वर्जिनिटी टेस्ट अब नहीं होगा. ?

वर्जिनिटी टेस्ट अब नहीं होगा…पढ़िए राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के नए पाठ्यक्रम में क्या हुए बदलाव?

NMC Revises Medical Curriculum राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने पाठ्यक्रम में संशोधन करते हुए समलैंगिकता और सोडोमी को अप्राकृतिक अपराधों की श्रेणी से हटा दिया है। वर्जिनिटी हाइमन और डिफ्लोरेशन जैसे विषयों को भी पाठ्यक्रम से हटा दिया है। साथ ही वर्जिनिटी टेस्ट को अवैज्ञानिक और अमानवीय करार दिया है। छात्रों को इन बदलावों के साथ चिकित्सा नैतिकता प्रोफेशनल आचरण और कानूनी मामलों की जानकारी दी जाएगी।

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शीर्ष चिकित्सा निकाय ने पाठ्यक्रम में संशोधन किया...

नई दिल्‍ली। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग(NMC) ने गुरुवार को योग्यता आधारित चिकित्सा शिक्षा पाठ्यक्रम में संशोधन के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसके मुताबिक,  समलैंगिकता (lesbianism) और सोडोमी (sodomy) को अप्राकृतिक यौन अपराध (unnatural sexual offences) की श्रेणी से हटा दिया गया है।साथ ही वर्जिनिटी टेस्‍ट  को पूरी तरह अवैज्ञानिक और अमानवीय करार दिया है।

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की ओर से जारी संशोधित पाठ्यक्रम में स्पष्ट किया गया है कि वर्जिनिटी यानी कौमार्य के संकेतों के बारे में जिक्र करना या हाइमन है या नहीं, इसकी पुष्टि करने वाले सभी विषय वैज्ञानिक तौर पर आधारहीन हैं। ‘वर्जिनिटी टेस्ट’ (जिसमें टू-फिंगर-टेस्‍ट भी शामिल है) ने केवल अवैज्ञानिक है, बल्कि अमानवीय और भेदभावपूर्ण भी हैं।

इसमें यह भी कहा गया है कि मेडिकल स्टूडेंट्स को इन परीक्षणों की वैज्ञानिक आधारहीनता के बारे में अदालत को अवगत कराने का प्रशिक्षण दिया जाएगा ताकि अगर कभी ऐसे परीक्षणों का आदेश दिया जाता है।

पाठ्यक्रम से क्‍या-क्‍या हटाया?

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की ओर से जारी नए पाठ्यक्रम के मुताबिक, वर्जिनिटी, हाइमन, डिफ्लोरेशन के अलावा यौन विकृतियां (sexual perversions), फेटिशिज्म, ट्रांसवेस्टिज्म, वोयूरिज्म, सैडिज्म, नेक्रोफैगिया, मैसोचिज्म, एग्जीबिशनिज्म, फ्रोट्यूरिज्म और नेक्रोफिलिया को भी पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है।  फोरेंसिक मेडिसिन और टॉक्सिकोलॉजी के तहत संशोधित पाठ्यक्रम ने अब इन सभी विषयों को खत्म कर दिया है।

अब कानून भी पढ़ेंगे मेडिकल छात्र

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के मुताबिक, नए पाठ्यक्रम में पैराफीलिया और पैराफीलिक डिसऑर्डर के बीच के अंतर सिखाने का भी जिक्र किया गया है।

फोरेंसिक मेडिसिन और टॉक्सिकोलॉजी के तहत नए दिशानिर्देश में मेडिकल स्टूडेंट्स को कानूनी तौर पर दक्ष करने की बात की गई है। यानी छात्रों को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, भारतीय न्याय संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, नागरिक और आपराधिक मामले, पूछताछ (पुलिस और मजिस्ट्रेट), संज्ञेय और गैर-संज्ञेय अपराधों के बारे में भी पढ़ाया जाएगा।

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग का कहना है कि नए दिशा-निर्देशों के बाद छात्रों को चिकित्सकीय नैतिकता, प्रोफेशनल आचरण और चिकित्सकीय लापरवाही के कानूनी ढांचे को समझने के साथ-साथ विभिन्न चिकित्सा-संवैधानिक मामलों की जांच और दस्तावेज़ीकरण करने का कौशल हासिल होगा।

आयोग की हुई थी आलोचना

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने 5 सितंबर को उन दिशा-निर्देशों को वापस ले लिया था, जिसमें साल 2022 में सोडोमी और समलैंगिकता को अप्राकृतिक यौन अपराध के रूप में बताने के लिए जमकर आलोचना हुई थी।

31 अगस्त को जारी  दिशा-निर्देशों में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने हाइमन (योनि झिल्ली), इसके प्रकार और इसके चिकित्सा संवैधानिक महत्व को भी पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया था। ये टॉपिक पहले 2022 में मद्रास उच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार पाठ्यक्रम से हटा दिए गए थे।

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