016-19 के बीच बीबीबीपी के तहत लगभग 80 प्रतिशत धनराशि प्रचार पर ही खर्च कर दी गई।
संसद में एक प्रश्न के उत्तर में, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने पुष्टि की कि 2016-17 और 2019-20 के बीच उसके 555 करोड़ के कुल व्यय में से कुल 351.5 करोड़ (लगभग 63 प्रतिशत) केवल मीडिया-अभियानों पर खर्च किए गए थे।
विश्व बैंक का अनुमान है कि भारत की श्रम-शक्ति में महिलाओं की भागीदारी की दर दुनिया में सबसे कम में से एक है। भारत में एक-तिहाई से भी कम महिलाएं कार्यरत हैं या सक्रिय रूप से काम की तलाश में हैं।
आकस्मिक मजदूरी के काम में, महिलाएं पुरुषों की तुलना में केवल 60% कमाती हैं। 80% से अधिक ग्रामीण महिलाएं खेती-बाड़ी के काम में हाथ बंटाती हैं लेकिन 13% से भी कम के पास खुद की जमीन है। एनसीआरबी डेटा से पता चलता है कि आत्महत्या करने वाले किसानों में से लगभग 10% महिलाएं थीं।
केंद्र सरकार ने उस पुराने दृष्टिकोण को खत्म करने के लिए भी कुछ नहीं किया है, जो महिलाओं को केवल मातृत्व से जोड़ता है। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना द्वारा इस्तेमाल किया गया नारा ‘मातृ शक्ति, राष्ट्र शक्ति’ इसका एक उदाहरण है। इस मातृत्व लाभ कार्यक्रम का लाभ पहले बच्चे के जन्म तक ही सीमित है।
भारत की महिला-श्रमिकों में से 95% अनौपचारिक क्षेत्र में हैं और इस कार्यक्रम के किसी भी प्रावधान तक उनकी पहुंच नहीं है। 2024 के घोषणा-पत्र में भाजपा ने जिन 3 करोड़ से अधिक महिलाओं को लाभान्वित करने का दावा किया है, उसमें कई महिलाएं शामिल नहीं।
केंद्र सरकार की एक और प्रमुख योजना- जिसे महिलाओं के लिए गेम चेंजर के रूप में प्रचारित किया गया है- 2016 में शुरू की गई प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना है। 2024 के घोषणा-पत्र में दावा किया गया है कि इसने महिलाओं के जीवन को बदल दिया है। लेकिन जरा हकीकत देखें।
यह योजना गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की ग्रामीण महिलाओं को मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन देने का वादा करती है, लेकिन दूसरे सिलेंडर के रिफिल के लिए कोई सब्सिडी नहीं देती। एलपीजी की आसमान छूती कीमतें उनकी सामर्थ्य को दोगुना कठिन बना देती हैं। ऐसे में भाजपा किस परिवर्तन का दावा कर रही है?
महिलाओं के खिलाफ अपराध तो आज अभूतपूर्व रूप से ऊंचे स्तर पर पहुंच गए हैं और सजा की दर अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ चुकी है। अकेले वर्ष 2022 में महिलाओं के खिलाफ 4,45,256 अपराध हुए। यानी हर घंटे 51 एफआईआर कायम की गईं। भारत की राजधानी दिल्ली में हर दिन तीन महिलाओं के साथ दुष्कर्म होते हैं।
2014 के घोषणा-पत्र में भाजपा ने कहा था, ‘वह समाज और राष्ट्र के विकास में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानती है और महिलाओं के सशक्तीकरण व कल्याण को प्राथमिकता देने के लिए प्रतिबद्ध है।’ पर हकीकत क्या है? पिछला दशक महिलाओं के लिए बहुत मुश्किल ही रहा है।
श्रम-शक्ति में महिलाओं की भागीदारी की दर दुनिया में सबसे कम में से है। मजदूरी में महिलाएं पुरुषों की तुलना में 60% ही कमाती हैं। ग्रामीण महिलाएं खेती के काम में हाथ बंटाती हैं लेकिन 13% से भी कम के पास खुद की जमीन है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)