नई जेनरेशन को तकनीक जबकि पुरानी जेनरेशन को पता होता है कि गलतियां कहां होती है

नई जेनरेशन को तकनीक जबकि पुरानी जेनरेशन को पता होता है कि गलतियां कहां होती है

जहां तक बात प्रोफेशनल कोर्सेज के फ्यूचर की है तो सभी कोर्सेज अध्ययन के मामले में बहुत सटीक हैं. बेसिक साइंसेज, बेसिक कार्ड्स, बेसिक ह्यूमेनिटी, बेसिक कॉमर्स बहुत ज्यादा जरूरी है.

लेकिन, जब हम प्रोफेशनल वर्ल्ड में आते हैं तो हमारी सोच थोड़ी से बदलती है कि जो अध्ययन हम कर रहे हैं, जो ज्ञान हमने प्राप्त किया, वो मानवता के लिए कैसे और ज्यादा लाभकारी हो. न सिर्फ लंबे सोच के हिसाब से बल्कि यथार्थ में समाज को क्या कुछ उसका फायदा हो. क्योंकि समाज को आज भी देखना है कि हमारी प्रगति क्या है, हमारी इकॉनोमी क्या है, साथ ही हमारी दूरगामी सोच क्या रहेगी, ताकि जो कुछ भी अच्छी चीजें चल रही हों, वो व्यवस्था सुचारु रुप से चलती रहे.

नई पीढ़ी तकनीक फ्रैंडली

इस लिहाज से हमें वर्तमान भी देखना होगा और भविष्य भी. इसलिए प्रोफेशन कोर्स बहुत ज्यादा जरूरी है. 12वीं के बाद बच्चे अगर इंजीनियरिंग के विकल्प चुनते हैं तो इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं. इंजीनियरिंग से बच्चों को एक समझ विकसित होती है कि वो कैसे अलग-अलग विषयों में अपना सामर्थ्य बढ़ा सकते हैं. अभियांत्रिकी करके जरूरी नहीं कि हर इंजीनियर यानी अभियांत्रिक मशीन ही बनाए, प्रोडक्शन ही करे, पुल ही बनाए, बल्कि वो फाइनेंस फील्ड में बहुत ज्यादा अच्छा कर सकते हैं, प्लानिंग में बहुत ज्यादा अच्छा कर सकते हैं, ऑपरेशंस फील्ड में बहुत ज्यादा अच्छे कर सकते हैं.

ये बहुत ज्यादा जरूर है समझ पैदा करने की, अनुशासन पैदा करने की. इसी के साथ, बीबीए यानी बैचलर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन और बैचलर ऑफ कम्यूटर एप्लीकेशन बहुत ज्यादा अच्छे कोर्सेज हैं. अब नई एजुकेशन पॉलिसी 2020 के तहत ये कोर्सेज भी चार साल के होने वाले हैं. यानी 10+2+4 का एजुकेशन. 
परंतु, उन बच्चों को कड़ी मेहनत करनी होगी. बीबीए एक ऐसा ग्रुप है जिसमें बच्चे टूरिज्म मैनेजमेंट, इंटरप्रेन्यूयरशिप मैनेजमेंट, ह्यूमेन रिसोर्स, मार्केटिंग, एडवरटाइजिंग, ह्यूमेन रिसोर्स और कई अलग चीजें, जैसे- डिजिटल मार्केटिंग भी सीखते हैं, बिजनेस एनालिटिक्स भी सीखते हैं. 

इसी तरह बीसीए भी कम्यूटर साइंस जैसा ही हो गया है, क्योंकि उसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, पाइथन, जावा, डेटा साइंस और डेटा माइनिंग जैसे जटिल और वैसे विषय हैं, जो बच्चों को तुरंत चाहिए. इनकी डिमांड इंडस्ट्री में बहुत ज्यादा है.

कम्यूटर साइंस की बढ़ी डिमांड

आजकल जबकि सरकार पर ऐसा दबाव है कि उसमें छात्रवृत्तियों को काफी कट किया जा रहा है. ऐसे में इस क्षेत्र के संस्थानों का ये दायित्व है कि वे मेधावी छात्रों के लिए छात्रवृत्तियां दे. जहां तक पीजीडीएम प्रोग्राम की बात है तो ये प्रोग्राम एमबीए से काफी ज्यादा आगे होता है. जो मेधावी छात्र कैट, मैट और जैट की तैयारी करते हैं उनको पता है कि पीजीडीएम प्रोग्राम सबसे नवीनतम कोर्स है. सभी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट सिर्फ पीजीडीएम ही 2017 तक देते थे, जब तक कि इंडियन पार्लियामेंट ने बिल पास करके बहुत आसान नहीं कर दिया.

पीजीडीएम प्रोग्राम में कोई आयुसीमा निर्धारित नहीं है. प्रोग्राम में इंजीनियरिंग, आर्ट्स और कॉमर्स किसी के जरिए भी आ सकते हैं. इसके साथ ही, यहां पर पढ़ाई किसी कोर्स बुक पर नहीं बल्कि प्रोजेक्ट्स, इंडस्ट्रियल इंटर्नशिप पर निर्भर करता है. आपने देखा होगा कि वे चाहे फील्ड जर्नलिज्म का हो या बैंकिंग का हो, जिंदगी इम्तिहान 3 घंटे में नहीं लेती है. जिंदगी ऑपर्चुनिटी देती है, ऐसी विषमताएं भी होती हैं, जिसे दूर करने के लिए बहुत सारे सहयोगी भी हो सकते हैं. 

सफलता प्राप्त करने के लिए 3 घंटी की परीक्षा ही मात्र नहीं होता है, परंतु प्रोजेक्ट्स को लेने, नवीन सोच के साथ उसे प्रेषित करना और इकॉनोमी में और कैसे नई चीजें की जा सकती है, उनको अग्रसर करना ये भी जरूरी होता है. किसी भी पीजीडीआईएम प्रोग्राम में की ऐसे शोध और प्रयोग किए गए हैं, जिससे हमारे बच्चों को न सिर्फ वे इंडस्ट्री में जॉब के लिए तैयार होते हैं, बल्कि इंडस्ट्री को चाहिए जो फ्यूचर रेडी हों. अगर बच्चे फ्यूचर रेडी नहीं होंगे तो कंपनी फ्यूचर प्रूफ नहीं हो सकती है.

 कुछ बच्चे बहुत पहले से एकदम ये समझकर आते हैं कि उन्हें जो कुछ भी पढ़ाई करनी है, वो या तो एक जॉब के लिए चाहिए वो चाहे सरकारी हो या फिर प्राइवेट हो. परंतु बहुत ऐसे मेधावी छात्र हैं, जो ये सवाल करते हैं कि हम जो पढ़ाई कर रहे हैं, ऐसे क्यों कर रहे हैं.

अगर एक बच्चे न्यूटन लॉ ऑफ थर्ड मोशन पढ़े, तो क्यों पढ़े. उसकी जिंदगी इसका क्या कुछ प्रभाव पड़ेगा. अगर एक पीजीडीआईएम का बच्चा थ्री पीस ऑफ मार्केटिंग पढ़ता है, तो थ्री पीस ऑफ मार्केटिंग को कैसे वो यूज करेगा. क्या वो सिर्फ इसका एग्जाम में डेफिनिशन लिखकर आ जाएगा? या फिर वो कैसे उसको वर्कप्लेस पर इस्तेमाल करे, ये जानना काफी जरूरी है.

इसलिए प्रैक्टिकल एप्रोच अपनाना बहुत ही जरूरी है और इन चीजों के लिए हम बच्चों को प्रेरित करते हैं कि वे सवाल पूछें, सीखें और प्रयोग करके सीखें. खुद प्रोजेक्टस करके सीखें न कि सिर्फ याद करते. बौद्धिक क्षमता जरूरी है, याद करने की क्षमता जरूरी है और उससे भी ज्यादा जरूरी है नवीनतम चीजों से सीखना. इंग्लिश में एक कहावत है आई रीड, आई फॉरगेट. आई राइट आई रिमैम्बर. आई डू एंड आई रिमैम्बर फॉर लाइफ. 

जहां तक न्यू एजुकेशन पॉलिसी की बात है तो इसने इंडियन एजुकेशन को ग्लोबल स्तर पर लाने की कोशिशें की हैं. इसमें क्रेडिट बेस एजुकेशन है. इसमें क्लासरुम बेस स्टडी, जो कि बहुत जरूरी है. बेस बनना बहुत जरूरी है. जब तक आप डेफिनेशन याद नहीं करेंगे, आप उसे रियल वर्ल्ड में यूज नहीं कर सकते हैं. लेकिन, ये आज के ग्लोबल वर्ल्ड इकॉनोमी में ये काफी जरूरी था. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि ….न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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