पहाड़ों का सीना चीरकर कैसे बनाई जाती है टनल ?
पहाड़ों का सीना चीरकर कैसे बनाई जाती है टनल?
PM मोदी ने लद्दाख में रखी दुनिया की सबसे ऊंची टनल की नींव
World’s Highest Tunnel in Ladakh: करगिल विजय दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शिंकुन ला सुरंग परियोजना का पहला विस्फोट किया. इस प्रोजेक्ट के तहत यहां दुनिया की सबसे ऊंची सुरंग बनेगी. जानिए, पहाड़ों पर कैसे बनाई जाती है टनल, यह क्यों नहीं ढहती, लद्दाख में बनने वाली टनल कैसी होगी और देश की सबसे लम्बी सुरंग कौन सी हैं?करगिल विजय दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शिंकुन ला सुरंग परियोजना का पहला विस्फोट किया. इस प्रोजेक्ट के तहत यहां दुनिया की सबसे ऊंची सुरंग बनेगी. यह विस्फोट सुरंग के निर्माण की शुरुआत का संकेत है. 4.1 किलोमीटर लंबी दोहरी-ट्यूब सुरंग का निर्माण 15,800 फीट की ऊंचाई पर किया जाएगा. कहा जा रहा है कि इसे तैयार होने में 4 साल का वक्त लगेगा. यह चीन की 15,590 फीट की ऊंचाई पर बनी सुरंग को पीछे छोड़ कर वर्ल्ड रिकॉर्ड हासिल कर लेगी.
पहाड़ पर टनल बनाना कितना मुश्किल?
पहाड़ पर टनल यानी सुरंग को बनाने के लिए ड्रिल एंड ब्लास्ट विधि का इस्तेमाल किया जाता है. इस तकनीक के जरिए पहाड़ों में ब्लास्ट करके जगह बनाई जाती है. धीरे-धीरे जगह को गहरा किया जाता है और उसे सुरंग का रूप दिया जाता है. हालांकि, यह तकनीक काफी खतरों भरी होती है क्योंकि इस दौरान रिस्क रहता है कि चट्टान का बड़ा हिस्सा खिसक सकता है. आसपास के घरों में दरार आने का खतरा रहता है. यही वजह है कि कई बार पहाड़ों की स्थिति देखते हुए दूसरी विधि अपनाई जा सकती है.
पहाड़ को काटकर सुरंग बनाने के लिए ड्रिल एंड ब्लास्ट के अलावा टनल बोरिंग मशीन का भी इस्तेमाल किया जाता है. इस विधि में चट्टान में छेद करके उसमें विस्फोटक भरा जाता है और फिर विस्फोट करके गहरा किया जाता है. हालांकि यह थोड़ी महंगी तकनीक है. एक बार ब्लास्ट करने पर 1 से 2 मीटर की गहराई तैयार होती है.
कब-कहां कौन सी तकनीक इस्तेमाल होता है?
सुरंग बनाने के लिए ड्रिल एंड ब्लास्ट विधि का इस्तेमाल होगा या टनल बोरिंग मशीन का, यह निर्भर करता है कि पहाड़ की ऊंचाई कितनी है और उसकी प्रकृति कैसी है. टनल बोरिंग मशीन का इस्तेमाल वहां होता है जहां थोड़ ऊंचे पहाड़ हों. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पहाड़ में खाली जगह बनने पर चट्टान टूट जाती है और उसका हिस्सा अलग हो जाता है.
इसका तरीके का इस्तेमाल 300 से 400 मीटर ऊंचाई वाली चट्टानों पर इस्तेमाल किया जाता है. ड्रिल एंड ब्लास्ट विधि का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड सहित हिमालय जैसी जगहों के लिए किया जाता है.
अंदर से खोखली है फिर भी क्यों नहीं ढहती सुरंग?
एक बार सुरंग खोदने के बाद, उसे आकार दिया जाता है और अंदर की दीवारों पर कंक्रीट का इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा, सुरंग को मजबूत करने के लिए स्टील फ्रेम जिन्हें स्टील सपोर्ट कहा जाता है और स्टील की छड़ें जिन्हें रॉक बोल्ट कहा जाता है, का उपयोग किया जाता है ताकि भविष्य में इसे ढहने से रोका जा सके.
सुरंग बनाने से पहले इसकी जरूरत और महत्व को समझा जाता है. यह तय होने के बाद सर्वेक्षण कराया जाता और भौगोलिक स्थितियों को समझा जाता है. पहाड़ों के अलावा मिट्टी और दूसरे हिस्से में टनल बनाने के लिए दूसरी विधियों का इस्तेमाल किया जाता है. जैसे- पाइप टनल और बाॅक्स जैकिंग मैथड.
कैसी होगी भारत में बनने वाली दुनिया की सबसे ऊंची सुरंग?
लद्दाख के निमू-पदुम-दारचा रोड पर बनने वाली दुनिया की सबसे ऊंची सुरंग का निर्माणसीमा सड़क संगठन (BRO) करेगा. इसे 1,681.5 करोड़ रुपए की लागत से तैयार किया जाएगा. इस सुरंग की मदद से कारगिल, सियाचिन और नियंत्रण रेखा (LOC) जैसे रणनीतिक स्थानों तक भारी मशीनरी के परिवहन का रास्ता आसान होगा. दूरी को 100 किमी घटाने की तैयारी है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, यह सुरंग तोप रोधी होगी.
ये हैं भारत की लम्बी टनल
- अटल रोड सुरंग: इसे रोहतांग सुरंग कहते हैं. यह भारत की सबसे लम्बी सुरंगों में शामिल है. 2020 में इसका उद्घाटन किया गया था. 9 किलोमीटर लम्बी यह सुरंग लेह और मनाली को जोड़ती है.
- डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सुरंग: यह भारत की सबसे लंबी सुरंग है. यह 9.34 किमी लंबी है. यह चेनानी से शुरू होकर नशरी पर खत्म होती है. ये सुरंग जम्मू कश्मीर के उधमपुर में चेनानी कस्बे को रामबन जिले के नशरी कस्बे से जोड़ने का काम करती है.
- पीर पंजाल रेलवे सुरंग: यह भारत की सबसे लम्बी रेल सुरंग है. इसकी लम्बाई 11.2 किलोमीटर है. यह रेलवे सुरंग जम्मू और कश्मीर में बनिहाल और काजीगुंड को जोड़ने का काम करती है.
- कुथिरन रोड सुरंग: यह देश की लम्बी सड़क सुरंग में शामिल है. केरल के त्रिशूर बनी यह सुरंग 8.7 किमी लम्बी है. यह सुरंग त्रिशूर और पलक्कड़ के बीच यात्रा के समय को दो घंटे कम कर देती है. इसका उद्घाटन अप्रैल 2019 में किया गया था.