जो युगों युगों से धर्म संस्कृति, कृषि और ऋषियों की तपोस्थली रही वो है कुरुक्षेत्र

जो युगों युगों से धर्म संस्कृति, कृषि और ऋषियों की तपोस्थली रही वो है कुरुक्षेत्र

नहीं, महाभारत काल से भी हजारों साल पुराना गौरवशाली अतीत है कुरुक्षेत्र का. मगर बरबस युद्ध का ही पर्याय बन चुका है इस भूमि का नाम, जबकि संहार नहीं कुरुक्षेत्र युग-युगांतर से सृजन की भूमि रही और इसे वैदिक संस्कृति के केंद्र का श्रेष्ठतम स्थान प्राप्त रहा. कुरुक्षेत्र का वर्णन अनेक धर्मग्रंथों से पहले ऋग्वेद और अथर्ववेद में मिलता है.

हम ये भी जानते है कि दुनिया को कर्म का संदेश देने वाली गीता का संदेश इसी कुरुक्षेत्र में महाभारत युद्ध से पहले योगेश्वर श्रीकृष्ण ने दिया था. ये भी नहीं है कि भगवान श्रीकृष्ण सिर्फ युद्ध के समय ही यहां आए, धर्मग्रंथों के पन्नों में यह उल्लेख मिलता है कि श्रीकृष्ण के पावन चरण बाल्यावस्था से लेकर जीवन के अंतिम दौर तक… कई बार धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में पड़े. इस लेख में हम इसका जिक्र भी कर रहे हैं.

यकीनन आपको विश्वास होगा, कुरुक्षेत्र की बड़ी पहचान महाभारत युद्ध से अलग भी है. क्योंकि इसी भूमि पर राजा कुरु द्वारा हल चलाने से लेकर महर्षि वशिष्ठ एवं विश्वामित्र को ईश्वरीय ज्ञान की प्राप्ति के उल्लेख मिलते हैं.

राजा कुरु की वजह से इस क्षेत्र को नाम मिला था कुरुक्षेत्र यानी कुरु का क्षेत्र. मगर भगवान शिव के आदि स्थल होने के कारण इस स्थल को स्थाणु स्थल यानी स्थाणीश्वर (अपभ्रंश थानेसर) कहा गया. आज भी कुरुक्षेत्र के जिला के प्राचीन शहर एवं विधानसभा सीट थानेसर है, जो कि सैंकड़ों साल पहले वर्धन वंश की राजधानी थी और चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान इसी थानेसर, यहां के धर्मस्थलों, सभ्यता, शासन व्यवस्था एवं लोगों की संपन्न जीवन शैली का वर्णन पड़ोसी देश चीन के यात्री के तत्कालीन यात्री ह्वेनसांग ने किया. 

चीनी यात्री ह्वेनसांग ने यहां विशाल शिव मंदिर यानी स्थाणु तीर्थ का भी वर्णन किया था. धर्मग्रंथों में महाभारत युद्ध से पहले भद्रकाली शक्तिपीठ के अलावा स्थाणु तीर्थ पर भी श्रीकृष्ण ने पांडवों द्वारा भगवान शिव की आराधना और कौरवों पर विजयश्री के आशीर्वाद मांगने का उल्लेख मिलता है. स्थाणु तीर्थ स्थाणीश्वर मंदिर के महंत बंसीपुरी महाराज के मुताबिक इस युद्ध से भी बड़ा महत्व यह है कि कुरुभूमि में श्रीकृष्ण के श्रीमुख से गीता ज्ञान और कर्म के संदेश दिया गया था.

पृथ्वीलोक में शोभायमान 51 शक्तिपीठों में से एक है श्रीदेवीकूप मां भद्रकाली शक्तिपीठ (सावित्री पीठ) कुरुक्षेत्र में है. श्रीदेवीकूप भद्रकाली शक्तिपीठ का इतिहास राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री सती से जुड़ा हुआ है. शिव पुराण के अनुसार, एक बार सती के पिता दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सती व उनके पति भगवान शंकर को छोड़कर सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया. जब सती को इस बात का पता चला तो वह अपने पिता के  घर पहुंची. वहां दक्ष ने उनका कोई आदर सत्कार नहीं किया और क्रोध में आकर दक्ष ने शिव की निंदा की.

सती अपने पति शिव का अपमान सहन नहीं कर पाई और स्वयं उसने अपनी आहुति दे दी. भगवान शिव जब सती की मृत देह को लेकर ब्रह्माड में घूमने लगे, तो उनका सती से मोह भंग करने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 हिस्सों में विभाजित कर दिया. जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए. कुरुक्षेत्र में जिस स्थान पर वर्तमान में प्राचीन देवीकूप भद्रकाली मंदिर है वहां सती का दायां टखना (गुल्फ) गिरा और यहां शक्तिपीठ स्थापित हुई.

कुरुक्षेत्र के इस शक्तिपीठ के विषय में पुरातत्वविद् आरके राणा बताते हैं कि दाऊ बलराम के साथ श्रीकृष्ण पहली बार यहां बाल्यावस्था में अपने माता-पिता संग मुंडन संस्कार के लिये आए थे.इस वर्णन धर्मग्रंथों में मिलता है. पीठाध्यक्ष पंडित सतपाल शर्मा के अनुसार मां भद्रकाली यदुवंश की कुलदेवी है. इसी वजह से उनके कुलपुरोहित गार्ग्य चार्य ने भगवान श्रीकृष्ण और दाऊ बलराम का मुंडन संस्कार मां भद्रकाली शक्तिपीठ कुरुक्षेत्र में कराया था.इसके बाद महाभारत युद्ध में विजयश्री के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों के साथ शक्तिपीठ में मां भगवती की पूजा कर आशीर्वाद मांगा था और विजयश्री प्राप्ति पर यहां घोड़े अर्पित किए थे.तभी इस यहां मन्नत पूरी होने पर घोड़े चढ़ाने की परंपरा है.

देश की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल,राष्ट्रपति प्रवण मुखर्जी,राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद,गृहमंत्री अमित शाह,भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा,भारत के कई राज्यों के राज्यपाल,मुख्यमंत्री,सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के न्यायाधीश,दिग्गज राजनेता,कलाकार,खिलाड़ी एवं अलग अलग क्षेत्रों की विभूतियां यहां पूजा अर्चना और घोड़े अर्पित कर चुकी है.साल में दो बार चैत्र और शरदीय नवरात्र के दौरान यहां 14 दिवसीय उत्सव चलता है,जिसमें देश दुनिया से श्रद्धालुओं यहां पहुंचते हैं.  

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