पटाखों की राजधानी ने यूं भारत का सीना चौड़ा कर दिया ?

Sivakasi: भीषण सूखा-बेरोजगारी से कैसे हुआ शिवकाशी का जन्म?

पटाखों की राजधानी ने यूं भारत का सीना चौड़ा कर दिया

Sivakasi Fireworks Capital History: भीषण सूखा और बेरोजगारी ने तमिलनाडु के शिवकाशी को पटाखों की राजधानी बना दिया. पूरे देश में इस्तेमाल होने वाले 90 फीसदी पटाखे इसी शिवकाशी में बनते हैं. यहां करीब 8 हजार छोटे-बड़े पटाखों के कारखाने हैं. दुनियाभर में अब चीन और जापान के साथ भारत के शिवकाशी का नाम लिया जाता है. पढ़ें कैसे एक छोटी सी जगह पटाखों की राजधानी बन गई.

Sivakasi: भीषण सूखा-बेरोजगारी से कैसे हुआ शिवकाशी का जन्म? पटाखों की राजधानी ने यूं भारत का सीना चौड़ा कर दिया

शिवकाशी में अब भी 98 फीसद पटाखे पुराने फॉर्मूलों से ही बनते हैं.Image Credit source: Getty Images

दीपावली आए और पटाखों की चर्चा न हो, ऐसा भला कैसे हो सकता है और पटाखों की बात शुरू होती है तो सहसा शिवकाशी जेहन में घूम जाती है. शिवकाशी, जिसे आतिशबाजी की राजधानी कहा जाता है. शिवकाशी की इकोनॉमी पूरी तरह से पटाखों के निर्माण और इसकी बिक्री पर टिकी है. यह वही शिवकाशी है, जो एक समय पर भीषण सूखे से बेहाल हो गई थी. तब यहीं से कलकत्ता (अब कोलकाता) गए दो भाई कुछ ऐसा सीख कर लौटे कि आज यह रोशनी और आवाज के उद्योग में पहले स्थान पर पहुंच चुकी है और इसके कारण भारत दुनिया में पटाखों के निर्माण में दूसरे स्थान पर पहुंच गया है. चीन और जापान के साथ अब भारत के शिवकाशी का नाम लिया जाता है. पटाखों की राजधानी शिवकाशी ने दुनियाभर में भारत का सीना चौड़ा कर दिया. आइए जान लेते हैं शिवकाशी के पटाखों की राजधानी बनने की पूरी कहानी.

पटाखा बनाने में सिद्धहस्त होने के बाद दोनों नाडर भाई शिवकाशी लौट गए. पटाखा निर्माण के लिए सूखा मौसम उनके लिए मुफीद साबित हुआ, क्योंकि आतिशबाजी के लिए जरूरी बारूद नमी में खराब हो सकता है. इसलिए शिवकाशी का सूखा उनके लिए वरदान बन गया और दोनों भाइयों ने पटाखों का निर्माण शुरू कर दिया. साथ ही साथ दूसरे लोगों को भी पटाखे बनाना सिखाने के साथ इसका निर्माण और बिक्री कर कमाने का आइडिया दिया. लोगों को आइडिया पसंद आया और धीरे-धीरे पूरे शहर में आतिशबाजी का निर्माण होने लगा और देखते ही देखते वहां आतिशबाजी उद्योग की शुरुआत हो गई.

भारत के पटाखा उद्योग में 90 फीसदी योगदान

तमिलनाडु राज्य के विरुदुनगर जिले में स्थित शिवकाशी में आज करीब 8000 छोटे-बड़े पटाखा कारखाने हैं. देश भर में पटाखों के उत्पादन में शिवकाशी का योगदान करीब 90 फीसद है. चूंकि शिवकाशी में लगातार औद्योगिक गतिविधियां चलती रहती हैं, इसलिए इसे मिनी जापान भी कहा जाता है. एक और खास बात है कि शिवकाशी में अब भी 98 फीसद पटाखे पुराने फॉर्मूलों से ही बनते हैं. पांच साल पहले शिवकाशी का पटाखा कारोबार 6500 करोड़ रुपये का था. तमाम तरह के प्रतिबंधों के कारण इसमें वृद्धि के बजाय 40 से 60 फीसद की कमी आई है.

साल भर बनाई जाती है माचिस

शिवकाशी में नाडर समुदाय का ही अब भी आतिशबाजी के निर्माण में दबदबा कायम है. हालांकि, आतिशबाजी की सबसे अधिक मांग दीपावली और शादियों के सीजन में होती है, इसलिए यह एक तरह से मौसमी उद्योग है. साल के बाकी के महीनों में आतिशबाजी उद्योग से जुड़े लोग माचिस का निर्माण करते हैं. पूरे देश में माचिस के कुल उत्पादन का करीब 80 फीसद योगदान शिवकाशी का ही है. आज इस शहर में फायरवर्क्स रिसर्च और डेवलपमेंट सेंटर (एफआरडीसी) तक है. यहीं पर पूरे आतिशबाजी उद्योग के लिए मानक तय किए जाते हैं.

कभी ऐसे दिखते थे शिवकाशी में बने पटाखों के पोस्टर
सेना से भी है शिवकाशी का नाता

एफआरडीसी में ही कच्चे माल की जांच होती है. पटाखा निर्माण के दौरान सुरक्षा के मानकों की जांच के साथ ही निर्माण उद्योग में लगे लोगों के लिए सुरक्षित वातावरण तैयार किया जाता है. आज उत्तरकाशी भारतीय सेना से भी जुड़ चुका है. यहां सेना के लिए अस्त्र-शस्त्र के साथ ही तोपखानों के लिए खास तरह के गोले भी बनाए जाते हैं. यहां पर सेना के लिए खास माचिस बनाई जाती है जो तूफान, बारिश और बर्फ में भी काम करती है. अभ्यास के लिए बम भी शिवकाशी में ही बनाए जाते हैं.

शिवकाशी के अलावा आज देश के कई अन्य स्थानों पर भी पटाखों का निर्माण होने लगा है पर इनका योगदान कुल मिलाकर 10 फीसद से भी कम है. वहीं, शिवकाशी के पटाखे विदेश तक को निर्यात किए जाते हैं. यहां के पटाखे सऊदी अरब तक जाते हैं. तमाम तरह के प्रतिबंधों के कारण कारोबार में कमी आने के बावजूद इसका दबदबा कायम है. हालांकि, ग्रीन पटाखों के निर्माण पर कम जोर होने के कारण यहां के कई पटाखा कारोबारियों को नुकसान भी झेलना पड़ रहा है. इसके बावजूद यहां के 6.5 लाख से ज्यादा परिवार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर पटाखा कारोबार से जुड़े हैं.

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