भारत में ब्लू कॉलर श्रमिकों की गंभीर कमी क्यों?

 कम वेतन, विदेशों का रुख… भारत में ब्लू कॉलर श्रमिकों की गंभीर कमी क्यों?
भारत में आमतौर पर दो तरह की नौकरियां होती हैं, व्हाइट कॉलर और दूसरा ब्लू कॉलर. व्हाइट-कॉलर में दफ्तरों में काम करने वाले पेशेवर लोग आते हैं, जिन्हें बहुत ज्यादा शारीरिक मेहनत की जरूरत नहीं पड़ती.

भारत में कुशल मजदूरों की कमी अब एक गंभीर समस्या बन चुकी है. नोएडा के लेबर चौक से लेकर मुंबई की निर्माण परियोजनाओं तक, ठेकेदार और मालिक अब प्रशिक्षित श्रमिकों यानी स्किल्ड मजदूरों को तलाशने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं. हालांकि इन चौक-चौराहों पर हर सुबह कई मजदूर काम का इंतजार कर रहे होते हैं, लेकिन देश में अब अनुभवहीन श्रमिकों की भरमार हो गई है. 

भारत में वर्तमान में ब्लू कॉलर श्रमिकों की मांग इतनी बढ़ी हुई है कि उपलब्ध श्रमिकों की संख्या उस अनुपात में काफी कम है. खाद्य और ई-कॉमर्स उद्योगों से लेकर निर्माण और मरम्मत कार्यों तक, हर क्षेत्र में कुशल कामगारों की भारी कमी महसूस की जा रही है. वहीं असामान्य गर्मी और बारिश, इस समस्या को और बढ़ा रही हैं.

यहां तक की मजदूरों को स्किल्ड बनाने के लिए अब कंपनियां खुद कई अलग-अलग कार्यक्रमों की शुरुआत कर रहे हैं, लेकिन बावजूद इसके कुशल श्रमिकों को ढूंढना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. 

ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि आखिर इसके पीछे की वजहें क्या हैं और इस समस्या का समाधान कैसे किया जा सकता है? 

सबसे पहले समझिये ये ब्लू कॉलर श्रमिक होते कौन हैं ?

भारत में आमतौर पर दो तरह की नौकरियां होती हैं, पहला- व्हाइट कॉलर और दूसरा- ब्लू कॉलर. व्हाइट-कॉलर में दफ्तरों में काम करने वाले पेशेवर लोग आते हैं, जिन्हें बहुत ज्यादा शारीरिक मेहनत की जरूरत नहीं पड़ती.

नौकरियों का दूसरा प्रकार है ब्लू कॉलर. इसमें शारीरिक तौर पर ज्यादा मेहनत करने वाले लोग आते हैं, जिन्हें अपेक्षाकृत कम तनख्वाह मिलती है. जैसे कि वेल्डर, मैकेनिक, किसान, रसोइया, ड्राइवर आदि. ब्लू कॉलर नौकरी करने वालों को विशेष क्षेत्र में तकनीकी कौशल की आवश्यकता होती है, जैसे वेल्डिंग, पेंटिंग, या मशीन ऑपरेशन.

इन लोगों की आय और काम की शर्तें अलग अलग हो सकती हैं, और कई बार वे अस्थायी या साप्ताहिक आधार पर काम करते हैं. ब्लू कॉलर कामकाजी लोगों के लिए अक्सर औपचारिक शिक्षा की जरूरत नहीं होती, लेकिन विशेष प्रशिक्षण और अनुभव की जरूरत होती है. 

कम वेतन, विदेशों का रुख... भारत में ब्लू कॉलर श्रमिकों की गंभीर कमी क्यों?

भारत में बढ़ रही मांग लेकिन प्रशिक्षित श्रमिकों की कमी 

बिजनेस लाइन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का खाद्य और ई-कॉमर्स डिलीवरी उद्योग, हर साल लगभग 20 प्रतिशत तक बढ़ रहा है, इसके लिए हर महीने 5 लाख नीली कॉलर श्रमिकों की आवश्यकता है, लेकिन कंपनियां केवल 80 प्रतिशत ही श्रमिकों को भर पा रही हैं. यहां तक की लार्सन & टुब्रो जैसी बड़ी कंपनियां भी कुशल निर्माण श्रमिकों और वेल्डरों की कमी का सामना कर रही हैं. 

प्रशिक्षित श्रमिकों की कमी क्यों, 4 बड़े कारण 

शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण की कमी- कई स्थानों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम पर्याप्त रूप से प्रभावी नहीं होते या उनकी पहुंच सीमित होती है. परिणामस्वरूप, श्रमिकों को जरूरी कौशल  नहीं मिल पाता है. इसके अलावा कई बार स्कूल-कॉलेजों में व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा का पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता, जिससे युवाओं में जरूरी कौशल की कमी हो जाती है.

आर्थिक और सामाजिक कारक- ब्लू कॉलर कामकाजी क्षेत्र में काम की शर्तें और वेतन अक्सर असंतोषजनक होते हैं, जिससे युवा लोग इन कार्यों की ओर आकर्षित नहीं होते. वहीं अन्य क्षेत्रों में, जैसे IT और सेवाओं में, उच्च वेतन और बेहतर कार्य स्थितियां होने के कारण लोग ब्लू कॉलर श्रमिक के पेशे को कमतर समझते हैं.

मौसम और पर्यावरणीय प्रभाव- प्रशिक्षित श्रमिकों की कमी कारण एक कारण मौसम और पर्यावरणीय प्रभाव को भी माना जा सकता है. दरअसल असामान्य गर्मी, बारिश, और अन्य मौसम की समस्याएं प्रशिक्षण और कार्यस्थल पर असर डालती हैं, जिससे श्रमिकों की उपलब्धता कम हो जाती है. इसके अलावा बाढ़, सूखा, और अन्य आपदाएं भी श्रमिकों को उनके गृह क्षेत्रों में ही रुकने या काम न करने के लिए मजबूर कर सकती हैं.

आवागमन और प्रवास से जुड़ी समस्याएं- दूर दराज के इलाकों से काम की जगह तक पहुंचने में कठिनाइयां और लागत श्रमिकों को शहरों में काम करने से रोक सकती हैं. प्रवासी श्रमिकों के घर लौटने या स्थायी रूप से अपने गांवों में रहने के कारण उनके स्थान पर नए श्रमिकों की कमी हो जाती है.

विदेशों की तरफ कूच कर रहे हैं भारतीय श्रमिक 

भारत में प्रशिक्षित मजदूरों की कमी का एक कारण ये भी है कि संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कुवैत, कतर और ओमान जैसे देशों में बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी श्रमिक काम कर रहे हैं. हालांकि, वहां भी भारतीय श्रमिकों की बड़ी संख्या को उचित कौशल की कमी का सामना करना पड़ रहा है. 

हंटर नामक ब्लू कॉलर श्रमिक मार्केटप्लेस की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान संयुक्त अरब अमीरात में लगभग 3.4 मिलियन भारतीय प्रवासी श्रमिक रह रहे हैं, इसके बाद दूसरे स्थान पर आता है सऊदी अरब का नाम, यहां पर लगभग 2.6 मिलियन, कुवैत में 1 मिलियन, कतर में 750,000, और ओमान में 700,000 भारतीय श्रमिक रहते हैं.  विदेश में ये श्रमिक निर्माण कार्य, फैक्ट्री का काम, वेयरहाउसिंग, और घरेलू मदद जैसे शारीरिक श्रम वाले काम कर रहे हैं. 

कम वेतन, विदेशों का रुख... भारत में ब्लू कॉलर श्रमिकों की गंभीर कमी क्यों?

भारत के कुशल श्रमिक विदेश क्यों जा रहे हैं

1. बेहतर वेतन और लाभ- विदेशों में आमतौर पर कुशल श्रमिकों को भारत की तुलना में ज्यादा वेतन मिलता है. इसके अलावा विदेशों में काम करने पर अतिरिक्त भत्ते और सुविधाएं मिलती हैं, जैसे आवास, स्वास्थ्य बीमा, और अन्य लाभ जो भारत में उपलब्ध नहीं होते.

2. बेहतर कार्य स्थितियां- कई विदेशों में कार्यस्थल की सुरक्षा और स्वास्थ्य मानक भारत की तुलना में बेहतर होते हैं, जिससे श्रमिकों को एक सुरक्षित और आरामदायक कार्य वातावरण मिलता है. विदेशों में वेतन का समय पर भुगतान और उचित कार्यकाल की पाबंदियों का पालन किया जाता है.

3. करियर विकास और अवसर- विदेशों में काम करने से श्रमिकों को नए कौशल सीखने और पेशेवर अनुभव प्राप्त करने का मौका मिलता है, जो उनके करियर में आगे बढ़ने के लिए मददगार होता है. कई विदेशों में बेहतर प्रमोशन और वेतन वृद्धि की संभावनाएं होती हैं, जो भारत की तुलना में अधिक आकर्षक हो सकती हैं.

4. जीवन की गुणवत्ता- विदेशों में जीवन की गुणवत्ता अक्सर उच्च होती है, जिसमें बेहतर स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, और सामाजिक सुरक्षा शामिल है. भारत में कई बार कुशल श्रमिकों को उनकी योग्यताओं के अनुसार काम नहीं मिलता या वेतन और काम की स्थिति संतोषजनक नहीं होती. इससे वे विदेश में बेहतर अवसर की तलाश में निकल जाते हैं. इसके अलावा भारत में कई बार काम की अस्थिरता और आर्थिक संकट की वजह से श्रमिक विदेश में स्थिर और सुरक्षित रोजगार की तलाश करते हैं.

पड़ोसी देश चीन के मुकाबले भारत में नही हैं प्रशिक्षित मजदूर

अभी कुछ समय पहले ही आबादी के मामले में चीन को पीछो छोड़कर भारत दुनिया का सबसे घनी आबादी वाला देश बन गया है. लेकिन चीन ने व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा में काफी निवेश किया है. चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के अनुसार, चीन में तकनीकी और व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम व्यापक और उद्योग की जरूरतों के अनुसार डिजाइन किए गए हैं. चीन के शिक्षा मंत्रालय ने यह भी उल्लेख किया है कि चीन में लगभग 50% श्रमिकों को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त है.

जबकि भारत में प्रशिक्षित श्रमिकों की कमी की पुष्टि राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) और केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय के आंकड़ों से होती है. NSDC की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले श्रमिकों की संख्या चीन की तुलना में कम है, भारत में कुल श्रमिकों में से केवल 10-15% को औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त है.

Low wages Turning to foreign countries Why is there a serious shortage of blue collar workers in India abpp कम वेतन, विदेशों का रुख... भारत में ब्लू कॉलर श्रमिकों की गंभीर कमी क्यों?
ब्लू कॉलर वर्कर की कमी के कारण कई सेक्टर पर पड़ रहा असर …

भारत में ब्लू-कॉलर नौकरियों की हकीकत

वर्क इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में ज्यादातर ब्लू-कॉलर यानी शारीरिक श्रम करने वाले श्रमिकों को हर महीने 20,000 रुपये या उससे कम वेतन का भुगतान किया जाता है, जिसके चलते कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा वित्तीय तनाव से जूझ रहा है. कम वेतन के कारण इस सेक्टर में काम कर रहे लोगों को आवास, स्वास्थ्य देखभाल तथा शिक्षा जैसी आवश्यक जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.

वहीं द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 57.63 प्रतिशत से ज्यादा ब्लू-कॉलर नौकरियां 20,000 रुपये या उससे कम वेतन सीमा के भीतर आती है. इसी रिपोर्ट के अनुसार लगभग 29.34 फीसदी ब्लू-कॉलर नौकरियां मध्यम आय वर्ग में आती हैं, जिनका वेतन 20,000-40,000 रुपये प्रति माह होता है.

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व्हाइट कॉलर जॉब तो समझते होंगे, लेकिन पिंक, ब्लू, ग्रीन और ग्रे कॉलर जॉब के बारे में कितना जानते हैं?
List of different collar workers: कभी न कभी आपने व्हाइट कॉलर जॉब का नाम तो जरूर सुना होगा, पर कभी सोचा है कि जॉब को रंग से जोड़कर क्यों देखा जा रहा है. जानिए, कौन सा रंग किस जॉब को बताता है और उसमें किस तरह का काम किया जाता है…
व्हाइट कॉलर जॉब तो समझते होंगे, लेकिन पिंक, ब्लू, ग्रीन और ग्रे कॉलर जॉब के बारे में कितना जानते हैं?

अलग-अलग जॉब सेक्‍टर के लिए अलग-अलग रंग तय किए गए हैं.Image Credit source: APKpure

कभी न कभी आपने व्हाइट कॉलर जॉब (White Collar Job) का नाम तो जरूर सुना होगा, पर कभी सोचा है कि जॉब (Job) को रंग से जोड़कर क्यों देखा जा रहा है. दरअसल, अलग-अलग जॉब सेक्टर के लिए कुछ रंग (Job SectorColor) तय किए गए हैं, जो बताते हैं कि वो किस तरह की जॉब है. जॉब सेक्टर्स को रंगों के आधार पर समझाया गया है कि ताकि कर्मचारी या मजदूरों को उनके काम के मुताबिक कैटेगरी बताई जा सके. सिर्फ भारत में ही नहीं, दुनियाभर के देशों में रंगों के आधार इनके बारे में जानकारी देने का चलन रहा है.

कौन सा रंग किस तरह की जॉब को बताता है और उसमें किस तरह का काम किया जाता है, 10 पॉइंट में जानिए इन सवालों के जवाब…

    1. पिंक कॉलर वर्कर: इसमें ऐसे कर्मचारी आते हैं जिन्हें काफी कम सैलरी मिलती है. यह लो-पेड सैलरी वाली जॉब होती है. इसमें औसत शिक्षा पाने लोगों को शामिल किया जाता है. जैसे- लाइब्रेरियन, रिसेप्सनिस्ट आदि.
    2. व्हाइट कॉलर वर्कर: येसबसे चर्चित कर्मचारी होते हैं, इसलिए ज्यादातर लोग व्हाइट कॉलर जॉब के बारे में जानते हैं. इसमें ऐसे सैलरी पाने वाले प्रोफेशनल्स शामिल होते हैं, जो ऑफिस में काम करते हैं और मैनेजमेंट का हिस्सा होते हैं.
  1. ओपन कॉलर वर्कर: महामारी के दौरान ओपन कॉलर वर्कर का टैग चर्चित हुआ है. इसमें ऐसे कर्मचारी आते हैं जो घर में इंटरनेट की मदद से काम करते हैं. देश में ऐसे कर्मचारियों की संख्या में इजाफा हुआ है. अब कई कंपनियां ऐसी जॉब ऑफर कर रही हैं, जिसे घर से ही किया जा सकता है. यानी वो पर्मानेंट वर्क फ्रॉम होम का कल्चर अपना रही हैं.
  2. ब्लैक कॉलर वर्कर: ये ऐसे कर्मचारी होते हैं जो माइनिंग यानी खनन या ऑयल इंडस्ट्री के लिए काम करते हैं. कई बार इसका इस्तेमाल ऐसे लोगों के लिए भी किया जाता है जो ब्लैक मार्केटिंग करने का काम करते हैं.
  3. ब्लू कॉलर वर्कर: वर्किंग क्लास कर्मचारियों को ब्लू कॉलर वर्कर कहा जाता है. इस सेक्टर में काम करने को ब्लू कॉलर जॉब कहते हैं. इसमें ऐसे श्रमिक शामिल होते हैं, जिन्हें घंटे के हिसाब से मेहनताना मिलता है. जैसे- घर बनाने वाले श्रमिक.
  4. गोल्ड कॉलर वर्कर: इन्हें सबसे ज्यादा क्वालिफाइड माना जाता है. इस सेक्टर में डॉक्टर, वकील, साइंटिस्ट जैसे प्रोफेशनल्स शामिल होते हैं. इन्हें सबसे ज्यादा स्किल्ड प्रोफेशनल्स कहा जाता है.
  5. ग्रे कॉलर वर्कर: ये ऐसे वर्कर होते हैं जो रिटायरमेंट के बाद भी काम करते हैं. इनमें ज्यादातर 65 साल से अधिक उम्र के प्रोफेशनल्स शामिल होते हैं. जैसे- हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स और आईटी प्रोफेशनल्स.
  6. ग्रीन कॉलर वर्कर: जैसा की नाम से स्पष्ट है कि ग्रीन कॉलर जॉब में ऐसे लोग शामिल होते हैं सोलर पैनल, ग्रीन पीस और दूसरे एनर्जी सोर्स से जुड़े काम करते हैं.
  7. स्कारलेट कॉलर वर्कर: पॉर्न इंडस्ट्री में काम करने वाले पुरुष और महिलाओं के लिए नाम तय किए गए हैं. इन्हें स्कारलेट कॉलर वर्कर कहते हैं.
  8. ऑरेंज कॉलर वर्कर:सही मायने में ये वर्कर नहीं, जेल में रहने वाले कैदी होते हैं, जिनसे मजदूरी या दूसरे काम कराए जाते हैं.

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