बांधवगढ़ में तीन दिन में 9 हाथियों की मौत !
बांधवगढ़ में तीन दिन में 9 हाथियों की मौत …
एक हाथी ने जेसीबी के सहारे उठना चाहा, उठते-उठते दम तोड़ दिया
बुधवार को दैनिक भास्कर की टीम नेशनल पार्क पहुंची। आखिर अचानक इतनी संख्या में हाथियों की मौत की वजह क्या है और अफसर बाकी हाथियों को बचाने के लिए क्या कर रहे हैं?
30 अक्टूबर को बांधवगढ़ नेशनल पार्क का नजारा सामान्य दिनों की तरह नहीं है। दोपहर 12 बजे सलखनिया, खतौली और पतोर रेंज की सीमा पर खुले मैदान में 300 मीटर के दायरे में 10 हाथी पड़े हुए हैं। इनमें से सात हाथियों की मौत हो चुकी है। शवों का पोस्टमार्टम हो रहा है। पूरे इलाके में जानवर की सड़़न की बदबू फैली हुई है।
तीन हाथियों का इलाज करने के साथ ही डॉक्टर और वनकर्मी उसे खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ ही देर में हमारे सामने ही एक हाथी उठ कर जंगल की ओर चला जाता है। दूसरे का इलाज चल रहा है (जिसकी गुरुवार को मौत हो गई)। वहीं तीसरे हाथी को जेसीबी के सहारे उठाने की कोशिश चल रही है वो भी अपने पैर हिलाता है। देखकर ऐसा लगता है कि वो उठ जाएगा, लेकिन कुछ ही देर में उसका शरीर शांत पड़ जाता है। डॉक्टर उसे मृत घोषित कर देते हैं।
अब गुरुवार को एक और हाथी की मौत के बाद ये आंकड़ा 9 हो गया है। हाथियों की मौत का मामला सामान्य नहीं है। यहां वन विभाग के अफसरों और वेटरनरी डॉक्टरों की टीम हाथियों की सेहत पर नजर रखने के लिए कैम्प कर चुकी है।
वेटरनरी डॉक्टरों ने बताया कि बांधवगढ़ नेशनल पार्क स्थित सलखनिया बीट के गार्ड को 29 अक्टूबर की सुबह सवा 10 बजे पेट्रोलिंग के दौरान कैंप से 2 किमी दूर जमीन पर पड़े 2 हाथी दिखाई दिए थे। थोड़ा आगे जाने पर उन्हें एक हाथी झूमता हुआ दिखाई दिया।
आसपास और हाथियों के होने की आशंका पर अफसर वहां से वापस लौट गए और अपने सीनियर अधिकारी को इसकी सूचना दी। लगभग 2 बजे तक रेंजर सहित अन्य वन अमला मौके पर पहुंच गए। कुछ ही समय में उन्हें इस पूरे दायरे में 10 हाथी जमीन पर पड़े दिखाई दिए। डॉक्टर की टीम ने कुछ ही देर में 4 हाथियों को मृत घोषित कर दिया।
कोदो के खेत में मिला मूवमेंट
13 हाथियों का एक झुंड सलखनिया गांव में एक किसान के खेत में पहुंचा था। इस खेत में कोदो की फसल लगी थी, जिसमें से कुछ फसल की कटाई हो चुकी थी और वो खेत में ही सूखने के लिए पड़ी थी। कुछ हिस्से में हरी कोदो लगी हुई थी, वहां हाथियों का मूवमेंट नजर आया है।
खेत में हाथियों के घुसने के कारण उसकी लकड़ियों की बाड़ी टूटी पड़ी थी। खेत के अंदर भी हाथियों के खाने और चलने के कारण कोदो के पौधे नष्ट और दबे हुए हैं। बाकी सूखी फसल जस की तस जमीन पर पड़ी हुई है।
लोग ऐसे नहीं है कि हाथियों काे जहर दें
यहीं पास में निपानिया गांव के ग्रामीण मिले, ये अपने मवेशी चराने आए थे। इनमें से एक ने ऑफ कैमरा बताया कि इतना भयानक हादसा मैंने कभी नहीं देखा। मेरी इतनी उम्र हो गई है। एक-दो हाथी मरते थे, लेकिन इतना भयानक मंजर पहले कभी नहीं देखा। 8 हाथी का मर जाना कितनी बड़ी बात है। हाथी आते हैं, फसल को नुकसान भी पहुंचाते हैं। हमें मुआवजा भी नहीं मिलता, लेकिन ये सब चलता रहता है। पता नहीं कैसे इतना बड़ा हादसा हो गया। लोग ऐसे नहीं हैं कि इतने बड़े पैमाने पर जानबूझकर हाथियों को जहर दे दें।
सलखनिया के किसान सुखलाल सिंह ने बताया, हमें पता चला है कि यहां आस-पास कई हाथी मरे हैं। हम सुबह फॉरेस्ट टीम के लिए नाश्ता लेकर भी गए थे, लेकिन हमें देखने नहीं दिया। बघाइय्या, बमेरा और लखनिया होते हुए हाथियों का झुंड सलखनिया गांव आया था। हमारे गांव में फसल खाकर वे जंगल में रुक गए। फिर अगली रात फसल खाने आए।
एक हाथी का इलाज जारी
बांधवगढ़ नेशनल पार्क के डिप्टी डायरेक्टर पी.के. वर्मा ने बताया कि दोपहर को जैसे ही जानकारी मिली सारे रेंज ऑफिसर के साथ हम मौके पर पहुंच गए। हमने सारे डॉक्टरों को भी तुरंत बुला लिया।
13 हाथियों का झुंड था। चार हाथियों की मौत हो चुकी थी। हम रात भर डॉक्टर के साथ बाकी हाथियों को बचाने के लिए इलाज कर रहे थे, लेकिन रात में अलग-अलग समय पर तीन और हाथियों की मौत हो गई। एक हाथी की मौत बुधवार दोपहर में हुई। इस तरह कुल 8 हाथियों की मौत हो चुकी है। एक हाथी का इलाज अभी चल रहा है। एक हाथी पूरी तरह स्वस्थ होकर जंगल की ओर चला गया।
घटना के बाद फॉरेंसिक टीम ने घटनास्थल पर और उसके आसपास के कुछ किलोमीटर के दायरे में जांच की। आसपास के जलाशय की जांच भी की, हमें कुछ भी जहरीला पदार्थ नहीं मिला। यूरिया खाने के भी कोई संकेत नहीं मिले हैं। हाथियों के मुंह से झाग और यूरिया की गंध नहीं आ रही थी। कई हाथियों की मौत काफी देर बाद हुई, इसलिए सल्फास की भी संभावना कम है। हाथियों का पोस्टमार्टम करके उन्हें दफना दिया है।

