अजनबियों की मदद से ही आप असली हीरो बनते हैं ?

अजनबियों की मदद से ही आप असली हीरो बनते हैं

कार्नेगी हीरो फंड वर्ष 1904 से अब तक 9500 से ज्यादा लोगों को पुरस्कृत कर चुका है। यह पुरस्कार पाने वाले हर विजेता ने दूसरों की जान बचाने की कोशिश में असाधारण रूप से अपनी जान जोखिम में डाली। ज्यादातर मामलों में, जिन लोगों की जान बचाई गई, वे पूरी तरह अजनबी थे। मुझे यह पुरस्कार तब याद आया जब मैंने 24 वर्षीय आदिवासी महिला मंतोशी गजेंद्र चौधरी की कहानी सुनी।

महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित और आदिवासी बहुल जिले गढ़चिरौली के भामरागड तालुका के अरेवाड़ा गांव में इस रविवार 8 सितंबर को मंतोशी को प्रसव पीड़ा शुरू हुई। लेकिन भारी बारिश के चलते बाढ़ से उनके गांव समेत जिले के अधिकांश हिस्से का संपर्क टूट गया था और परिवहन व संचार मुश्किल हो गया था।

राज्य आपदा राहत बल के सहयोग से परिवार वाले और पड़ोसी उसे कमर तक भरे पानी में किसी तरह गांव के अस्पताल लेकर आए, जहां 9 सितंबर सोमवार को उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया। पर दुर्भाग्य से प्रसव के दौरान मंतोशी का ज्यादा खून बह गया, जिसके चलते उन्हें कम से एक थैली रक्त चढ़ाने की तत्काल जरूरत थी, ताकि प्रसव के बाद होश में लाया जा सके और स्वास्थ्य सुधार हो। लेकिन मामला उलझ गया क्योंकि मरीज का रक्त समूह दुर्लभ “बी-निगेटिव’ था और अधिकांश स्वास्थ्य केंद्रों में यह आसानी से उपलब्ध नहीं था।

उस युवा मां को बचाने की जीवटता ने स्थानीय डॉक्टर्स को भामरागड और उसके आसपास पूछताछ करने के लिए मजबूर किया और आखिरकार फोन गढ़चिरौली जिला अस्पताल पहुंचा, जहां पता चला कि पूरे जिले में दुर्लभ बी-निगेटिव रक्त की केवल एक थैली उपलब्ध थी। लेकिन स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों ने 150 किलोमीटर दूर से खून की उस एक थैली को पहुंचाने के भरसक प्रयास किए, जबकि वह ये जानते थे यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य होने जा रहा है क्योंकि वहां तक पहुंचने वाली अधिकांश सड़कें बंद हैं और बारिश अभी भी रुकने का नाम नहीं ले रही।

भामरागड तक की अधिकांश सड़कें बंद थीं, लेकिन स्वास्थ्य अधिकारी किसी भी कीमत पर खून को पहुंचाने की कोशिशें कर रहे थे। एक एंबुलेंस से उस बहुमूल्य रक्त को पहुंचाने की कोशिश हुई। लेकिन भाग्य को अभी और परीक्षा लेना बाकी था। अहेरी, जहां मंतोशी जिंदगी और मौत से लड़ रही थीं, वहां से महज 50 किलोमीटर पहले एंबुलेंस फंस गई।

उससे आगे की सड़क पूरी तरह बह गई थी और पर्लकोटा नदी तटबंध तोड़ते हुए पुल के ऊपर से बह रही थी। विकराल बाढ़ के चलते नाव से रक्त पहुंचाने का निर्णय भी टाल दिया गया। उस मां से ज्यादा अब उनके रिश्तेदार और स्वास्थ्य अधिकारी इस कार्य से इतना जुड़ गए थे कि किसी चमत्कार की प्रार्थना कर रहे थे। नसीब से बारिश थम गई और 11 सितंबर बुधवार को सुबह मौसम अचानक साफ हो गया, जिसके चलते अधिकारियों ने रक्त पहुंचाने का एक और प्रयास शुरू किया।

एक ओर अस्पताल का दृश्य और दूसरी ओर वह जगह, जहां से उस रक्त को पहुंचाने का निर्णय लिया जा रहा था, वो किसी फिल्म के क्लाइमेक्स की तरह लग रहे थे। खुशकिस्मती से उनके पास एक हेलीकॉप्टर था, जो उस समय उड़ान के लिए फिट था और उन्होंने इसे उस मानवीय कार्य में लगाने के लिए तैनात कर दिया।

अगले तीस मिनट में उस हेलीकॉप्टर ने खून की वो थैली वहां पैराड्रॉप कर दी दी और वापस अपने बेस कैंप आ गया। अस्पताल में चिकित्सकों ने सुकून से अपने काम को अंजाम दिया। इस तरह उस मां की हालत स्थिर हुई। 2.9 किलो वजन का उनका नवजात भी स्वस्थ है और अपने खुशहाल परिवार के साथ वह बच्चे की देखभाल करने की स्थिति में है।

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