मणिपुर के मैतेई को मिले जनजाति का तुरंत दर्जा ?

मणिपुर के मैतेई को मिले जनजाति का तुरंत दर्जा, सरकार कसे कुकी उग्रवादियों पर नकेल, यही है समाधान

मणिपुर में पिछले मई से संघर्ष जारी है. संघर्ष का मूल मसला मैतेई को अनुसूचित जनजाति की सूची में डालने का न्यायालय का आदेश है, जिसके बाद वहां हिंसा शुरू हो गयी थी. जनांकिकीय असंतुलन के साथ ही इसके पीछे अवैध आप्रवासन, घुसपैठ और विदेशी ताकतों का हाथ भी बताया जाता है. कांस्पिरैसी-थियरी रचनेवालों की मानें तो इसके पीछे का कारण ड्रग्स ओर हथियारों का कारोबार भी है, हालांकि मैतेई जनजाति के लोग हमेशा से कहते आ रहे हैं कि यह उनके संवैधानिक हको-हुकूक का मसला है. मणिपुर में दरअसल पूरा मसला तब शुरू हुआ जब मैतेई को जनजाति की सूची में शामिल करने का अदालती आदेश आया और उसके खिलाफ कुकी-नगा संगठनों ने बंद का आह्वान किया. 

मैतेई समूह का आरोप है कि कुछ कुकी उग्रवादियों ने खुद ही चंद्रपुरचूड़ा गांव में आग लगा दी और उसके बाद मैतेई गांवों और आबादियों पर हमला शुरू कर दिया. मैतेई यह भी कहते हैं कि कुकी तो वहां 1800 ईस्वी के बीच से आए, जबकि वे वहां 3000 वर्षों से रह रहे हैं. घुसपैठ की समस्या मणिपुर में 1970 के दशक से और बढ़ी, जब वहां बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्या ने बसना शुरू किया. कुकी इसके लिए म्यांमार और चीन की सरकारों को जिम्मेदार ठहराते हैं, साथ ही यह भी बताते हैं कि बाहरी लोगों ने वहां ड्रग्स का धंधा शुरू किया और उसके बाद से ही मणिपुर में सब कुछ बदल सा गया है. 

लंबे समय से चल रही मैतेई की लड़ाई

हमारी मांग लंबे समय से एक ही है कि मैतेई जनजाति को अनुसूचित जनजाति की सूची में केंद्रीय सरकार शामिल करे. हमारे बुजुर्गों ने शुरुआती 1970 से इसकी लड़ाई शुरू की और हम लगातार इसके लिए संघर्षरत हैं. 2013 में यह सार्वजनिक स्तर पर प्रकट हुआ और हमने बड़े पैमाने पर सभाएं की और आंदोलनों को गति दी. हमने हस्ताक्षर अभियान चलाए और कई बार हमने अपनी मांगें भारत सरकार के गृहमंत्री, प्रधानमंत्री इत्यादि को भेजी है. हमने मिनिस्ट्री ऑफ ट्राइबल अफेयर्स (जनजातीय कल्याण मंत्रालय) को भी इस बाबत लिखा है कि मैतेई समुदाय को जनजाति की सूची में शामिल किया जाए. केंद्र सरकार ने पहले ही राज्य सरकार को मैतेई समुदाय की नृशास्त्रीय और सामाजिक-आर्थिक स्थिति की रिपोर्ट भेजने को कहा है. हालांकि, सरकार ने अभी तक वह नहीं भेजा है. 2023 में 17 मार्च को हमने माननीय उच्च न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया कि वह पूछें कि भला राज्य सरकार अब तक स्टेटस रिपोर्ट क्यों नहीं भेज रही है? सौभाग्य से हाईकोर्ट का फैसला बहुत जल्द आया और उन्होंने 4 हफ्ते के अंदर वह रिपोर्ट केंद्र को भेजने का निर्देश दिया. 

मणिपुर के मूल निवासी

सच पूछिए तो हम अभी भी संघर्षरत हैं. मैतेई मणिपुर के मूल निवासी हैं. हमलोग यहां 3000 वर्षों से रह रहे हैं. दूसरे मूल-निवासी समुदायों अमो, अलाल, अंगामी, मायो मरान इत्यादि के साथ हम शांतिपूर्ण तरीके और सह-अस्तित्व के साथ रहे हैं. हम बहुत लंबे समय से जो मांग कर रहे हैं, वह भारतीय संविधान के हिसाब से है और जब 1950 में उन्होंने जनजातियों की सूची प्रकाशित की, तो हमारे जो मूलनिवासी हैं, जो न जाने कब से यहां रह रहे हैं, हम मैतेई उस सूची से हटा दिए गए. हम अपना संवैधानिक और प्रजातांत्रिक अधिकार नहीं पा रहे हैं. हम मैतेई जनांकिकीय रूप से बहुत कम हैं. हम 16-17 फीसदी मात्र हैं. अभी भी हमें उस सूची में शामिल नहीं किया गया है. न्याय नहीं मिला है. इन दिनों मणिपुर में बहुतेरे आप्रवासी घुस आए हैं और वे लगभग पूरे पहाड़ी इलाके पर अपना कब्जा करते आ रहे हैं. वहां केवल कुकी नहीं हैं, बल्कि रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठिए भी घुसे आ रहे हैं और इसीलिए वहां का जनांकिकीय संतुलन बिगड़ रहा है. 

मैतेई के साथ हो रहा है भेदभाव

अधिक दुर्भाग्य की बात है कि मैतेई पहाड़ी इलाकों में नहीं बस सकते, वे केवल मैदानी इलाकों में बस सकते हैं. पहाड़ी इलाका लगभग 90 फीसदी है और वहां हम नहीं घुस सकते, बस नहीं सकते लेकिन जितने भी घुसपैठिए हैं, वे हमारे बचे 10 फीसदी मैदानी इलाकों में बस सकते हैं. ये ही चिंता का विषय है. यह असमान कानून है. हम आखिर मैतेई जाति को जनजाति सूची में क्यों डालना चाहते हैं…इसलिए कि शायद फिर हमारी बात पांचवीं अनुसूची में डाली जाए. अगर हम पांचवीं अनुसूची में हैं तो कम से कम हम अपनी जमीन बचा सकते हैं, घुसपैठियों से अपनी रक्षा कर सकते हैं और इसीलिए हम ये मांग लगातार करते आ रहे हैं. आजकल मणिपुर सुलग रहा है. कई घुसपैठिए हैं जो 3 मई के बाद से चूड़ाचंद्रपुर, कांगोपी, इत्यादि जिलों में बस गए हैं. उनको पूरी सुरक्षा प्राप्त है और वे लंबे समय से बसे मैतेई और नगा को निकालने की बात करते हैं. अगर भारत सरकार हमारी रक्षा नहीं कर पायी तो हमें संयुक्त राष्ट्र जाना पड़ेगा. भारत सरकार और आप्रवासियों को मैतेई के साथ भेदभाव बंद करना होगा. मैतेई ही मणिपुर के मूल निवासी हैं, वे शांतिप्रिय हैं और सह-अस्तित्व में भरोसा करते हैं, लेकिन अगर उनकी जान पर बन आयी, उनके अस्तित्व को ही खतरा पैदा हो गया, तो उनके पास पलटवार के अलावा शायद कोई उपाय नहीं है. 

2011 में पांच जनवरी को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही व्यवस्था दे दी है कि सभी जनजातियां मूल-निवासी मानी जाएं. हालांकि, जो कुकी आक्रमण कर रहे हैं, कब्जा कर रहे हैं, वे मूलनिवासी नहीं हैं. वे तो बाद में आए हैं. हमारे यहां कोई कुकी गांव या टोला नहीं था, कुकी यहां के मूल निवासी नहीं हैं. अगर भारत सरकार मानती है कि हम यहां के मूल निवासी हैं, वे अगर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं, न्यायालय के फैसले को मानते हैं तो उनको सोचना चाहिए कि मैतेई जाति को भारत की जनजाति सूची में शामिल करना चाहिए. इसके लिए ही हम ग्वालियर, नागपुर, सोलन इत्यादि में अपना अभियान चला रहे हैं, लोगों से राय ले रहे हैं और इसे राष्ट्रीय स्तर का आंदोलन बनाना चाह रहे हैं. अगर मैतेई भारत के मूल निवासी हैं तो उनको जनजातियों की सूची में शामिल करना ही होगा. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि …. न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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