मौजूदा कानूनी शिक्षा प्रणाली के गैप पर भी बात करना जरूरी

मौजूदा कानूनी शिक्षा प्रणाली के गैप पर भी बात करना जरूरी

ये साल का वह समय है, जब कक्षा 12वीं उत्तीर्ण करने वाले छात्र अपने माता-पिता के साथ एडमिशन के उन्माद में डूबे रहते हैं। हर विशेषज्ञता के छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी, कॉलेजों को शॉर्टलिस्ट करने, फॉर्म भरने, प्रवेश परीक्षाओं के तनाव का सामना करने, कट-ऑफ स्कोर का बेसब्री से इंतजार करने और फिर अंतिम सीट आवंटन की लंबी प्रक्रिया से गुजरते हैं।

जिस तरह से आईआईटी और एम्स क्रमशः इंजीनियरिंग और मेडिकल शिक्षा के लिए प्रमुख संस्थान हैं, उसी तरह राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (एनएलयू) कानूनी शिक्षा के लिए प्रमुख संस्थान हैं। कानूनी शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाले अधिकांश एनएलयू गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करते हैं। लेकिन राज्य सरकार की कम फंडिंग के कारण उनका वार्षिक शुल्क अधिक होता है।

मिसाल के तौर पर, नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु- जो कि एक शीर्ष एनएलयू है- सालाना 3,81,000 रुपए की भारी फीस लेता है। जबकि आईआईटी बॉम्बे की सालाना फीस 1,07,350 रुपए ही है। एनएलयू की ऊंची फीस वंचित और गैर-अंग्रेजी भाषी छात्रों के लिए कानूनी शिक्षा तक पहुंच को सीमित कर देती है।

एनएलयू के पांच वर्षीय लॉ ग्रेजुएशन प्रोग्राम के लिए लगभग 3,200 सीटों की सीमित वार्षिक प्रवेश-क्षमता कई योग्य छात्रों के लिए दरवाजे बंद कर देती है। इसका फायदा उठाकर निजी कॉलेज चमकदार ब्रोशर, टीवी विज्ञापनों, सोशल मीडिया अभियानों, बड़े होर्डिंग्स आदि के साथ छात्रों और अभिभावकों के बीच आक्रामक रूप से अपनी मार्केटिंग करते हैं।

एडमिशन एजेंट्स- जिन्हें कानूनी शिक्षा के बारे में न्यूनतम जानकारी होती है- करियर काउंसलर के रूप में पेश आते हैं और अभिभावकों और छात्रों को प्रति वर्ष 1 से 3 लाख रुपए के बीच शुल्क देने के लिए राजी कर लेते हैं। उचित जानकारी के अभाव में माता-पिता और छात्रों का शोषण होता है।

निजी लॉ कॉलेजों की संख्या में वृद्धि और उनके बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने एक और परेशान करने वाली प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया है : फैकल्टी की गुणवत्ता के बजाय आकर्षक मार्केटिंग को प्राथमिकता देना। ये संस्थान श्रेष्ठ शिक्षकों के बजाय विज्ञापनों के लिए ज्यादा पैसा खर्च करते हैं।

कानूनी करियर एक आकर्षक कॉम्बिनेशन प्रदान करता है : इसमें कुलीनता भी है और अलग तरह का करियर भी। न्यायालयों के सभागारों (न्यायपालिका, सरकारी वकील, अधिवक्ता) से लेकर कॉर्पोरेट सेटिंग्स (लॉ फर्म के सहयोगी, कानूनी अधिकारी) और उससे भी आगे (शिक्षाविद, मध्यस्थ, कानूनी पत्रकार आदि)- यह क्षेत्र एक बड़ी रेंज को कवर करता है।

कानूनी बिरादरी में मेरे 15 साल मुझे विश्वास के साथ यह कहने की अनुमति देते हैं कि लॉ प्रोफेशन महत्वाकांक्षी वकीलों के लिए एक बेहतरीन करियर विकल्प है। लेकिन साथ में एक चेतावनी भी है, इस पेशे में वित्तीय सफलता अक्सर व्यावहारिक कौशल और आपके अपने विषय के ज्ञान पर निर्भर करती है।

इन योग्यताओं की कमी वाले स्नातकों को वित्तीय स्थिरता के लिए आवश्यक विशेषज्ञता हासिल करने में संभावित रूप से 3 से 5 साल लग सकते हैं। यह वर्तमान कानूनी शिक्षा प्रणाली के एक गैप को उजागर करता है, जिस पर बात करना जरूरी है।

क्लाइंट काउंसलिंग, केस का प्रस्तुतिकरण, कानूनी दस्तावेज की ड्राफ्टिंग आदि का हुनर अनुभव और व्यावहारिक प्रशिक्षण से ही विकसित होता है। कॉर्पोरेट और कमर्शियल लॉ में करियर के लिए कंपनी कानून, अनुबंध कानून, बौद्धिक संपदा कानून और दिवालियापन आदि में मजबूत-आधार की आवश्यकता होती है।

नौकरियों की भर्ती करने वाले कानूनी ज्ञान और वास्तविक दुनिया के प्रति जागरूकता के मिश्रण वाले लोगों की तलाश करते हैं। इसमें व्यावसायिक कौशल, मजबूत शोध क्षमताएं, व्यावहारिक अनुभव, अनुबंध ड्राफ्टिंग की क्षमता, अंग्रेजी पर पकड़ और क्लाइंट प्रबंधन में कुशल सामाजिक व्यक्तित्व शामिल है।

कानूनी पेशे के लिए लीगल थ्योरी और उनके व्यावहारिक प्रयोग में महारत जरूरी है। किताबें सिद्धांतों का आधार तो मुहैया करा देती हैं, लेकिन वे आपको अदालत में कामयाब होने के लिए जरूरी कौशल से लैस नहीं कर सकतीं।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *