बीते दस सालों में ‘स्वच्छता’ एक जनांदोलन बन गई है
बीते दस सालों में ‘स्वच्छता’ एक जनांदोलन बन गई है
स्वच्छता का मतलब सिर्फ अपने आस-पास की जगह को साफ-सुथरा रखना ही नहीं है; इसका मतलब है जीवन को बदलना, संसाधनों का संरक्षण करना और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्थायी भविष्य का निर्माण करना।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2014 में शुरू किए गए स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) ने दुनिया के सबसे महत्वाकांक्षी सैनिटेशन ड्राइव में से एक की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य बेहतर स्वच्छता-प्रथाओं और कचरा-प्रबंधन के जरिए देश के शहरों-गांवों को साफ-सुथरा बनाना था।
दस साल में स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (एसबीएम-यू) ने खुले में शौच को खत्म करने, ठोस कचरा-प्रबंधन में सुधार लाने, कचरे को हटाने और सस्टेनेबल जीवन को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करके शहरी-भारत को बदलने की दिशा में पर्याप्त प्रगति की है।
इसने पेरिस एग्रीमेंट के लिए भारत की प्रतिबद्धताओं के साथ अपने जलवायु-कार्यों को जोड़ते हुए कई तरीकों से एसडीजी (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स) के उद्देश्य को आगे भी बढ़ाया है। मिशन ने शहरों में जीवन को बेहतर बनाकर सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणामों में भी सुधार किया है।
एसबीएम का मुख्य उद्देश्य खुले में शौच को समाप्त करना था। इसके लिए शहरों में 44,636 से अधिक सार्वजनिक और 27,015 सामुदायिक सुविधाघरों का निर्माण किया गया। महाराष्ट्र 9,049 सार्वजनिक सुविधाघरों के साथ इस प्रयास में अग्रणी रहा, जबकि तमिलनाडु 8,932 सामुदायिक सुविधाघरों के साथ शीर्ष पर है। जल-निकायों के प्रदूषण को कम किया है, जिससे रोगों का प्रसार कम हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि बेहतर स्वच्छता से डायरिया संबंधी बीमारियों में 32% की कमी आ सकती है।
लेकिन एसबीएम का प्रभाव बेहतर स्वच्छता से कहीं आगे तक जाता है। इस मिशन ने ठोस कचरा प्रबंधन (एसडब्ल्यूएम) को पटरी पर लाने में जबरदस्त सफलता हासिल की है, जो लंबे समय से भारत के शहरी केंद्रों के लिए अभिशाप बना हुआ था। कुल 96,084 नगर पालिका वार्डों में से 93,433 में डोर-टु-डोर कचरा-संग्रह किया गया है।
शहरों की सामान्य सफाई बनाए रखने में यह महत्वपूर्ण रहा है। भारत अपने शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन लगभग 1,58,619 टन ठोस कचरा उत्पन्न करता है। कुछ साल पहले तक इनमें से अधिकांश कचरे को बिना प्रोसेसिंग के लैंडफिल में फेंक दिया जाता था। अनुमानित रूप से 35,503 टन कचरा अभी भी रोज डम्प साइट्स में जा रहा है, यानी बुनियादी ढांचे में और अधिक निवेश की जरूरत है। खुले डम्प साइट्स ग्रीनहाउस गैस मीथेन के बड़े स्रोत होते हैं।
बड़े पैमाने पर उत्पादित होने वाला कचरा हवा, मिट्टी और पानी तीनों को गंभीर रूप से प्रदूषित करता है। एसबीएम के तहत, लगभग 912 लाख टन कचरे का ट्रीटमेंट करके 4,432 एकड़ भूमि पुनः प्राप्त की गई है। इससे न केवल खतरनाक डम्प साइट्स की सफाई में मदद मिलती है, बल्कि ग्रीन स्पेस, पार्कों या अन्य शहरी विकास परियोजनाओं के लिए भी भूमि उपलब्ध कराने में मदद मिली है।
स्वच्छता मिशन 48 वेस्ट-टु-एनर्जी प्लांट्स से 19,623 टीपीडी नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरे को प्रोसेस करता है और शहरी कचरे को ऊर्जा में परिवर्तित करता है, जिससे जीवाश्म-ईंधन पर निर्भरता कम होती है। वहीं प्लास्टिक, धातु और कांच जैसी सामग्रियों की रीसाइकलिंग से नई सामग्री के उत्पादन में लगने वाली ऊर्जा तथा उससे संबंधित मैन्युफैक्चरिंग के कारण होने वाले उत्सर्जन में कमी भी आती है। स्वच्छता मिशन के चलते लिक्विड-वेस्ट के ट्रीटमेंट के लिए 4,520 प्लांट्स भी स्थापित किए गए हैं। यह मुख्य रूप से एक लाख से कम आबादी वाले शहरों में मैले पानी के ट्रीटमेंट के लिए जिम्मेदार है।
लेकिन स्वच्छ भारत अभियान की सबसे महत्वपूर्ण विरासत यह है कि वह शहरी आबादी के व्यवहार में गुणात्मक बदलाव लाया है। मिशन ने नागरिकों को कचरे का निपटारा करने, प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने आदि के लिए एक जनांदोलन के दृष्टिकोण से अपने से जोड़ा है। जब साधारण लोग सस्टेनेबल उपभोग-पैटर्न में शामिल होते हैं, तो इससे कार्बन फुटप्रिंट कम होता है और शहरी इकोसिस्टम में लचीलापन आता है।
अब जब यह मिशन वर्ष 2024 में अपने अंतिम चरण में पहुंच रहा है, तो भारत के शहरों, पर्यावरण और जलवायु के भविष्य पर इसके दीर्घकालिक प्रभावों पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता है; इसने एक अधिक स्वच्छ, स्वस्थ और सस्टेनेबल शहरी-लैंडस्केप के लिए बुनियादी फ्रेमवर्क तैयार कर दिया है।
स्वच्छ भारत अभियान की सबसे महत्वपूर्ण विरासत यह है कि वह शहरी आबादी के व्यवहार में बदलाव लाया है। इसने एक अधिक स्वच्छ, स्वस्थ और सस्टेनेबल शहरी-लैंडस्केप के लिए बुनियादी फ्रेमवर्क तैयार कर दिया है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं। इस लेख की सहलेखिका पारोमीता दत्ता डे हैं)