नतीजों ने बताया कि देश की राजनीति अब बदलेगी!
नतीजों ने बताया कि देश की राजनीति अब बदलेगी!
पहला निष्कर्ष तो यह है कि भारतीय राजनीति 1989 के बाद के गठबंधन वाले दौर में फिर लौट आई है। दूसरा निष्कर्ष यह है कि भाजपा को शिकस्त दी जा सकती है और तीसरा यह कि करीब 100 सीटों के साथ कांग्रेस को पुनर्जीवन मिल गया है। जिन लोगों ने कहा था कि भारतीय लोकतंत्र मर चुका है, उनसे अनुरोध है कि जरा सुस्ता लीजिए।
जिन लोगों ने कहा था कि भारत के मतदाताओं का ध्रुवीकरण हो गया है, वे कृपया उन 64 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं से माफी मांगें, जो प्रचंड गर्मी में भी वोट डालने गए। इस बात पर भी गौर कीजिए कि अयोध्या (फैजाबाद) में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है। एक और बात बहुत महत्वपूर्ण है।
कसम खाइए कि भारतीय चुनाव व्यवस्था की साख पर आप कभी सवाल नहीं उठाएंगे- चाहे यह ईवीएम हो या निर्वाचन आयोग हो या चुनाव आयुक्त हों, या इस विशाल प्रक्रिया को शांतिपूर्ण, हिंसा-मुक्त और विश्वसनीय तरीके से संपन्न कराने में जुटे लाखों कर्मचारी हों। भारतीय चुनाव व्यवस्था एक ग्लोबल, सर्वजन हिताय वाली व्यवस्था है। इस पर कभी हमला मत कीजिए।
यकीन न हो तो मैक्सिको में हुए चुनाव को देखिए, जो भारत में हुए चुनाव के साथ-साथ कराए गए और जिसमें 37 उम्मीदवारों की हत्या की गई। भारत में किसी को चोट तक नहीं आई। और मैक्सिको की प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा भारतीय आंकड़े से चार गुना ज्यादा बड़ा है। साथ ही, बैंकरों, निवेशकों और फंड मैनेजरों से एक अनुरोध।
शेयर बाजारों में होने वाली उथल-पुथल पर जरा नजर डालिए। आप सब महानुभाव उन लाखों लोगों से वादा कीजिए, जो अपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई के साथ आप सब पर भरोसा करते हैं, कि आप अपना वोट जिस दृष्टि से देते हैं, उस दृष्टि से बाजार में अपनी पहल नहीं करेंगे। मैं मानता हूं कि राजनीतिक विश्लेषण का बड़ा आकर्षण होता है, लेकिन इसके साथ आपकी साख और आपके निवेशकों के पैसे जोखिम में रहते हैं।
इसलिए इसे हम जैसों के लिए छोड़ दीजिए। हम आपकी तरह स्मार्ट नहीं हैं, लेकिन हममें वह खासियत है जो बाजार पर नजर रखने वाले किसी मासूम और भावुक शख्स में नहीं होती है। वह है स्वस्थ राजनीतिक संशय वाली दृष्टि। इस चुनाव अभियान के दौरान मैंने फंड हाउसों और दलालों में सबसे भयानक और डरावनी बात देखी।
उन्होंने ऐसी कई रिपोर्टें लिखीं, जिनमें भाजपा को 300 से ज्यादा सीटें मिलने के दावे किए गए। एक मतदाता के रूप में वह उनकी ख्वाहिश रही होगी। लेकिन उनकी बातों में आकर निवेश करने वाले अब इसकी कीमत चुका रहे हैं। यह नतीजे सामान्य राजनीति में वापसी के संकेत दे रहे हैं। अगली लड़ाई के लिए मैदान तैयार है।
महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के चुनाव होने वाले हैं। इनके ठीक बाद जम्मू-कश्मीर के चुनाव के लिए सांसें रोक कर तैयार रहिएगा, जहां की छह सीटों में से भाजपा केवल दो जीत पाई है। उपरोक्त हर चुनाव के लिए इस लोकसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए एक खतरनाक चेतावनी हैं।
इसमें शक नहीं कि भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन के नेता के रूप में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे, लेकिन यह भाजपा की नहीं बल्कि एनडीए की सरकार होगी। ऐसा एक दशक से नहीं हुआ था। वास्तव में, मोदी की दोनों सरकारों में ज्यादातर समय एनडीए का कैबिनेट में कोई मंत्री तक नहीं था, सिवाय रामविलास पासवान के। लेकिन अब जरूरत और वजूद की मांग का सिद्धांत भाजपा को सहयोगियों के लिए जगह छोड़ने पर मजबूर करेगा।
चुनाव नतीजों के तीन स्पष्ट निष्कर्ष हमारे सामने हैं… जो लोग कहते थे कि लोकतंत्र मर गया है, जरा रुकिए! इंडियन पोलिटिकल लीग में ‘खेल’ जारी है। तीन निष्कर्ष हैं : राजनीति गठबंधन के ढर्रे पर लौट आई है, भाजपा को शिकस्त दी जा सकती है और कांग्रेस पुनर्जीवित हो गई है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)