नेहरू और मोदी: दोनों ही अपने तीसरे कार्यकाल में सबसे कम वोटों से जीते !
नेहरू और मोदी: दोनों ही अपने तीसरे कार्यकाल में सबसे कम वोटों से जीते
अगर शपथ लेने के आंकड़ों को आधार मानें तो इस मामले में पंडित जवाहरलाल सबसे आगे हैं। नेहरू ने प्रधानमंत्री पद की शपथ सतत् चार बार ली। 1947 में मनोनीत् पीएम के रूप में तथा 1052,1957 और 1962 में निर्वाचित प्रधानमंत्री के रूप में। बतौर पीएम उनका कुल कार्यकाल 17 साल का होता है।
अठारहवीं लोकसभा के लिए हाल में हुए चुनाव नतीजों का एक बड़ा निहितार्थ यह बताया जा रहा है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद नरेन्द्र मोदी ही देश के ऐसे दूसरे प्रधानमंत्री हैं, जो अपनी पार्टी भाजपा न सही पर चुनाव पूर्व गठबंधन एनडीए को लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज कराने में कामयाब रहे हैं।
इधर खुद मोदी भी सतत् तीसरी बार निर्वाचित प्रधानमंत्री के रूप में पीएम पद की शपथ लेकर सरकार बनाने में सफल हुए हैं। यानी कि देश में आजादी के बाद के 75 सालो में ऐसा राजनीतिक चमत्कार दूसरी बार हुआ है, जब किसी एक राजनेता को जनता ने तीसरी बार पीएम बनने का आदेश दिया हो।
यकीनन भाजपा के रूप में एक गैर कांग्रेसी सरकार की यह बड़ी उपलब्धि है, लेकिन यही एकमात्र सत्य नहीं है। कुछ अतिउत्साही और ऐतिहासिक तथ्यों से अंजान न्यूज चैनलों ने तो मोदी के तीसरी बार शपथ ग्रहण को नेहरू का रिकाॅर्ड तोड़ना भी बता दिया।
अगर अतीत के राजनीतिक घटनाक्रमों का सांख्यिकीय विश्लेषण करें तो बात बहुत साफ हो जाएगी कि जिसे असाधारण उपलब्धि माना जा रहा है, वह वास्तव में कितनी बड़ी और अतुलनीय है।
इतिहास के गलियारों से झांकता राजनीतिक अतीत
दरअसल, हम अलग-अलग मानकों पर इतिहास को जांचने की शुरुआत करें और शपथ लेने के आंकड़ों को आधार मानें तो इस मामले में पंडित जवाहरलाल सबसे आगे हैं। नेहरू ने प्रधानमंत्री पद की शपथ सतत् चार बार ली। 1947 में मनोनीत पीएम के रूप में तथा 1052,1957 और 1962 में निर्वाचित प्रधानमंत्री के रूप में।
बतौर पीएम उनका कुल कार्यकाल 17 साल का होता है, जिसे तोड़ना किसी के लिए भी असंभव नहीं तो बेहद कठिन जरूर है। खासकर तब कि जब इस देश में हर एक- दो दशको में राजनीति की दिशा, मुददे और तकाजे बदलते रहे हैं। पंडित नेहरू भी यह रिकॉर्ड इसलिए बना पाए थे, क्योंकि तब देश में गैर कांग्रेसी विपक्ष अपनी स्पेस तलाश रहा था।
जनता भी सपनों के भारत में खोई थी। वास्तविक विसंगतियां धीरे-धीरे सिर उठाने लगी थीं। यह भी सही है कि कुछ ऐतिहासिक गलतियों के बावजूद नेहरू के कार्यकाल में देश के लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करने के बुनियादी काम हुए। यह बात अलग है कि उस जमाने में नेहरू के कटु आलोचक रहे वामपंथी और समाजवादियों के राजनीतिक वशंज आज नेहरू के उसी ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ को सही ठहराने में ताकत लगाए हुए हैं।
बेशक मोदी ने नेहरू उस रिकॉर्ड की बराबरी तो कर ली है, जिसमे नेहरू ने 1952 से लेकर 1962 तक तीन बार निर्वाचित पीएम के रूप में शपथ ली थी। इसके विपरीत यह तथ्य भी गौरतलब है कि नेहरू के नेतृत्व में तीनो आम चुनावों में कांग्रेस स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में आई थी। जबकि मोदी भाजपा के खाते में यह उपलब्धि केवल दो पार यानी 2014 और 2019 में ही दर्ज करा पाएं हैं। तीसरी बार उन्हे गठबंधन सरकार की अगुवाई करनी पड रही है। अलबत्ता नेहरू और मोदी में एक समानता और है।
नेहरू अपने अंतिम लोस चुनाव 1962 में फुलपुर सीट पहले के चुनावों की तुलना में सबसे कम मतों के अंतर ( मात्र 64 हजार 571) से जीते थे, जो उनकी घटती लोकप्रियता का प्रमाण था।( हालांकि प्रतिशत में यह 61.62 होता है, जो मोदी के इस चुनाव के वोट प्रतिशत 54:24 से काफी ज्यादा है)। इसके पहले के दोनो लोकसभा नेहरू ने 1 लाख से अधिक मतों के अंतर से जीते थे।
नेहरू की कमजोर जीत का कारण उनके खिलाफ नेहरू के प्रखर आलोचक और दिग्गज समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया का चुनाव लड़ना था। इधर मोदी जी भी अपने तीसरे चुनाव में वाराणसी सीट से महज 1 लाख 52 हजार 513 वोटो से जीते हैं। इस कम अंतर के पीछे मोदी समर्थकों का तर्क है कि इस बार चुनाव में कांग्रेस और सपा के वोट मिल जाने से ऐसा हुआ। लेकिन यह सत्यांश ही है। जाहिर है कि मोदी यदि चौथी बार भी वाराणसी सीट से चुनाव लड़े तो उन्हे बहुत मेहनत करनी होगी।
यदि पीएम पद की सतत् तीन बार शपथ के बेंचमार्क को अलग रखें तो इस देश में चार प्रधानमंत्री ऐसे हुए हैं, जिन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में तीन बार शपथ ली है। नेहरू और मोदी के अलावा ये हैं- श्रीमती इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी।
इंदिराजी और अटलजी ने दो बार लगातार कार्यकाल में पीएम पद की शपथ ली। लेकिन बीच में एक बार उन्हें विपक्ष में भी बैठना पड़ा। इंदिराजी 1967,1971 व 1980 में पीएम बनीं तो अटलजी ने 1996, 1998 व 1999 में पीएम पद की शपथ ली। वैसे तथ्य यह भी है कि लगातार तीसरी बार पीएम बनने वाला कोई राजनेता या तो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया या फिर उसके बाद सत्ता में नहीं लौट सका।
पंडित नेहरू के तीसरी बार निर्वाचित पीएम बनने के बाद उन्हें चीन से भारी धोखा मिला। समूचे देश में उन्हें अपनी चीन के साथ युद्ध में भारतीय सेना की करारी हार और चीन द्वारा कश्मीर व लद्दाख के 42 हजार 735 वर्ग किमी पर अवैध कब्जे के कारण पूरे देश में कटु आलोचना का सामना करना पड़ा। इस सदमे से नेहरू उबर नहीं पाए और बीमार रहने लगे। पीएम बनने के सवा दो साल बाद उनका निधन हो गया। उनके जीते जी ‘नेहरू के बाद कौन?’ सवाल पूछा जाने लगा था।
इसी तरह श्रीमती इंदिरा गांधी भी अपना तीसरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई। कई साहसिक फैसलों के बाद भी पंजाब में ऑपरेशन ब्लू स्टार उनकी जान का दुश्मन बन गया और तीसरा कार्यकाल पूर्ण होने के तीन माह पहले ही उनकी निर्मम हत्या हो गई।
उधर अटलजी ने बतौर पीएम अपना तीसरा कार्यकाल खुद ही छह माह पहले चुनाव कराकर खत्म करने की राजनीतिक भूल की और तमाम उदार छवि के बाद भी नए बने कांग्रेसनीत यूपीए गठबंधन से चुनाव हारकर सत्ता से बाहर हो गए।