लोकपाल …. कैसे करेगा भ्रष्टाचार का पर्दाफाश और दोषियों को दंडित
लोकपाल की इंक्वायरी विंग: कैसे करेगा भ्रष्टाचार का पर्दाफाश और दोषियों को दंडित
लोकपाल की इंक्वायरी विंग आम जनता से मिलने वाली शिकायतों की जांच करेगा. अगर शिकायत में कोई दम होता है, तो सरकार के किसी मंत्री या अधिकारी के खिलाफ मुकदमा भी दायर किया जा सकता है.
लोकपाल एक ऐसी स्वतंत्र संस्था है जिसे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में एक अहम हथियार माना जाता है. लोकपाल कानून पारित होने के एक दशक से अधिक समय बाद अब लोकपाल ने एक इंक्वायरी विंग का गठन किया है. यह विंग सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार के मामलों की प्रारंभिक जांच करेगा.
लोकपाल का इंक्वायरी विंग लोकपाल और लोकआयुक्त अधिनियम 2013 के तहत स्थापित किया गया है. इस विंग का काम भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत दंडनीय अपराधों की प्रारंभिक जांच करना है. ये अपराध सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों द्वारा किए जाते हैं.
संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव ने कहा है कि भ्रष्टाचार एक बहुत बड़ी समस्या है जो सभी देशों को प्रभावित करती है. इससे देश का विकास रुकता है, गरीबी बढ़ती है और लोगों के जीवन को नुकसान पहुंचाता है.
क्या है लोकपाल की पॉवर
लोकपाल के पास कुछ खास लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने का अधिकार हैं. इन लोगों में प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, सांसद, केंद्र सरकार के ग्रुप ए, बी, सी और डी के अधिकारी, किसी भी बोर्ड, निगम, समाज, ट्रस्ट या संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित स्वायत्त निकाय के अध्यक्ष, सदस्य, अधिकारी, निदेशक, गैर सरकारी संगठनों के अधिकारी आदि शामिल हैं. लेकिन सांसदों के संसद में भाषण और मतदान को लोकपाल के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा गया है.
लोकपाल इंक्वायरी विंग को किसी भी भ्रष्टाचार के मामले की जांच करने का आदेश दे सकता है. अगर जांच में पता चलता है कि किसी सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार किया है तो लोकपाल उस व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है. यह कार्रवाई अनुशासनात्मक हो सकती है या अदालत में मुकदमा दायर किया जा सकता है. लोकपाल को किसी भी जांच या मुकदमा शुरू करने के लिए किसी से अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.
लोकपाल में कितने होते हैं सदस्य
लोकपाल का संगठन अभी तैयार किया जा रहा है. लोकपाल में एक अध्यक्ष और अधिकतम आठ सदस्य होते हैं. अध्यक्ष और कम से कम आधे सदस्य वर्तमान या पूर्व में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश या हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश होने चाहिए. अन्य सदस्यों को भ्रष्टाचार विरोधी नीति, लोक प्रशासन, वित्त, कानून और प्रबंधन से संबंधित मामलों में कम से कम 25 साल का अनुभव होना चाहिए.
चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, संसद के हर सदन में विपक्ष के नेता, एक केंद्रीय मंत्री, सुप्रीम कोर्ट के सिटिंग न्यायाधीश, हाईकोर्ट के सिटिंग न्यायाधीश शामिल होते हैं. इस समिति के दो न्यायाधीशों को भारत के मुख्य न्यायाधीश की ओर से नामित किया जाता है. लोकपाल के अध्यक्ष का वेतन और भत्ता भारत के मुख्य न्यायाधीश के बराबर है. जबकि सदस्यों को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के समान लाभ मिलता है.
लोकपाल को राष्ट्रपति ही हटा सकते हैं. इसके लिए तीन तरीके हैं: राष्ट्रपति खुद चाहें तो हटा सकते हैं. अगर संसद के 100 सदस्य हटाने की मांग करें तो राष्ट्रपति हटा सकते हैं. अगर कोई नागरिक शिकायत करे और राष्ट्रपति मान लें कि शिकायत सही है तो राष्ट्रपति हटा सकते हैं. अगर सर्वोच्च न्यायालय जांच करके पाए कि लोकपाल के अध्यक्ष या सदस्य ने गलत काम किया है तो राष्ट्रपति उन्हें हटा सकते हैं.
लोकपाल का इंक्वायरी विंग कैसे करेगा काम
इस विंग में एक डायरेक्टर ऑफ इंक्वायरी होंगे. डायरेक्टर की मदद तीन पुलिस अधीक्षक करेंगे. इनमें से एक पुलिस अधीक्षक सामान्य मामलों का काम देखेगा, दूसरा आर्थिक व बैंकिंग मामलों का और तीसरा साइबर मामलों की जिम्मेदारी संभालेगा. इन पुलिस अधीक्षकों की मदद करने के लिए कुछ अन्य अधिकारी और कर्मचारी भी होंगे.
जब लोकपाल को किसी भ्रष्टाचार की शिकायत मिलती है तो वह अपनी जांच विंग को जांच करने का आदेश दे सकता है या मामले को सीबीआई या सीवीसी जैसी एजेंसियों को भेज सकता है. सीबीसी ग्रुप ए और बी के अधिकारियों के मामले में लोकपाल को रिपोर्ट भेजता है. ग्रुप सी और डी के अधिकारियों के मामले में सीबीसी खुद कार्रवाई करता है.
लोकपाल का काम एक ‘ओम्बुड्समैन’ की तरह होता है. यह सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करता है. ओम्बुड्समैन एक ऐसा अधिकारी होता है जो नागरिकों की शिकायतों की जांच करता है.
इंक्वायरी विंग को अपनी प्रारंभिक जांच 60 दिनों के भीतर पूरी करनी होगी और अपनी रिपोर्ट लोकपाल को देनी होगी. इस रिपोर्ट में शिकायतकर्ता और संबंधित सरकारी अधिकारी दोनों की प्रतिक्रिया शामिल होनी चाहिए. इंक्वायरी विंग सीवीसी, सीबीआई और राज्य स्तरीय लोकआयुक्त जैसी अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर काम करेगा.
लोकपाल के इंक्वायरी विंग की आवश्यकता क्यों?
केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) का कहना है कि भ्रष्टाचार के आरोपों की प्रारंभिक जांच करने के लिए लोकपाल के इंक्वायरी विंग जैसी स्वतंत्र संस्था का होना जरूरी है. लोकपाल का इंक्वायरी विंग भ्रष्टाचार के मामलों की निष्पक्ष जांच कर सकता है. यह इसलिए जरूरी है क्योंकि सीबीआई, सीआईडी, ईडी जैसी एजेंसियों पर राजनीतिक दबाव हो सकता है. लेकिन लोकपाल पर किसी तरह का राजनीतिक दबाव नहीं हो सकता.
यह विंग प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशों के अनुसार बनाया गया है. इस आयोग ने कहा था कि भ्रष्टाचार रोधी संस्थाओं को मजबूत बनाया जाना चाहिए. अलग-अलग जांच और अभियोजन एजेंसियों के बीच समन्वय बढ़ाया जाना चाहिए. इसके अलावा, ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल जैसे ग्लोबल करप्शन इंडेक्स ने भी कहा है कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए मजबूत और स्वतंत्र संस्थाओं की जरूरत है.
लोकपाल के खर्चे का बजट कैसे होता है तय?
लोकपाल को हर साल अपना बजट तैयार करना होता है. इस बजट में लोकपाल के अगले साल के लिए कितना पैसा आएगा और कितना खर्च होगा, यह दिखाया जाता है. फिर इस बजट को केंद्र सरकार को भेजा जाता है. केंद्र सरकार लोकपाल को पैसा देती है. यह पैसा लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों के वेतन और भत्ते के लिए होता है. इसके अलावा, लोकपाल के कर्मचारियों के वेतन और भत्ते के लिए भी पैसा दिया जाता है.
भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) इस लेखा-जोखे की जांच करते हैं. सीएजीको लोकपाल के सभी दस्तावेज और रिकॉर्ड देखने का अधिकार है. केंद्र सरकार को लोकपाल के लेखा-जोखे और उसके ऑडिट रिपोर्ट को संसद के दोनों सदनों में रखना होता है.
वहीं लोकपाल को हर साल अपने काम-काज की रिपोर्ट राष्ट्रपति को देनी होती है. इस रिपोर्ट में लोकपाल ने जो काम किया है, वह सब बताया जाता है. अगर राष्ट्रपति लोकपाल की कोई सलाह नहीं मानते हैं तो उन्हें इसके बारे में भी रिपोर्ट में बताना होता है. राष्ट्रपति को इस रिपोर्ट की एक प्रति संसद के दोनों सदनों में रखनी होती है.