आम आदमी का खर्चा-पानी: किस राज्य के गांव और शहर में लोग सबसे खर्चीले?
आम आदमी का खर्चा-पानी: किस राज्य के गांव और शहर में लोग सबसे खर्चीले?
समाज के अलग-अलग तबकों के लोगों का औसतन मासिक खर्च भी बताया गया है. रिपोर्ट में अनुसूचित जनजाति (ST), अनुसूचित जाति (SC), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अन्य श्रेणियों के लोगों के खर्च का हिसाब भी है.
भारत में अलग-अलग राज्य के लोग अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा खाने-पीने और अपनी जरूरतों पर खर्च करते हैं. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में खाने-पीने और गैर-खाद्य खर्च का प्रतिशत अलग-अलग है. 2022-23 में एक आम आदमी कितना खर्च कर रहा था. यह जानकारी पारिवारिक उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) में ‘मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय’ (MPCE) के आधार पर निकाली गई है.
रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 में गांवों में एक व्यक्ति औसतन 3773 हर महीने खर्च करता है, जबकि शहरों में यह आंकड़ा 6459 है. गांव के सबसे गरीब 5% लोगों का औसत खर्च सिर्फ 1373 है, जबकि शहर के सबसे गरीब 5% लोग 2001 खर्च करते हैं. वहीं, गांव के सबसे अमीर 5% लोग 10,501 खर्च करते हैं और शहर के अमीर 20,824 हर महीने खर्च करते हैं. सरकारी योजनाओं से मुफ्त में मिली चीजों का मूल्य इसमें शामिल नहीं है.
सिक्किम में लोग सबसे ज्यादा (गांव में 7731 और शहर में 12,105) खर्च करते हैं. सबसे कम खर्च छत्तीसगढ़ (गांव में 2466 और शहर में 4483) में होता है. मेघालय में गांव और शहर के खर्च में सबसे ज्यादा अंतर (83%) है, उसके बाद छत्तीसगढ़ (82%) का नंबर आता है. केंद्र शासित प्रदेशों की बात करें तो चंडीगढ़ में सबसे ज्यादा खर्च गांव में 7467 और शहर में 12,575 रुपये होता है. सबसे कम खर्च लद्दाख (गांव 4035) और लक्षद्वीप (शहर 5475) में है.
खाने-पीने पर आम आदमी का खर्चा
रिपोर्ट में बताया गया है कि गांव के लोग अपनी कमाई का 46.38% हिस्सा खाने-पीने पर खर्च करते हैं, जबकि शहर के लोगों का खर्च है 39.17%. बाकी खर्चा लोग एजुकेशन, ट्रैवल, मेडिकल, शॉपिंग और टैक्स देने में करते हैं. इनमें भी ग्रामीण और शहरी दोनों सबसे ज्यादा पेय पदार्थ और प्रोसेस्ड फूड पर खर्च करते हैं. गांव में 9.62% हिस्सा यानी 363 रुपये और शहर में 10.64% यानी 687 रुपये खर्च होता है. प्रोसेस्ड फूड में कई तरह के खाने शामिल हैं, जैसे: पैकेट बंद खाना, रेडी-टू-ईट फूड, फ्रोजन फूड, डिब्बा बंद खाना आदि.
किस राज्य में कितना खर्च?
आंध्र प्रदेश के लोग सबसे ज्यादा खर्च करते हैं- गांव में औसत 4870 रुपये और शहर में 6782 रुपये मासिक. वहीं छत्तीसगढ़ में लोगों का सबसे कम खर्च होता है. यहां गांव में 2466 और शहर में 4483 रुपये मासिक खर्च है. राजधानी दिल्ली में शहर और गांव के खर्च में ज्यादा अंतर (6576 और 8217) नहीं है. गोवा में भी यह अंतर (7367 और 8734) कम है. केरल में गांव के लोग (5924 रुपये) शहर के लोगों (7078 रुपये) से ज्यादा खर्च करते हैं.
अगर किसी राज्य में ‘मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय’ (MPCE) कम है, तो इसका मतलब है कि वहां के लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है.
कौन कितना खर्च करता है?
इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि 2022-23 में भारत में अलग-अलग तरह के काम करने वाले लोग औसतन कितना खर्च करते थे. ग्रामीण इलाकों में खेती का काम करने वाले लोगों का मासिक औसत खर्च 3702 रुपये है. खेती से अलग किसी और काम में खुद का काम करने वाले हर महीने करीब 4074 खर्च करते हैं. खेती में नियमित मज़दूरी/वेतन पाने वाले लोगों का खर्च 3597 खर्च है. खेती से अलग किसी और काम में नियमित मजदूरी/वेतन पाने वालों का खर्च 4533 रुपये है. खेती में दिहाड़ी मजदूर औसतन 3273 रुपये खर्च कर देते हैं. खेती से अलग किसी और काम में दिहाड़ी मजदूर 3315 खर्च करते हैं.
वहीं शहरी इलाकों में खुद का काम करने वाले मासिक 6067 रुपये खर्च करते हैं. नियमित वेतन पाने वाले लोगों का खर्च 7146 रुपये है. वहीं दिहाड़ी मजदूरों का औसत मासिक खर्च थोड़ा कम 4379 रुपये है.
समाज के अलग-अलग तबकों में कितना खर्च होता है?
2022-23 की रिपोर्ट में समाज के अलग-अलग तबकों के लोगों का भी औसतन मासिक खर्च बताया गया है. इस रिपोर्ट में अनुसूचित जनजाति (ST), अनुसूचित जाति (SC), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अन्य श्रेणियों के लोगों के खर्च का हिसाब दिया गया है.
ग्रामीण इलाकों में ST समूह का औसत MPCE 3016 रुपये है. यह खर्च दर्शाता है कि इन क्षेत्रों में लोगों की आर्थिक स्थिति सीमित है और वे अपनी दैनिक आवश्यकताओं के लिए सीमित साधनों का उपयोग करते हैं. शहरी क्षेत्रों में ST का औसत MPCE 5414 रुपये है, जो ग्रामीण क्षेत्रों से ज्यादा है. शहरी इलाकों में ज्यादा खर्चा वहां की जीवनशैली और आवश्यकता को दर्शाता है, हालांकि यह दूसरे शहरी ग्रुप की तुलना में कम है.
अनुसूचित जाति (SC) समूह के लोग ST की तुलना में थोड़ा अधिक खर्च करते हैं. SC समूह का औसत MPCE 3474 है. वहीं शहरी इलाकों में SC समूह का औसत MPCE 5307 है. शहरी क्षेत्रों में इनके खर्च में मामूली वृद्धि होती है.
अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का खर्च अनुसूचित जाति और जनजाति के मुकाबले अधिक है. ग्रामीण इलाकों में OBC का औसत MPCE 3848 है. यह दर्शाता है कि इस समूह की आर्थिक स्थिति अन्य पिछड़े वर्ग की तुलना में थोड़ी बेहतर है. शहरी इलाकों में OBC का औसत MPCE 6177 है, जो दर्शाता है कि शहरी क्षेत्रों में OBC समूह के लोग खर्च करने में सक्षम हैं.
सरकारी मदद मिलने कम हुआ लोगों का खर्च?
अगर सरकारी योजनाओं से मुफ्त मिली चीजों की कीमत भी जोड़ दी जाए, तो यह आंकड़ा थोड़ा बदल जाता है. मतलब कि फ्री राशन, दवाई या दूसरी चीजें मिलने से लोगों का खर्चा थोड़ा बढ़ रहा है. गांव में प्रति व्यक्ति खर्च 87 रुपये बढ़कर 3860 रुपये हो जाता है और शहर में पहले से 62 रुपये ज्यादा 6521 रुपये हो गया.
गांव के सबसे गरीब 5% लोग औसतन 1441 हर महीने खर्च करते हैं. वहीं शहर के सबसे गरीब 5% लोग औसतन 2087 हर महीने खर्च करते हैं. ऐसे ही गांव के सबसे अमीर 5% लोग औसतन 10,581 हर महीने खर्च करते हैं. वहीं शहर के सबसे अमीर 5% लोग औसतन 20,846 हर महीने खर्च करते हैं.
सिक्किम में लोग सबसे ज्यादा खर्च करते हैं. वहां गांव में रहने वाले लोग औसतन 7787 और शहर में रहने वाले लोग 12,125 हर महीने खर्च करते हैं. छत्तीसगढ़ में लोग सबसे कम खर्च करते हैं. वहां गांव में रहने वाले लोग औसतन 2575 और शहर में रहने वाले लोग 4557 हर महीने खर्च करते हैं.
मेघालय में गांव और शहर के लोगों के खर्च में सबसे ज्यादा अंतर है. वहां शहर में रहने वाले लोग गांव वालों से 83% ज्यादा खर्च करते हैं. इसके बाद छत्तीसगढ़ और झारखंड का नंबर आता है, जहां यह अंतर 77% है. केंद्र शासित प्रदेशों की बात करें, तो चंडीगढ़ में लोग सबसे ज्यादा खर्च करते हैं.