देश में सबसे ज्यादा बिजली चोरी कहां ?

देश में सबसे ज्यादा बिजली चोरी कहां, सरकार और कंपनियों का कितना नुकसान, क्या है समाधान
बिजली चोरी का न सिर्फ देश के सामाजिक-आर्थिक विकास पर बल्कि व्यापार, उद्योग पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है. लोगों की चालाकी और फ्री में बिजली चलाने की चाहत ने इस अपराध को जन्म दिया है.

बिजली चोरी का मतलब है चोरी से बिजली का इस्तेमाल करना. ये एक गैरकानूनी काम है. हालांकि ये कोई नई बात नहीं है, जब से बिजली का इस्तेमाल शुरू हुआ है तब से ही चोरी भी होती आ रही है. कोई सीधे खंबे पर तार लगाकर बिजली चोरी करता है तो कोई मीटर से छेड़छाड़ कर बिल कम कर लेता है. 

अक्सर विकासशील देशों में, जहां पर बिजली की सप्लाई ठीक नहीं है वहां बिजली चोरी ज्यादा आम है. इस चोरी की वजह से पूरी दुनिया में बिजली बनाने और बांटने वाली कंपनियों को हर साल 96 अरब डॉलर का घाटा हो जाता है. भारत, पाकिस्तान, तुर्की और ब्राजील जैसे देशों में सबसे ज्यादा बिजली चोरी होती है.

अकेले भारत में हर साल 16 अरब डॉलर यानी 1 लाख 32 हजार करोड़ रुपये की बिजली चोरी की वजह से नुकसान हो जाता है. पाकिस्तान, ब्राजील और रूस भी बिजली चोरी के मामले में सबसे ऊपर हैं. गौर करने वाली बात ये है कि अमीर देशों, जैसे कि अमेरिका और इंग्लैंड में भी बिजली चोरी होती है. यकीन नहीं होगा, लेकिन अमेरिका में भी हर साल करीब 6 अरब डॉलर की बिजली चोरी हो जाती है.

देश में सबसे ज्यादा बिजली चोरी कहां, सरकार और कंपनियों का कितना नुकसान, क्या है समाधान

वर्ल्ड बैंक का अनुमान है कि 2018 तक भारत की जीडीपी का 1.5 फीसदी हिस्सा बिजली चोरी की वजह से प्रभावित हुआ. बिजली चुराने वाले अक्सर अलग-अलग शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. जैसे महाराष्ट्र और गुजरात में ‘आकड़ा’, उत्तर भारत में ‘कटिया’, दक्षिण भारत में ‘हुक’ या फिर ‘डबल मीटर’. साल 2022 के आंकड़ों के अनुसार, भारत दुनिया में बिजली बनाने के मामले में तीसरे और बिजली खपत के मामले में दूसरे नंबर पर है. ये भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है और आधुनिक अर्थव्यवस्था को चलाने वाली मुख्य चीजों में से एक है.

AT&C Loss क्या होता है?
एग्रीगेट टेक्निकल एंड कॉमर्शियल लॉस यह बताता है कि बिजली पहुंचाने का सिस्टम कितना अच्छे से चल रहा है. इसमें तकनीकी नुकसान और व्यावसायिक नुकसान दोनों शामिल होते हैं. यह दिखाता है कि सिस्टम में डाली गई बिजली की कुल यूनिटों और बिल के भुगतान वाली यूनिटों के बीच का अंतर कितना है.

टेक्निकल लॉस: ये वो नुकसान है जो तारों, ट्रांसफॉर्मर जैसी चीजों में बिजली के प्रवाह के दौरान स्वाभाविक रूप से हो जाता है.
कमर्शियल लॉस: ये वो नुकसान है जो बिजली चोरी या मीटर खराबी के कारण होता है या फिर बिल का भुगतान न करने से होता है.

इसे मापने का एक फॉर्मूला है:

AT&C लॉस = {1 – (बिलिंग दक्षता x कलेक्शन दक्षता)} x 100

बिलिंग दक्षता (Billing Efficiency) बताती है कि किसी इलाके में जितनी बिजली पहुंचाई जाती है, उसमें से कितनी बिजली का बिल बना. इसमें मीटर लगे और बिना मीटर वाले दोनों तरह के कनेक्शन शामिल होते हैं.

बिलिंग दक्षता = कुल बिल की गई बिजली (यूनिट) / कुल सप्लाई की गई बिजली (यूनिट)

मान लीजिए एक इलाके में 100 यूनिट बिजली पहुंचाई गई. इसमें से 80 यूनिट के मीटर लगे हैं और 20 यूनिट बिना मीटर वाले कनेक्शन के लिए हैं. अगर कंपनी ने कुल 85 यूनिट का बिल बनाया तो उसकी बिलिंग दक्षता 85% होगी.

कलेक्शन दक्षता (Collection Efficiency) बताता है कि जितने रुपयों का बिल बनाया गया है, उनमें से कितना पैसा कंपनी वसूल कर पाती है. कई बार लोग बिजली का बिल नहीं भर पाते हैं, जिससे कंपनी को घाटा होता है.

कलेक्शन दक्षता = वसूला गया पैसा / कुल बिल की गई राशि

मान लीजिए कंपनी ने कुल 100 रुपये का बिजली का बिल बनाया, लेकिन लोग सिर्फ 80 रुपये ही जमा कर पाए. तो कंपनी की वसूली दक्षता 80% होगी.

बिजली की चोरी, बिलिंग में गड़बड़ी और बिल जमा करने में दिक्कतों की वजह से होने वाला आर्थिक नुकसान कुल मिलाकर AT&C Loss कहलाता है. 

बिजली चोरी से कितना नुकसान
बिजली चोरी से बिजली कंपनियों को कई तरह से नुकसान होता है. पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन (PFC) ने राज्य बिजली विभागों के प्रदर्शन पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसका नाम है “बिजली विभागों का प्रदर्शन (2018-19 से 2020-21)”. इस रिपोर्ट में बिल बनाने की दक्षता, बिल वसूलने की दक्षता और कुल तकनीकी और व्यावसायिक नुकसान (एटीएंडसी लॉस) की जानकारी दी गई थी. 

देश में सबसे ज्यादा बिजली चोरी कहां, सरकार और कंपनियों का कितना नुकसान, क्या है समाधान

2017-18 से 2019-20 तक बिलिंग दक्षता में थोड़ी वृद्धि देखी गई है, जो 83.07% से बढ़कर 85.36% हो गई है. इसका मतलब है कि 2019-20 में बिजली कंपनियों ने 100 में से 85.36 उपभोक्ताओं को सही बिल जारी किए. वहीं 2017-18 से 2019-20 तक कलेक्शन दक्षता में गिरावट देखी गई है, जो 94.50% से घटकर 92.64% हो गई है.

इसका मतलब है कि 2019-20 में बिजली कंपनियां बिल की राशि का 100 में से केवल 92.64% वसूल कर पाईं. हालांकि 2017-18 से 2019-20 तक AT&C नुकसान में थोड़ी कमी देखी गई है जो 21.50% से घटकर 20.93% हो गई है. इसका मतलब है कि 2019-20 में बिजली कंपनियों को अपनी कुल बिजली आपूर्ति का 20.93% नुकसान हुआ.

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बिजली चोरी की क्या-क्या वजह होती है
भारत के कई इलाकों में बिजली की कटौती आम बात है. जरूरत के हिसाब से बिजली न मिलने पर लोग मजबूरन चोरी का सहारा ले लेते हैं. इसके अलावा बिजली विभाग में भ्रष्टाचार भी एक बड़ा कारण है. रिश्वत देकर या रसूख के जरिए लोग मीटर से छेड़छाड़ करवा लेते हैं या फिर बिना मीटर ही बिजली जला लेते हैं.

कुछ इलाकों में बिजली की दरें बहुत ज्यादा होती हैं. गरीब तबके के लिए इतनी महंगी बिजली का बिल भरना मुश्किल हो जाता है, तो वो चोरी का रास्ता अपना लेते हैं. पुराने और जर्जर बिजली के तारों और खराब ट्रांसफॉर्मरों की वजह से चोरी करना आसान हो जाता है. वहीं बिजली चोरी करने वालों पर कोई सख्त कार्रवाई न होने से लोग बेखौफ हो जाते हैं.

स्टेट पावर कंज्यूमर के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने एबीपी न्यूज को बताया, जब कंज्यूमर बिजली कनेक्शन लेने सरकारी दफ्तर में जाता है तो उसे परेशान किया जाता है. ऐसे में कंज्यूमर परेशान होकर आसान रास्ता चुनता है. वह सोचता है कि उसके घर के आगे से लाइन जा रही है, तो वहीं कटिया लगा लेता है. उसे पता है ये गलत है, फिर भी उसका मन नहीं मानता. हाल ही में यूपी में बिजली चोरों को बिजली बिल में 65 फीसदी तक छूट दे दी गई. ऐसे तो बिजली चोरी बढ़ेगी ही.

अवधेश वर्मा ने आगे बताया, यूपी में हर साल 5000 करोड़ रुपये की बिजली चोरी होती है. कानून होने के बावजूद बिजली चोरों पर कोई एफआईआर नहीं की जाती है. वहीं बिजली दुर्घटना से हर दिन तीन लोगों की मौत हो रही है. 

बिजली चोरी की भरपाई कौन करता है
बिजली चोरी का सबसे बड़ा असर सरकार और बिजली कंपनियों पर पड़ता है. जब लोग अवैध रूप से बिजली के तारों से सीधे जुड़ जाते हैं या अपने बिजली के मीटरों से छेड़छाड़ करते हैं, तो वो बिलिंग सिस्टम को ही दरकिनार कर देते हैं और बिजली के दाम चुकाने से बच जाते हैं. इससे बिजली कंपनियों को भारी नुकसान होता है. बिजली चोरी की वजह से सरकार को भी घाटा होता है.

स्टेट पावर कंज्यूमर के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने बताया, बिजली चोरी से बिजली विभाग का घाटा बढ़ता जाता है. हालांकि यूपी में पिछले तीन सालों से पब्लिक पर इसका कोई बोझ नहीं डाला जा रहा है. 

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बिजली चोरी रोकने का क्या है उपाय
अवधेश वर्मा ने बताया, ‘बिजली चोरी रोकने का उपाय यही है कि सरकार को ज्यादा से ज्यादा उपभोक्ताओं को बिजली कनेक्शन देने होंगे. साथ ही इन बिजली कनेक्शन को लेने की प्रक्रिया को सरल बनाना होगा. बिजली चोरी करते पकड़े जाने पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए. अगर इसपर ढील दी जाएगी तो चोरी पर कभी भी अंकुश नहीं लगेगा.’

बिजली का नुकसान सिर्फ चोरी से ही नहीं होता. कई बार ऐसा भी होता है कि रिकॉर्ड रखने में या हिसाब करने में गलती हो जाती है, जिससे भी बिजली कंपनियों को नुकसान होता है. बिजली बचाने और चोरी रोकने के लिए भारत सरकार ने स्मार्ट मीटर लगाने का फैसला किया है. ये स्मार्ट मीटर बिजली बचाने और सही बिल देने में काफी मददगार साबित हो रहे हैं.

स्मार्ट मीटर की मदद से बिजली कंपनियां उन घरों और दुकानों की बिजली दूर से ही काट सकती हैं जो अपना बिल नहीं भरते हैं. दुनियाभर में जहां स्मार्ट मीटर लगाए गए हैं, वहां शुरुआती नतीजे काफी अच्छे रहे हैं. बिजली की बर्बादी और चोरी को रोकने में ये मीटर कारगर साबित हुए हैं. 

स्मार्ट मीटर आपको बताते हैं कि आप असल में कितनी बिजली खर्च कर रहे हैं. इससे आप ये समझ सकते हैं कि बिजली बचाने की गुंजाइश कहां है. जो लोग अभी बिना पैसा दिए बिजली चुरा रहे हैं, उन्हें भी ये मीटर ये सोचने पर मजबूर कर देंगे कि कितनी बिजली चोरी करनी है क्योंकि उन्हें उतनी ही बिजली के लिए कानूनी रूप से पे करना होगा. अभी आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, नई दिल्ली और पुदुचेरी जैसी सरकारों ने स्मार्ट मीटर लगाने की शुरुआत कर दी है. उम्मीद है कि ये तकनीक पूरे देश में फैलेगी और बिजली चोरी पर लगाम लगेगा.

बिजली कनेक्शन कितने तरह के होते हैं
आमतौर पर बिजली कनेक्शन दो तरह के होते हैं. सिंगल फेज कनेक्शन और थ्री फेज कनेक्शन. सिंगल फेज कनेक्शन घरेलू इस्तेमाल के लिए होते हैं. पूरे घर में सारे बिजली के उपकरण एक ही सर्किट से जुड़े होते हैं. थ्री फेज कनेक्शन उन जगहों के लिए ज्यादा उपयुक्त है जहां ज्यादा बिजली खाने वाली मशीनें चलती हैं. थ्री फेज वाला कनेक्शन ज्यादा बिजली दे सकता है. इतना ही नहीं, ये ऐसे उपकरणों को भी चला सकता है जिन्हें अलग-अलग वोल्टेज की जरूरत होती है.

सिंगल फेज कनेक्शन में दो तार होते हैं: एक न्यूट्रल तार, जो नीले रंग का होता है. दूसरा फेज कंडक्टर होता है. थ्री फेज कनेक्शन में 3 से 4 तार होते हैं:

  • थ्री-फेज 400 V (Three-phase 400 V): इसमें चार तार होते हैं. 3 फेज तार और 1 न्यूट्रल तार.
  • थ्री-फेज 230 V (Three-phase 230 V): इसमें सिर्फ 3 तार होते हैं.
  • थ्री-फेज 400 V वाले कनेक्शन में एक खास बात है. हर एक फेज तार और न्यूट्रल तार के बीच का वोल्टेज हमेशा 230 V होता है. वहीं, अगर दो फेज तारों के बीच का वोल्टेज नापें तो वो 400 V होगा.

इस खासियत की वजह से थ्री-फेज कनेक्शन घरों को 230 V की बिजली देने के साथ-साथ 400 V की जरूरत वाले उपकरणों को भी चलाया जा सकता है. उदाहरण के तौर पर, कुछ इलेक्ट्रिक कार चार्जर को 400 V की जरूरत होती है.

घरेलू और कमर्शियल बिजली के रेंट में कितना अंतर
ज्यादातर मामलों में कमर्शियल बिजली की कीमत (प्रति यूनिट) घरेलू बिजली की दरों से कम होती हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि कंपनियां आम घरों के मुकाबले कहीं ज्यादा बिजली खर्च करती हैं. इसलिए बिजली कंपनियां उन्हें कम दरों पर बिजली देने को तैयार हो जाती हैं. उधर कर्मशियल इलेक्ट्रिसिटी मार्केट में ज्यादा कंप्टीशन भी होता है. इसलिए बिजली कंपनियों को कम मुनाफा कमाकर भी बिजली बेचनी पड़ती है.

घरेलू बिजली की दरों के उलट, व्यापारिक बिजली की दरें कई चीजों पर निर्भर करती हैं. भले ही बिजली का स्रोत वही हो और आप उसी बिजली कंपनी से बिजली ले रहे हैं. फिर भी कमर्शियल बिजली की दरें काफी ज्यादा बदल सकती हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कंपनियां बिजली किस तरह इस्तेमाल करती हैं, ये दरों को प्रभावित करता है. हालांकि व्यापारिक बिजली के कॉन्ट्रैक्ट में कुछ अतिरिक्त शुल्क भी शामिल होते हैं.

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दुनिया में सबसे ज्यादा महंगी बिजली कहां
दुनियाभर में बिजली के दाम अलग-अलग हैं. सितंबर 2023 के आंकड़ों के अनुसार, आयरलैंड, इटली और यूनाइटेड किंगडम में बिजली सबसे महंगी थी. उस वक्त आयरलैंड में लोगों को प्रति किलोवाट 0.53 अमेरिकी डॉलर चुकाने पड़ते थे, वहीं ब्रिटेन में ये खर्चा 0.44 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोवाट था. अगर अमेरिका से तुलना करें तो वहां के लोगों को इन देशों के मुकाबले तीन गुना कम खर्च करना पड़ता था.

पहाड़ी इलाकों या दूर-दराज के इलाकों में बिजली पहुंचाना ज्यादा मुश्किल होता है. इस वजह से वहां रहने वाले लोगों को ज्यादा दाम चुकाना पड़ सकता है. कई देशों में बिजली पर टैक्स और अलग-अलग तरह के शुल्क लगाए जाते हैं. उदाहरण के लिए, डेनमार्क, बेल्जियम और स्वीडन में घरों तक पहुंचने वाली बिजली के कुल दाम में टैक्स का बहुत बड़ा हिस्सा होता है.

भारत में सबसे महंगी बिजली कहां
वित्त वर्ष 2022 में भारत में सरकारी बिजली का औसत दाम 6.29 रुपये प्रति यूनिट रहा था. उसी साल भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बिजली बनाने वाला देश भी था. विद्युत प्राधिकरण (CEA) के अनुसार महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में रहने वाले घरेलू बिजली उपभोक्ता अगर हर महीने 400 यूनिट या उससे ज्यादा बिजली खर्च करते हैं, तो उन्हें पूरे देश में सबसे ज्यादा दाम चुकाना पड़ता है. इन राज्यों में बिजली कंपनियों ने लागत बढ़ने के कारण कई बार दाम बढ़ाए हैं, जबकि दूसरे राज्यों में ऐसा हमेशा नहीं होता, जिसकी वजह से वहां बिजली का दाम कम रहता है. 

रिपोर्ट के अनुसार, 1 किलोवाट बिजली खपत करने वाले घरों के लिए राजस्थान में बिजली सबसे महंगी है. वहां इसकी कीमत 7.38 रुपये प्रति यूनिट है. वहीं, पंजाब में इसी खपत के लिए सिर्फ 5.83 रुपये प्रति यूनिट चुकाने पड़ते हैं.

मुंबई-महाराष्ट्र में अगर रिलायंस कंपनी से 2 किलोवाट का कनेक्शन लेते हैं और 200 यूनिट तक बिजली खर्च करते हैं, तो हर यूनिट का दाम 7.76 रुपये होगा. मुंबई में टाटा पावर कंपनी से 200 यूनिट से ज्यादा और 1000 यूनिट तक बिजली खर्च करने पर आपको 9.38 रुपये से 13.39 रुपये प्रति यूनिट तक चुकाने पड़ सकते हैं …..

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