राष्ट्रीय राजनीति के पैमाने पर कहां खड़े हैं क्षेत्रीय दल !
राष्ट्रीय राजनीति के पैमाने पर कहां खड़े हैं क्षेत्रीय दल; बंगाल से तमिलनाडु तक किसकी कितनी धमक?
2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जिस तरह की भारी वोटिंग प्रतिशत से अपनी जीत का डंका बजाया था उससे कई विश्लेषकों को मानना पड़ा कि अब देश की राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों के दिन लद गए हैं.
भारत में पहली बार केंद्र में 1977 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में 11 पार्टियों ने गठबंधन सरकार बनाई थी. इसके बाद से अब तक क्षेत्रीय दलों की भूमिका समय और स्थिति के साथ बदलती रही है. भारतीय राजनीति में 1980 के मध्य में तेलुगू देशम पार्टी और असम गण परिषद जैसे क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ. इसके साथ ही राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों का दखल और दबदबा बढ़ने लगा.
साल 1989 से लेकर 2014 तक, फिर चाहे वो राष्ट्रीय मोर्चा सरकार हो या डॉ. मनमोहन सिंह की अगुवाई में चली यूपीए की सरकार, लगभग सभी सरकार में क्षेत्रीय दलों की अहमियत बनी रही. लेकिन 2014 में स्थिति बदली. तब भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह भारी वोटिंग प्रतिशत से अपनी जीत का डंका बजाया था उससे कई विश्लेषकों को मानना पड़ा कि अब देश की राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों के दिन लद गए हैं.
हालांकि 2024 लोकसभा चुनाव ने एक बार फिर क्षेत्रीय दलों की अहमियत सामने लाकर रख दी है. पिछले दो लोकसभा चुनाव में अपने दम पर बहुमत पाने वाली बीजेपी इस बार बहुमत के आंकड़े से 32 सीटें पीछे रह गई और एनडीए को क्षेत्रीयों दलों के सहारे सरकार बनाना पड़ा.
इन लोकसभा चुनाव के परिणाम ने उस धारणा को भी तोड़ दिया है, जिसमें कहा जा रहा था कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व को खत्म कर देगी. इन नतीजों ने न सिर्फ सत्ताधारी दल को आईना दिखाने का काम किया, बल्कि भारतीय राजनीति में क्षेत्रवाद के स्थायी महत्व को भी उजागर कर दिया है.
ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से जानते हैं कि क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय राजनीति के पैमाने पर कहां खड़े है, पश्चिम बंगाल से लेकर तमिलनाडु तक किसकी और कितनी है धमक है?
वर्तमान में क्षेत्रीय दल कहां खड़े हैं
इस लोकसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने 293 सीटें हासिल की हैं. जबकि विपक्षी इंडिया गठबंधन ने 232 सीटें. इस बार बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें मिलने के बाद भी सत्ता में आने के लिए दो महत्वपूर्ण क्षेत्रीय पार्टियों का सहारा लेना पड़ा. इन पार्टियों में बिहार से नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (JDU) और आंध्र प्रदेश से चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी (TDP) शामिल हैं.
एनडीए का ये गठबंधन न केवल क्षेत्रीय दलों के निरंतर प्रभाव पर प्रकाश डाल रही है बल्कि भविष्य के राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में इनकी भूमिका को साफ स्पष्ट कर रही है.
इंडिया ब्लॉक में भी क्षेत्रीय दलों की भूमिका रही जोरदार
2019 लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भले ही कांग्रेस अपनी साख को बचाए रखने के लिए लड़ रही थी, लेकिन इस बार उसी पार्टी को 99 सीटें मिली है. कांग्रेस की वापसी और इंडिया गठबंधन में भी क्षेत्रीय दलों की भूमिका जोरदार रही है.
यूपी में समाजवादी पार्टी ने बीजेपी की रफ्तार पर लगाम लगाते हुए एक शानदार जीत हासिल की और क्षेत्रीय राजनीति के निरंतर प्रभाव को उजागर किया.
पश्चिम बंगाल में कितनी मजबूत है टीएमसी
लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने भी बीजेपी के आक्रामक अभियान का डटकर सामना किया है. चुनाव से पहले केंद्र सरकार की एजेंसियों की ओर से टीएमसी के शीर्ष नेताओं को भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में डालने जैसी महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करने के बाद भी ममता बनर्जी ने भगवा लहर को रोकने के साथ-साथ अपने गढ़ को बचाने में कामयाबी हासिल की.
तमिलनाडु में किन क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा
2024 लोकसभा चुनाव में दक्षिण भारत में कुछ क्षेत्रीय पार्टियों ने बेहद ही अच्छा प्रदर्शन किया है. तमिलनाडु में DMK ने अच्छा प्रदर्शन किया और अधिकांश सीटें जीतीं. इस दल का मुख्य ध्येय तमिलनाडु में द्रविड़ नागरिकता की रक्षा करना है.
वहीं आंध्र प्रदेश में YSRC ने बड़ी संख्या में सीटें जीतीं. जबकि तेलंगाना में TRS और कर्नाटका में JD-S ने प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियां है.
क्षेत्रीय मुद्दों को मिली जगह
भारत की राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों की मजबूत वापसी ने साबित कर दिया कि आज भी देश में स्थानीय मुद्दों को राज्य की जनता ज्यादा तवज्जो देती है. यूपी में समाजवादी पार्टी ने इस चुनाव में प्रचार प्रसार के दौरान बेरोजगारी और पीएम मोदी या केंद्र सरकार की जगह सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के खराब शासन पर निशाना साधा था.
ठीक इसी तरह ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस ने इस चुनाव के प्रचार प्रसार के दौरान यह कहानी गढ़ी कि केंद्र सरकार ने उनके राज्य को नजरअंदाज कर दिया है. टीएमसी के अभियान ने क्षेत्रीय असमानताओं पर फोकस किया, जिसने मतदाताओं को प्रभावित किया.
सपा और टीएमसी के इस तरह से प्रचार करना और क्षेत्रीय मुद्दों पर फोकस करना मतदाताओं को भी काफी प्रभावित किया, जिससे साफ है कि जनता स्थानीय पार्टी और चिंताओं को भी तवज्जो दे रही है.
क्षेत्रीय स्तर पर प्रमुख विपक्षी पार्टियों के बारे में जान लीजिये
- तृणमूल कांग्रेस (TMC): पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली यह पार्टी मुख्य विपक्षी पार्टी है
- द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK): डीएमके तमिलनाडु में एम.के. स्टालिन के नेतृत्व वाली प्रमुख विपक्षी पार्टी है
- तेलुगू देशम पार्टी (TDP): आंध्र प्रदेश में एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली यह पार्टी मुख्य विपक्षी दल है.
- तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS): तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली यह पार्टी प्रमुख विपक्षी दल है.
- समाजवादी पार्टी (SP): यह यूपी में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली प्रमुख विपक्षी पार्टी है.
- बहुजन समाज पार्टी (BSP): उत्तर प्रदेश में मायावती के नेतृत्व वाली यह पार्टी महत्वपूर्ण विपक्षी भूमिका निभाती है.
- राष्ट्रीय जनता दल (RJD): बिहार में लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाली यह पार्टी प्रमुख विपक्षी दल है.
- जनता दल (यूनाइटेड) (JDU): बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली यह पार्टी भी महत्वपूर्ण विपक्षी भूमिका निभाती है.
- शिवसेना : महाराष्ट्र में यह पार्टी प्रमुख विपक्षी दल के रूप में उभरी है.
- शिरोमणि अकाली दल (SAD): यह पंजाब की पार्टी है और इसे यहां के प्रमुख विपक्षी दलों में गिना जाता है.
- नेशनल कांफ्रेंस (NC): जम्मू और कश्मीर में फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली यह पार्टी प्रमुख विपक्षी दल है.
- पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP): जम्मू और कश्मीर में महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली यह पार्टी भी महत्वपूर्ण विपक्षी भूमिका निभाती है.
क्षेत्रीय पार्टियां राष्ट्रीय राजनीति कैसे प्रभावित करती है
क्षेत्रीय पार्टियां केंद्र सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, खासकर जब किसी भी एक राष्ट्रीय दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता. इतना ही नहीं कई क्षेत्रीय पार्टियां अपने-अपने राज्यों में सत्तासीन हैं और वहां की राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाते हैं. इन राज्यों की राजनीति भी राष्ट्रीय राजनीति को भी प्रभावित करती है.
भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दल विविधता और बहुलवाद को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. वे विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषाई समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं. कई क्षेत्रीय दलों के नेता तो अपने-अपने राज्यों में काफी प्रभावशाली होते हैं, जिनकी राष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता होती है. इन नेताओं का प्रभाव और लोकप्रियता राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित कर सकती है.
क्षेत्रीय दलों का चुनावी प्रभाव
चुनाव के दौरान क्षेत्रीय दल अपने राज्यों में बड़े पैमाने पर वोट बटोरते हैं और कई बार वे राष्ट्रीय दलों से भी ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब होते हैं. वहीं दूसरी तरफ राष्ट्रीय पार्टियां भी चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन करने में रुचि रखते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा सीटें जीत सकें.