सुप्रीम कोर्ट बोला-डॉक्टरों की लापरवाही तभी, जब वह अयोग्य !
सुप्रीम कोर्ट बोला-डॉक्टरों की लापरवाही तभी, जब वह अयोग्य
सर्जरी के बाद मरीज ठीक हो, इसकी गारंटी नहीं; सरकारी डॉक्टर को बरी किया
सुप्रीम कोर्ट ने 28 साल पुराने एक केस में शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी डॉक्टर को लापरवाही के लिए तभी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जब उसके पास योग्यता या स्किल न हो।
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और पंकज मिथल की बेंच ने कहा कि जब तक कि यह साबित नहीं हो जाता कि कोई मेडिकल प्रोफेशनल मरीज का उचित देखभाल या इलाज नहीं कर पाया। तब तक लापरवाही का केस नहीं बनेगा।
दरअसल कोर्ट ने 1996 में एक डॉक्टर के ऑपरेशन में लापरवाही बरतने के आरोपों पर सुनवाई के दौरान ये बातें कहीं। कोर्ट ने डॉक्टर को आरोप से मुक्त कर दिया और शिकायतकर्ता की मुआवजे की याचिका को खारिज कर दिया।
24 साल पहले डॉक्टर ने ऑपरेशन किया था
शिकायतकर्ता के अनुसार, उसके नाबालिग बेटे की बाईं आंख में जन्म से कुछ समस्या थी। जिसके बाद वह डॉक्टर के पास गए। साल 1996 में चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (PGIMER) में डॉ नीरज सूद ने बच्चे का ऑपरेशन किया। ऑपरेशन के दौरान डॉक्टर को बाईं पलक को थोड़ा ऊपर उठाकर दाहिनी आंख के बराबर करना था। शिकायतकर्ता ने डॉक्टर पर ऑपरेशन में गड़बड़ी करने का आरोप लगाया। जिससे सर्जरी के बाद लड़के की हालत बिगड़ गई।
नेशनल कंज्यूमर ने लापरवाही मानी, मुआवजे का आदेश ऑपरेशन के बाद शिकायतकर्ता ने डॉ सूद और PGIMER के खिलाफ लापरवाही का आरोप लगाया, जिसे स्टेट कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसन कमीशन (SCDRC) ने 2005 में खारिज कर दिया। जिसके बाद NCDRC में शिकायत की गई। एनसीडीआरसी ने राज्य आयोग के फैसले को खारिज कर दिया और कहा कि डॉक्टर और अस्पताल इलाज में लापरवाही के जिम्मेदार हैं और 3 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया।
डॉक्टर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई डॉ सूद और अस्पताल ने NCDRC के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए अपील दायर की। कोर्ट ने पाया कि शिकायतकर्ताओं ने डॉ. सूद या पीजीआईएमईआर की ओर से लापरवाही साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं पेश किया।
बेंच ने कहा कि सर्जरी के बाद मरीज की हालत में गिरावट का मतलब यह नहीं कि ऑपरेशन ठीक नहीं हुआ। हर बार सर्जरी ठीक हो यह जरूरी नहीं है।
कई बार ऐसा होता ऑपरेशन के बाद कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन इससे मेडिकल प्रोफेशनल की ओर से कोई लापरवाही साबित नहीं होती है।
कोर्ट ने कहा कि चूंकि शिकायतकर्ता डॉक्टर या पीजीआई की ओर से किसी लापरवाही को साबित करने में असफल रहे हैं, इसलिए वे किसी भी मुआवजे के हकदार नहीं हैं।