डर आपको पंगु बनाता है या मदद करता है?

डर आपको पंगु बनाता है या मदद करता है?

आज जब आप और मैं ये अखबार पढ़ रहे होंगे (यह इस पर निर्भर है कि हम कब पेपर उठाते हैं), तब दो महिलाएं पहली भारतीय जोड़ी के रूप में अपने सेलिंग याट से पूरी दुनिया का चक्कर लगाने के लक्ष्य के साथ गोवा से रवाना हो रही होंगी या हो सकता है कि अपने 55 फुट के याट से पहले ही निकल चुकी हों।

दोनों दक्षिण भारत से हैं, दिलना के (30) कोझिकोड से हैं और रूपा ए (32) पुड्डुचेरी से हैं। दिलचस्प है कि दिलना के पिता सेना में रहे और रूपा के पिता एयरफोर्स में रहे। और दोनों नेवी ऑफिसर हैं और लेफ्टिनेंट कमांडर के पद पर हैं।

बिना किसी बाहरी सहायता के 21,600 नॉटिकल माइल्स (लगभग 40 हजार किमी) से अधिक की दूरी तय करते हुए दुनिया का चक्कर लगाने के मिशन पर जाने के लिए नौसेना पूरी तरह तैयार है और ये दो महिलाएं सिर्फ विंड पावर की ताकत पर भरोसा करके धरती के कुछ सबसे निर्मम समुद्री इलाकों को पार करेंगी। वे अगले आठ महीने पानी में ही रहेंगी!

पृथ्वी की परिक्रमा जीवन भर की यात्रा है और ये चुनौती सिर्फ बहादुर ही ले सकते हैं। सबकी निगाहें आईएनएसवी तारिणी पर हैं, इस स्वदेशी याट को एक्वेरियस शिपयार्ड गोवा ने बनाया है और ओडिशा के तारा-तारिणी मंदिर के नाम पर नामकरण किया है। इसमें कई अत्याधुनिक फीचर्स हैं, जैसे सैटेलाइट कम्युनिकेशन, रे समुद्री नेविगेशन जो आपातकालीन स्टीयरिंग में मदद करता है।

ये अभियान पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देता है, क्योंकि ये नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों को प्रोत्साहित कर रहा है और इसका चालक दल वैश्विक मंच पर ‘नारी शक्ति’ दिखाने के अलावा हाई सी इलाकों में प्रदूषण की निगरानी व रिपोर्ट करेगा।

नेवी द्वारा चुनी गईं रूपा व दिलना को नेविगेशन, मरम्मत, रखरखाव, चिकित्सा देखभाल, नाविक कौशल का गहन प्रशिक्षण दिया गया है। नौ-सैनिक होने के नाते वे अपने करिअर में पहले ही 38 हजार नॉटिकल माइल्स की दूरी तय कर चुकी हैं और अब वास्तव में समुद्र में सहज हैं। दोनों के पास घर के बने अचार, केले- साबूदाने के चिप्स, हलवा और अन्य खाने-पीने की चीजों की पर्याप्त आपूर्ति है।

रक्षा खाद्य शोध प्रयोगशाला ने सुनिश्चित किया है कि दोनों के पास विविधतापूर्ण खाने की कमी न हो, इसमें किसी दिन धूप खिले मौसम में अच्छी बिरयानी का लुत्फ ले सकें, तो वहीं उनके पास इडली-डोसा का मिक्स भी मई 2025 तक चलेगा, जब वे लौटकर आएंगी।

चूंकि भारत में ऐसे सेलिंग याट के मालिक बहुत कम हैं, जो किसी वैश्विक प्रतिस्पर्धा में जाएं, ऐसे में समुद्री खेल की जागरूकता भी सीमित है। अगर आप अमेरिका के किसी भी हिस्से में ट्रेन से जाएं, खासकर न्यूयॉर्क से बोस्टन तक, तो आपको पानी की तमाम जगहों पर हजारों याट खड़े दिखेंगे। दुनिया के इस हिस्से में वॉटर स्पोर्ट्स बहुत सामान्य है।

वॉटर स्पोर्ट से दूर रहने वालों के मन में ऐसी खबरें पढ़ने के बाद पहला सवाल आया होगा कि ये दोनों महिलाएं बिना किसी डर के विशाल लहरों का सामना कैसे करेंगी, जहां कभी घुप अंधेरी रातें भी होंगी। यहां तक कि रूपा मानती हैं, ‘हम यह नहीं कहेंगे कि हमें डर नहीं हैं।’ लेकिन उन्हें इस निर्दयी समुद्र से पार पाने का प्रशिक्षण मिला है, लेकिन इसमें उनकी नींद उड़ने वाली है।

यह इसकी परीक्षा है कि आप कैसे खराब मौसम या कहें कि उतार-चढ़ावों का सामना करने के लिए अपनी सीमाओं से परे जाकर काम करते हैं और मानसिक और शारीरिक दक्षता का परिचय देते हैं। डर स्वाभाविक है।

जब किसी के दिमाग में डर उत्पन्न होता है, तो ये उस आदमी की मदद करने की भी कोशिश करता है, उसे जीवित रखने में मदद करता है। पर जब ये दहलीज पार कर जाता है, तो किसी को भी पंगु बना सकता है। इसलिए ऐसे नाविकों को इन भावनाओं को काबू में रखने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है ताकि उनका डर उनकी मदद करे और उनके मिशन में बाधा न बने।

….. अगर आप कोई एडवेंचर से भरा काम करें, तो डर आपको पंगु नहीं बनाना चाहिए, बल्कि इसका सामना करने में आपका मददगार होना चाहिए। याद कीजिए, गांधी जी का सामना कई ऐसी परिस्थितियों से हुआ था, जिन्हें हम आज पूरे सम्मान के साथ याद कर रहे हैं

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