देश में सबसे ज्यादा एनकाउंटर UP में नहीं, यहां होते हैं… जानिए कब होती है इसकी मजिस्ट्रियल जांच
देश में सबसे ज्यादा एनकाउंटर UP में नहीं, यहां होते हैं… जानिए कब होती है इसकी मजिस्ट्रियल जांच
Police Encounter Death Cases in India: एनकाउंटर के मामलों में पुलिस पर सवाल उठते रहते हैं. ऐसे मामलों में पुलिस के खिलाफ शिकायतें दर्ज होती रही हैं. गृह मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 2017 से 2022 के बीच पिछले 5 सालों में देश में 655 एनकाउंटर हुए. जानिए देश के किस राज्य में सबसे ज्यादा एनकाउंटर से मौत के मामले सामने आए, फेक एनकाउंटर रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट को क्यों बनानी पड़ी गाइडलाइन?
एनकाउंटर के मामले में अक्सर सवाल उठता है कि क्या वो वाकई में एनकाउंटर था या फिर कुछ और. गृह मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 2017 से 2022 के बीच पिछले 5 सालों में देश में 655 एनकाउंटर हुए. सबसे ज्यादा 191 एनकाउंटर छत्तीसगढ़ में हुए. दूसरे पायदान पर है उत्तर प्रदेश. यहां पांच साल में 117 मामले सामने आए. ये वो मामले हैं जिनमें मौत हुई है. इसके बाद असम (50), झारखंड (49), ओडिशा (36) और जम्मू-कश्मीर (35) हैं.
बड़े राज्यों में देखें तो राजस्थान और मध्य प्रदेश ऐसी स्टेट हैं जहां एनकाउंटर में मौत के मामले बेहद कम हैं. राजस्थान में 8, मध्य प्रदेश में 13 और पंजाब में 6 मामले सामने सामने आए.
क्यों बनानी पड़ी गाइडलाइन?
एनकाउंटर के मामलों में पुलिस पर सवाल उठते रहते हैं. ऐसे मामलों में पुलिस के खिलाफ सैकड़ों शिकायतें दर्ज होती रही हैं. अकेले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने साल 2000 से लेकर 2017 के बीच फेक एनकाउंटर के 1782 मामले दर्ज किए गए. इसमें 784 मामले सिर्फ उत्तर प्रदेश से जुड़े थे. वहीं, 2015 से 2019 के आंकड़ों पर नजर डालें तो फेक एनकाउंटर के मामलों में आंध्र प्रदेश पहले पायदान पर पहुंच गया था. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और 2014 में 16 बिन्दुओं वाली गाइडलाइन बनाई गई.
सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइन पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले (2014) की सुनवाई के बाद बनाई. दरअसल, इस मामले में एक याचिका दाखिल करके मुंबई पुलिस द्वारा किए गए 99 एनकाउंटर की वास्तविकता पर सवाल उठाए गए थे.
एनकाउंटर में मौत होने पर मजिस्ट्रियल जांच क्यों जरूरी?
सुप्रीम कोर्ट की गाइडनलाइन में 16 पॉइंट्स के साथ मजिस्ट्रियल जांच को अनिवार्य किया गया. यह जांच उन मामलों में होती है जब एनकाउंटर में मौत होती है. इसका मकसद फेक एनकाउंटर पर रोक लगाना और ऐसे मामलों का सच सामने लाना था.
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन कहती है, अगर एनकाउंटर के किसी मामले में मौत होती है तो मजिस्ट्रियल जांच अनिवार्य है. सुप्रीम कोर्ट का कहना कि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि जांच निष्पक्ष और स्वतंत्र हो. निर्देशों के मुताबिक, मजिस्ट्रियल जांच की रिपोर्ट न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेजी जानी चाहिए. एफआईआर और पंचनामा में देरी नहीं होनी चाहिए.
क्या है एनकाउंटर पर सुप्रीम कोर्ट की 16 पॉइंट वाली गाइडलाइन?
- खुफिया जानकारी का रिकॉर्ड: जब भी पुलिस को किसी गंभीर अपराध या अपराधी से जुड़ी कोई खुफिया जानकारी या टिप मिलती है, तो उसे लिखित या इलेक्ट्रॉनिक रूप में रिकॉर्ड किया जाना चाहिए. ऐसी रिकॉर्डिंग में संदिग्ध व्यक्ति या पार्टी के जाने वाले स्थान का विवरण देना जरूरी नहीं है.
- एफआईआर दर्ज करें: अगर किसी सूचना के आधार पर पुलिस हथियारों का प्रयोग करती है और किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो उचित आपराधिक जांच शुरू करने के लिए एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए और बिना किसी देरी के अदालत को भेजी जानी चाहिए.
- स्वतंत्र जांच: ऐसी मौत की जांच एक स्वतंत्र CID टीम या किसी अन्य पुलिस स्टेशन की पुलिस टीम द्वारा वरिष्ठ अधिकारी की देखरेख में की जानी चाहिए. इसमें आठ न्यूनतम जांच की जरूरतों को पूरा करना होता है, जैसे पीड़ित की पहचान करना, साक्ष्य सामग्री को फिर हासिल करना, उसे संरक्षित करना और घटनास्थल के गवाहों की पहचान करना.
- मजिस्ट्रियल जांच: मुठभेड़ में हुई मौतों के सभी मामलों की अनिवार्य मजिस्ट्रियल जांच होनी चाहिए और इसकी रिपोर्ट न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेजी जानी चाहिए.
- NHRC को सूचित करें: नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन (एनएचआरसी) या राज्य मानवाधिकार आयोग को मुठभेड़ में हुई मौत के बारे में तुरंत सूचित किया जाना चाहिए.
- चिकित्सा सहायता: यह सहायता घायल पीड़ित/अपराधी को अवश्य दी जानी चाहिए. मजिस्ट्रेट या चिकित्सा अधिकारी को स्वास्थ्य प्रमाण-पत्र के साथ उसका बयान दर्ज करना चाहिए.
- इसमें देरी कतई नही: एफआईआर, पंचनामा, स्केच और पुलिस डायरी प्रविष्टियों को बिना किसी देरी के संबंधित न्यायालय को भेजना अनिवार्य है.
- रिपोर्ट न्यायालय को भेजें: घटना की पूरी जांच के बाद, शीघ्र सुनवाई तय करने के लिए न्यायालय को रिपोर्ट भेजी जानी चाहिए.
- परिजनों को सूचित करें: आरोपी अपराधी की मृत्यु के मामले में, उसके निकटतम परिजनों को जल्द से जल्द सूचित किया जाना चाहिए.
- रिपोर्ट पेश: सभी मुठभेड़ हत्याओं का दो साल का विवरण डीजीपी द्वारा निर्धारित प्रारूप में एक निश्चित तिथि तक NHRC को भेजा जाना चाहिए
- त्वरित कार्रवाई: गलत मुठभेड़ के लिए दोषी पाए गए पुलिस अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए और कुछ समय के लिए उस अधिकारी को निलंबित किया जाना चाहिए.
- मुआवजा: पीड़ित के आश्रितों को मुआवजा देने के लिए मुआवजा योजना को लागू किया जाना चाहिए.
- हथियार जमा करने होंगे: संबंधित पुलिस अधिकारी को संविधान के अनुच्छेद 20 के तहत उल्लिखित अधिकारों के अधीन, फोरेंसिक एनालिसिस के लिए अपने हथियार जमा कराने होंगे.
- कानूनी सहायता: घटना के बारे में सूचना आरोपी पुलिस अधिकारी के परिवार को भेजी जानी चाहिए. वकील/परामर्शदाता की सेवाएं प्रदान की जानी चाहिए.
- तत्काल पदोन्नति या पुरस्कार नहीं: मुठभेड़ में हुई हत्याओं में शामिल अधिकारियों को ऐसी घटनाओं के तुरंत बाद कोई बिना बारी की पदोन्नति या तत्काल वीरता पुरस्कार नहीं दिया जाएगा.
- शिकायत निवारण: यदि पीड़ित के परिवार को लगता है कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन नहीं किया गया है, तो वहर सत्र न्यायाधीश के समक्ष शिकायत कर सकता है. संबंधित सत्र न्यायाधीश को शिकायत पर गौर करना चाहिए और उसमें उठाई गई शिकायतों का समाधान करना चाहिए.