दुनियाभर में फेस रिकग्निशन टेक्नोलॉजी का प्रसार ?

दुनियाभर में फेस रिकग्निशन टेक्नोलॉजी का प्रसार: भारत क्या सीख सकता है?

पहले कंप्यूटरों में लोगों को ही बताना पड़ता था कि क्या करना है. लेकिन अब कंप्यूटर खुद समझ सकते हैं कि उन्हें क्या करना है. ये समझने के लिए कंप्यूटरों को बहुत सारा डेटा दिया जाता है.

फेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी (FRT) की आजकल काफी चर्चा है. हाल के समय में फेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल भी दुनियाभर में तेजी से बढ़ा है. सरकारें FRT का उपयोग लोगों की पहचान करने के लिए करती हैं. जब लोग कुछ सरकारी सेवाएं लेते हैं तो उनसे उनकी पहचान के लिए बायोमेट्रिक डेटा लिया जाता है.

दुनियाभर में एयरपोर्ट और अन्य स्थानों पर FRT का इस्तेमाल किया जा रहा है, ताकि लोगों की असली पहचान की जा सके और सुरक्षा का भी ध्यान रखा जा सके. नई तकनीक के कारण अब FRT मास्क पहने हुए चेहरों की भी पहचान कर सकता है. सरकारी सेवाएं उपलब्ध कराने वाली कुछ संस्थाएं FRT का उपयोग CCTV कैमरों के साथ कर रही हैं. वहीं सोशल मीडिया कंपनियां लोगों की तस्वीरों का इस्तेमाल अपने FRT सिस्टम को ट्रेन करने के लिए करती हैं. 

पंजाब, गुजरात और तमिलनाडु में पुलिस FRT का इस्तेमाल अपराधियों की पहचान करने और अपराधों को रोकने के लिए कर रही है. आंध्र प्रदेश के शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों का एडमिशन प्रोसेस आसान बनाने के लिए कर रहे हैं. मुंबई में स्थानीय सरकार कर्मचारियों की उपस्थिति रिकॉर्ड करने के लिए कर रही है. ये कुछ उदाहरण हैं, FRT का इस्तेमाल भारत में और भी कई जगहों पर किया जा रहा है.

चीन, अमेरिका, रूस जैसे देश इस मामले में भारत से भी बहुत आगे हैं और नियम-कानून भी अलग हैं. आइए समझते हैं भारत उनसे क्या सीख सकता है. नीति आयोग की एक ताजा रिपोर्ट में भारत और दुनियाभर में एफआरटी के प्रसार की पूरी जानकारी दी गई है.

पहले समझिए क्या होता है FRT
FRT का मतलब है Facial Recognition Technology यानी चेहरे की पहचान तकनीक. यह तकनीक कंप्यूटर के माध्यम से लोगों के चेहरों की पहचान कर सकती है. यह तकनीक वीडियो या फोटो के आधार पर लोगों की पहचान करती है. यह अन्य तरीकों से अलग है क्योंकि लोगों के चेहरों की तस्वीरें दूर से ही ली जा सकती हैं और कंप्यूटर के माध्यम से प्रोसेस की जा सकती हैं.

हाल ही में नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने ट्रैवल एक्सपीरियंस को बेहतर बनाने के लिए ‘डिजि यात्रा’ प्रोग्राम की शुरुआत की है. इसमें FRT और चेहरे की पहचान तकनीक (FVT) का इस्तेमाल कर एयरपोर्ट पर चेक-इन प्रोसेस को आसान बनाया जाएगा.

FRT तकनीक कैसे काम करती है?
FRT सबसे पहले वीडियो या फोटो में चेहरा ढूंढती है. फिर चेहरे की विशेषताएं निकालती है, जैसे आंखों की दूरी, नाक का आकार आदि. फिर FRT इन विशेषताओं की तुलना पहले से संग्रहीत चेहरों के डेटाबेस से करती है और चेहरे की पहचान करती है.

FRT को काम करने के लिए बहुत सारे चेहरों के डेटा की जरूरत होती है. इस डेटा का इस्तेमाल FRT को प्रशिक्षित करने के लिए किया जाता है, ताकि वह चेहरों को सही तरीके से पहचान सके.

फेस रिकग्निशन टेक्नोलॉजी (FRT) के दो प्रकार
1:1 FRT सिस्टम: इस प्रकार के FRT का इस्तेमाल एक व्यक्ति के चेहरे की तस्वीर की तुलना एक ही चेहरे की दूसरी तस्वीर से करने के लिए किया जाता है. उदाहरण के लिए, आपका फोन आपके चेहरे की पहचान करके अनलॉक हो सकता है.
1:N FRT सिस्टम: इस तरह के FRT का इस्तेमाल एक व्यक्ति के चेहरे की तुलना बहुत सारे चेहरों के डेटाबेस से करने के लिए किया जाता है. उदाहरण के लिए, पुलिस इस प्रकार के FRT का उपयोग अपराधियों की पहचान करने के लिए कर सकती है.

भारत में FRT प्रोजेक्ट

प्रोजेक्ट मकसद
नेशनल ऑटोमेटिड फेशियल रिकग्निशन सिस्टम (AFRS) अपराध की रोकथाम और पता लगाना
फेस मेचिंग टेक्नोलॉजी  शैक्षिक रिकॉर्ड की डिजिटल सुरक्षा
डिग्री ऑनलाइन सर्विस तेलंगाना शैक्षिक पहचान प्रमाणीकरण
PAIS अपराधियों की वास्तविक समय पर पहचान
चेन्नई और मदुरई में फेसटैगर मोबाइल एप्लिकेशन से संदिग्ध अपराधी की पहचान
इंडियन प्रोटोकॉल सर्विलेंस सिस्टम रेलवे स्टेशन पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए निगरानी
फेस रिकग्निशन एप्लीकेशन चुनाव में मतदाता सूची के साथ लोगों की पहचान करना
एआई विजन अपराधी पहचानना और खोए हुए बच्चों का पता लगाना

दुनिया के किन देशों FRT का सबसे ज्यादा इस्तेमाल 
दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले सौ देशों में से केवल छह देशों में FRT का इस्तेमाल नहीं होने का कोई सबूत मिला है. यह संभवतः बजट या तकनीक की कमी के कारण हो सकता है, न कि तकनीक के प्रति विरोध के कारण. 

इसके अलावा, 100 में से सात सरकारों ने बड़े पैमाने पर FRT का विकास किया है. चीन में सबसे बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है. इसके बाद अमेरिका और यूरोप के देशों का नंबर आता है.

भारत में FRT से लोगों की गोपनीयता को खतरा?
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2017 में कहा था कि गोपनीयता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार है. इस अधिकार में शामिल है अपनी पसंद और जानकारी पर नियंत्रण रखने का अधिकार. इसका मतलब है कि लोग अपनी जानकारी खुद चुन सकते हैं और उस जानकारी का उपयोग कौन कर सकता है, यह भी तय कर सकते हैं.

जब FRT सिस्टम का उपयोग लोगों की सहमति के बिना या कानून के अनुसार नहीं किया जाता है, तो यह लोगों की जानकारी पर नियंत्रण रखने के अधिकार का उल्लंघन करता है. सरकारी कार्यक्रमों के लिए FRT सिस्टम का इस्तेमाल करने के लिए चेहरों के डेटाबेस की जरूरत होती है. यह डेटाबेस पहले से सरकार के पास हो सकता है, जैसे कि जब लोग आधार कार्ड या पासपोर्ट के लिए आवेदन करते हैं. 

अगर यह डेटा पहले से सरकार के पास है तो इसका इस्तेमाल किसी और काम के लिए किया जा सकता है, भले ही लोग इस बात से सहमत न हों. उदाहरण के लिए, अगर सरकार ने लोगों के चेहरों की तस्वीरें आधार कार्ड के लिए ली हैं, तो बाद में उन तस्वीरों का उपयोग FRT सिस्टम में किया जा सकता है भले ही लोगों को इसके बारे में पता न हो या वे इसके लिए सहमत न हों.

विदेशों में FRT के लिए क्या है नियम?
ज्यादातर देशों में FRT के लिए अभी भी कोई अलग कानून नहीं है. FRT के नियम ज्यादातर गोपनीयता कानूनों के तहत आते हैं. हालांकि, यूरोप में हाल ही में FRT के लिए अलग से कानून बनाया गया है. यह दुनिया में पहला ऐसा कानून है. यूरोपीय संघ ने नए नियम बनाने के बजाय पुराने नियमों को अपडेट किया है. इसका मतलब है कि यूरोपीय संघ ने पहले से मौजूद GDPR और डेटा प्रोटेक्शन डायरेक्टिव को अपडेट किया है, ताकि वे FRT के लिए भी लागू हों.

वहीं यूनाइटेड किंगडम में FRT का इस्तेमाल डेटा संरक्षण कानूनों के तहत आता है. मतलब कि यूनाइटेड किंगडम में FRT का उपयोग करने के लिए सरकार को कुछ नियमों का पालन करना होता है. इन नियमों में से एक है यूरोपीय संघ के मौलिक अधिकारों का चार्टर. इस चार्टर में कहा गया है कि लोगों की गोपनीयता का अधिकार है. यूनाइटेड किंगडम में FRT का उपयोग करने के लिए पहले सरकार को अदालत से अनुमति लेनी होती है.

विदेश में FRT प्रोजेक्ट

देश प्रोजेक्ट मकसद
अमेरिका ग्लोबल एंट्री प्रोग्राम इमिग्रेंट्स से कस्टम और बॉर्डर सुरक्षा
चीन ऑक्सीलियरी फेशियल रिकग्निशन सिस्टम चेक-इन एंड सिरक्योरिटी क्लियरेंस
चीन स्मार्ट पाथ फेशियल रिकग्निशन सिस्टम चेक-इन, बैगेज ड्रॉप, इमिग्रेशन, सिक्योरिटी, बोर्डिंग
चीन सोशल क्रेडिट सिस्टम लोगों की पहचान और बड़े पैमाने पर ट्रैकिंग
ब्राजील डिजिटल बोरडिंग सिस्टम 100% बोरडिंग प्रोसेस
जर्मनी IPOL-Z फोरेंसिक पहचान
फ्रांस TAJ फोरेंसिक पहचान
फिनलैंड KASTU फोरेंसिक पहचान
हॉन्गकॉन्ग iOmniscient सर्विलांस एंड लॉ एनफोर्समेंट
हंगरी Szitakötő सर्विलांस एंड लॉ एनफोर्समेंट

संयुक्त राज्य अमेरिका में FRT के नियम संघीय सरकार द्वारा बनाए जा सकते हैं, राज्य सरकार द्वारा बनाए जा सकते हैं या शहर सरकार द्वारा बनाए जा सकते हैं. यहां नियम अलग से नहीं बनाए गए हैं, बल्कि पहले से मौजूद कानूनों से लिए गए हैं. अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नियम हो सकते हैं. कुछ राज्यों में FRT पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, कुछ राज्यों में FRT के लिए समय सीमा निर्धारित की गई है.

ऑस्ट्रेलिया में FRT के नियम गोपनीयता कानून के तहत आते हैं. कनाडा में भी कोई अलग कानून नहीं है, बल्कि FRT के नियम गोपनीयता और डेटा संरक्षण कानूनों के तहत आते हैं. यहां दो मुख्य गोपनीयता कानून हैं: प्राइवेसी एक्ट और PIPEDA. 

भारत दूसरे देशों से क्या सीख सकता है?
कई देशों में फेशियल रिकग्निशन डेटा को बेहद सुरक्षित तरीके से संग्रहित करने के लिए सख्त नियम हैं. भारत में भी डेटा लीकेज और दुरुपयोग को रोकने के लिए इसी तरह के सख्त नियम बनाए जा सकते हैं. फेशियल रिकग्निशन सिस्टम का उपयोग करने से पहले व्यक्ति की स्पष्ट सहमति लेना अनिवार्य होना चाहिए. इसका इस्तेमाल केवल अधिकृत उद्देश्यों के लिए ही किया जाना चाहिए. 

FRT के नियमों में अक्सर तीन बातें शामिल होती हैं. पहला- इसका इस्तेमाल किस काम के लिए किया जा सकता है, इसके बारे में नियम. उदाहरण के लिए, कुछ कानूनों में कहा जा सकता है कि FRT का उपयोग केवल अपराधियों की पहचान करने के लिए किया जा सकता है.

दूसरा- FRT का उपयोग करने से पहले क्या-क्या करना होगा, इसके बारे में नियम. उदाहरण के लिए, कुछ कानूनों में कहा जा सकता है कि FRT का उपयोग करने से पहले सरकार को अदालत से अनुमति लेनी होगी. तीसरा- FRT का उपयोग करते समय क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए, इसके बारे में नियम. उदाहरण के लिए, कुछ कानूनों में कहा जा सकता है कि FRT का उपयोग करते समय सरकार को रिकॉर्ड रखना होगा और लोगों की गोपनीयता का ध्यान रखना होगा.

भारत को फेस रिकग्निशन टेक्नोलॉजी का फायदा उठाने के साथ-साथ इसके संभावित नुकसानों से भी सावधान रहना चाहिए. अन्य देशों के अनुभवों से सीखकर भारत इस तकनीक के लिए एक मजबूत और संतुलित कानूनी ढांचा तैयार कर सकता है.

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