क्या हर घटना में सिर्फ वोट बैंक देखते हैं राजनीतिक दल? 

क्या हर घटना में सिर्फ वोट बैंक देखते हैं राजनीतिक दल? 

बीते हफ्ते हिमाचल प्रदेश सरकार का एक फैसला सुर्खियों में रहा। दुकानदारों की पहचान से जुड़े इस फैसले पर विवाद जारी है। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में कुछ युवकों के बिहार का होने की वजह से मारपीट हुई। पहचान बताने को लेकर विवाद और पहचान की वजह से हुई मारपीट की इन घटनाओं पर क्या राजनीतिक दल अपने वोट बैंक के हिसाब से प्रतिक्रिया दे रहे हैं? इस ‘हफ्ते के खबरों’ के खिलाड़ी में इसी पर चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, समीर चौगांवकर, पूर्णिमा त्रिपाठी, अवधेश कुमार और राकेश शुक्ल मौजूद रहे।

…….हिमाचल का फैसला थोड़ा आश्चर्य चकित करने वाला है। एक तरफ मस्जिद वाले मामले में सरकार की किरकिरी हो रही थी। उन सबके बीच इस तरह का फैसला करने के पीछे क्या मंशा थी, यह देखना होगा। आलाकमान इसे एक बड़े स्तर पर देख रहा है। मुझे लगता है कि मूलत: यह वोट बैंक की राजनीति है। क्या वजहें रहीं, यह भी देखना होगा। क्या यह सिर्फ विक्रमादित्य सिंह की पहल थी? विक्रमादित्य सिंह क्या अपनी राजनीति चला रहे हैं? आलाकमान ने जो डांट लगाई, उसमें मूलत: वोट बैंक की राजनीति ही थी। इसी तरह पश्चिम बंगाल की घटना के बाद जिस तरह विपक्ष के नेताओं को बोलना चाहिए था, उस तरह से दिखाई नहीं दिया। इसमें भी वोट बैंक की राजनीति हावी थी। 

……. यह विशुद्ध राजनीति है। जब कोई बड़ा राष्ट्रीय मुद्दा नहीं होता है तो पार्टियां भाषा, धर्म, क्षेत्रीयता और जाति के नाम पर अस्त्रों का इस्तेमाल करती हैं। यह अति उत्साह में किया गया या किसी और उद्देश्य से किया गया? यह बताता है कि मामला इतना सहज नहीं है। अगर विक्रमादित्य योगी आदित्यनाथ की फोटो नहीं लगाते तो इतना हंगामा नहीं होता। भाषा, धर्म, क्षेत्रीयता, ये सभी औजार पुराने रहे हैं। राजनीतिक दल इसे आजमाते रहे हैं। 

……. यह सरकार का फैसला है। विधानसभा में इस पर बात हुई है। विधानसभा अध्यक्ष ने एक कमेटी बनाई थी। उस कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर यह फैसला हुआ है। हमारे देश में ईको सिस्टम और नरेटिव जमीनी वास्विकता को छोड़कर बात करता है। लंबे समय तक कोई विषय ऐसा हो, जिस पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही हो तो धीरे-धीरे वह चीज बढ़ती है। हिमाचल में जो माहौल है, उसमें वहां की सरकार क्या कर सकती थी। सरकार ने कोई अवैधानिक काम नहीं किया है। यह एक वातावरण है। और यह वातावरण पूरे देश में है। स्थानीय सरकार ने एक तात्कालिक रास्ता निकाला है। 

……. कोई भी राज्य सरकार जब निर्णय करती है तो देश का हर नागरिक अपनी सुविधा के मुताबिक देख सकता है। उसके बाद राज्य सरकारें लोगों को तांगे का घोड़ा बनाने की कोशिश करती हैं कि हम जो दिखाना चाहें, वही लोग देखें और जो नहीं दिखाना चाहें वो नहीं देखें। उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में यही हो रहा है। विक्रमादित्य ने जो फैसला लिया है, वह राज्य सरकार की सहमति के बिना नहीं हो सकता था। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत बनाए गए प्रावधानों के अनुसार ही फैसले ले रहे हैं।

……जब आप लोकतंत्र में हैं तो वोटबैंक की राजनीति तो होगी है। जब वोट बैंक के अनुसार राजनीति होगी तो हर पार्टी अपने वोटबैंक के हिसाब से फैसले लेगी। उत्तर प्रदेश की सरकार अपने वोट बैंक के हिसाब से फैसले लेगी तो हिमाचल प्रदेश की सरकार अपने वोट बैंक के हिसाब से फैसले लेगी। हिमाचल का विवाद भाजपा की विचारधारा को सूट करता था। उस विवाद से निपटने के लिए यह फैसला लिया गया। सिलीगुड़ी की घटना बहुत निंदनीय है। अगर बिहार के लड़के सिलीगुड़ी जाकर परीक्षा दे रहे हैं या बंगाल के बच्चे बिहार आकर परीक्षा देते हैं तो इसमें किसी को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। यह चीज देश के लिए ठीक नहीं है। जब संविधान में देश के किसी ही नागरिक को कहीं भी जमीन खरीदने का अधिकार है तो डेमोग्राफी तो बदलेगी ही। 

…… सिलीगुड़ी का मामला है तो उसमें गिरिराज सिंह बोलेंगे ही क्योंकि बिहार से जुड़ा कोई मामला बंगाल में होगा तो गिरिराज सिंह बोलेंगे ही। इसी तरह का मामला अगर महाराष्ट्र में होगा तो उस पर तेजस्वी यादव बोलेंगे, उस पर गिरिराज सिंह नहीं बोलेंगे। ये उनकी राजनीति को सूट करता है। जहां तक हिमाचल की बात है तो विक्रमादित्य सिंह और उनकी मां प्रतिभा सिंह की वहां की सत्ता नहीं मिलने के कारण एक नाराजगी रही है। यह मंत्रालय उन्हीं का है, जिसने यह आदेश जारी किया है। इसमें कोई गलत नहीं है। ये चीजें और आगे बढ़ेंगी। वैसे भी अब तो बात बैंड बाजे वालों तक चली गई है।

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