जानें पिज्जा, समोसा, मिठाई खाने के बाद कितना वर्कआउट करना पड़ेगा
जानें पिज्जा, समोसा, मिठाई खाने के बाद कितना वर्कआउट करना पड़ेगा
बता दें कि एक जैवलिन एथलीट के लिए शरीर में आइडियल फैट होना जरूरी है। इसकी स्टैंडर्ड रेंज 10-10.5% होती है। नीरज चोपड़ा भी अपने शरीर में फैट को 10% तक बनाए रखने की कोशिश करते हैं, जिसके लिए वे हर दिन एक डिसिप्लिन डाइट फॉलो करते हैं। वे अपनी डाइट को बहुत ही साधारण रखने की कोशिश करते हैं। वे न्यूट्रिशन से भरा ब्रेकफास्ट लेते हैं, जो उनकी ट्रेनिंग के लिए काफी जरूरी है। इसका मतलब ये नहीं कि वे कभी-कभार चीट डाइट नहीं लेते।
नीरज चोपड़ा को बहुत पसंद हैं चूरमा, मिठाई और गोलगप्पे
नीरज चोपड़ा अपने डाइट प्लान से हटकर कभी-कभार चूरमा, मिठाई और गोलगप्पे खा लेते हैं। फिर इस फैट को बर्न करने के लिए वे भारी वर्कआउट भी करते हैं।
एक इंटरव्यू में नीरज चोपड़ा ने बताया कि उनको चूरमा बहुत पसंद है और वे 4000-5000 तक कैलोरी लेते हैं। फिर इसको बर्न करने के लिए वे 7-8 घंटे वर्कआउट भी करते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी की 100g चूरमे में 332 किलो कैलोरी होती है।
आप और हम एथलीट तो नहीं हैं, लेकिन अगर अपना सामान्य बॉडी वेट भी मेन्टेन रखना चाहते हैं और मोटे नहीं होना चाहते तो पता है 100 ग्राम चूरमा खाने के बाद हमें कितना वर्कआउट करना पड़ेगा।
नीचे ग्राफिक में देखिए–
समझें कैलोरी का मीटर
क्या आप जानते हैं कि आप रोज कितनी कैलोरी खाते हैं। जाने-अनजाने में हम हर रोज लगभग 1000-3000 तक कैलोरी खा लेते हैं। चाहे आप वजन कम करने, वजन बढ़ाने या अपना वजन बनाए रखने की कोशिश कर रहे हों, आपके शरीर को कितनी कैलोरी की जरूरत है, इसकी बुनियादी समझ जरूरी है।
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक, औसतन एक महिला को अपना वजन बनाए रखने के लिए प्रतिदिन 2,000 कैलोरी खानी चाहिए और पुरुष को प्रतिदिन 2500 कैलोरी खानी चाहिए।
यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर (USDA) के मुताबिक पुरुषों और महिलाओं के लिए स्टैंडर्ड कैलोरी की रेंज उम्र, जेंडर और बॉली-बिल्ड और प्रोफेशन पर निर्भर करती है। कैलोरी कम करने के लिए आप कुछ व्यायाम जैसे दौड़ना, साइकिल चलाना, तैरना, पैदल चलना आदि कर सकते हैं।
तो आज ‘जरूरत की खबर’ में हम बात करेंगे कि ज्यादा कैलोरी वाले खाने को पचने में कितना समय लगता है और आप उस कैलोरी को कैसे बर्न कर सकते हैं।
समोसे में सिर्फ आलू नहीं, ढेर सारी कैलोरी भी
अगर वजन कम करना आपका लक्ष्य है तो धैर्य रखना बहुत जरूरी है। हालांकि, आपके लिए शुरुआत में यह जान पाना मुश्किल हो सकता है कि कहां सुधार करना है, लेकिन अगर आप खाने की कैलोरी के बारे में जान जाएं तो वजन कम कर सकते हैं।
हम सभी को फास्ट फूड बहुत अच्छा लगता है; जैसे पिज्जा, बर्गर, समोसा, लेकिन क्या आपको मालूम है कि सिर्फ एक समोसा खाने से ही हम 200 से ज्यादा कैलोरी खा लेते हैं और इस फैट को बर्न करने के लिए हमें कितनी मेहनत करने की जरूरत होती है।
सेहत के लिए ‘तीखी’ है मिठाई, इसमें 200 कैलोरी
हर खुशी के मौके पर हम मुंह मीठा करते हैं। इस मिठाई का एक पीस हमें खुशी तो देता है, लेकिन हमारी सेहत पर भी उतना ही असर डालता है। वहीं कुछ लोगों का रोज का लंच और डिनर बिना मिठाई के पूरा ही नहीं होता है।
यह जानकार आप हैरान होंगे कि हर रोज आप एक मिठाई खाकर 200 कैलोरी ले रहे होते हैं और जैसे-जैसे इसकी गिनती बढ़ती है, उतना ही फैट हमारे अंदर भी बढ़ रहा होता है।
नीचे ग्राफिक में देखें कि एक मिठाई से मिले फैट को बर्न करने के लिए हमें कितनी एक्सरसाइज करनी होती है-
एक चॉकलेट की कैलोरी को बर्न करने में लगते 20 मिनट
मिठाई के जैसे ही एक चॉकलेट बार में भी उतना ही फैट होता है। जो इसके शौकीन हैं और दिन में कम से कम 2-3 चॉकलेट खाते हैं, उन्हें ये जानना जरूरी है कि वे कितनी कैलोरी ले रहे हैं।
चॉकलेट में मिल रहे फैट को कैसे कम किया जाए, देखें ये ग्राफिक-
पिज्जा की एक स्लाइज में 266 कैरोली, पूरे पिज्जा में 1064 कैलोरी
पिज्जा, मानो यह तो जैसे लोगों का ‘संडे मील’ बन गया हो। खासकर युवाओं का यह सबसे फेवरेट फूड है। कुछ लोग इसे रोज भी खा सकते हैं। USAD की रिपोर्ट बताती है कि सिर्फ एक स्लाइज पिज्जा में ही 266 कैलोरी होती हैं। तो सोचिए जो हर दिन या हर हफ्ते इसे खा रहे हैं, वो कितनी कैलोरी अपने शरीर में ले रहे होंगे।
हर दिन की कैलोरी का रखें रिकॉर्ड, वजन कंट्रोल करने में मिलेगी मदद
एक हफ्ते के लिए अपनी कैलोरी ऑनलाइन या कागज पर रिकॉर्ड करें। आप जो कुछ भी खाते-पीते हैं, उसका रिकॉर्ड रखने से आपको वजन कंट्रोल करने में मदद मिलेगी।
- USAD नेशनल न्यूट्रिएंट डेटाबेस में आपको सभी तरह की खाने-पीने की चीजों की पोषण संबंधी जानकारी मिल सकती है। किस खाने की चीज में कितनी कैलोरी है।
- सबसे पहले तो आप जो खाते हैं, उसके बारे में ईमानदार रहें। जैसे अगर आपको पता है कि आपका वजन ज्यादा है तो ऐसे खाने को अवॉइड करें, जिसमें सबसे ज्यादा कैलोरी हो।
- आप कितनी डाइट ले रहे हैं और उसमें कितने पोषक तत्व शामिल हैं, उसका भी ध्यान रखें।
- सिर्फ कैलोरी को ही न लिखें। अपने मैक्रोन्यूट्रिएंट्स पर भी ध्यान दें। हर भोजन के लिए फैट, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन की मात्रा लिखने से आपको बैलेंस्ड डाइट के बारे में बेहतर पता चलेगा।
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जंक फूड खाने वालों के लिए चेतावनी …..
स्टडी में खुलासा, फास्ट फूड से बढ़ रहा डिमेंशिया, दिल, दिमाग और लिवर खतरे में
पिछले दिनों अमेरिका में अल्जाइमर्स एसोसिएशन की इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में एक रिसर्च पेश की गई। 43 सालों तक चली इस रिसर्च में 1 लाख 30 हजार लोगों को शामिल किया गया था। रिसर्च में सामने आया कि जो लोग लगातार अल्ट्रा प्रॉसेस्ड फूड खा रहे थे और जितनी अधिक मात्रा में खा रहे थे, उन्हें उतना ही गंभीर डिमेंशिया हो गया।
डिमेंशिया, एक ऐसी बीमारी जिसमें व्यक्ति की याददाश्त, भाषा, रीजनिंग पॉवर और सोचने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है। जबकि जिन लोगों ने अल्ट्रा प्रॉसेस्ड फूड से दूरी बनाई या कम फ्रीक्वेंसी में इसका सेवन किया, वे लोग अधिक स्वस्थ बने रहे।
सवाल है कि ये लोग अल्ट्रा प्रॉसेस्ड खाने में क्या खा रहे थे? ये सभी प्रॉसेस्ड रेड मीट, बेकन, हॉट डॉग्स और सॉसेज खा रहे थे। सब इंडस्ट्रियली प्रोड्यूड प्रोसेस्ड जंक फूड है।
अगर यही स्टडी भारत में हुई होती तो ये सारे सवाल पिज्जा, बर्गर, फ्राइज और पैक्ड चिप्स पर होते। चाट, समोसा, कचौरी पर भी कम सवाल नहीं होते। इनके सेवन से भी हमारी सेहत को बहुत नुकसान हो रहे हैं।
बात करेंगे इंडियन फूड्स की। साथ ही जानेंगे कि-
- अमेरिकन स्टडी से क्या बड़ी बातें सामने आईं?
- खाना पकाने का पारंपरिक तरीका क्यों अच्छा है?
- हमारे खाने पर अल्ट्रा प्रॉसेस्ड फूड ने कैसे कब्जा किया?
- हमारे खाने की थाली कैसी होनी चाहिए?
हम खाना क्यों खाते हैं?
आर्टिकल में आगे बढ़ने से पहले यह बुनियादी बात समझते हैं कि हम खाना क्यों खाते हैं? उसका प्राइमरी मकसद है न्यूट्रिशन यानी पोषण। हम जीवित और स्वस्थ रहने के लिए भोजन करते हैं।
अमेरिका के जाने-माने पूर्व पत्रकार और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में गेस्ट लेक्चरर हैं माइकल पॉलन। उनकी किताब ‘द ऑम्निवोर्स डिलेमा’ न्यूयॉर्क टाइम्स बेस्टसेलर रही है। ऑम्निवोर्स का अर्थ है सर्वाहारी यानी ऐसा जीव, जो शाकाहार और मांसाहार दोनों करता हो। मनुष्य एक ऑम्निवोर जीव है।
अपनी किताब में पॉलन भोजन की बुनियादी जरूर को कुछ इस तरह आर्टिकुलेट करते हैं।
अमेरिकन रिसर्च में क्या सामने आया
स्टडी की 10 बड़ी बातें
- इस स्टडी में 43 वर्षों तक 1,30,000 से अधिक लोगों पर नजर रखी गई।
- स्टडी में शामिल हुए 8% से अधिक पार्टिसिपेंट्स में डिमेंशिया विकसित हुआ।
- स्टडी में पता चला कि रेगुलर प्रॉसेस्ड रेड मीट खाने से डिमेंशिया विकसित होने का खतरा बढ़ता है।
- हफ्ते में दो बार प्रॉसेस्ड रेड मीट खाने वालों को महीने में तीन से कम बार प्रॉसेस्ड रेड मीट खाने वालों की तुलना में डिमेंशिया का 14% अधिक जोखिम है।
- रोजाना प्रॉसेस्ड रेड मीट को नट्स, बीन्स या टोफू से रिप्लेस करने में डिमेंशिया का खतरा 20% तक कम हो सकता है।
- स्टडी की प्रमुख लेखिका युहान ली के मुताबिक, प्रॉसेस्ड रेड मीट के लंबे समय तक रोजाना सेवन से डिमेंशिया का खतरा बढ़ सकता है।
- प्रॉसेस्ड रेड मीट के साथ चिप्स, आइसक्रीम और इंस्टेंट सूप भी अल्ट्रा प्रॉसेस्ड होते हैं और इनसे टाइप-2 डायबिटीज, हार्ट डिजीज और मोटापे की समस्या हो सकती है।
- रिसर्चर्स ने पाया कि प्रतिदिन प्रॉसेस्ड रेड मीट खाने से ब्रेन और बॉडी के सेंसर्स कमजोर होते हैं। याद रखने की क्षमता प्रभावित होती है।
- प्रॉसेस्ड रेड मीट में मौजूद सैचुरेटेड फैट, सोडियम, आयरन और नाइट्राइट से स्ट्रोक, क्रॉनिक इंफ्लेमेशन, हाई ब्लड प्रेशर और नर्वस सिस्टम डिसऑर्डर का जोखिम बढ़ जाता है।
- युहान ली के मुताबिक, प्रॉसेस्ड रेड मीट में नाइट्राइट और सोडियम जैसे हानिकारक पदार्थों के बहुत अधिक मात्रा में होने के कारण कैंसर, हार्ट डिजीज और डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है।
खाना कितना फायदेमंद या नुकसानदायक
उसकी प्रॉसेसिंग से तय होता है
कोई खाना कितना फायदेमंद या नुकसानदायक होगा, यह उसके तैयार होने की प्रक्रिया पर निर्भर करता है। खाना खेत में उगने से लेकर हमारी थाली तक पहुंचने में जिन प्रक्रियाओं से गुजरता है, उसे प्रॉसेसिंग कहते हैं।
खाना पकाने का पारंपरिक तरीका बेस्ट है
फर्ज करिए कि हम अपनी रोजाना की थाली में रोटी, सब्जी, दाल और चावल खाते हैं। अब सब्जी को ही ले लीजिए। यह पहले खेत से आती है। फिर हम इसे धोते हैं, काटते हैं, पकाते हैं। इसमें स्वाद के लिए नमक, मिर्च और मसाले मिलाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि हम करेले, लौकी, तोरई और आलू को कच्चा तो नहीं खा सकते हैं।
सब्जी की तरह दाल भी खेत से आती है। हम उसे दलते हैं। फिर साफ करके नमक, पानी और हल्दी के साथ उबालकर खाते हैं। स्वाद के लिए घी मिलाते हैं। यह सब फूड की प्रॉसेसिंग है, जो उसे सुपाच्य और हेल्दी बना रही है।
जाहिर है, हम कच्ची दाल तो नहीं खा सकते। खाएंगे भी तो इसे पचाने में 4 दिन से एक हफ्ते तक लग जाएंगे। दूध की बात करें तो इससे दही, मक्खन, छांछ और घी बनता है।
कहने का अर्थ यह है कि मनुष्य ने अपने ऐतिहासिक विकासक्रम में भोजन को प्रॉसेस करने के कई तरीके ईजाद किए। प्रॉसेसिंग की यह प्रक्रिया हेल्दी है। फूड को प्रॉसेस करने से–
- खाना पहले की अपेक्षा अधिक स्वादिष्ट हो जाता है।
- खाने का न्यूट्रिशन खराब नहीं होता है।
- पका हुआ खाना पचाने में आसानी होती है।
- यह फूड की वह प्रॉसेसिंग है, जो बेहद जरूरी है।
यह सारी प्रॉसेसिंग अच्छी और जरूरी है। समस्या तब शुरू होती है, जब खाना बनाने की कमान इंडस्ट्री के हाथ में जाती है।
इंडस्ट्री ने खराब किया हमारा खाना
जब हमारा खाना तैयार करने की जिम्मेदारी फूड इंडस्ट्री के हाथ में आई तो यहीं से सारी गड़बड़ियां भी शुरू हो गईं। इसमें कंपनियों को बहुत बड़े पैमाने पर बेहद कम समय में ढेर सारा खाना तैयार करना होता है। इसके लिए उन्होंने बड़ी-बड़ी मशीनें तैयार की और उन्हें इंसानों की जगह काम पर लगा दिया। इस बीच उन्होंने मुनाफे के लिए दो बड़ी बातों को अपना मूल धर्म बनाया।
- खाना स्वादिष्ट होना चाहिए।
- खाना सस्ता होना चाहिए।
सस्ते और स्वादिष्ट खाने ने किया नुकसान
इंडस्ट्रियल फूड प्रोडक्शन ने सबसे अधिक नुकसान किया है। उन्होंने खाने को स्वादिष्ट बनाने के लिए उसमें बहुत सारा शुगर और सॉल्ट मिलाया। इंडस्ट्री ने खाने को सस्ता रखा ताकि इसके ज्यादा-से-ज्यादा खरीदार मिल सकें।
किसी चीज को कम कीमत में तैयार करना है तो फॉर्मूला आसान है, इसमें सस्ती-से-सस्ती चीजें मिला दी जाएं। उन्होंने इसे बनाने में बेहद सस्ते पाम ऑइल, मैदा और मिठास इस्तेमाल की। इसके बाद इनकी शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए सस्ते प्रिजर्वेटिव्स मिलाए गए। इस दौरान ये बहुत सारे प्रॉसेस से गुजरा। इसलिए इसे अल्ट्रा प्रॉसेसिंग कहते हैं।
जंक फूड्स में हमारी पहली पसंद पिज्जा, बर्गर, और पैक्ड चिप्स सभी इसी अल्ट्रा प्रॉसेसिंग से गुजर रहे हैं। ये बेहद नुकसानदायक है।
हमें कैसा भोजन करना चाहिए
सीनियर न्यूट्रिशनिस्ट और ‘वनडाइटटुडे’ की फाउंडर डॉ. अनु अग्रवाल कहती हैं कि हमारा भोजन कैसा होना चाहिए? इस सवाल के जवाब स्थान और इंसान की जरूरत के हिसाब से अलग-अलग हो सकते हैं। इसके बावजूद एक आदर्श थाली हर जगह एक जैसी होगी। स्थानीयता के अनुसार सब्जियां और फल बदले जा सकते हैं, फिर भी उनकी मात्रा कैलोरी और पोषक तत्वों के आधार पर एक जैसी होती है।