RSS हटा, BJP का वोट घटा ?
RSS हटा, BJP का वोट घटा …
राममंदिर, ED-CBI, पार्टी तोड़ने पर सलाह नहीं मानी; वॉशिंग मशीन बनने से भी रोका था
ये बयान लोकसभा चुनाव में चौथे राउंड की वोटिंग के बाद BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा का था। …और ये अचानक नहीं था। उस खींचतान का नतीजा था, जो BJP और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, यानी RSS के बीच 3-4 साल से चल रही है।
तो क्या RSS चुनाव में BJP के साथ नहीं था? जवाब में संघ के प्रांतीय स्तर के एक पदाधिकारी कहते हैं- ‘BJP चुनाव में RSS आइडियोलॉजी के साथ नहीं थी। और RSS किसी के साथ नहीं होता, सिर्फ आइडियोलॉजी के साथ होता है। BJP पीछे हटी, RSS नहीं।’
दैनिक भास्कर ने चुनाव के नतीजों के बाद RSS में चल रहे मंथन पर देश के अलग-अलग हिस्सों में संगठन में बड़ी जिम्मेदारी संभाल रहे पदाधिकारियों से बात की। उन्होंने बताया कि RSS में अब तक चुनाव को लेकर कोई बड़ी मीटिंग नहीं हुई है। फिलहाल अलग-अलग लेवल पर सभी संगठनों से फीडबैक मांगा जा रहा है।
अब तक जितनी चर्चा हुई है, उसके मुताबिक मोटे तौर पर कुछ कारण रहे, जिनकी वजह से RSS कार्यकर्ता जमीन पर BJP के लिए माहौल बनाने और विपक्ष का नैरेटिव तोड़ने के लिए एक्टिव नहीं रहे।
वे मुद्दे, जिनकी वजह से RSS और BJP के बीच खाई पैदा होती गई…
1. राममंदिर पर RSS की हर सलाह किनारे करना भारी पड़ा
RSS के एक वरिष्ठ पदाधिकारी बताते हैं, ‘राम मंदिर के मामले में BJP ने RSS की बात सुननी बंद कर दी थी। शुरुआत चंपत राय पर वित्तीय गड़बड़ी के आरोप से हुई थी। RSS ने चंपत राय को चित्रकूट की प्रतिनिधि सभा में बुलाया और सख्त चेतावनी भी दी। इसके बाद BJP ने राम मंदिर का मसला सीधा अपने हाथ में ले लिया। RSS की सलाह पर ध्यान देना भी जरूरी नहीं समझा।’
इसके अलावा राम मंदिर निर्माण समिति का अध्यक्ष PM मोदी के करीबी नृपेंद्र मिश्र को बनाया गया। नृपेंद्र मिश्र 2014 और 2019 में PMO के सबसे खास अधिकारी थे। राम मंदिर आंदोलन के वक्त जब कारसेवकों पर गोलियां चली थीं, तब नृपेंद्र मिश्र यूपी सरकार में प्रमुख सचिव थे।
नृपेंद्र मिश्रा को राम मंदिर निर्माण समिति का अध्यक्ष बनाया जाना, RSS के कई पदाधिकारियों को पसंद नहीं आया। RSS ने इस पर BJP से बात भी की, लेकिन BJP ने फैसला नहीं बदला। ये RSS और BJP के बीच खाई बनने की सबसे पहली ठोस वजह थी।
2. रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को राजनीतिक नहीं, राष्ट्रीय आंदोलन बनाना था
इस मसले पर RSS ने BJP से सीधे बात की थी। उसका मानना था कि राम मंदिर राजनीतिक आंदोलन नहीं है। इस पर राजनीति से बचना चाहिए। ये हिंदुत्व का मुद्दा है। लोगों की आस्था है। अगर जनता को लगा कि राम मंदिर पर राजनीति हो रही है, तो वो BJP से दूर हो जाएगी। RSS की इस सलाह को भी नहीं माना गया। इसका असर ये हुआ कि BJP अयोध्या की सीट भी नहीं बचा पाई।
3. RSS की सलाह थी, प्राण प्रतिष्ठा लोकसभा चुनाव के बाद हो
RSS की तरफ से कहा गया था कि अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा चुनाव के ठीक बाद हो। मशविरा दिया गया था कि मंदिर का काम तो चल ही रहा है, अगर प्राण प्रतिष्ठा पहले हुई, तो लोग चुनाव आते-आते इस मुद्दे को भूल जाएंगे।
प्राण प्रतिष्ठा बाद में हुई, तो लोग मंदिर का मुद्दा याद रखेंगे। चुनाव के दौरान उनके दिमाग में ये बना रहेगा। राम मंदिर बनने की आशा को बचाए रखना था, ये तभी होता जब प्राण प्रतिष्ठा चुनाव के बाद होती, लेकिन BJP को जल्दी थी। इसका नतीजा ये हुआ कि कई धर्मगुरु भी BJP के फैसले के विरोध में आ गए।
4. RSS नहीं चाहता था शंकराचार्य नाराज हों
मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के मामले में भी RSS, BJP से बहुत नाराज था। RSS चाहता था कि सभी शंकराचार्य और धर्मगुरु आयोजन में शामिल हों। उन्हें तवज्जो दी जाए। BJP ने हड़बड़ी में किसी को मनाने की जरूरत नहीं समझी, जो नाराज थे, उन्हें नाराज ही रहने दिया। BJP ने अपने गेस्ट बुलाए, जो ग्लैमर और बिजनेस की दुनिया से थे।
5. बॉलीवुड स्टार्स को न्योता देने के खिलाफ था RSS
प्राण प्रतिष्ठा के लिए कई बॉलीवुड स्टार्स को ऑफिशियल निमंत्रण दिया गया। RSS चाहता था कि इस आयोजन में ग्लैमर का तड़का न लगे। जिन्हें आना है, वे खुद आएं, जैसे आम लोग आते हैं। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को पवित्र मौका बनाया जाए, लेकिन ये मौका पवित्र की जगह ग्लैमरस ज्यादा दिखा।
6. RSS ने अतिथियों की लिस्ट दी, BJP ने नजरअंदाज कर दिया
RSS इस आयोजन में उन लोगों को बुलाना चाहता था, जिन्होंने राममंदिर से जुड़ा कोई संकल्प लिया हो। कई लोगों ने शपथ ली थी कि मंदिर बनने तक चप्पल और पगड़ी नहीं पहनेंगे। अयोध्या के आसपास कुछ राजपूत कम्युनिटी हैं, जिन्होंने मंदिर बनने तक पगड़ी न पहनने का संकल्प लिया था। RSS की लिस्ट में शामिल इन लोगों को तरजीह नहीं दी गई।
7. मोदी की पुजारी छवि पर भी सहमति नहीं थी
प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर PM मोदी ने खुद पूजा करने का फैसला लिया। RSS नहीं चाहता था कि कोई राजनीतिक व्यक्ति ये जिम्मेदारी ले। RSS चाहता था कि ये जिम्मेदारी किसी बड़े धर्मगुरु, संत या फिर लालकृष्ण आडवाणी को दी जाए, जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन की अगुआई की थी। ये भी नहीं हुआ। और तो और आंदोलन को आगे बढ़ाने वाले आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं को किनारे करने की कोशिश हुई।
8. आडवाणी को प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से दूर रखने की कोशिश की गई
BJP ने लालकृष्ण आडवाणी की सेहत का हवाला देकर उन्हें आयोजन से दूर रहने की सलाह दी थी, जबकि आडवाणी प्राण प्रतिष्ठा में आना चाहते थे। RSS में हमारे एक सोर्स गुस्से में कहते हैं, ‘कोई कैसे राम मंदिर बनने में आडवाणी जी की भूमिका भूल सकता है।’
दरअसल PM मोदी नहीं चाहते थे कि इस अहम मौके की लाइमलाइट कोई और ले। हालांकि, विश्व हिंदू परिषद के विरोध और RSS के कड़े तेवर के बाद आडवाणी को निमंत्रण भेजा गया।
9. ED-CBI की सरकार नहीं चाहता था RSS
RSS लगातार ये बात BJP तक पहुंचा रहा था कि चुनाव में ED-CBI का इस्तेमाल न करें। इससे एक तबका विपक्ष को विक्टिम मान रहा है। BJP की छवि प्रताड़ित करने वाले तानाशाह की बन रही है। विपक्ष को इसका फायदा मिलेगा। ग्राउंड पर हमारे कार्यकर्ता इस बात का जवाब नहीं दे पा रहे हैं। वे डिफेंसिव हो रहे हैं। BJP ने इस चेतावनी को भी इग्नोर किया।
10. RSS ने BJP से कहा था- वाशिंग मशीन मत बनो
RSS ने BJP की वाशिंग मशीन वाली छवि पर भी चेतावनी दी थी। पार्टी ऐसे नेताओं को शामिल कर रही थी, जिन पर करप्शन के आरोप थे। RSS ने बताया था कि ग्राउंड पर ये मुद्दा BJP को नुकसान पहुंचा रहा है। विपक्ष की छवि विक्टिम की बन रही है। राहुल गांधी लगातार BJP के सताए नेता के तौर पर सामने आ रहे हैं।
हालांकि, एक बार फिर BJP अड़ी रही। RSS की सलाह ठंडे बस्ते में डाल दी गई।
11. यूपी में टिकट बंटवारे पर सहमत नहीं था RSS
चुनाव में यूपी ने BJP को बड़ा झटका दिया है। इस झटके को RSS ने टिकट बंटवारे के वक्त ही भांप लिया था। RSS ने 10 से ज्यादा सीटों पर कैंडिडेट पर असहमति जताई थी। इनमें प्रतापगढ़, श्रावस्ती, कौशांबी, रायबरेली और कानपुर जैसी सीटें शामिल थीं। कानपुर के अलावा सभी सीटों पर BJP कैंडिडेट की हार हुई है।
RSS का कहना था कि कुछ सांसदों को छोड़कर, हमें नए लोगों को टिकट देना चाहिए, जैसा दिल्ली में किया है। हालांकि, टिकट बंटवारे के मामले में भी RSS बेबस ही दिखा।
12. मोदी सरकार और मोदी की गारंटी जैसे स्लोगन RSS को नापसंद
मोदी सरकार के नारे से RSS 2014 से ही नाराज है। ये नारा RSS की आइडियोलॉजी में फिट नहीं बैठता। RSS व्यक्ति को नहीं, संगठन या समूह को तरजीह देता है। मोदी सरकार के नारे से एक व्यक्ति सर्वोपरि दिखाई देता है।
BJP लंबे वनवास के बाद सत्ता में लौटती दिख रही थी, इसलिए RSS इस पर खामोश रहा। अब इस पर चर्चा हो रही है कि क्या चुनाव में मोदी को सर्वोपरि मानना बड़ी गलती थी।
13. संदेशखाली पर BJP ने RSS को भरोसे में नहीं लिया
संदेशखाली के मुद्दे पर BJP ने RSS को भरोसे में नहीं लिया। RSS ने पहले ही बता दिया था कि आंदोलन के अंदर ही कई धड़े हैं। आंदोलन के अंदर दरार है। इस पर BJP को भरोसा नहीं करना चाहिए। हमें यहां नेशनल और कल्चरल सिक्योरिटी के मुद्दे पर आगे बढ़ना चाहिए, जैसे विधानसभा चुनाव में किया था।
14. RSS की सलाह थी कि मुफ्त राशन देना बंद करें
RSS का कहना था कि मुफ्त के खेल में विपक्ष हमसे बहुत आगे है। इसलिए हमें मुफ्त में राशन देना बंद करना चाहिए। BJP की पॉलिसी के हिसाब से रणनीति बनानी चाहिए।
ओडिशा में जीत पर सलाह- BJP भ्रम में न रहे
ओडिशा में RSS से जुड़े एक सोर्स बताते हैं, ‘यहां की जीत पर BJP को भ्रम नहीं पालना चाहिए। ओडिशा के लोग नवीन पटनायक की बीमारी और ब्यूरोक्रेसी के हाथों में सत्ता जाने से नाराज थे। उनके सामने कांग्रेस का विकल्प नहीं था। सामने सिर्फ BJP थी। अगर कांग्रेस दम लगाती, तो नतीजा ऐसा नहीं होता।’
RSS के चुनावी मुद्दों को भी इग्नोर किया
RSS ने BJP को मुद्दों की एक लिस्ट सौंपी थी। इसमें कहा गया था कि विपक्ष पर ED-CBI की कार्रवाई करने और उसे लुटेरा बताने की जगह अपने अचीवमेंट्स गिनाना चाहिए। ऐसे नैरेशन गढ़ने चाहिए कि देश की सुरक्षा, दुनियाभर में सम्मान और हिंदुत्व की पहचान के साथ अगर कोई पार्टी खड़ी है तो वो BJP है।
नेशनल और इंटरनल सिक्योरिटी के मुद्दे पर सरकार के पास कई उपलब्धियां हैं। RSS की सलाह थी कि इन उपलब्धियों पर तथ्यों के साथ बात करें। ग्राउंड में जनता इन मुद्दों को सुनना भी चाहती है। इंटरनेशनल लेवल पर बनी इमेज पर बात करने की जरूरत है क्योंकि हम इस पर रिपोर्ट कार्ड भी दे सकते थे।
BJP ने घर वापसी नहीं की, तो 2029 में भी मुश्किल होगी
साउथ इंडिया में RSS के एक पदाधिकारी कहते हैं, ‘लग तो रहा है कि अब BJP रिव्यू करेगी। अगर नहीं किया, तो 2029 का चुनाव भी हाथ से निकल जाएगा। अब समझना होगा कि गठबंधन की सरकार चलाने के लिए लचीला होना होगा। ये मोदी की सरकार नहीं, गठबंधन की सरकार है। पहले भी BJP की सरकार थी। सोर्स के मुताबिक, इस बार सरकार में RSS के पसंदीदा चेहरों की संख्या और रुतबा बढ़ा दिखेगा।