‘धर्म और राजनीति ?

‘धर्म और राजनीति’: लड्डू विवाद पैदा कर क्या सियासी फायदा लेने की हो रही कोशिश?

देश के प्रसिद्ध तिरुपति मंदिर के प्रसाद में जानवरों की चर्बी मिलाए जाने के सनसनीखेज दावे ने एक तरफ जहां लोगों की धार्मिक आस्था पर चोट किया तो वहीं इसने पूर्ववर्ती वाईएसआर प्रमुख जगन मोहन रेड्डी सरकार पर भी सवाल खड़े कर दिए. लेकिन, अब सुप्रीम कोर्ट ने साफतौर पर कहा कि कम से कम भगवान को तो राजनीति से दूर रखा ही जाना चाहिए.

जाहिर है, कोर्ट ने न सिर्फ आंध्र प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू से सवाल किया, बल्कि पूरे मामले पर सबूत मांगा है कि आखिर किस आधार पर ये कहा गया कि तिरुमाला के प्रसाद में जानवरों की चर्बी से तैयार घी का इस्तेमाल किया गया. कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि जब खुद ही आंध्र प्रदेश की सरकार आश्वस्त नहीं है और उन्होंने इसकी जांच के आदेश दिए हैं, तो फिर इतनी जल्दी में सार्वजनिक तौर पर ऐसे बयान देने की आखिर क्या जरूरत थी.

सवालों में नायडू के दावे

सुप्रीम कोर्ट की इस महत्वपूर्ण टिप्पणी के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या लड्डू विवाद पैदा कर सियासी फायदा लेने की कोशिश की जा रही है? क्या धर्म और राजनीति के इस घालमेल से भक्तों को चोट देकर आस्था के साथ खिलवाड़ की कोशिश की जा रही है? बिना तथ्यों और सबूतों के ऐसे बयान देने से समाज में किस तरह का मैसेज देने की कोशिश की गई है?

हालांकि, तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम की तरफ से पक्ष रखने वाले वकील ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलील रखते हुए ये कहा था कि मंदिर के प्रसाद यानी लड्डू की गुणवत्ता और उसमें संभावित मिलावट की कुछ शिकायतें मिली थीं, नेशनल डेवलपमेंट बोर्ड की लैब रिपोर्ट में मिलावट का पता चला है. लेकिन, ये किस तरह की मिलावट है, इस बारे में जांच की जा रही है. ऐसे में कोर्ट ने ये सवाल उठाया है कि रिपोर्ट से यह साफ नहीं है कि यह वही मिलावट वाला घी है. 

सुप्रीम कोर्ट की बेंच बी.आर. गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ की ओर से ये दावा किया गया कि आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू की तरफ से 18 सितंबर को इस मिलावटी घी और जानवरों की चर्बी के इस्तेमाल का दावा किया गया था. कोर्ट ने कहा कि इसके बाद इस बारे में 25 सितंबर को एफआईआर दर्ज की गई और 26 सितंबर को जांच के लिए स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) बनाई गई. 

कोर्ट की क्यों फटकार?

लड्डू पर नायडू के दावे पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सवाल उठाते हुए कहा कि किसी ऊंचे संवैधानिक पद पर बैठे अधिकारी के लिए सार्वनिजक तौर पर ऐसा बयान देना उचित नहीं है, जिससे करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी हुई हो. दरअसल, ये पूरा दावा आंध्र प्रदेश की पूर्ववर्ती जगनमोहन रेड्डी सरकार में कथित तौर पर प्रसाद में चर्बी मिलाए जाने पर किया गया है. 

सुप्रीम कोर्ट की इस सख्त टिप्पणी से साबित हो जाता है कि सीएम एन. चंद्रबाबू नायडू ने गैर-जिम्मेदाराना बयान दिया है. राजनीति में विपक्ष के नेताओं को नीचा दिखाने के लिए और इस तरह की राजनीति काफी खतरनाक होती है. राजनीति में जिस तरह से धर्म का गलत तरीके से इस्तेमाल हो रहा है, ये उसी का एक हिस्सा है. 

लैब रिपोर्ट बता रही है कि उसमें जो मौजूद फैट प्लांट बेस्ड फैट है. इसी बात को लेकर कोर्ट ने ये पूछा है कि जब रिपोर्ट आयी ही नहीं, उसके पहले आप कोर्ट कैसे चले गए. पब्लिक में इस दावे को लेकर कैसे चले गए. इससे पहले चंद्रबाबू नायडू जेल में गए, उनके ऊपर कई गंभीर आरोप लगे. ऐसा लगता है कि वो एक खुन्नस निकालने की साजिश उनकी अपने रानजीतिक विरोधियों के खिलाफ हो सकती है.

क्या नायडू ले रहे सियासी बदला?

ये भी जाहिर सी बात है कि पूर्व मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ईसाई समुदाय से हैं. जगनमोहन रेड्डी की राजनीतिक पकड़ को कमजोर करने की कोशिश के तहत भी ध्रुवीकरण के लिए इस तरह के आरोप लगाए जा सकते हैं.

अगर देखें तो पिछले दो-तीन दशक से लगातार धर्म पर आधारित राजनीति हो रही है. हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सरकार है. लेकिन जो उत्तर प्रदेश में हुआ कि दुकानदार नाम प्लेट लगाए.  कई बार दबाव में आकर भी इस तरह के फैसले लेती है, या फिर उनका मकसद वोट को एकजुट करना भी होता है. क्योंकि जनआधारित राजनीति अब पीछे चली गई है. 

इस तरह की चीजों से तत्काल राजनीतिक रुप से फायदा हो जाता है. धर्म सबसे आसान हथियार होता है कि किसी को इस्तेमाल कीजिए और उसकी भावनाओं के साथ खेलिए. उनकी राजनीतिक जमीन को कमजोर कीजिए. कोर्ट को और सख्त होना चाहिए. जिस तरह की चंद्रबाबू नायडू की राजनीति है, पहले ऐसे नहीं था. जिस तरह से धर्म का प्रभाव बढ़ा है, उसको इन्होंने भुनाने की कोशश की है.  

ऐसे में होना तो ये चाहिए था कि ऐसी संवेदनशील चीजों पर अगर सरकार को शक हुआ या कुछ इनपुट्स मिले भी, तो पहले गहनता से जांच होनी चाहिए थी. सिर्फ एक लैब रिपोर्ट पर इस तरह के सनसनीखेज दावे की बजाय, जो अब एसआईटी बनी है, वो उस सार्वजनिक बयान देने से पहली बनाई जानी चाहिए थी. एक और बात ये है कि अगर एन. चंद्रबाबू नायडू के इस दावे में थोड़ा सा भी दम है तो फिर ये जरूर एक गंभीर मसला है. क्योंकि किसी की भी आस्था के साथ खिलवाड़ करने का किसी को हक नहीं है. हर धर्म और उसकी आस्था का सम्मान, उसके विश्वास का सम्मान किया जाना चाहिए. ऐसे प्रयास किए जाने चाहिए ताकि समाज में अगर कोई ऐसा करने की हिमाकत करता है तो फिर उसको कड़ी से कड़ी सजा देने का भी प्रावधान होना चाहिए.    

अगर ऐसा नहीं होगा तो फिर इसे कोई भी गंभीरतापूर्वक नहीं लेगा. भारत को विविधता का देश कहा जाता है और यही इसकी सबसे बड़ी विशेषता भी है. विभिन्न भाषाओं और रंगों के लोग एकजुटता के साथ रहते हैं. लेकिन जब इस तरह के प्रयास होते हैं तो कहीं न कही उसे जरूर दरकाने की प्रयास किया जाता है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि ….. न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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