लैंगिक समानता: UN महिला संगठन की सराहना उत्साहित करने वाली !

लैंगिक समानता: UN महिला संगठन की सराहना उत्साहित करने वाली, लेकिन सिर्फ नीतियां नाकाफी; समाज को बदलनी होगी सोच
भारत: भारत में लैंगिक समानता की दिशा में हो रही प्रगति की जिस तरह संयुक्त राष्ट्र (यूएन) महिला संगठन ने प्रशंसा की है, वह निस्संदेह उत्साहित करने वाली है। लेकिन लैंगिक समानता के आदर्श को पाने के लिए सिर्फ नीतियां ही काफी नहीं, समाज को अपनी सोच भी बदलनी होगी।

Gender equality: UN Women's Organization's praise is encouraging, but policies alone are not enough
सांकेतिक तस्वीर
लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में कार्यरत संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएन वूमेन के पदाधिकारियों का हाल ही में भारत में लैंगिक समानता की दिशा में हो रही प्रगति की सराहना करना उत्साहित करने वाला तो खैर है ही, इससे पिछले कुछ वर्षों में देश में महिलाओं की आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक बेहतरी के लिए उठाए गए कदमों से आ रहे सकारात्मक बदलावों की भी पुष्टि होती है।

पितृसत्तात्मक सोच रही हावी
हालांकि, संयुक्त राष्ट्र के महिला संगठन के पदाधिकारियों का यह भी कहना है कि सामाजिक मान्यताओं व सुरक्षा से जुड़े मुद्दे अब भी बाधा बने हुए हैं, जिससे आगे की मुश्किल चुनौतियों के संकेत भी मिलते हैं। दरअसल, पितृसत्तात्मक सामाजिक मान्यताओं और रूढ़िवादी सोच के चलते देश में लैंगिक समानता पूरी तरह से स्थापित नहीं हो सकी है। 

बावजूद इसके कि शिक्षा व रोजगार के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है, देश के कई हिस्सों में आज भी महिलाओं को केवल घरेलू कार्यों तक सीमित करते हुए उनके पेशेवर जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बाधित किया जाता है।

सुरक्षा आज भी बड़ा सवाल
इसके अतिरिक्त, उनकी सुरक्षा का मुद्दा भी एक बड़ा सवाल है। रात के वक्त बाहर निकलने की स्वतंत्रता और सार्वजनिक परिवहन व कार्यस्थल में सुरक्षा के मुद्दों पर देश को अभी लंबा सफर तय करना है। विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की लैंगिक समानता पर ताजा रिपोर्ट में शिक्षा व राजनीतिक सशक्तीकरण जैसे क्षेत्रों में कुछ सुधार के बावजूद दुनिया भर के देशों में भारत का नेपाल व भूटान जैसे पड़ोसी देशों से भी नीचे होना कई चुनौतियों को दर्शाता है। 

हालांकि यूएन वूमेन की यह स्वीकारोक्ति महत्वपूर्ण है कि भारत में लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण संबंधी नीतियों पर भारी निवेश किया जा रहा है, जिसके नतीजे भी दिख रहे हैं। देश में महिला श्रम की भागीदारी करीब 37 फीसदी हो गई है। 

सदन में महिला आरक्षण निभाएगी अहम भूमिका 
महिलाओं का पंचायतों व नगरीय निकायों में प्रतिनिधित्व बढ़ा है। तैंतीस फीसदी महिला आरक्षण लागू होने के बाद केंद्रीय शासन में भी महिलाओं की स्थिति बेहतर होगी। हाल के कुछ वर्षों में देश में जेंडर बजट के विचार को अपनाया गया है और महिला केंद्रित कार्यक्रमों के लिए बजट को बढ़ाया गया है। 

बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओं जैसी योजनाओं से हौसला
इसके अतिरिक्त बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, वन स्टॉप सेंटर योजना, महिला हेल्पलाइन और महिला शक्ति जैसी योजनाओं के जरिये महिला सशक्तीकरण के प्रयास किए गए हैं, जिनके परिणामस्वरूप लिंगानुपात और बालिकाओं के शैक्षिक नामांकन में प्रगति देखी जा रही है। यूएन वूमेन की प्रशंसा निस्संदेह प्रशंसनीय है, लेकिन यह भी समझना होगा कि नीतियां अपनी जगह हैं, पर लैंगिक समानता के आदर्श को पाने के लिए समाज को अपनी सोच भी बदलनी होगी।

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