अनुच्छेद 370 से फ्री बिजली-गैस तक के वादे, क्या इन पर फैसले ले पाएगी जम्मू कश्मीर की नई सरकार?
J&K: अनुच्छेद 370 से फ्री बिजली-गैस तक के वादे, क्या इन पर फैसले ले पाएगी जम्मू कश्मीर की नई सरकार? समझें
हरियाणा और जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजे मंगलवार को आए। अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर के लिए यह पहला विधानसभा चुनाव था। नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन ने बहुमत हासिल कर 10 साल बाद फिर सरकार बनाने का जनादेश हासिल कर लिया। पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला का दोबारा मुख्यमंत्री बनना तय है। हालांकि, वह अब केंद्र शासित प्रदेश के मुखिया होंगे न कि पूर्ण राज्य के। बुधवार को संभावित सीएम उमर अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 और राज्य का दर्जा बहाल करने पर अपनी पार्टी के रुख को दोहराया। उमर ने कहा कि यह मुद्दा नेशनल कॉन्फ्रेंस के राजनीतिक एजेंडे का केंद्र बना हुआ है।
जम्मू कश्मीर की सत्ता में काबिज होने जा रही नेशनल कॉन्फ्रेंस ने चुनाव के दौरान तमाम ऐसे वादे किए जिन पर देशभर में चर्चा हुई। नेकां ने अपनी सरकार आने पर अनुच्छेद 370 की बहाली से मुफ्त बिजली और गैस सिलेंडर देने का का वादा किया। एनसी ने ‘राजनैतिक कैदियों’ की रिहाई का भी वादा किया है। विरोधियों का आरोप है कि इसकी आड़ में पत्थरबाजों को छोड़ने का आश्वासन दिया गया। हालांकि, नई सरकार के लिए हलचल बढ़ने के साथ ही अनुच्छेद 370 समेत तमाम मुद्दों पर सवाल खड़े होने लगे हैं कि क्या केंद्र शासित प्रदेश की सरकार खुद फैसले ले सकती है। इनमें केंद्र और उप-राज्यपाल का कितना हस्तक्षेप होगा। इन तमाम मुद्दों को समझने के लिए अमर उजाला ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और संविधान के जानकार विराग गुप्ता से बात की।
जम्मू कश्मीर नतीजों के बाद अहम सवाल और उनके जवाब
सवाल- अनुच्छेद-370 में बदलाव के लिए नई सरकार के संवैधानिक अधिकार क्या है?
जवाब- संविधान में अनुच्छेद-370 को अस्थायी और तात्कालिक प्रावधान के तौर पर शामिल किया गया था, जिसे अगस्त 2019 में निष्प्रभावी बना दिया गया। इसका विरोध करने वालों के दो बड़े तर्क थे। पहला-संविधान सभा की समाप्ति के बाद इसे खत्म नहीं किया जा सकता है और इसे खत्म करने से जम्मू-कश्मीर के भारत विलय में सवाल खड़े हो जायेंगे, लेकिन 2019 के बदलावों से साफ है कि संसद सर्वोच्च है और इसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मान्यता भी मिल गयी है।
केन्द्र शासित प्रदेश की नई सरकार के पास अनुच्छेद-370 को पुन: बहाल करने के लिए कोई संवैधानिक अधिकार नहीं होंगे। इस बारे में नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार और विधानसभा किसी प्रस्ताव को पारित भी करें तो केन्द्र शासित प्रदेश में उपराज्यपाल के अनुमोदन के बगैर उसका कोई संवैधानिक महत्व नहीं है। अनुच्छेद-370 की स्थिति को बहाल करने के लिए राज्य विधानसभा के प्रस्ताव और एलजी के अनुमोदन के बाद संसद के दोनों सदनों में पूर्ण बहुमत से क़ानून में बदलाव को राष्ट्रपति की मंजूरी जरूरी है।
जवाब- साल-1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के आदेश से अनुच्छेद -35-ए का प्रावधान जोड़ा गया था। उसके अनुसार जम्मू-कश्मीर विधानसभा को राज्य के स्थायी निवासी की परिभाषा तय करने का अधिकार दिया गया था। उसके बाद 1956 में जम्मू-कश्मीर के संविधान में ऐसे प्रावधान किये गये जिसके अनुसार वहां के स्थायी नागरिक को ही सम्पत्ति, रोजगार और सरकारी योजनाओं के लाभ लेने का हक दिया गया। उसके अनुसार ही भारत के किसी अन्य राज्य के नागरिक जम्मू-कश्मीर में अचल सम्पत्ति नहीं खरीद सकते थे। उस कानून के अनुसार राज्य से बाहर शादी करने वाली महिलाओं के बच्चों को स्थायी नागरिकता से वंचित कर दिया जाता था। वह कानून अनुच्छेद-14 की समानता के खिलाफ होने के साथ महिलाओं के लिए भेदभावपूर्ण था। अनुच्छेद-19 के तहत लोगों को पूरे देश में रहने और रोजगार का अधिकार है। इस भेदभावपूर्ण और अलगाववाद को बढ़ाने वाले संवैधानिक प्रावधान को पांच साल पहले संसद में कानूनी बदलाव से हटा दिया गया, जिसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मान्यता मिल गई है। इसलिए यूटी की नई सरकार और विधानसभा के पास अनुच्छेद-370 और अनुच्छेद -35-ए को बहाल करने के बारे में कोई संवैधानिक अधिकार नहीं होंगे।
जवाब- कानून की किताबों में राजनीतिक कैदियों जैसा कोई शब्द नहीं है। जेलों में बंद कैदी दो तरह के होते हैं। पहला जिन्हें अदालत से सजा मिल गई है या फिर उनकी सजा फाइनल हो चुकी है। ऐसे सजा याफ्ता कैदियों को अच्छे आचरण के आधार जल्द रिहाई देने के लिए कानून में प्रावधान हैं। इसके लिए जेल प्रशासन और राज्य सरकार की अनुशंसा के अनुसार यूटी के उपराज्यपाल ही आखिरी फैसला ले सकते हैं। दूसरी श्रेणी में विचाराधीन कैदी होते हैं, जिन्हें अदालत से जमानत मिल सकती है। ऐसे मामलों में राज्य सरकार मुकदमे वापस लेने का भी निर्णय ले सकती है। लेकिन ऐसे सभी मामलों में राज्य मंत्रिमण्डल की सिफारिश से उप-राज्यपाल के पास ही निर्णय लेने का अंतिम अधिकार होगा।
जवाब- ऐसे मामलों में दो बातें महत्वपूर्ण हैं। पहला-क्या इन योजनाओं के लिए केन्द्र सरकार से मदद मिल रही है और क्या राज्य की वित्तीय स्थिति अच्छी है? दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसी योजनाओं को एलजी के औपचारिक अनुमति की जरुरत हो सकती है। जम्मू-कश्मीर के यूटी को दिल्ली से ज्यादा संवैधानिक अधिकार और स्वायत्ता हासिल होगी। लेकिन राज्य के संवैधानिक प्रमुख होने के नाते ऐसे मामलों में एलजी की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है।