कभी नेहरू ने की थी लेटरल भर्ती की शुरुआत ?
कभी नेहरू ने की थी लेटरल भर्ती की शुरुआत, आज आरक्षण के नाम पर कांग्रेस लगा रही अड़ंगा
संघ लोक सेवा आयोग यानी की यूपीएससी ने लेटरल एंट्री के जरिए मंत्रालयों में वरिष्ठ अधिकारियों के 45 पद के लिए अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर एक नोटिस जारी किया था. इस भर्ती की प्रक्रिया के नोटिस सामने आने के बाद इसको लेकर विपक्ष की ओर से विरोध किया जा रहा था. विपक्ष की ओर से ये कहा गया कि इसके जरिये सरकार एससी-एसटी और ओबीसी का हक छीन रही है. सरकार की ओर से अपने तर्क दिए गए. विरोध के बीच में पीएम मोदी के निर्देश पर केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी को पत्र लिखकर लिखा, जिसके बाद इसको रद्द कर दिया गया.
लेटरल है भर्ती की सीधी प्रक्रिया
लेटरल एंट्री एक तरह का सीधे तौर पर भर्ती की प्रक्रिया हैं, जिसमें सीधी बहाली की जाती है. इसी के जरिए कभी पहले भारत के राष्ट्रपति के पद तक जाने वाले आर नारायण रह भी आए थे. पहले वो लंदन के स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से हेरोल्ड लास्की के छात्र थे. जब वो वहां से लौटे थे तो उस समय के पीएम रहे जवाहर लाल नेहरू ने उनको लेटरल एंट्री दी थी. आरक्षण की बात की बात सामने आ रही है तो ये तो उसको एंपावर किया जाता है, लेकिन लेटरल एंट्री में तो सीधे ज्वाइंट सेक्रेटरी लेवल पर मिनिमम एंट्री की प्रक्रिया है. ये एक तरह से डायरेक्टर रैंक के ऊपर की प्रक्रिया है. इसमें जो फिडर कैंडिडेट होते हैं, वो पहले से ही क्लास वन के हैं.
अगर कोई क्लास वन से क्लास वन के सीनियर अधिकारी बनते हैं तो फिर इसमें आरक्षण की बात कहां से आ गई? ये मात्र एक वोट की पालिटिक्स हैं. ऐसे में मात्र जनता को गुमराह करने का काम किया जाता है. के. आर नारायण की एंट्री इसी प्रकार से हुई थी. वो भी एक शेड्यूल कास्ट से आते थे. लेटरल एंट्री में तो कहीं भी आरक्षण का प्रावधान नहीं है. ये जो पोस्ट है वो क्लास वन से भी ऊपर की पोस्ट है, आरक्षण का प्रावधान तो ग्रुप ए और बी आदि के लिए किया गया है. इसमें आरक्षण को नाम का मात्र शोर मचाया गया है, और सरकार को लगा कि उनको नुकसान हो जाएगा, ऐसे में उसको रद्द कर दिया है.
कहां से हुई यूपीएससी में लेटरल एंट्री की शुरूआत
देश में जो पावरफुल होता है, उनके पास दो से चार लोगों को लेटरल एंट्री देने का पावर होता था. प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास ये पावर है. सबसे पहले के आर नारायण को इसके जरिए बनाया गया. वो कांग्रेस के कार्यकाल में ही हुआ था. उस समय तत्कालीन पीएम नेहरू थे. के आर नारायण वैद्य की परिवार से आते थे, उन्होंने लंदन में जाकर पढ़ाई की थी. बाद में जो भारत के राष्ट्रपति तक बने. लंदन के लास्की ने एक पत्र लिखा था, जिसमें ये कहा था कि भारत जैसे देश में एक गरीब छात्र का भविष्य क्या होगा. इसको लेकर वो चिंतित है. इसलिए नेहरू पत्र की मान रखकर और उनकी योग्यता देखकर लेटरल एंट्री दिया. उसके बाद वो इंडियन फोरेन सर्विस में आए.
इसके बाद भी सभी सरकारों ने अपने हिसाब से उसको जारी रखा. बीजेपी में प्रशासन में बेनिफिट के लिए इसकी शुरुआत की थी. और बाकायदा इसका फायदा मिलता भी है, क्योंकि ये क्लास वन के लिए नहीं बल्कि उसके ऊपर का ये पोस्ट है. सुप्रीम कोर्ट का भी जो गाइडलाइन है वो ये पहले से तय किया गया है कि एमपावर करते समय जब आरक्षण को जगह दी गई तो फिर आरक्षण की जरूरत कहां से आ जाती है. और क्लास वन में एंट्री के समय तो आरक्षण दिया जाता रहा है. ऐसे में प्रधानमंत्री ने सच्चाई की बात को जनता के सामने नहीं रखा, बल्कि उनको वोट का डर लगा और उसको वापस कर लिया है. जो देश और समाज के लिए अच्छी बात नहीं है. ये साफ है कि इसकी शुरुआत कांग्रेस ने किया था.
क्या है लेटरल का फायदा
अगर कोई शिक्षा मंत्रालय में संयुक्त सचिव का पद है वो डायरेक्टर के ऊपर माना जाता है. अगर कोई अंतर्गत रिनाट प्रोफेसर है, और वो आउटस्टैंडिंग फील्ड में रहा है तो उसको सिविल सर्विसेज का बेनिफिट मिलने से क्यों रोका जाए. किसी बड़े यूनिवर्सिटी के लोग हैं तो उनके लिए ये रास्ता क्यों बंद हो. अगर बच्चे में योग्यता है और वो परीक्षा किसी वजह से क्रैक नहीं कर पाया तो उसको लिया जाना चाहिए. उसी प्रकार से साइंस और टेक्नोलॉजी में क्षेत्र में जो रिनायट साइंटिस्ट है, उनको भी लेटरेल की मदद से जगह मिलनी चाहिए. इससे उस क्षेत्र के लोगों के आने से स्थिति काफी सुधरती है. अभी तक तो लेटरेल में कोई खामियां नहीं सामने आई हैं.
लेकिन ये भी हो सकता है कि शायद अपने लोगों को सिविल सर्विसेज में लाकर प्रमोट करने की बात सामने आ जाए. लेकिन अभी तक ऐसा मामला तो सुनने में नहीं आया है, लेकिन गहनता से जांच करने पर शायद ऐसे मामले सामने आ सकते हैं. कई पार्टियों का ये कहना है कि भाजपा इसके जरिये आरएसएस के लोगों को लाने की साजिश है. देखा जाए तो कांग्रेस के समय में नेहरू और गांधी के विचारधारा के लोगों को जगह दी गई थी, जो सरकारें रहती हैं, वो इस प्रकार के कार्य करती हैं, लेकिन इससे सामान्य प्रशासन पर कोई दिक्कत ना आए , इसका भी ध्यान दिया जाना चाहिए.
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