प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री के लिए रिश्वत का रेट फिक्स ?
प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री के लिए रिश्वत का रेट फिक्स …
सर्विस प्रोवाइडर ने बताया- भोपाल में रोजाना अफसर 2-3 लाख रुपए घर ले जाते हैं
आप प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री कराने सरकार के पंजीयन कार्यालय जाएंगे तो आपको 5 से 7 हजार रुपए रिश्वत के देने ही पड़ेंगे, भले ही आपके पास सभी लीगल डॉक्यूमेंट क्यों न हों। पंजीयन कार्यालयों में रिश्वत का यह लेन-देन बाकायदा एक सिस्टम से होता है- सर्विस प्रोवाइडर के जरिए।
…. के स्टिंग में सर्विस प्रोवाइडर्स ने कबूला है कि ये रुपए वे सब रजिस्ट्रार, डिस्ट्रिक्ट रजिस्ट्रार और ऊपर तक पहुंचाते हैं। यदि ये रिश्वत नहीं दें तो रजिस्ट्री नहीं हो पाती। पंजीयन विभाग ने ही रजिस्ट्री की ऑनलाइन प्रोसेस पूरी करने के लिए सर्विस प्रोवाइडर्स को तैनात कर रखा है।
रिश्वत के इस सिस्टम के खुलासे के लिए दैनिक भास्कर के रिपोर्टर आम आदमी बनकर प्लॉट की रजिस्ट्री कराने के लिए भोपाल और इंदौर के सर्विस प्रोवाइडर्स के पास पहुंचे। एक हफ्ते तक अलग-अलग सर्विस प्रोवाइडर्स संपर्क किया।
इस स्टिंग में हर सर्विस प्रोवाइडर ने रजिस्ट्रार ऑफिस के सब रजिस्ट्रार और जिला रजिस्ट्रार के लिए रिश्वत की डिमांड की जो कैमरे कैद हुई है। एक सर्विस प्रोवाइडर ने तो खुलासा किया- ‘भोपाल में तो हर अफसर 70 हजार से लेकर 3 लाख रुपए रोज घर लेकर जाते हैं।’
आज पहली किस्त में पढ़िए राजधानी भोपाल में प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री के लिए किस तरह ली जा रही है रिश्वत…।
भोपाल में हर रजिस्ट्री के लिए 5 से 7 हजार रुपए की रिश्वत फिक्स
भोपाल में भास्कर की टीम आधा दर्जन सर्विस प्रोवाइड के दफ्तर पहुंची। सभी से 800 स्क्वायर फीट के एक प्लॉट की रजिस्ट्री करवाने की बात की। हर सर्विस प्रोवाइडर ने अपना रेट अलग-अलग बताया। किसी ने इसके एवज में 5 हजार रुपए मांगे तो किसी ने 7 हजार रुपए। इन सभी ने एक बात कॉमन कही कि ये कि ये रकम हम अधिकारियों के लिए ले रहे हैं।
अब जानिए कैसे बनते हैं सर्विस प्रोवाइडर
कोई भी ग्रेजुएट व्यक्ति सर्विस प्रोवाइडर बनने के लिए जिला पंजीयक को आवेदन कर सकता है। आवेदन के साथ चरित्र प्रमाण पत्र, पुलिस वैरिफिकेशन के साथ स्पेस और आवश्यक कम्प्यूटर सिस्टम की जानकारी देना होती है।
जिला पंजीयक को आवेदन करने के बाद प्रारंभिक अप्रूवल मिलता है, इसके बाद आवेदक को एक हजार रुपए की फीस जमा करनी होती है। इंटरव्यू में जिला पंजीयक आवेदक का पंजीयन कार्य से जुड़ा सामान्य अनुभव जानता है, इसके बाद उसे लाइसेंस दे दिया जाता है।
इसे हर साल रिन्यू करना होता है। आवेदक को फॉर्म में ये बताना होता है, वह स्टाम्प के लिए कितने लाख की लिमिट चाहता है, इसी लिमिट के अनुसार उसे ट्रैजरी से ई-स्टाम्प दिए जाते हैं।
कौन, कब से पदस्थ? जानकारी के लिए अफसरों ने एक-दूसरे के पास भेजा
भास्कर ने जब जिले में पदस्थ अधिकारियों की सूची विभाग से मांगी तो इसे गोपनीय बताकर जानकारी देने से मना कर दिया। वरिष्ठ जिला पंजीयक आरके गुप्ता ने कहा इसकी जानकारी जॉइंट आईजी सीवी सोरते ही दे सकते हैं, वे ही स्थापना शाखा देखते हैं।
इसके बाद जब भास्कर टीम जॉइंट आईजी के पास पहुंची तो उन्होंने कहा कि ये जानकारी मेरे पास नहीं है, इसके बारे में डीआईजी पंजीयन यूएस वाजपेयी ही बता सकते हैं। भास्कर टीम जब डीआईजी वाजपेयी के पास पहुंची तो उन्होंने आरके गुप्ता और सीवी सोरते से जानकारी लेने की बात कही।
रजिस्ट्रार दफ्तर के अधिकारी बोले- सबूत दीजिए, कार्रवाई करेंगे
भास्कर के स्टिंग में सभी सर्विस प्रोवाइडर ने एक ही बात कही कि अधिकारियों तक पैसा पहुंचाना पड़ता है। भास्कर टीम ने जब अधिकारियों से इस बारे में सवाल किया तो सभी ने सिरे से सर्विस प्रोवाइडर्स की बातों को खारिज कर दिया।
भोपाल के कार्यालय में उप पंजीयक के रूप में पदस्थ अरविंद चौहान बोले- अलग से हम कुछ चार्ज नहीं लेते। हमारे नाम पर आपसे जो पैसे मांग रहे हैं, आप उसका सबूत दीजिए, हम कार्रवाई करेंगे।
वहीं, वरिष्ठ जिला पंजीयक आरके गुप्ता ने कहा- कोई भी अधिकारी लोगों से या सर्विस प्रोवाइडर से शुल्क नहीं मांगता, यदि कोई हमारे नाम पर पैसे मांग रहा है तो आप सबूत दीजिए, हम कार्रवाई करेंगे।
ऐसा ही कुछ उप पंजीयक अजमल सिंह मारण ने भी कहा। वे बोले- हमारे नाम पर कोई पैसा मांग रहा है तो हम क्या कर सकते हैं। आप जिला पंजीयक के पास इसकी शिकायत दर्ज कराइए। यदि सर्विस प्रोवाइडर तय शुल्क से ज्यादा पैसे ले रहे हैं तो इसकी शिकायत भी जिला पंजीयक से कर सकते हैं।