क्या मनरेगा में महिलाओं की भागीदारी में कमी आ रही है?
क्या मनरेगा में महिलाओं की भागीदारी में कमी आ रही है?
मनरेगा में महिलाओं की भागीदारी सभी राज्यों में अलग-अलग है. कुछ राज्यों में महिलाओं की भागीदारी अधिक है, जबकि कुछ राज्यों में कम है.
मनरेगा भारत सरकार की एक प्रमुख रोजगार गांरटी योजना है. मनरेगा के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीणों को हर साल कम से कम 100 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराया जाता है. यह एक कानूनी अधिकार है जिसका मतलब है कि कोई भी ग्रामीण परिवार मनरेगा के तहत काम मांग सकता है और उसे काम दिया जाना चाहिए.
मनरेगा एक मांग-आधारित मजदूरी रोजगार योजना है. हालांकि, इसका एक उद्देश्य महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करना भी है. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के अनुसूची-II के पैरा 15 के अनुसार, कम से कम एक-तिहाई लाभार्थी महिलाएं होनी चाहिए. इसका मतलब है कि कम से कम 33% लाभार्थी महिलाएं होनी चाहिए जिन्होंने मनरेगा के तहत रजिस्ट्रेशन कराया है और काम का अनुरोध किया है.
इसके अलावा, क्योंकि गांव के 5 किमी के दायरे में रोजगार प्रदान किया जाता है, इसलिए महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने की इसमें अपार क्षमता है. तो क्या असल में महिलाओं की 33% भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है?
कितनी है महिलाओं की भागीदारी
केंद्र सरकार का ग्रामीण विकास मंत्रालय मनरेगा योजना का नियमित रूप से निगरानी और समीक्षा करता है. हाल ही में ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से राज्यसभा में पेश किए गए आंकड़ों से पता चला है कि मनरेगा में महिलाओं की भागीदारी कई राज्यों में बढ़ रही है.
वित्तीय वर्ष 2020-21 में महिलाओं की औसत भागीदारी 53.19% थी. 2023-24 में ये आंकड़ा बढ़कर 58.89% हो गया.
सबसे ज्यादा महिलाओं की भागीदारी वाले राज्य
केरल ने पिछले पांच सालों में महिलाओं की करीब 89 फीसदी की भागीदारी दर बनाए रखी है. यह बताता है कि केरल में महिलाओं को ग्रामीण रोजगार योजनाओं में शामिल होने के लिए अच्छा समर्थन मिला है. इसके अलावा तमिलनाडु और पुडुचेरी ऐसे राज्य हैं जहां बीते पांच सालों में लगातार 85 फीसदी से ज्यादा महिलाओं की भागीदारी देखी गई है.
गोवा चौथा ऐसा राज्य है जहां वित्तीय वर्ष 2023-24 में महिलाओं की भागीदारी सबसे ज्यादा रही. हालांकि गोवा में महिलाओं की भागीदारी वित्तीय वर्ष 2021-22 में 78.40 फीसदी से घटकर 2023-24 में 72.09 फीसदी रह गई. मिजोरम में भी महिलाओं की भागीदारी में ऐसे ही उतार-चढ़ाव देखा गया. यहां 2020-21 में 56.82 फीसदी से घटकर 2023-24 में 48.89 फीसदी रह गई है.
कुल 20 राज्यों में मनरेगा में काम करने वाली महिलाओं की संख्या 50 फीसदी से ज्यादा है.
असम और हरियाणा में बढ़ी भागीदारी
असम और हरियाणा जैसे राज्यों ने पिछले पांच सालों में महिलाओं की भागीदारी में स्पष्ट रूप से बढ़ती हुई दिखी है. असम में महिलाओं की भागीदारी 2019-20 में 41.77 फीसदी से बढ़कर 2023-24 में 50.59 फीसदी हो गई. वहीं हरियाणा ने 2019-20 में 50.59 फीसदी से बढ़कर 2023-24 में 61.05 फीसदी की वृद्धि देखी. ये रुझान इन राज्यों में महिलाओं की भागीदारी के लिए बेहतर परिस्थितियों का संकेत देते हैं.
महिलाओं की सबसे कम भागीदारी कहां
जम्मू और कश्मीर एक मात्र राज्य है जहां महिलाओं की भागीदारी 33 फीसदी से भी कम है. सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, 2023-24 में जम्मू और कश्मीर में 32.16% रही. 2021-22 में केवल मामूली सी बढ़ोतरी देखी गई थी. बाकी साल संख्या 33% से कम ही रही.
इसके अलावा, 2023-24 में लक्षद्वीप (40%), उत्तर प्रदेश (42.26%), महाराष्ट्र (43.94%), मध्य प्रदेश (43.32%), नगालैंड (44.77%) में भी महिलाओं की भागीदारी सबसे कम देखी गई. इन राज्यों में महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा मनरेगा में काम करने के लिए सरकार को और ज्यादा कोशिश करनी होगी.
केंद्र शासित प्रदेशों में उतार-चढ़ाव
अरुणाचल प्रदेश, असम और मेघालय जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है. हालांकि, इन राज्यों में भागीदारी दर अभी भी दक्षिणी राज्यों की तुलना में कम है. वहीं केंद्र शासित प्रदेशों (UTs) में मनरेगा में महिलाओं की भागीदारी में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है. कुछ जगहों पर मनरेगा में महिलाओं की भागीदारी ज्यादा है, तो कुछ जगहों पर बहुत कम है या अचानक से ज्यादा हो गई है.
जैसे पुदुचेरी में लगातार 86 फीसदी से ज्यादा भागीदारी देखी गई है, जबकि लक्षद्वीप में नाटकीय बदलाव देखने को मिले हैं. लक्षद्वीप में भागीदारी 2021-22 में 0 फीसदी से बढ़कर 2023-24 में 40 फीसदी पहुंच गई. दादरा और नगर हवेली एवं दमन और दीव में पिछले सालों में महिलाओं की भागीदारी 0 थी. 2023-24 में अचानक 49.03 फीसदी भागीदारी हो गई.
मनरेगा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने के कारण
मनरेगा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने के कई कारण हैं जिनमें से एक अहम कारण मनरेगा के तहत मिलने वाली मजदूरी और बाहर मिलने वाली मजदूरी के बीच का अंतर है. कई राज्यों में आमतौर पर पुरुषों की तुलना में महिलाओं को बहुत कम मजदूरी मिलती है. इस कारण पुरुष मनरेगा के तहत काम करने में कम दिलचस्पी दिखाते हैं, जिससे महिलाओं की भागीदारी बढ़ जाती है.
अच्छी बात यह है कि मनरेगा के तहत पुरुषों और महिलाओं को समान मजदूरी देने का प्रावधान है. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार होता है. कई राज्यों ने मनरेगा के तहत महिला श्रमिकों के लिए कल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं. जैसे केरल ने एक विशेष कल्याण कोष बनाया है. इसके तहत हर महिला को बीमा की सुविधा दी जाती है. घायल होने पर उनका मुफ्त इलाज होता है और 60 साल से ज्यादा उम्र की महिला श्रमिकों को वित्तीय सहायता भी दी जाती है.
ऐसे ही उत्तर प्रदेश में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए गांव में महिला मेट नियुक्त की जाती हैं. महिला मेट का काम महिलाओं को मनरेगा के बारे में जानकारी देना और उन्हें मनरेगा में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना होता है. इसके अलावा बिहार में राज्य सरकार ने प्रशासन को स्पष्ट संदेश दिया है कि अधिकारियों के प्रदर्शन का मूल्यांकन मनरेगा में महिलाओं की भागीदारी के आधार पर किया जाएगा.
कुछ राज्यों में महिलाओं की भागीदारी कम होने के कारण
उत्तरी राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में मनरेगा में महिलाओं की भागीदारी दर 40% के आसपास या इससे भी कम रही है. इसका कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, घरेलू काम या कुछ अन्य वजह भी हो सकती है. महिलाओं के पास अक्सर घर के काम जैसे बच्चों की देखभाल, बुजुर्गों की देखभाल और घर के काम करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां होती हैं. इन जिम्मेदारियों के कारण उनके पास अन्य काम के लिए पर्याप्त समय नहीं बचता है. वहीं ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) 2023 के अनुसार, 15-24 साल की 58% भारतीय महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं, जो मनरेगा के तहत मजदूरी वाले काम करने से रोकता है.
हालांकि मनरेगा में दक्षिणी राज्यों की महिला मजदूरों की संख्या में इजाफा होना एक अच्छा संकेत है. यह दर्शाता है कि दक्षिणी राज्यों में ग्रामीण महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है और उन्हें रोजगार के ज्यादा अवसर मिल रहे हैं.