ताकि दूर हो पानी की किल्लत ?
उपाय: ताकि दूर हो पानी की किल्लत ….
शहर आर्थिक विकास के इंजन हैं, तो पानी उन्हें चलाने वाला एक बेहद जरूरी ईंधन। बढ़ती आबादी व तेज शहरीकरण ने स्वच्छ जल संसाधनों पर भारी दबाव डाला है। अब महानगरों से निकलने वाले अपशिष्ट या प्रयुक्त जल प्रबंधन (यूज्ड वाटर मैनेजमेंट) को मुख्यधारा में लाना एक आशाजनक विकल्प बन गया है।
अभी भारत अपने शहरों से निकले कुल अपशिष्ट जल (वेस्ट वाटर) के सिर्फ 28 प्रतिशत हिस्से का शोधन करता है। 2021 में उपलब्ध शोधित अपशिष्ट जल का दैनिक बाजार मूल्य 63 करोड़ रुपये आंका गया था। काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) की हालिया रिपोर्ट ने पहला शहरी प्रयुक्त जल प्रबंधन सूचकांक सामने रखा है। इसके माध्यम से प्रयुक्त जल प्रबंधन के मामले में 10 राज्यों के 503 शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) के प्रदर्शन का आकलन किया गया है। इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और पश्चिम बंगाल शामिल हैं, जहां प्रयुक्त जल के पुन: उपयोग की नीति लागू है। यह सूचकांक पांच विषयों-वित्त, बुनियादी ढांचा, कुशलता, प्रशासन, और आंकड़े व सूचना पर शहरी स्थानीय निकायों की एक तुलनात्मक रैंकिंग करता है। हमारा विश्लेषण बताता है कि शुष्क और अर्ध शुष्क क्षेत्रों के पानी की किल्लत का सामना करने वाले राज्यों ने प्रयुक्त जल प्रबंधन के लिए कुछ ठोस कदम उठाए हैं। इसकी वजह से सूचकांक में उनका प्रदर्शन अच्छा रहा है। इनमें हरियाणा शीर्ष पर है। इसके बाद कर्नाटक, पंजाब, राजस्थान और गुजरात हैं। शीर्ष प्रदर्शन करने वाले हरियाणा और कर्नाटक जैसे राज्य भी पांच अंकों में से सिर्फ क्रमश: 1.94 व 1.74 अंक ही पा सके। यह दर्शाता है कि पूरे देश में जल सुरक्षा पर उच्च प्राथमिकता के साथ काम करने की आवश्यकता है।
शहरी निकायों में अपशिष्ट जल शोधन और उसके पुन: उपयोग की दिशा में पर्याप्त कदम उठाने की जरूरत है। जैसे, सूरत नगर निगम ने 2019 में शोधित अपशिष्ट जल के शोधन और पुन: उपयोग के लिए एक कार्य योजना अपनाई थी, जिसका लक्ष्य 2025 तक 70 प्रतिशत और 2030 तक 100 प्रतिशत पुन: उपयोग स्तर को पाना है। भारत के शहरी स्थानीय निकायों में प्रयुक्त जल प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए कई बातों पर ध्यान दिया जा सकता है।
पहला-राज्यस्तरीय व्यापक कार्ययोजना बनाने की जरूरत है। इस मामले में हरियाणा से सीखा जा सकता है, जिसने 2014 से 2023 तक 73 नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने के लिए 433 करोड़ रुपये निवेश करने की योजना बनाई है। अभी 10 राज्यों ने ही शोधित प्रयुक्त जल नीति लागू की है। दूसरा-राज्यों को अपनी स्थानीय जरूरतों और मांगों के अनुरूप विशेष उपायों को प्राथमिकता देने की जरूरत है। धान उत्पादक पंजाब ने शोधित अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश को प्राथमिकता दी है। साथ ही कृषि को पुन: उपयोग के प्रमुख क्षेत्र के रूप में चिह्नित किया है। सिंचाई के लिए 5,541 हेक्टेयर क्षेत्र तक शोधित अपशिष्ट जल पहुंचाने के लिए 2020 तक 94 करोड़ रुपये की लागत से 47 परियोजनाएं पूरी कर डाली थीं। तीसरा-राज्यों को प्रयुक्त जल प्रबंधन में एक-दूसरे से सीखने के लिए एक प्लेटफॉर्म बनाने की जरूरत है। यह पहल गुजरात जैसे राज्यों के लिए ज्यादा उपयोगी होगी। यहां के चार शहरी स्थानीय निकाय -सूरत, वडोदरा, राजकोट और जामनगर प्रयुक्त जल प्रबंधन में शीर्ष 10 शहरी निकायों में शामिल हैं, जबकि राज्य पांचवें स्थान पर है, जो राज्य के भीतर विभिन्न शहरी निकायों के प्रदर्शन में अंतर को दिखाता है।
शोधित अपशिष्ट जल से व्यापक आर्थिक लाभ की संभावनाएं हैं। उदाहरण के लिए, वर्ष 2021 में उपलब्ध शोधित अपशिष्ट जल को अगर चुनिंदा बागवानी फसलों की सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता, तो राष्ट्रीय स्तर पर 966 अरब रुपये का राजस्व पैदा कर सकता था। भारतीय राज्यों और शहरी स्थानीय निकायों के लिए अब समय आ गया है कि वे शोधित अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग को प्राथमिकता दें। यह स्वच्छ जल पर दबाव को घटाने में मददगार होगा, जिसकी कमी से कई भारतीय शहर जूझ रहे हैं। यह शहरी स्थानीय निकायों के लिए राजस्व सृजन के अतिरिक्त विकल्पों को भी खोलेगा।