न कूड़े के पहाड़ खत्म हुए, न जगह साफ हुई; कई राज्यों में नाम मात्र का हुआ काम !

स्वच्छ भारत मिशन का एक बड़ा लक्ष्य वर्षों पुराने कुराने के ढेरों को खत्म करना है जिनमें से अधिकांश पहाड़ बन चुके हैं। देश में 2424 कूड़ाघर ऐसे हैं जहां एक हजार टन से ज्यादा ठोस कचरा एकत्र है। इनमें से केवल 470 स्थलों को ही पूरी तरह साफ किया जा सका है। 730 डंप साइट को तो अभी छुआ ही नहीं गया।

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एसबीएम 2.0 में कूड़े के ढेर वाली 15 प्रतिशत जमीन हुई खाली
  1. एसबीएम 2.0 में कूड़े के ढेर वाली 15 प्रतिशत जमीन हुई खाली
  2. बंगाल और कर्नाटक जैसे राज्यों में नाम मात्र का हुआ काम
  3. दिल्ली जितने कूड़े को गुजरात ने तीन साल में कर दिया खत्म

नई दिल्ली। शहरों में कचरे के पहाड़ों को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार ने तीन हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की योजना शुरू करते हुए राज्यों से यह अपेक्षा की थी कि वे भी अगर बराबर का साथ दें तो इन पहाड़ों को समाप्त किया जा सकता है, लेकिन यह योजना भी राज्यों की ढिलाई की वजह से धीमी शुरुआत की शिकार हो गई है।

अधिकांश कूड़े के ढेर पहाड़ बन चुके हैं

स्वच्छ भारत मिशन का एक बड़ा लक्ष्य वर्षों पुराने कुराने के ढेरों को खत्म करना है, जिनमें से अधिकांश पहाड़ बन चुके हैं। दो अक्टूबर 2014 से आरंभ हुए स्वच्छ भारत मिशन में एक अहम पड़ाव एक अक्टूबर 2021 को आया था जब एसबीएम-2.0 की शुरुआत के साथ कूड़े के इन पहाडों की समाप्ति का लक्ष्य तय कर यह कल्पना की गई थी कि भविष्य में कभी भी इस तरह की समस्या को उभरने नहीं दिया जाएगा।

यानी इसके लिए मौजूदा कूड़े का निस्तारण करने के साथ ऐसे स्थलों को ग्रीन जोन के रूप में विकसित करना था। आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार अब तक केवल 15 प्रतिशत हिस्से की सफाई हो सकी है और निस्तारित कूड़ा 35 प्रतिशत के आसपास है।

कई शहरों में ठोस कचरे के निस्तारण की कोई सुविधा ही नहीं

देश में 2424 कूड़ाघर ऐसे हैं जहां एक हजार टन से ज्यादा ठोस कचरा एकत्र है। इनमें से केवल 470 स्थलों को ही पूरी तरह साफ किया जा सका है। 730 डंप साइट को तो अभी छुआ ही नहीं गया। दरअसल शहरों के पास ठोस कचरे के निस्तारण की कोई सुविधा ही नहीं है। उनके लिए साफ-सफाई का मतलब घरों से कूड़ा इकट्ठा कर उन्हें शहर के बाहर एक जगह डंप करते रहना है। ऐसे तमाम स्थल तो अब शहरों के भीतर आ गए हैं।

देश में डेढ़ लाख टन ठोस कचरा रोज निकलता है

मंत्रालय का अनुमान है कि लगभग 15 हजार एकड़ जमीन इन कूड़े के पहाड़ों में फंसी हुई है और उनमें कुल 16 करोड़ टन कचरा जमा है, जिसे निस्तारित किया जाना है। पर्यावरण की स्थिति पर 2023 में जारी रिपोर्ट के अनुसार देश में डेढ़ लाख टन ठोस कचरा रोज निकलता है, लेकिन शहरी विकास के विशेषज्ञ इससे तीन गुना यानी लगभग पांच लाख टन कूड़ा रोज निकलने की बात करते हैं, जिसमें से एक तिहाई का भी ढंग से निस्तारण नहीं हो पाता।

मंत्रालय के डैश बोर्ड के मुताबिक 1250 डंप साइटों में कूड़ा निस्तारण की सुविधा शुरू होने का योजना को मंजूरी दी जा चुकी है और उनमें काम शुरू हो चुका है।

गुजरात और तमिलनाडु को छोड़कर बाकी किसी राज्य ने इस योजना पर युद्ध स्तर पर काम करने की इच्छा नहीं जताई है। ये दोनों राज्य तीन चौथाई सफलता हासिल करने के साथ लक्ष्य पाने की राह पर हैं। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब-लगभग सभी राज्यों का हाल एक जैसा है।

बंगाल में तो 143 लाख टन कचरा जमा

बंगाल में तो 143 लाख टन कचरा जमा है और तीन साल में केवल नौ लाख टन का निस्तारण हुआ है। यही हाल कर्नाटक का है, जिसने कूड़े के पहाड़ों को छुआ तक नहीं। दिल्ली को गुजरात की ओर देखना चाहिए, जिसने लगभग उसके जैसी ही कूड़े की मात्रा को मात्र तीन साल में समाप्त कर दिया।

 

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