331 साल की मुगलगाथा…

331 साल की मुगलगाथा… कौन थे मुगल, क्या था उनका इतिहास और कैसे हुआ पतन? यहां पढ़ें पूरी कहानी
मुगलों के बारे में शायद ही कोई ऐसा हो जिसने न सुना हो. भारत में दिल्ली-आगरा से इन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार करना शुरू किया. किस मुगल शासक ने कब और कैसे अपनी सत्ता संभाली. कैसे साम्राज्य का विस्तार किया, आज हम जानेंगे. तो चलिए जानते हैं भारत में मुगलों के 331 साल का इतिहास…
331 साल की मुगलगाथा... कौन थे मुगल, क्या था उनका इतिहास और कैसे हुआ पतन? यहां पढ़ें पूरी कहानी

मुगलों के भारत में 331 साल.

मध्यकाल में किसी भी शासक के लिए भारतीय उपमहाद्वीप जैसे बड़े क्षेत्र पर, जहां लोगों और संस्कृतियों में इतनी विविधताएं हों, शासन कर पाना अत्यंत कठिन था. अपने से पिछले शासकों के विपरीत, मुगलों ने एक साम्राज्य की स्थापना की और वो काम पूरा किया जो अब तक केवल छोटी अवधियों के लिए ही संभव माना जाता था. 16वीं सदी के उत्तरार्द्ध से इन्होंने दिल्ली और आगरा से अपने साम्राज्य का विस्तार किया और 17वीं सदी तक लगभग संपूर्ण महाद्वीप पर अधिकार प्राप्त कर लिया. उन्होंने प्रशासन के ढांचे और शासन संबंधी जो विचार लागू किए वे उनके राज्य के पतन के बाद भी टिके रहे.

मुगल कौन थे?

मुगल दो शासकों के वंशज थे. माता की ओर से वे मंगोल शासक चंगेज खान से संबंध रखते थे, जो चीन और मध्य एशिया के कुछ भागों पर राज किया करता था. पिता की ओर से ईरान, इराक और वर्तमान तुर्की के शासक तैमूर के वंशज थे, जिसकी मृत्यु 1404 में हुई थी. परंतु मुगल खुद को मुगल या मंगोल कहलवाना पसंद नहीं करते थे. क्योंकि चंगेज खान से जुड़ी स्मृतियां सैकड़ों व्यक्तियों के नरसंहार से संबंधित थीं. यह स्मृतियां मुगलों के प्रतियोगियों उज्बेगों से भी संबंधित थीं. दूसरी तरफ मुगल तैमूर का वंशज होने पर गर्व करते थे. ज्यादा इसलिए क्योंकि उनके इस पूर्वज ने 1398 में दिल्ली पर कब्जा कर लिया था.

मुगल सैन्य अभियान

प्रथम मुगल शासक बाबर ने जब 1494 में फरगना राज्य का उत्तराधिकार प्राप्त किया तो उनकी उम्र महज 12 साल थी. मंगोलों की दूसरी शाखा उज्बेगों के आक्रमण के कारण उन्हें अपनी पैतृक गद्दी छोड़नी पड़ी थी. अनेक सालों तक भटकने के बाद उन्होंने 1504 में काबुल पर कब्जा कर लिया. उन्होंने 1526 में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को पानीपत में हराया. फिर दिल्ली और आगरा को अपने कब्जे में ले लिया. आगे जानेंगे मुगलों के सम्राट और उनसे जुड़ी घटनाएं…

बाबर, 1526- 1530

इब्राहिम लोदी को हराने के बाद बाबर ने 1527 में खानूवा में राणा सांगा, राजपूत राजाओं और उनके समर्थकों को हराया. इसके बाद बाबर ने 1528 में चंदेरी में राजपूतों को हराया. अपनी मृत्यु से पहले दिल्ली और आगरा में नियंत्रण स्थापित किया. 1930 में बाबर की मृत्यु हुई.

हुमायूं, 1530-1540 फिर 1555-1556

हुमायूं ने अपने पिता की वसीयत के अनुसार, जायदाद का बंटवारा किया था. प्रत्येक भाई को एक-एक प्रांत मिला था. उनके भाई मिर्जा कामरान की महत्वकांक्षाओं के कारण हुमायूं अपने अफगान प्रतिद्वंदियों के सामने फीके पड़ गए. शेर खां ने उन्हें दो बार हराया. 1539 में चौसा में और 1540 में कन्नौज में हराया. इन पराजयों ने उन्हें ईरान की ओर भागने पर मजबूर कर दिया. ईरान में हुमायूं ने सफावी वंश के शाह तहमास की मदद की. 1555 में फिर दोबारा दिल्ली पर कब्जा कर लिया. लेकिन अगले ही साल एक दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई.

अकबर, 1556-1605

13 साल की छोटी सी उम्र में अकबर सम्राट बन गए थे. उनके शासन काल को तीन अवधियों में बांटा जा सकता है. 1556 से 1570 के बीच अकबर अपने संरक्षक बैरम खान और अपने घरेलू कर्मचारियों से स्वतंत्र हो गए थे. उन्होंने सूरी और अन्य अफगानों, निकटवर्ती राज्यों- मालवा और गोंडवाना और अपने सगे भाई मिर्जा हाकिम और उज्बेगों के विद्रोहों को दबाने के लिए कई सैन्य अभियान चलाए. उन्होंने साल 1568 में चित्तौड़ और 1569 में रणथंभौर पर कब्जा कर लिया था.

1570 से 1585 के बीच गुजरात के विरुद्ध सैन्य अभियान चलाए. इन अभियानों के पश्चात पूर्व में बिहार, बंगाल और उड़ीसा में अभियान चलाए, जिन्हें 1579-1580 में मिर्जा हाकिम के पक्ष में हुए विद्रोह ने और जटिल कर दिया. 1585 से 1605 के बीच अकबर के साम्राज्य में विस्तार हुआ. उत्तर पश्चिम में अभियान चलाए गए. अकबर ने सफाविदों को हराकर कांधार पर कब्जा कर लिया. कश्मीर को भी जोड़ लिया. मिर्जा हाकिम की मृत्यु के बाद काबुल को भी अपने साम्राज्य में मिला लिया था. दक्कत के अभियानों की शुरुआत हुई और बरार, खान देश और अहमदनगर के कुछ हिस्सों को भी अपने साम्राज्य में मिला लिया. अपने शासन के अंतिम सालों में अकबर की सत्ता राजकुमार सलीम के विद्रोहों के कारण लड़खड़ा गई थी. यही सलीम आगे चलकर जहांगीर कहलाए.

जहांगीर, 1605 से 1627

जहांगीर ने अकबर के सैन्य अभियानों को आगे बढ़ाया. मेवाड़ के सिसोदिया शासक अमर सिंह ने मुगलों की सेवा स्वीकार की. इसके बाद सिक्खों, अहोमो और अहमदनगर के खिलाफ अभियान चलाए गए. लेकिन वो पूरी तरह सफल न हो पाए. जहांगीर के शासन के अंतिम वर्षों में राजकुमार खुर्रम ने उनके खिलाफ विद्रोह कर दिया था. यही राजकुमार खुर्रम आगे चलकर शाहजहां के नाम से मशहूर हुए. जहांगीर की पत्नी नूर जहां ने शाहजहां को हाशिये पर धकेलने के प्रयास किए जो कि असफल रहे.

शाहजहां, 1627-1658

दक्कन में शाहजहां से अभियान जारी रहे. एक अफगानी रईस खान जहां लोदी ने शाहजहां का विरोध किया. लेकिन वो पराजित हुआ. अहमदनगर के खिलाफ अभियान चलाए गए. इसमें बुंदेलों की हार हुई. उत्तर पश्चिम में कब्जा करने के लिए उज्बेजों के विरुद्ध अभियान चलाए गए. लेकिन असफल रहे. परिणामस्वरूप कांधार सफाविदों के पास चला गया. 1632 में अंतत: अहमदनगर को मुगलों के राज्य में मिला लिया गया और बीजापुर की सेनाओं ने सुलह के लिए निवेदन किया. 1657-58 में शाहजहां के बेटों के बीच उत्तराधिकार को लेकर लड़ाई शुरू हो गई. इसमें औरंगजेब की जीत हुई. इसके बाद उसके तीन भाइयों को मार दिया गया. शाहजहां को भी उम्रभर के लिए आगरा की जेल में कैद कर दिया गया.

औरंगजेब, 1627-1707

1663 में उत्तर पूर्व में अहोमो की पराजय हुई. परंतु उन्होंने 1680 में दोबारा विद्रोह किया. उत्तर पश्चिम में यूसुफजई और सिक्खों के विरुद्ध अभियानों को अस्थाई सफलता मिली. मारवाड़ के राठौड़ राजपूतों ने मुगलों के खिलाफ विद्रोह किया था. इसका कारण था उनकी आंतरिक राजनीति और उत्तराधिकार के मसलों में मुगलों का हस्तक्षेप. मराठा सरदार शिवाजी के विरुद्ध औरंगजेब ने कई अभियान चलाए, जिसमें वो सफल भी हुआ. लेकिन उसने शिवाजी ने अपमान किया और शिवाजी आगरा स्थित कैदखाने से भाग निकले. उन्होंने खुद को स्वतंत्र शासक घोषित करने के पश्चात मुगलों के खिलाफ दोबारा अभियान चलाए. आगे चलकर राजकुमार अकबर ने औरंगजेब के विरुद्ध विरोध किया. इसमें उन्हें मराठों और दक्कन की सल्तनत का सहयोग मिला. अंतत: वो ईरान की सफाविद की ओर भाग गया.

अकबर के विद्रोह के पश्चात औरंगजेब ने दक्कन के शासकों के विरुद्ध सेनाएं भेजीं. 1685 में बीजापुर और 1687 में गोलकोंडा को मुगलों ने अपने राज्य में मिला लिया. 1698 में औरंगजेब ने दक्कन में मराठों के विरुद्ध अभियान का प्रबंध खुद किया था. उस समय मराठा छापामार पद्धति का इस्तेमाल कर रहे थे. औरंगजेब को उत्तर भारत में सिक्खों, जाटों और सतनामियों, उत्तर पूर्व में अहोमो और दक्कन में मराठों का सामना करना पड़ा.

कैसे हुई औरंगजेब की मृत्यु?

इतिहासकारों के मुताबिक, 50 वर्षों तक शासन करने के बाद औरंगजेब की मृत्यु दक्षिण के अहमदनगर में 3 मार्च 1707 ई. में हो गई थी. बुन्देलखंड के वीर छत्रसाल ने एक युद्ध में औरंगजेब के शरीर पर एक चीरा दिया, जिससे वह 3 महीने तक बिस्तर पर तड़पता रहे और इसी तरह तड़प-तड़प कर 1707 ई. में उनकी मृत्यु हो गई. उनकी मृत्यु के पश्चात उत्तराधिकारी के लिए युद्ध शुरू हो गए. लेकिन औरंगजेब के सबसे बड़े बेटे 63 वर्षीय राजकुमार मुअज्जम बहादुर शाह को सम्राट बनाया गया. जिस तरह औरंगजेब ने अपने शासनकाल में साम्राज्य को विकास की चरम सीमा तक पहुंचाया. वहीं, उनकी मृत्यु के बाद उस शक्तिशाली एवं वैभवशाली साम्राज्य का विघटन और पतन तेजी से हुआ.

मुगलों के अंतिम राजा

बहादुर शाह 19 जून 1707 से 27 फरवरी 1712 तक. जहांदार शा, 27 फरवरी 1712 से 11 फरवरी 1713 तक. फर्रुख्शियार, 11 जनवरी 1713 से 28 फरवरी 1719 तक. मोहम्मद शाह, 27 सितम्बर 1719 से 26 अप्रैल 1748 तक. अहमद शाह बहादुर, 26 अप्रैल 1748 से 2 जून 1754 तक. आलमगीर द्वितीय, 2 जून 1754 से 29 नवम्बर 1759 तक. शाह आलम द्वितीय, 24 दिसम्बर 1760 से 19 नवम्बर 1806 तक. अकबर शाह द्वितीय, 19 नवम्बर 1806 से 28 सितम्बर 1837 तक और बहादुर शाह द्वितीय ने, 28 सितम्बर 1837 से 14 सितम्बर 1857 तक राज किया. फिर मुगलों का पूरी तरह पतन हो गया.

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