क्यों नहीं सुधर रही भारत के किसानों की हालत?
न्यूनतम समर्थन मूल्य और भारी सब्सिडी के बाद भी क्यों नहीं सुधर रही भारत के किसानों की हालत?
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) के 2018 के आंकड़ों के अनुसार, केवल 6% किसान अपनी उपज न्यूनतन समर्थन मूल्य पर बेचने में सक्षम हैं.
भारत के किसान हमारी कृषि व्यवस्था की रीढ़ हैं, लेकिन आज उनकी हालत चिंताजनक है. सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और सब्सिडी जैसी योजनाएं तो बनाई हैं, लेकिन इसका असर वास्तविकता में नजर नहीं आ रहा है. किसान लगातार बढ़ती लागत, मौसम की अनिश्चितता और बाजार में कम दामों जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं.
ऐसे में इस रिपोर्ट में हम जानेंगे कि आखिर क्यों ये सरकारी उपाय किसानों के जीवन में सुधार नहीं ला पा रहे हैं और उनकी परेशानियों का क्या समाधान हो सकता है.
सबसे पहले जानिए क्या है न्यूनतम समर्थन मूल्य
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) एक सरकारी तंत्र है जो किसानों को उनकी फसल का एक निश्चित न्यूनतम मूल्य सुनिश्चित करता है. इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि किसान अपनी उपज का उचित मूल्य प्राप्त कर सकें, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके. MSP का निर्धारण विभिन्न फसलों के लिए किया जाता है और इसे कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों के आधार पर निर्धारित किया जाता है.
MSP किसानों को सुरक्षा प्रदान करता है, ताकि अगर बाजार में उनकी फसल की कीमत कम होती है, तो भी उन्हें एक निश्चित न्यूनतम मूल्य मिल सके. यह आमतौर पर किसानों की उत्पादन लागत से ज्यादा होता है, जिससे उन्हें लाभ मिलता है. अगर बाजार में फसल की कीमत MSP से नीचे जाती है, तो सरकार आमतौर पर अपनी खरीद केंद्रों के माध्यम से किसानों से फसलें खरीदती है.
यह प्रणाली कृषि की स्थिरता और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देती है. इससे किसानों को फसल उगाने के लिए प्रोत्साहन मिलता है और छोटे एवं गरीब किसानों के लिए एक सुरक्षा जाल का काम करती है. हालांकि, MSP के प्रभावी कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ भी हैं, जैसे भ्रष्टाचार और पहुँच में असमानता, जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है.
क्या MSP से भारत के किसानों की स्थिति में सुधार हो पाया है?
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के बावजूद भारत के किसानों की स्थिति में सुधार को लेकर मिली-जुली तस्वीर है. MSP का उद्देश्य किसानों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है, लेकिन इसके प्रभावों की वास्तविकता विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) के 2018 के आंकड़ों के अनुसार, केवल 6% किसान अपनी उपज MSP पर बेचने में सक्षम हैं. जिससे ये पता चलता है कि ज्यादातर किसान बाजार के उतार-चढ़ाव के कारण सही मूल्य नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं.
वहीं कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की रिपोर्टों के अनुसार, MSP की घोषणा के बावजूद कई फसलों के लिए वास्तविक बाजार मूल्य अक्सर MSP से कम होता है, जिससे किसानों को नुकसान होता है. इसके अलावा साल 2021 में कृषि मंत्रालय ने बताया कि MSP की व्यवस्था से धान और गेहूं जैसी फसलों के उत्पादन में वृद्धि हुई है, लेकिन इसके साथ ही, कुछ फसलों के लिए उत्पादन लागत और ऋणों में वृद्धि की भी रिपोर्ट मिली है.
कर्ज की स्थिति
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के आंकड़ों के अनुसार, किसानों का कुल कर्ज 2018 में लगभग 13.32 लाख करोड़ रुपये था. यह दर्शाता है कि किसानों पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ रहा है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर असर पड़ रहा है.
कृषि मंत्रालय के अनुसार, पिछले कुछ सालों में किसानों की औसत आय में गिरावट आई है. साल 2019-20 में किसान परिवारों की औसत मासिक आय लगभग 6,426 रुपये थी, जबकि इससे पहले के सालों में यह अधिक थी.
सब्सिडी की स्थिति
केंद्र और राज्य सरकार किसानों को बीज, खाद, और कीटनाशकों जैसी चीजों पर कई अलग अलग प्रकार की सब्सिडी प्रदान करती हैं. जैसे की साल 2021-22 के बजट में, कृषि क्षेत्र के लिए लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी की घोषणा की गई थी. लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सब्सिडी किसानों के वास्तविक लाभ में परिवर्तित हो रही है?
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 30 प्रतिशत सब्सिडी का वितरण भ्रष्टाचार और मध्यस्थताओं के कारण प्रभावित होता है. इसका मतलब है कि जो सब्सिडी किसानों को मिलनी चाहिए, वह कई बार उन तक सही तरीके से नहीं पहुंच पाती है.
सब्सिडी किसानों तक नहीं पहुंच पाने के कई कारण है. इनमें भ्रष्टाचार, प्रक्रियाओं की जटिलता शामिल है. सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार एक गंभीर समस्या है. कई बार सरकारी अधिकारी या मध्यस्थ किसान के नाम पर सब्सिडी का पैसा खुद ही हड़प लेते हैं. इससे किसानों को उनकी अधिकारिक सब्सिडी नहीं मिलती.
इसके अलावा सब्सिडी का वितरण भी कई स्तरों पर होता है, जिसमें सरकारी विभाग, बैंकों और अन्य एजेंसियां शामिल होती हैं. इस प्रक्रिया में कई लोग शामिल होते हैं, जो अपनी तरफ से लाभ लेने की कोशिश करते हैं. यह अतिरिक्त खर्च और समय की बर्बादी का कारण बनता है. कई बार सब्सिडी पाने के लिए किसानों को जटिल प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ता है, जैसे कि फॉर्म भरना, दस्तावेज जमा करना आदि. इन प्रक्रियाओं के कारण कई किसान सही समय पर सब्सिडी प्राप्त नहीं कर पाते है.
ऐसे में जब किसानों को उनकी जरूरत के अनुसार सब्सिडी नहीं मिलती, तो उनकी आर्थिक स्थिति और खराब होती है. इससे वे अपनी फसलों के उत्पादन में कमी ला सकते हैं, या फिर उन्हें उधारी पर निर्भर होना पड़ता है.
क्या किसानों को सब्सिडी का फायदा मिल रहा है
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा दिए जा रहे सब्सिडी का लाभ कुछ हद तक किसानों को मिल रहा है, लेकिन इसके प्रभाव सीमित भी हैं. कृषि मंत्रालय के अनुसार, 2021-22 में भारत सरकार ने कृषि क्षेत्र के लिए लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी जारी की. इनमें खाद, बीज, कीटनाशक, और अन्य कृषि उपकरण शामिल हैं. ये सब्सिडी किसानों की उत्पादन लागत को कम करने में मदद करती हैं.
हालांकि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) की 2018 की रिपोर्ट कहती है कि भारत के किसानों ने सब्सिडी का लाभ उठाने की कोशिश की, लेकिन कई किसानों को भ्रष्टाचार और वितरण की समस्याओं का सामना करना पड़ा जिसके कारण उन्हें इसका पूरा लाभ नहीं मिल पाया. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल 6% किसान अपनी उपज MSP पर बेचने में सफल होते हैं, जो बताता है कि सब्सिडी का प्रभाव सीमित है.
किसानों का कुल कर्ज 13.32 लाख करोड़ रुपये
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की रिपोर्ट के अनुसार, किसानों का कुल कर्ज 13.32 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. जिसका मतलब है कि सरकार की तरफ से सब्सिडी दिए जाने के बाद भी भारत के कई किसान आर्थिक दबाव में हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सब्सिडी पूरी तरह से उनकी समस्याओं का समाधान नहीं कर पा रही है.
किसानों की आय में गिरावट
वहीं कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, किसान परिवारों की औसत मासिक आय 2019-20 में 6,426 रुपये थी, जबकि इससे पहले के वर्षों में यह अधिक थी. यह संकेत करता है कि किसानों की आय में सुधार नहीं हो रहा है, भले ही सरकार सब्सिडी प्रदान कर रही हो.
नई नीतियों की आवश्यकता
किसानों की वर्तमान स्थिति को सुधारने के लिए नई नीतियों की आवश्यकता है. MSP को अधिक पारदर्शी और सुलभ बनाया जाना चाहिए, ताकि सभी किसान इस प्रणाली का लाभ उठा सकें. इसके साथ ही, फसल बीमा योजनाओं को भी बेहतर तरीके से लागू करने की जरूरत है, ताकि किसान प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को सहन कर सकें.
इसके अलावा, कृषि में तकनीकी सुधार और नवाचार को बढ़ावा देना भी बेहद जरूरी है, इससे उनकी अपनी उत्पादकता बढ़ेगी और किसान वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होंगे.