मौसम, चुनाव और गरीब के घर की रोशनी ?
मौसम, चुनाव और गरीब के घर की रोशनी
बारिश का मौसम जा रहा है। और चुनावी मौसम छा रहा है। पहले बारिश ने कोहराम मचाया। अब चुनावी मैदान में हल्ला मचा है। आरोपों-प्रत्यारोपों की झड़ी लगी हुई है।
कहीं मेघ-मल्हार चल रहा है। तो कहीं मियां का मल्हार! जम्मू-कश्मीर में मतदान के तीनों दौर पूरे हो चुके हैं। अब वहां केवल नतीजों का इंतजार है।
वैसे यहां हारे या जीते कोई भी…
और किसी की भी सरकार बने, लेकिन मतदान-प्रतिशत का बढ़ना या उसका न घटना लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत रहा है। बहरहाल, कश्मीर में मतदान के सारे चरण पूरे हो जाने के बाद अब सारे नेता और उनका तमाम फोकस कुछ दिन हरियाणा पर रहेगा।
हालांकि यहां भी दो ही दिन का समय है। 3 अक्टूबर को हरियाणा में भी प्रचार थम जाने वाला है, क्योंकि 5 अक्टूबर को यहां वोटिंग है।
इस बीच प्रमुख राजनीतिक दलों ने महाराष्ट्र और झारखण्ड में चुनावी चौसर बिछाना शुरू कर दी है। कश्मीर और हरियाणा के बाद सबसे बड़ा और ज्यादा रोचक मुकाबला महाराष्ट्र में होने वाला है। हालांकि यहां इस बार के विधानसभा चुनावों के नतीजे लोकसभा चुनाव से कुछ भिन्न हो सकते हैं। मराठा आंदोलन वाले जरांगे पाटील फिलहाल ठंडे पड़ गए हैं।
वे किस पार्टी को कितना नुकसान पहुंचा पाएंगे, फिलहाल कहा नहीं जा सकता। वैसे महा विकास अघाड़ी और महायुति दोनों ही तरफ से एक-एक धड़े का छिपा हुआ समर्थन जरांगे पाटील को मिलता रहा है। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव के बाद इस बार जरांगे का प्रभाव कुछ हद तक कम होता दिखाई दे रहा है।
फिर भी मराठवाड़ा में जरूर कुछ प्रभाव दिखाई देगा। उधर झारखण्ड में चंपई सोरेन को भाजपा ने अपने पाले में लाकर ठहरे हुए पानी में हलचल पैदा करने की कोशिश जरूर की है लेकिन यह कोशिश कितनी कामयाब होगी, कहा नहीं जा सकता। हलचल से याद आया- हाल में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एक बयान देकर भारी हलचल मचा दी है।
मंच पर उन्हें अचानक चक्कर आ गया, इसके तुरंत बाद ही वे बोले- 83 बरस का हो चुका हूं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हटाए बिना मरने वाला नहीं हूं!
हालांकि प्रधानमंत्री ने खरगे के हाल जाने और उनके स्वास्थ्य के बारे में भी पूछा, लेकिन भाजपा ने कहा- देखिए कांग्रेस और उसके नेता प्रधानमंत्री मोदी से किस हद तक नफरत करते हैं। पानी पी-पीकर उन्हें कोसने में जुटे रहते हैं।
बहरहाल, यह साल अपने उत्तरार्ध में पूरी तरह चुनावी हलचल से पूर्ण रहेगा। जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के बाद महाराष्ट्र और झारखण्ड में चुनावी घमासान होने वाला है। हरियाणा में जो भी पक्ष जीतेगा, महाराष्ट्र में उसे नई ऊर्जा मिलेगी। आखिर राजनीति में पिछली सफलताएं ही अक्सर अगले मैदान में कारगर साबित होती रही हैं। खैर, चुनावी वादे जो भी और जैसे भी हों, वास्तविक गरीब की यहां किसी को कोई चिंता नहीं है। उस आम गरीब के हाल किसी को पता नहीं हैं। कोई पता करना भी नहीं चाहता।
वह निरीह घंटों रात में बैठे हुए, अगली सुबह और उसके बाद अगली रात का इंतजार करता रहता है। उसके घर की सूनी-सी दीवार में एक खाली खिड़की ही अब उसकी पूंजी है। महीनों, सालों से वह खिड़की उसे धोखा देती आई है। रोशनी अंदर आती है और अपने आप वापस चली जाती है। वो कोशिश करता रहता है- उस रोशनी को अपनी छाती में भर लेने की। लेकिन कोशिश सफल नहीं होती। रोशनी कहीं भी ठहर नहीं पाती।
आखिर लोकतंत्र में चुनाव के सिवाय और कोई दूसरा रास्ता भी कहां है रोशनी को हासिल करने का! लेकिन सच यह भी है कि पौ फटती है तो केवल किसी चुनाव के कारण नहीं, वह तो उस गरीब की सिसकियों से फटती है, जो धीरे-धीरे सारी रात अंधेरे को कुतरती रहती है!
प्रमुख दलों ने महाराष्ट्र और झारखण्ड में चुनावी चौसर बिछाना शुरू कर दी है। कश्मीर और हरियाणा के बाद सबसे रोचक मुकाबला महाराष्ट्र में होने वाला है। यहां विधानसभा चुनावों के नतीजे लोकसभा चुनाव से भिन्न हो सकते हैं।