तेजी से बंजर होती धरती को बचाने के लिए प्रयास जरूरी ​​​​​​​​​​​​​​ !

तेजी से बंजर होती धरती को बचाने के लिए प्रयास जरूरी ​​​​​​​​​​​​​​

इस बार लगातार तीसरी बार है, जब वैश्विक मांग की तुलना में कोको की आपूर्ति कम रहने की आशंका है। वजह इसके वैश्विक उत्पादन में आई 8.5% की गिरावट है। अप्रैल 2024 में कोको बीन्स के दाम रिकॉर्ड 12 हजार डॉलर प्रति टन तक पहुंच गए, ये पिछले साल की कीमत का 4 गुना हैं। चॉकलेट इंडस्ट्री जलवायु परिवर्तन के कारण संकट में है और कोका उत्पादक किसानों की समस्याएं भी बढ़ रही हैं।

शोध के मुताबिक कोको के पेड़ लगाने के लिए किसान अब खतरनाक चक्र की तरफ बढ़ रहे हैं, जहां जलवायु परिवर्तन से उपजाऊ भूमि कम हो रही है। ऐसे में किसान कोको के पेड़ लगाने के लिए जंगल नष्ट कर रहे हैं।

सिर्फ कोको उगाने वाले किसान ही ऐसा नहीं कर रहे, ये दुनियाभर में हो रहा है। इंसानी सभ्यता का सबसे प्रमुख संसाधन ये जमीन हमारे ही कारण संकट में है- हमने इसे छलनी कर दिया, इसे सूखा झेलने पर मजबूर किया और हरे-भरे इलाकों को रेगिस्तानों में बदल दिया।

इस साल संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की पर्यावरण दिवस पर थीम थी- ‘आर लैंड, आर फ्यूचर। वी आर जेनरेशन रीस्टोरेशन।’ यानी हमारी धरती, हमारा भविष्य और हम पुनर्स्थापित करने वाली पीढ़ी हैं। इस स्लोगन का उद्देश्य धरती को दोबारा उसी स्थिति में वापस लाने यानी उसे रीस्टोर करने, उसे बंजर-सूखाग्रस्त होने से बचाने और हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने पर फोकस करना है।

धरती के रीस्टोरेशन पर ध्यान इसलिए है क्योंकि यूएन की रिपोर्ट बताती हैं कि इस ग्रह की 40% जमीन बंजर हो चुकी है, यह सीधे तौर पर दुनिया की आधी आबादी पर असर डाल रहा है और मोटे तौर पर वैश्विक जीडीपी के आधे (44 ट्रिलियन डॉलर) पर खतरा पैदा कर रहा है।

साल 2000 से सूखे के मामले 29% बढ़ गए हैं। तत्काल कदम नहीं उठाए गए, तो साल 2050 तक सूखा दुनिया की तीन चौथाई आबादी पर असर डाल सकता है। महिलाओं- गरीबों पर इसका ज्यादा असर होगा। संयुक्त राष्ट्र महासचिव का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के नर्क से निकलने का रास्ता बनाने की जरूरत है।

भारत में इसरो ने देश के मरुस्थलीकरण और भूमिक क्षरण का मानचित्र तैयार किया है, इसमें 2018-19 में पाया गया कि देश के 328.72 मिलियन हेक्टयेर में 97.85 मिलियन हेक्टेयर यानी कि देश का 29.7% भौगोलिक क्षेत्र इस क्षरण का शिकार हो चुका है। विश्लेषण से पता चला कि क्षरण का शिकार हुई इस भूमि में आधे से ज्यादा या तो वर्षा आधारित खेत हैं या वनभूमि। ये खाद्य सुरक्षा या जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए शुभ संकेत नहीं है।

वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक साल 1997 से भारत के सूखाग्रस्त इलाके 57% बढ़ गए हैं, और 2012 से बारिश भी 85% बढ़ गई है। चूंकि ये दोनों चीजें साथ-साथ हो रही हैं, एेसे में देश में एक हिस्से में सूखा पड़ता है तो दूसरे हिस्सों में बाढ़ आती है।

सरकार वनीकरण, हरियाली और भूमि बहाली को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठा रही है। नगर वन योजना, राष्ट्रीय तटीय परियोजनाएं, राष्ट्रीय हरित भारत मिशन और इसी प्रकार की अन्य योजनाएं इसके भाग हैं। भारत ने साल 2015 के बॉन चैलेंज और पेरिस समझौते पर भी हस्ताक्षर किए हैं।

अब बात लोगों की। धरती के असली रखवाले हम इंसान ही हैं और जब तक हम (चाहे शहरी हों या ग्रामीण) अपने-अपने स्तर पर इन प्रयासों का हिस्सा नहीं बनते, तब तक हम इस संकट से बाहर नहीं आने वाले।

रोज छोटे-छोटे कदम उठाएं- पानी बचाएं, कूड़ा अलग-अलग करके रखें, नेचरल फेब्रिक का इस्तेमाल करें, जैविक खेती अपनाएं, पौधे लगाएं- ये सभी कदम मिलकर धरती को वापस उसी स्थिति में लाने की वैश्विक मुहिम में योगदान देंगे। आइए हम वास्तव में ‘जेनरेशन रीस्टोरेशन’ बनें।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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