सर्विस सेक्टर में क्यों रहता है कम सैलरी और छंटनी का खतरा? 

 भारत की GDP में 50 फीसदी हिस्सेदारी, फिर भी क्यों रहता है हमेशा कम सैलरी और छंटनी का खतरा!
भारत में बैंक, हॉस्पिटल, स्कूल, आईटी कंपनियां जैसी सेवाएं देने वाले उद्योग बहुत अहम हैं. फिर भी यहां कम सैलरी और छंटनी का खतरा बना रहता है. आखिर किन वजहों से ये विरोधाभास है. समझिए

भारत का सर्विस सेक्टर अर्थव्यवस्था में रीढ़ की हड्डी के समान 50 फीसदी से ज्यादा GDP में योगदान करता है, रोजगार का प्रमुख स्रोत है. फिर भी विडंबना यह है कि इस क्षेत्र में कर्मचारियों को अक्सर कम वेतन और छंटनी का खतरा रहता है.

एक सर्वे के मुताबिक, भारत में मई का महीना व्यापार के लिए काफी शानदार रहा है. खाल तौर से सर्विस सेक्टर में होटल, रेस्तरां, ट्रांसपोर्ट, बैंकिंग इंडस्ट्री में जोरदार ग्रोथ रही. HSBC ने S&P Global के साथ मिलकर ये सर्वे करवाया. इसके मुताबिक मई में सर्विस सेक्टर का हाल पिछले कई महीनों के मुकाबले काफी अच्छा रहा.

पहले समझिए क्या है सर्विस सेक्टर
सर्विस सेक्टर में वो क्षेत्र आते हैं जहां पर कोई सामान नहीं बनाया जाता बल्कि तरह-तरह की सेवाएं दी जाती हैं. जैसे कि बैंक, बीमा, रियल एस्टेट, टेलीकॉम, हॉस्पिटल, स्कूल-कॉलेज, टूरिज्म, होटल, आईटी और बीपीओ कंपनियां. देश की कुल कमाई (GDP) में सर्विस सेक्टर का हिस्सा 50% से ज्यादा है. यानी आधी से ज्यादा कमाई इसी सेक्टर से होती है.

हालांकि कोरोना महामारी ने अर्थव्यवस्था के ज्यादातर क्षेत्रों को नुकसान पहुंचाया लेकिन सर्विस सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ. इसकी वजह से 2019-20 में GDP में इसका हिस्सा 55% से घटकर 2021-22 में 53% रह गया.

भारत सॉफ्टवेयर सेवाओं का एक्सपोर्ट हब है. यानी दूसरे देशों में सॉफ्टवेयर सेवाएं देने के मामले में भारत सबसे आगे है. उम्मीद है कि 2021 से 2024 के बीच भारतीय आईटी आउटसोर्सिंग सर्विस मार्केट 6-8% तक बढ़ेगा. सितंबर 2023 में भारत ने ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स (GII) में 40वीं रैंक बरकरार रखी. इसकी वजह टेक्नोलॉजी से जुड़ी सर्विस में लगातार हो रही तरक्की और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन सेवाओं की बढ़ती मांग है. 

भारत की GDP में 50 फीसदी हिस्सेदारी, फिर भी क्यों रहता है हमेशा कम सैलरी और छंटनी का खतरा!

अप्रैल 2000 से दिसंबर 2023 के बीच विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) का सबसे ज्यादा फायदा सर्विस सेक्टर को ही हुआ. इस दौरान इसे 108 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश मिला.

पिछले चार महीने के सबसे ऊंचे लेवल पर पहुंचा सर्विस सेक्टर
सर्विस सेक्टर के लिए PMI इंडेक्स मई में बीते चार महीने के सबसे ऊंचे लेवल 61.4 पर पहुंच गया है. ये अप्रैल के 60.8 से थोड़ा ज्यादा है. वहीं मैन्युफैक्चरिंग से जुड़े PMI इंडेक्स के शुरुआती आंकड़े भी अच्छी ग्रोथ दिखाते हैं, हालांकि ये पिछले महीने से थोड़ा कम हैं. ये इंडेक्स 58.8 से घटकर 58.4 पर आ गया. फ्लैश कंपोजिट पीएमआई (Purchasing Managers’ Index) भारत में व्यापार की सेहत को आंकने का एक पैमाना है.

बाजार में अच्छी डिमांड की वजह बनी सर्विस इंडस्ट्री का व्यापार जनवरी के बाद सबसे तेज गति से बढ़ा है. साथ ही मैन्युफैक्चरिंग आउटपुट और नए ऑर्डर भी बढ़ रहे हैं. गौर करने वाली बात ये है कि इस साल दूसरी बार है जब एक्सपोर्ट ग्रोथ ने नया रिकॉर्ड बनाया है.

कारोबार में अच्छी बढ़त से खास तौर से सर्विस सेक्टर कारोबारियों का भरोसा बढ़ा है. वहीं मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी कारोबारियों का भरोसा पिछले 9 सालों में सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया है. इस सकारात्मक माहौल के पीछे सबसे बड़ी वजह है कि प्राइवेट सेक्टर में नौकरियां सितंबर 2006 के बाद सबसे तेजी से बढ़ी हैं. सर्विस सेक्टर में तो पिछले 21 महीनों में सबसे ज्यादा नौकरियां पैदा हुई हैं.

फिर क्यों घटा कंपनियों का मुनाफा?
इस बढ़िया ग्रोथ के बीच एक परेशानी भी बनी हुई है. पिछले 9 महीनों में सबसे ज्यादा तेजी से चीजों को बनाने का खर्च बढ़ा है. मई में कंपनियों ने अप्रैल के मुकाबले ज्यादा तेजी से अपने सामानों की कीमतें भी बढ़ाई हैं. HSBC की प्रांजुल भंडारी ने कहा कि सर्विस और मैन्युफैक्चरिंग दोनों ही सेक्टरों में इनपुट कॉस्ट बढ़ने से कंपनियों का मुनाफा घटा है, खासकर सर्विस देने वाली कंपनियों का.

अगर महंगाई ऐसे ही बढ़ती रही तो इससे रिजर्व बैंक को ब्याज दरें कम करने में दिक्कत होगी. हालांकि उम्मीद है कि अगली तिमाही में ब्याज दरें घट सकती हैं. 

सर्विस सेक्टर के सामने क्या हैं चुनौतियां
भारतीय अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाने वाले सर्विस सेक्टर को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इनमें से दो प्रमुख चुनौतियां हैं: खराब बुनियादी ढांचा और डिजिटल बुनियादी ढांचा. भारत में सड़कें, रेलवे और एयरपोर्ट जैसी सुविधाओं को और बेहतर बनाने की जरूरत है. इससे सामान की आवाजाही आसान होगी और खर्च कम होगा. भारत में ट्रांसपोर्ट का खर्च जीडीपी का 14% है, जो विकसित देशों के मुकाबले दोगुना है.

वहीं गांव में हाई-स्पीड इंटरनेट की पहुंच कम है. साथ ही साइबर सुरक्षा और डेटा चोरी का खतरा बना रहता है. इससे ग्राहकों का भरोसा कम होता है और अंतरराष्ट्रीय स्तर के नियमों का पालन करना मुश्किल हो जाता है. उदाहरण के लिए, 2019 में भारतीय रेलवे की कैटरिंग और टूरिज्म कंपनी (IRCTC) में एक बड़ा डेटा लीक हुआ था, जिसमें लाखों यूज़र्स की निजी जानकारी चोरी हो गई थी.

इसके अलावा स्कूल-कॉलेज में जो पढ़ाया जाता है, वो अक्सर कंपनियों की जरूरतों से मेल नहीं खाता. साथ ही वोकेशनल ट्रेनिंग यानी काम से जुड़ी ट्रेनिंग की भी कमी है. इस वजह से कुशल कर्मचारियों की कमी बनी रहती है. वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 22% ग्रेजुएट्स को नौकरी नहीं मिल पाती क्योंकि उनके पास वो स्किल नहीं होतीं जिनकी कंपनियों को जरूरत है.

कम सैलरी और छंटनी का खतरा!
सर्विस सेक्टर न केवल रोजगार के अवसर पैदा करता है बल्कि देश की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता को भी मजबूत करता है. हालांकि इस सेक्टर में सैलरी और छटनी भी एक बड़ी चुनौती है. इसका एक कारण है भारत में श्रम कानून काफी सख्त हैं, जिससे कंपनियों को कर्मचारियों को रखने और निकालने में दिक्कत होती है. नई भर्ती करने में देरी होती है और गलत कर्मचारियों को निकालना भी मुश्किल होती है. इसका परिणाम यह होता है कि कंपनियां अक्सर अस्थायी कर्मचारियों को रखती हैं जिनकी नौकरी परमानेंट नहीं होती है.

भारत की GDP में 50 फीसदी हिस्सेदारी, फिर भी क्यों रहता है हमेशा कम सैलरी और छंटनी का खतरा!

कई सर्विस सेक्टर की नौकरियों में वेतन कम होता है और नौकरी रहने की गारंटी भी नहीं होती है. नौकरी की असुरक्षा के कारण कर्मचारियों में डर और चिंता का माहौल रहता है. इससे कर्मचारियों में असंतोष बढ़ता है और वेतन बढ़ाने के लिए वे हड़ताल या विरोध प्रदर्शन भी कर सकते हैं. इससे कंपनियों को भी कम मुनाफा होता है. ऐसे में कई बार कंपनियां एक साथ बहुत सारे कर्मचारियों को निकाल देती हैं जिससे सैकड़ों लोगों की रोजी-रोटी पर संकट आ जाता है.

कंपनियां आर्थिक मंदी या अन्य कारणों से कभी भी बड़े पैमाने पर छंटनी कर सकती हैं. इससे कर्मचारियों की नौकरियां चली जाती हैं और वे बेरोजगार हो जाते हैं. इससे सामाजिक अशांति भी पैदा हो सकती है.

आर्थिक मामलों के जानकार पंकज मठपाल ने एबीपी न्यूज से बातचीत में कहा, सर्विस सेक्टर में ज्यादातर कॉन्ट्रैक्ट या कंस्ल्टेंट रखे जाते हैं. आईटी में प्रोजेक्ट के हिसाब से लोगों की हायरिंग होती है. प्रोजेक्ट खत्म हो गया या नया प्रोजेक्ट नहीं आया तो लोगों को हटाना पढ़ता है. ऐसा ही कॉल सेंटर में होता है. सर्विस सेक्टर में ज्यादातर प्रोजेक्ट के आधार पर लोगों को रखा जाता है. दूसरा कारण है ऑटोमेशन. जहां पहले किसी प्रोजेक्ट के लिए ज्यादा लोगों की जरूरत थी, अब कम लोगों में ही काम चल रहा है. अब मीडिया में ही देख लीजिए एआई से कंटेंट जनरेट होने लगा है.

भविष्य में भारतीय सर्विस सेक्टर में अपार संभावनाएं!
भारतीय अर्थव्यवस्था में सर्विस सेक्टर की रीढ़ की हड्डी की तरह अहम भूमिका है. रोजगार के नए अवसर पैदा करना और देश के विकास में योगदान देना ही नहीं, बल्कि वैश्विक बाजार में भी भारत का नाम चमकाना इसी क्षेत्र का दायित्व है. 

भारत का आईटी और बीपीओ (बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग) क्षेत्र पहले से ही काफी मजबूत है. यहां कुशल आईटी पेशेवरों की भरमार है और सरकार भी फिनटेक इंडस्ट्री को बढ़ावा दे रही है. इससे इस क्षेत्र में आगे भी तेजी से तरक्की करने की संभावना हैं. आने वाले समय में यह क्षेत्र रोजगार के और भी ज्यादा अवसर पैदा कर सकता है और देश की जीडीपी (GDP) में और भी ज्यादा योगदान दे सकता है.

ऐसे ही भारत में हेल्थकेयर सेक्टर तेजी से बढ़ रहा है. इसकी कई वजह हैं जैसे देश की बढ़ती हुई उम्रदराज वाली आबादी, लोगों की बढ़ती आमदनी और मेडिकल टूरिज्म इंडस्ट्री का तेजी से फलना-फूलना. भारत में इलाज की लागत विकसित देशों के मुकाबले काफी कम है और इलाज की क्वालिटी भी अच्छी है. इसी वजह से विदेशों से लोग इलाज के लिए भारत आते हैं. 

भारत में अकाउंटिंग, कानून और कंसल्टिंग जैसे क्षेत्रों में कुशल पेशेवरों की कमी नहीं है. इन प्रोफेशनल्स की मदद से कंपनियां अपने बिजनेस को बेहतर तरीके से चला सकती हैं. इसीलिए, प्रोफेशनल सर्विसेज देने वाली कंपनियों के लिए भी भविष्य में काफी संभावनाएं हैं. मतलब सर्विस सेक्टर में आईटी, हेल्थकेयर, ट्रांसपोर्ट, शिक्षा और प्रोफेशनल सर्विसेज जैसे क्षेत्रों में आगे बढ़ने के काफी मौके हैं.

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